बुधवार, 9 मई 2012

!! दरगाह अजमेर शरीफ और हिन्दुओं की अज्ञानता !!

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी की भारत यात्रा का नया शगूफा अजमेर की यात्रा और ख्वाजा गरीब नवाज़ की दरगाह पर जाकर मन्नत मांगना. इस यात्रा के दो मुख्य पहलु हैं एक राजनैतिक जो इस लेख का विषय नहीं हैं दूसरा धार्मिक जिसमें विशेष रूप से अजमेर की यात्रा हैं. यह ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती जिन्हें गरीब नवाज़ भी कहा जाता हैं कौन थे? यह इतने प्रसिद्ध कैसे हो गए? क्या उनकी दरगाह पर जाकर मन्नत मांगने से हिंदुयों का भला होता हैं? क्या उनकी दरगाह पर मन्नत मांगने वालो की सभी मन्नते पूरी होती हैं?
कहाँ से आये थे? इन्होने हिंदुस्तान में क्या किया और इनकी कब्र पर चादर चदाने से हमे सफलता कैसे प्राप्त होती हैं? गरीब नवाज़ का जन्म ११४१ में अफगानिस्तान में हुआ था .गरीब नवाज़ भारत में लूटपाट करने वाले , हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करने वाले ,भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान को हराने वाले व जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करने वाले मुहम्मद गौरी के साथ भारत में शांति का पैगाम? लेकर आये थे.पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके फिर अजमेर जाते हुए उन्होंने करीब ७०० हिन्दुओ को इस्लाम में दीक्षित किया(Ref- page 117 vol. 1 a history of Sufism in India –Saiyid Athar Abbas Rizvi). अजमेर में वे जिस स्थान पर रुके उस स्थान पर तत्कालीन हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान का राज्य था. ख्वाजा के बारे में चमत्कारों की अनेको कहानियां प्रसिद्ध हैं की जब राजा पृथ्वी राज के सैनिको ने ख्वाजा के वहां पर रुकने का विरोध किया क्योंकि वह स्थान राज्य सेना के ऊँटो को रखने का था तो पहले तो ख्वाजा ने मना कर दिया फिर क्रोधित होकर शाप दे दिया की जाओ तुम्हारा कोई भी ऊंट वापिस उठ नहीं सकेगा. जब राजा के कर्मचारियों नें देखा की वास्तव में ऊंट उठ नहीं पा रहे हैं तो वे ख्वाजा से माफ़ी मांगने आये और फिर कहीं जाकर ख्वाजा ने ऊँटो को दुरुस्त कर दिया. दूसरी कहानी अजमेर स्थित आनासागर झील की हैं. ख्वाजा अपने खादिमो के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने एक गाय को मारकर उसका कबाब बनाकर खाया.कुछ खादिम पनसिला झील पर चले गए कुछ आनासागर झील पर ही रह गए .उस समय दोनों झीलों के किनारे करीब १००० हिन्दू मंदिर थे, हिन्दू ब्राह्मणों ने मुसलमानों के वहां पर आने का विरोध किया और ख्वाजा से शिकायत करी.ख्वाजा ने तब एक खादिम को सुराही भरकर पानी लाने को बोला.जैसे ही सुराही को पानी में डाला तभी दोनों झीलों का सारा पानी सुख गया. ख्वाजा फिर झील के पास गए और वहां स्थित मूर्ति को सजीव कर उससे कलमा पढवाया और उसका नाम सादी रख दिया.ख्वाजा के इस चमत्कार की सारे नगर में चर्चा फैल गयी. पृथ्वीराज चौहान ने अपने प्रधान मंत्री जयपाल को ख्वाजा को काबू करने के लिए भेजा. मंत्री जयपाल ने अपनी सारी कोशिश कर डाली पर असफल रहा और ख्वाजा नें उसकी सारी शक्तिओ को खत्म कर दिया. राजा पृथ्वीराज चौहान सहित सभी लोग ख्वाजा से क्षमा मांगने आये. काफी लोगो नें इस्लाम कबूल किया पर पृथ्वीराज चौहान ने इस्लाम कबूलने इंकार कर दिया. तब ख्वाजा नें भविष्यवाणी करी की पृथ्वी राज को जल्द ही बंदी बना कर इस्लामिक सेना के हवाले कर दिया जायेगा..(Ref- ali asghar chisti- jawahir-I faridi , Lahore 1884, pp.155-160 ) .बुद्धिमान पाठकगन स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं की इस प्रकार के करिश्मो को सुनकर कोई मुर्ख ही इन बातों पर विश्वास ला सकता हैं
निजामुद्दीन औलिया जिसकी दरगाह दिल्ली में स्थित हैं ने भी ख्वाजा का स्मरण करते हुए कुछ ऐसा ही लिखा हैं. उनका लिखना हैं की न चाहते हुए भी ख्वाजा की चमत्कारी शक्तियों के कारण पृथ्वीराज चौहान को ख्वाजा का अजमेर में रहना स्वीकार करना पड़ा. ख्वाजा का एक खादिम जो की मुस्लिम था से पृथ्वीराज किसी कारण से असंतुष्ट हो गया. तब ख्वाजा ने पृथ्वीराज को उस पर कृपा दृष्टि बनाये रखने के लिए कहा जिसे पृथ्वीराज ने मना कर दिया. इस पर ख्वाजा ने भविष्यवाणी कही की कुछ ही समय में पृथ्वीराज को पकड़ कर इस्लाम कि सेना के हवाले कर दिया जायेगा और कुछ समय बाद मुआम्मद गोरी ने आक्रमण कर पृथ्वीराज के राज्य का अंत कर दिया.(Ref- amir khwurd, siyaru’l – auliya, delhi,1885,pp.45-47)
भारत से सदा सदा के लिए हिन्दू वैदिक धर्म का राज्य मिताने वाले ख्वाजा गरीब नवाज़ कि दरगाह पर जाकर मन्नत मांगने वालों से , पूरे देश में स्थान स्थान पर बनी कब्रों पर हर वीरवार को जाकर मन्नत करने वालों से मेरे कुछ प्रश्न हैं-
१.क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूँकि हैं वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती हैं?
२. सभी कब्र उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?
३. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा ३३ करोड़ देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं?
४. जब गीता में श्री कृष्ण जी महाराज ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?
५. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं?
६. क्या संसार में इससे बड़ी मुर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता हैं?
७. हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं हैं जो वेदों- उपनिषदों में कहीं नहीं गयीं हैं?
८. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?
आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा . अगर आप आर्य राजा राम और कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में बता कर उनका अंध विश्वास दूर करे.........
डॉ विवेक आर्य

!!!! वेदों में भी है नारी सर्वत्र पूज्यते !!

स्वामी दयानंद की वेद भाष्य को देन- भाग ५
स्वामी दयानंद के काल में भारत देश में नारी जाति की अवस्था अत्यंत दयनीय थी. एक तरफ तो १००० वर्षो से मुस्लिम अक्रांताओ द्वारा नारी जाति का जो सम्मान बलात्कार,अपहरण,हरम, हत्या, पर्दा, सौतन, जबरन धरमांतरण आदि के रूप में किया गया था वह अत्यंत शोचनीय था. दूसरी तरफ हिन्दू समाज भी समय के साथ कुछ कुरीतिया ग्रहण कर चूका था जैसे सती प्रथा,बाल विवाह,देवदासी प्रथा, अशिक्षा, समाज में नारी का नीचा स्थान, विधवा का अभिशाप,नवजात कन्या की हत्या आदि.समाज में नारी के विषय में यह प्रचलित कर दिया गया था की जो नारी वेद मंत्र को सुन ले तो उसके कानों में गर्म सीसा डाल देना चाहिए और जो बोल दे तो उसकी जिव्हा को अलग कर देना चाहिए. कोई उसे पैर की जूती कहने में अपना बड़प्पन समझता था तो कोई उसे ताड़न की अधिकारी समझता था.
धार्मिक ग्रंथो का अनुशीलन करते हुए स्वामी दयानंद ने पाया की धर्म के नाम पर नारी जाति को समाज में जिस प्रकार से तिरस्कृत किया जा रहा था सत्य उसके बिलकुल विपरीत था.
वेद हिन्दू समाज ही नहीं अपितु समस्त विश्व समाज के लिए अनुसरण करने योग्य ईश्वरीय ज्ञान हैं.नारी जाति का जितना उच्च स्थान वेदों में ऋषि दयानंद ने पाया उसका अंश भर भी विश्व के किसी भी मत की पुस्तक में देखने को नहीं मिलता.
स्वामी दयानंद द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश में नारी जाति के उत्थान का उद्घोष
जन्म से पांचवे वर्ष तक के बालकों को माता तथा छ: से आठवें वर्ष तक पिता शिक्षा करे और ९ वें के प्रारंभ में द्विज अपने संतानों का उपनयन करके जहाँ पूर्ण विद्वान तथा पूर्ण विदुषी स्त्री , शिक्षा और विद्या-दान करने वालो हो वहां लड़के तथा लडकियों को भेज दे. (द्वितीय सम्मुलास)
ऋषि दयानंद लड़कियों को लड़कों के बराबर की शिक्षा के लिए सन्देश दे रहे हैं.
लड़कों को लड़कों की तथा लड़कियों को लकड़ियों की शाला में भेज देवें, लड़के तथा लड़कियों की पाठशालाएँ एक दुसरे से कम से कम दो कोस की दुरी पर हो. (तृतीय सम्मुलास)
सह शिक्षा के कारण चरित्र का हनन होता हैं इसका प्रमाण हमे रोजमर्रा में देखने को मिलता हैं.स्वामी दयानंद की दूरगामी सोच का अगर पालन होता तो जाने कितनो के चरित्र की रक्षा हो जाती.
जो वहां अध्यापिका और अध्यापक अथवा भृत्य, अनुचर हों, वे कन्यायों की पाठशाला में सब स्त्री तथा पुरुषों की पाठशाला में सब पुरुष रहें. स्त्रियों की पाठशाला में पांच वर्ष का लड़का और पुरुषों की पाठशाला में पांच वर्ष की लड़की भी न जाने पाए. (सत्यार्थ प्रकाश- तृतीय सम्मुलास)
जब तक वे ब्रहाम्चारिणी रहे, तब तक पुरुष का दर्शन, स्पर्शन, एकांत सेवन, भाषण, विषय-कथा, परस्पर क्रीरा, विषय का ध्यान और संग इन आठ प्रकार के मैथुनों से अलग रहे. (सत्यार्थ प्रकाश- तृतीय सम्मुलास)
भाव स्पष्ट हैं माता और पिता का चरित्र अगर उज्जवल होगा तो संतान की उत्पत्ति भी सुयोग्य एवं चरित्रवान होगी.
इसमें राजनियम और जाती नियम होना चाहिए कि पांचवे अथवा आठवें वर्ष से आगे अपने लड़के और लड़कियों को घर में न रख सकें, पाठशाला में अवश्य भेज देवें. जो न भेजे वह दंडनीय हो. (सत्यार्थ प्रकाश- तृतीय सम्मुलास)
स्वामी दयानंद नारी शिक्षा के महत्व को यथार्थ में समझते थे क्यूंकि माता ही शिशु की प्रथम गुरु होती हैं इसलिए उसका शिक्षित होना अत्यंत महत्व पूर्ण होता हैं.
सती प्रथा वेद विरुद्ध हैं और विधवा का पुनर्विवाह वेद संगत हैं.
1875 में स्वामी दयानंद ने पूना में दिए गए अपने प्रवचन में स्पष्ट घोषणा की थी की “सती होने के लिए वेद की आज्ञा नहीं हैं”
सायण ने अथर्ववेद १९.३.१ के मंत्र में सती प्रथा दर्शाने का प्रयास किया हैं – यह नारी अनादीशिष्टाचारसिद्ध, स्मृति पुराण आदि में प्रसिद्द सहमरणरूप धर्म का परीपालन करती हुई पतिलोक को अर्थात जिस लोक में पति गया हैं उस स्वर्गलोक को वरण करना चाहती हुई तुझ मृत के पास सहमरण के लिए पहुँच रही हैं. अगले जन्म में तू इसे पुत्र- पौत्रादि प्रजा और धन प्रदान करना. सायण कहते हैं अगले जन्म में भी उसे वही पति मिलेगा.इसलिए ऐसा कहा गया हैं.
इस मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार हैं – यह नारी पुरातन धर्म का पालन करती हुई पतिगृह को पसंद करती हुई हे मरण धर्मा मनुष्य , तुझ मृत के समीप नीचे भूमि पर बैठी हुई हैं. उसे संतान और सम्पति यहाँ सौप.
अर्थात पति की मृत्यु होने के बाद पत्नी का सम्पति और संतान पर अधिकार हैं.
हमारे कथन की पुष्टि अगले ही मंत्र १९.३.२ में स्वयं सायण करते हुए कहते हैं “हे मृत पति की धर्मपत्नी ! तू मृत के पास से उठकर जीवलोक में आ, तू इस निष्प्राण पति के पास क्यों परी हुई हैं? पाणीग्रहणकर्ता पति से तू संतान पा चुकी हैं, उसका पालन पोषण कर.’
मध्यकाल के बंगाल के कुछ पंडितो ने ऋग्वेद १०.१८.७ अग्रे के स्थान पर अग्ने पढकर सती प्रथा को वैदिक सिद्ध करना चाहा था, परन्तु यह केवल मात्र चल था इस मंत्र में वधु को अग्नि नहीं अपितु गृह प्रवेश के समय आगे चलने को कहा गया था.
विधवा के दोबारा विवाह के पक्ष में अथर्ववेद के मंत्र १८.३ में कहाँ गया हैं की मैंने विधवा युवती को जीवित मृतो के बीच से अर्थात शमशान भूमि से ले जाई जाती हुई तथा पुनर्विवाह के लिए जाती हुई देखा हैं. क्यूंकि यह पति विरह जन्य दुःख रूप घोर अंधकार से प्रवित थी इस कारण इसे पूर्व पत्नीत्व से हटाकर दूसरा पत्नीत्व मैंने प्राप्त करा दिया हैं.
अथर्ववेद ९/५/२७-२८ में कहाँ गया हैं की जो स्त्री पहले पति को प्राप्त करके पुन: उससे भिन्न पति को प्राप्त करती हैं, पुन: पत्नी होनेवाली स्त्री के साथ यह दूसरा पति एक ही गृहस्थलोक में वास करने वाला हो जाता हैं.
देवर से पुनर्विवाह के प्रमाण ऋग्वेद १०/४०/२ और निरुक्त ३/१४ में भी मिलते हैं.
इस प्रकार यह सिद्ध होता हैं की वेदों में सटी प्रथा जैसा महापाप नहीं अपितु पुनर्विवाह की अनुमति हैं.
वेदों में पुत्रियों की कामना की गयी हैं
समाज में आज कन्या भ्रूण हत्या का महापाप प्रचलित हो गया हैं जिसका मुख्य कारण नारी जाति का समाज में उचित सम्मान न होना, दहेज जैसे कुरीतियों का होना ,समाज में बलात्कार जैसी घटनाओं का बढ़ना ,चरित्र दोष आदि जिससे नारी जाति की रक्षा कर पाना कठिन हो जाना आदि मुख्य कारण हैं. कुछ का तर्क देना हैं की वेद नारी को हीन दृष्टी से देखता हैं और वेदों में सर्वत्र पुत्र ही मांगे गए हैं, पुत्रियों की कामना नहीं की गयी हैं. वेदों के प्रमाण जिनमे नारी की यश गाथा का वर्णन हैं.
ऋग्वेद १०.१५९.३ – मेरे पुत्र शत्रु हन्ता हों और पुत्री भी तेजस्वनी हो .
ऋग्वेद ८/३१/८ यज्ञ करने वाले पति-पत्नी और कुमारियोंवाले होते हैं.
ऋग्वेद ९/६७/१० प्रति प्रहर हमारी रक्षा करने वाला पूषा परमेश्वर हमें कन्यायों का भागी बनायें अर्थात कन्या प्रदान करे.
यजुर्वेद २२/२२ – हमारे राष्ट्र में विजयशील सभ्य वीर युवक पैदा हो , वहां साथ ही बुद्धिमती नारियों के उत्पन्न होने की भी प्रार्थना हैं.
अथर्ववेद १०/३/२०- जैसा यश कन्या में होता हैं वैसा यश मुझे प्राप्त हो.
वेदों में पत्नी को उषा के सामान प्रकाशवती, वीरांगना, वीर प्रसवा, विद्या अलंकृता, स्नेहमयी माँ, पतिव्रता, अन्नपूर्णा, सदगृहणी, सम्राज्ञी आदि से संबोधित किया गया हैं जो निश्चित रूप से नारी जाति को उचित सम्मान प्रदान करते हैं.
दहेज का सही अर्थ न समझकर आज धन के लोभ में हजारों नारियों को निर्दयता से आग में जला कर भस्म कर दिया जाता हैं. इसका मुख्य कारण दहेज शब्द के सही अर्थ को न जानना हैं. वेदों में दहेज शब्द का सही अर्थ हैं पिता ज्ञान, विद्या, उत्तम संस्कार आदि गुणों के साथ वधु को वर को भेंट करे.
आज समाज अगर नारी की महता जैसी वेदों में कही गयी हैं उसको समझे तो निश्चित रूप से सभी का कल्याण होगा.
नारी जाति को यज्ञ का अधिकार
वैदिक काल में नारी जाति को यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था जिसे मध्य काल में वर्जित कर दिया गया. नारी का स्थान यज्ञवेदी से बाहर हैं (शतपथ ब्रह्मण २७/४) अथवा कन्या और युवती अग्निहोत्र की होता नहीं बन सकती (मनु ११/३६)
वेद नारी जाति को यज्ञ में भाग लेने का पूर्ण अधिकार देते हैं .
ऋग्वेद ८/३१/५-८ में कहा गया हैं की जो पति-पत्नी समान मनवाले होकर यज्ञ करते हैं उन्हें अन्न, पुष्प, हिरण्य आदि की कमी नहीं रहती.
ऋग्वेद १०/८५/४७ – विवाह यज्ञ में वर वधु उच्चारण करते हुए एक दुसरे का ह्रदय-स्पर्श करते हैं.
ऋग्वेद १/७२/५ – विद्वान लोग पत्नी सहित यज्ञ में बैठते हैं और नमस्करणीय को नमस्कार करते हैं.
इस प्रकार यजुर्वेद में ३/४४, ३/४५,३/४७,३/६०,११/५,१५/५०, अथर्ववेद ३/२८/६ , ३/३०/६, १४/२/१८, १४/२/२३, १४/२/२४ में भी यज्ञ में नारी के भाग लेने के स्पष्ट प्रमाण हैं.
ऋग्वेद ८/३३/१९ में स्त्री हि ब्रह्मा बभूबिथ अर्थात स्त्री यज्ञ की ब्रह्मा बनें कहा गया हैं.
नारी जाति को शिक्षा का अधिकार
स्वामी दयानंद ने “स्त्रीशूद्रो नाधियातामिति श्रुते:” – स्त्री और शूद्र न पढे यह श्रुति हैं को नकारते हुए वैदिक काल की गार्गी, सुलभा, मैत्रयी, कात्यायनी आदि सुशिक्षित स्त्रियों का वर्णन किया जो ऋषि- मुनिओं की शंकाओं का समाधान करती थी.
ऋग्वेद ६/४४/१८ का भाष्य करते हुए स्वामी दयानंद लिखते हैं राजा ऐसा यत्न करे जिससे सब बालक और कन्यायें ब्रहमचर्य से विद्यायुक्त होकर समृधि को प्राप्त हो सत्य, न्याय और धर्म का निरंतर सेवन करे.
यजुर्वेद १०/७- राजा को प्रयत्नपूर्वक अपने राज्य में सब स्त्रियों को विदुषी बनाना चाहिए.
ऋग्वेद ३/१/२३- विद्वानों को यही योग्यता हैं की सब कुमार और कुमारियों को पुन्दित बनावे, जिससे सब विद्या के फल को प्राप्त होकर सुमति हों.
ऋग्वेद २/४१/१६- जितनी कुमारी हैं वे विदुषियों से विद्या अध्ययन करे और वे कुमारी ब्रह्मचारिणी उन विदुषियों से ऐसी प्रार्थना करें की आप हम सबको विद्या और सुशिक्षा से युक्त करें.
इस प्रकार यजुर्वेद ११/३६ , ६/१४ ,११/५९ एवं ऋग्वेद १/१५२/६ में भी नारी को शिक्षा का अधिकार दिया गया हैं.
वेदों में बहु-विवाह आदि विषयक भ्रान्ति का निवारण
वेदों के विषय में एक भ्रम यह भी फैलाया गया हैं की वेदों में बहुविवाह की अनुमति दी गयी हैं (vedic age pge 390).
ऋग्वेद १०/८५ को विवाह सूक्त के नाम से जाना चाहता हैं. इस सूक्त के मंत्र ४२ में कहा गया हैं तुम दोनों इस संसार व गृहस्थ आश्रम में सुख पूर्वक निवास करो. तुम्हारा कभी परस्पर वियोग न हो. सदा प्रसन्नतापूर्वक अपने घर में रहो.
ऋग्वेद १०/८५/४७ मंत्र में हम दोनों (वर-वधु) सब विद्वानों के सम्मुख घोषणा करते हैं की हम दोनों के ह्रदय जल के समान शांत और परस्पर मिले हुए रहेंगे.
अथर्ववेद ७/३५/४ में पति पत्नी के मुख से कहलाया गया हैं की तुम मुझे अपने ह्रदय में बैठा लो , हम दोनों का मन एक ही हो जाये.
अथर्ववेद ७/३८/४ पत्नी कहती हैं तुम केवल मेरे बनकर रहो. अन्य स्त्रियों का कभी कीर्तन व व्यर्थ प्रशंसा आदि भी न करो.
ऋग्वेद १०/१०१/११ में बहु विवाह की निंदा करते हुए वेद कहते हैं जिस प्रकार रथ का घोड़ा दोनों धुराओं के मध्य में दबा हुआ चलता हैं वैसे ही एक समय में दो स्त्रियाँ करनेवाला पति दबा हुआ होता हैं अर्थात परतंत्र हो जाता हैं.इसलिए एक समय दो व अधिक पत्नियाँ करना उचित नहीं हैं.
इस प्रकार वेदों में बहुविवाह के विरुद्ध स्पष्ट उपदेश हैं.
वेद बाल विवाह के विरूद्ध हैं
हमारे देश पर विशेषकर मुस्लिम आक्रमण के पश्चात बाल विवाह की कुरीति को समाज ने अपना लिया जिससे न केवल ब्रहमचर्य आश्रम लुप्त हो गया बल्कि शरीर की सही ढंग से विकास न होने के कारण एवं छोटी उम्र में माता पिता बन जाने से संतान भी कमजोर पैदा होती गयी जिससे हिन्दू समाज दुर्बल से दुर्बल होता गया.
अथर्ववेद के ब्रहमचर्य सूक्त ११.५ के १८ वें मंत्र में कहा गया हैं की ब्रहमचर्य (सादगी, संयम और तपस्या) का जीवन बिता कर कन्या युवा पति को प्राप्त करती हैं.
युवा पति से ही विवाह करने का प्रावधान बताया गया हैं जिससे बाल विवाह करने की मनाही स्पष्ट सिद्ध होती हैं.
ऋग्वेद १०/१८३ में वर वधु मिलकर संतान उत्पन्न करने की बात कह रहे हैं. वधु वर से मिलकर कह रही हैं की तो पुत्र काम हैं अर्थात तू पुत्र चाहता हैं वर वधु से कहता हैं की तू पुत्र कामा हैं अर्थात तू पुत्र चाहती हैं. अत: हम दोनों मिलकर उत्तम संतान उत्पन्न करे.पुत्र उत्पन्न करने की कामना युवा पुरुष और युवती नारी में ही उत्पन्न हो सकती हैं. छोटे छोटे बालक और बालिकाओं में नहीं.
इसी भांति अथर्ववेद २/३०/५ में भी परस्पर युवक और युवती एक दुसरे को प्राप्त करके कह रहे हैं की मैं पतिकामा अर्थात पति की कामना वाली और यह तू जनीकाम अर्थात पत्नी की कामना वाला दोनों मिल गए हैं.युवा अवस्था में ही पति-पत्नी की कामना की इच्छा हो सकती हैं छोटे छोटे बालक और बालिकाओं में नहीं.
वेदों में नारी की महिमा
संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं.कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे.
१. उषा के समान प्रकाशवती-
ऋग्वेद ४/१४/३
हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ.
२. वीरांगना-
यजुर्वेद ५/१०
हे नारी! तू स्वयं को पहचान. तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर.
३. वीर प्रसवा
ऋग्वेद १०/४७/३
राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे
हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो.
४. विद्या अलंकृता
यजुर्वेद २०/८४
विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.
५. स्नेहमयी माँ
अथर्वेद ७/६८/२
हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो.
६. अन्नपूर्ण
अथर्ववेद ३/२८/४
इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर.
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:
जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं.............

!! महगाई बढ़ने में इस सरकार का क्या दोष ?

मुझे समझ नहीं आता लोग क्यों सरकार को बुरा भला बोलते है ,ये सरकार जो भी कर रही है हमारे भले के लिए ही तो कर रही है
अब देखो सब्जी इतनी महगी कर दी की आप खरीद ही न सको यानि ज्यदातर उपवास करो आप की सेहत सही रहेगी पेट्रोल महंगा कर दिया ताकि आप कुछ पैदल भी चलो किस के लिए आप की सेहत के लिए  दूध महंगा कर दिया क्योकि मिलावटी दूध पीने से आप बीमार पड़ सकते हो अब ये इतना महंगा कर देगे की आप खरीद ही न पाओ ..किस लिए आप की सेहत के लिए इतना तो ध्यान रखती है आप का,और आप लोग बस .कुछ भी बोलते रहते हो सरकार को..हा हा हा हा हा हा हा हा ......
बेचारी सरकार आखिकार कब तक महगाई को रोके ? आप तो रोज रोज नए नए जीव इस धरती में लाये जा रहे हो क्या सरकार ने कहा था की इस जीव को लाओ इस धरती पर भूखा मरने के लिए महगाई के नाम पर रोने के लिए ....आज एक शिशु पैदा होता है तो क्या रोता है ..हाय महगाई ..हाय महगाई ...हाय हाय ........और माँ चुप करती है और कहती है की चुप हो जा बेटा दूध बहुत महगा है और खून बहुत सस्ता है इस महगाई में चुप हो जा मत रो ....
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