क्या हम इस प्रकार से एक दुसरे की धार्मिक भावनाओं का ख्याल नहीं रख सकते ? |
क्या हम इस तरह प्रेम से नहीं रह सकते ? |
बेकुसूर लोगो को इस तरह से खात्मा करने का हक़ किसने दिया इन्हें ? |
किसी का घर उजाड़ने का हक़ किसने दिया इन्हें ? |
आग लगाकर यू तमासा देख रहे है दंगाई क्या हक़ बनता है किसी का जीवन छीनने का ? |
अब बताये इसमें इन शहीदों का क्या दोष था ? |
” खुदा ने तो इंसान को बस इंसान बनाया,
हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया..!!
मालिक ने तो बक्शी थी हमें एक ही धरती,
हमने तो कहीं भारत तो कहीं इरान बनाया !!
ये सच है की संप्रदाय के आधार पर राष्ट्र बटें हैं लेकिन यही मज़हब आदमी को आदमी से जोड़ता भी है ! हमारे दिलों में इंसानियत के लिए दर्द और आदर्शों के लिए बलिदान का जज्बा भी कहीं न कहीं मज़हब की ही देन है ! मज़हब के बिना समाज या राष्ट्र की कल्पना भी बेमानी है, लेकिन जो बदरंग तस्वीर सामने आ रही है वह ये मानने पर मजबूर कर रही है की मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना….
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