शनिवार, 22 जून 2013

केदारनाथ की तबाही क्यों ? जिम्मेदार कौन ?































फरीदाबाद के सेक्टर 7 के पुष्पक गुप्ता पत्नी और दो बच्चियों के साथ केदारनाथ गए थे। ये अभी २२/६/२०१३ तक वहीं फंसे हुए हैं। पुष्पक के भाई पंकज ने बताया-उनके पास खाने को कुछ नहीं है। 2 पैकेट नमकीन के सहारे 4 दिन गुजार दिए। हालत खराब हैं। बच्चे भूख के मारे बेहोश हो रहे हैं। मदद के लिए कोई सुनने को तैयार नहीं। केदारनाथ धाम में आए कहर ने सभी को हिला कर रख दिया है। वहां फंसे सभी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह 11 जून को हेमकुंट साहिब में माथा टेकने के लिए घर से निकले सिटी के महावीर नगर के राजदीप सिंह सिद्धू को मालूम नहीं था कि उन्हें मौत का ऐसा तांडव देखना पड़ेगा जिससे उनकी रूह कांप जाएगी। अपने सामने बेमौत मर रहे लोगों को देखकर राजदीप का साथी तो अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा। इसी तरह की हजारो सत्य  कहानिया है इन सभी सत्य कहानियो के बाद मन में बेबस ही एक प्रश्न उठ रहा है की आखिर इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं कजिम्मेदार कौन ?

         उत्तराखंड में कुदरत के कहर ने कितनी जिंदगियां ली हैं ये अब तक साफ नहीं है लेकिन हजारों की मौत के गम में डूबे देश के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। आखिर उत्तराखंड में मची भयानक तबाही का जिम्मेदार कौन है। क्या ये सिर्फ प्राकृतिक आपदा है या इस आपदा की वजह भी हम ही हैं। जानकारों की मानें तो हमने अपने पहाड़ों और नदियों के साथ इस......









......कदर खिलवाड़ किया है कि आज वो मौत बनकर हम पर टूट रहे हैं। सवाल ये कि क्या इस तबाही से भी हम कुछ सीख पाएंगे ?
         उत्तराखंड के पहाड़ पर्यटन का भारी दबाव झेल नहीं पा रहे। 8 साल में यहां गाड़ियों की संख्या 83 हजार से बढ़कर 1 लाख 80 हजार हो गई है। हर साल राज्य के बाहर से आने वाली 1 लाख गाड़ियां अलग हैं। गाड़ियों की बढ़ती संख्या का सीधा असर भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं में देखा जा रहा है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या के साथ होटलों और गेस्ट हाउस की संख्या में भी जबर्दस्त इजाफा हुआ। नदी के किनारे कंक्रीट से पट गए हैं। बाढ़ के पानी को समेटने वाली समतल जमीन पर टाउनशिप बन गई है।
दरअसल पहाड़ की जिंदगी को हम समझ नहीं पाए हैं। स्थानीय लोग आज भी पहाड़ की ढलान पर लकड़ी या मिट्टी का घर बनाते हैं। लेकिन पनबिजली के विकास के लिए बड़े-बड़े बांध बन रहे हैं। जिससे नदी किनारे की मिट्टी कमजोर हो रही है।
               9 हजार मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए गंगा की सहायक नदियों पर 70 बांध बनाने की योजना है। इसके लिए हिमालय की नदियों को तोड़ा-मरोड़ा जाएगा, बड़ी सुरंगें बनाई जाएंगी। योजना का असर भागीरथी पर 85 फीसदी और अलकनंदा पर 65 फीसदी तक पड़ेगा। जो बांध पहले बन चुके हैं उसका असर क्या हो रहा है वो हमारे सामने है।













सरकार अब बाढ़ के लिए वार्निंग सिस्टम लगाने की बात कर रही है। लेकिन जरा आंकड़े देखिए। 2008 में प्रकाशित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशानिर्देशों में सितंबर 2009 तक पहाड़ी राज्यों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने का लक्ष्य तय किया गया था। उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में आज तक ये सिस्टम लग नहीं पाया।इसका जबाब किसी के पास नहीं है की अभी ये सिस्टम क्यों नहीं लगे ? 
        खतरा यहीं खत्म नहीं होता। हिमालय में 8 हजार झील हैं जिसमें से 200 काफी खतरनाक मानी जाती हैं। ये उत्तराखंड और हिमाचल के ऊपर हैं। भारी बरसात में ये झील सारी हदों तो तोड़ते हुए बाढ़ लाती हैं। विज्ञान ये साबित कर चुका है कि इन झीलों से मचने वाली तबाही और बादल फटने की घटनाएं सीधे-सीधे ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी हैं।अब यहाँ सीधा सा प्रश्न यह उठता है की इस  ग्लोबल वॉर्मिंग के  लिए जिम्मेदार कौन ?
             पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन के मुताबिक वे व्यक्तिगत रूप से मानती हैं कि पर्वतीय राज्यों को संवेदनशील घोषित करना चाहिए। सवाल ये कि वो ये बात अपनी कांग्रेश की  सरकार को क्यों नहीं समझा पा रही। क्या राजनीति आम लोगों की जिंदगी से ज्यादा कीमती है ?

              पर दुःख मुझे इस बात का है की इस देश के बड़े बड़े  उद्योगिक घराने और  नेता ,अभिनेता , ने कोई मदद नहीं किया अभी तक
           


प्रभु आपने अपना आशियाना तो बचा लिया पर अपने भक्तो के साथ ऐसा क्यों किया ? यदि आप है तो जबाब चाहिए आपसे


अंत में इस ब्लाग के माध्यम से सभी वीर सैनिको को सादर नमन