शिक्षक दिवस पर आप सभी को बहुत बहुत शुभ कामनाये ।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरूर देवो महेश्वराय ।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।
----गुरू को साक्षात परब्रह्म की संज्ञा दी गई है----
गुरु एक परिवर्तनकारी बल है । जहाँ गुरु की कृपा है, वहाँ विजय है । गुरु-शिष्य का संबंध तर्क के बजाय आस्था, श्रद्धा और भक्ति पर केंद्रित होता है। भावना का उफान या उत्तेजना गुरु भक्ति नहीं है। भक्ति का आशय समर्पण है। शिष्य का गुरु के प्रति जितना समर्पण होगा, उतना ही गुरु-शिष्य का संबंध प्रगाढ़ होगा। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह गुरु का चयन करते समय तर्क-वितर्क, सत्य-असत्य जैसे तमाम पहलुओं को अच्छी तरह परखे। मन में कोई संशय बाकी नहीं रहना चाहिए, क्योंकि समर्पण के अभाव कें गुरु भक्ति निरर्थक है ।
जहा तक मेरा सोचना है की दुःख ही सबसे बड़ा शिक्षक है दुखों की पाठशाला में पढ़ा-लिखा और पका व्यक्ति अनायास ही सर्वश्रेष्ठ बन जाता है । मनुष्य जितना सुविधाओं और सुख-साधनों में रहकर नहीं सीखता उससे अधिक कठिनाइयां और अभाव ही उसे तराशती और मांजती और सुयोग्य बनाती हैं। सबक यह कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों या मुसीबतों को तप या व्यायाम समझकर सदा हंसकर सामना करना चाहिये। ऐसा करने से व्यक्ति बेहद शक्तिशाली और अजैय यौद्धा बन जाता है। सुख नहीं दु:ख ही हमारा सबसे बड़ा शिक्षक है ।
इस दुःख और संघर्ष का जीता जागता उदाहरण मैं (नागेश्वर सिंह बाघेल) स्वयं हु ।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरूर देवो महेश्वराय ।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।
----गुरू को साक्षात परब्रह्म की संज्ञा दी गई है----
गुरु एक परिवर्तनकारी बल है । जहाँ गुरु की कृपा है, वहाँ विजय है । गुरु-शिष्य का संबंध तर्क के बजाय आस्था, श्रद्धा और भक्ति पर केंद्रित होता है। भावना का उफान या उत्तेजना गुरु भक्ति नहीं है। भक्ति का आशय समर्पण है। शिष्य का गुरु के प्रति जितना समर्पण होगा, उतना ही गुरु-शिष्य का संबंध प्रगाढ़ होगा। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह गुरु का चयन करते समय तर्क-वितर्क, सत्य-असत्य जैसे तमाम पहलुओं को अच्छी तरह परखे। मन में कोई संशय बाकी नहीं रहना चाहिए, क्योंकि समर्पण के अभाव कें गुरु भक्ति निरर्थक है ।
जहा तक मेरा सोचना है की दुःख ही सबसे बड़ा शिक्षक है दुखों की पाठशाला में पढ़ा-लिखा और पका व्यक्ति अनायास ही सर्वश्रेष्ठ बन जाता है । मनुष्य जितना सुविधाओं और सुख-साधनों में रहकर नहीं सीखता उससे अधिक कठिनाइयां और अभाव ही उसे तराशती और मांजती और सुयोग्य बनाती हैं। सबक यह कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों या मुसीबतों को तप या व्यायाम समझकर सदा हंसकर सामना करना चाहिये। ऐसा करने से व्यक्ति बेहद शक्तिशाली और अजैय यौद्धा बन जाता है। सुख नहीं दु:ख ही हमारा सबसे बड़ा शिक्षक है ।
इस दुःख और संघर्ष का जीता जागता उदाहरण मैं (नागेश्वर सिंह बाघेल) स्वयं हु ।