बुधवार, 9 मार्च 2016

चालुक्य (सोलंकी) की उत्पत्ति




राजपूतो के 36 राजवंशो में से ख्याति प्राप्त राजपूतो में चालुक्य (सोलंकी) का अपना विशिष्ट स्थान है |
चालुक्यो की उत्पत्ति के सन्दर्भ में क्या – क्या उल्लेख मिलते है ? सबसे पूर्व उनको अंकित किया जाकर निष्कर्ष निकालते है |
विक्रमादित्य चरित (11 वी शती ) में लिखा है कि ब्रम्हा के चालू ( अर्थात – हथेली ) चालुक्यो की उत्पत्ति हुई | (विल्हण कृत विक्रमांकदेव चरित सर्ग प्रथम श्लोक 46, 47, और 55) इसमें सृष्टि के आदि पुरुष ब्रह्मा से चालुक्य की उत्पत्ति मानकर आदि पुरुष को याद किया गया है |
भविष्य पुराण, पृथ्वीराज रासो आदि में चालुक्य को चौहान, परमार, प्रतिहार के साथ अग्निवंशी भी माना गया है | सीधा सा अर्थ है | यह चारो क्षत्रिय सूर्यवंशी और चंद्रवंशी ही थे | लेकिन जब 21 वी परसुराम ने धरती को क्षत्रिय हीन किया था | पूरी श्रष्टि पर हाहाकार मचा हुआ था और राक्षसों ने मासूम प्राणी, जीव-जन्तुओ, को मारना और परेशान करना सुरु कर दिया उस समय धरती की रक्षा हेतु एक भी क्षत्रिय नहीं बचा, तब ऋषि – मुनियों ने आबू ( सिरोही – राजस्थान ) की सबसे ऊँची चोटी पर हवन कुण्ड किया और चार राजपूतो की उत्पत्ति हुई | आबू यज्ञ में शामिल होने के कारण इन चारो क्षत्रियो के वंशज चौहान, परमार, प्रतिहार, सोलंकी अग्निवंशी कहलाने लगे |
चालुक्य (सोलंकी) चालुक्यदेव मूलपुरुष थे, इस वंश का इसलिए चालुक्य राजवंश के नाम पड़ा लेकिन जैसे – जैसे समय निकलता गया चालुक्य से सोलंकी कहलाने लगे आओ विचार करे चालुक्यों को सोलंकी क्यूँ कहा जाता है | उत्तर के चालुक्य ने ‘च’ के स्थान पर ‘स’ का प्रयोग किया तब चोलुक्य का सोलुक्य – सोलक्के – सोलंकी हो गया | आज सोलंकी अधिक प्रचलित है |
सी. वी. वै ? अपने ग्रन्थ “हिन्दू भारत का उत्कर्ष” में लिखते है कि दक्षिण के चालुक्य राजपुताना के चालुक्यो से भिन्न है | दोनों क्षत्रिय है परन्तु मराठा चालुक्य (सोलंकी) अपने आप को सूर्यवंशी कहते है और गोत्र मानव्य बताते है | पर राजपुताना के चालुक्य अपने को अग्निवंशी कहते है और उनका गोत्र भारद्वाज है |
(हिन्दू भारत का उत्कर्ष पृष्ट 241) सी. वी. वैध को भिन्न गोत्र होने से दक्षिण और उत्तर के चालुक्य भिन्न मालूम पड़े परन्तु जैसा की पीछे लिखा जा चूका है कि राजपूतो के गोत्र उनके गुरु और पुरोहितो के गोत्र के होते है | अर्थात भिन्न गोत्र होने से वंश भिन्न नहीं होता है |
उदहारण के तोर पर – परमारों के गोत्र कहीं वशिष्ट, कहीं पाराशर, तो कहीं शांडीलया गोत्र है | यहाँ तो साक्ष्य प्रस्तुत किये गए है, वह प्राय: दक्षिण के चालुक्य के है | अत: दक्षिण के चालुक्य सूर्यवंशी नहीं हो सकते | सभी चालुक्य चंद्रवंशी पुरु, कुरु, अर्जुन पांडव, और उदयन की वा परंपरा में है |
हैहय (कलचुरी) वंशी युवराजदेव (वि.स. 1032-1057) के बिहारी (जबलपुर) के लेख में चालुक्य वंश को द्रोण के चुल से उत्पन्न होना लिखा है | (राष्ट्रकूट का इतिहास – विश्वेश्वरनाथ रेऊ पृष्ट 28) इस लेख में द्रोण की चुल से उत्पन्न होने का अर्थ द्रोण ब्राह्मण की संतान बताना सत्य से मुंह मोड़ना है | लेख की भाषा आलंकारिक है | इसका अर्थ केवल यही है कि द्रोण ने पांडव अर्जुन को अस्त्र – शस्त्र का ज्ञान दिया था | द्रोण और अर्जुन मात्र गुरु शिष्य थे | चालुक्य अर्जुन द्रोण के एक परम शिष्य थे | अर्जुन चालुक्य के वंशज होने के कारण आलंकारिक भाषा में द्रोण का शिष्य न कहकर द्रोण के चुलू से उत्पन्न होना अंकित किया है | चुलू से कोई संतान उत्पन्न नहीं होती | अत: इसका सार यही है कि चालुक्य, द्रोण के शिष्य अर्जुन के ही वंशज है |
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चालुक्य राजवंश (सोलंकी राजवंश) का प्राचीन इतिवृत -
चालुक्यो के शिलालेखो, दानपत्रों और साहित्य के आधार पर यह जाना जा सकता है कि चालुक्य (सोलंकी) महाभारत के पांडव अर्जुन के वंशज है | पांडव अर्जुन के बाद उदयन तक वंशक्रम पुराणों में { पांडू – अर्जुन – जनमेजय – शतानोक – सहस्रनोक – अश्वमेघदत्त – अधिसीम कृष्ण निपक्ष – भूरी –चित्ररथ – शुचिद्रथ – परीपल्व – सुनय – मेकाणी – मृपजजय – दुर्ग – विडमात्म – वृहद्रथ – वसुमान – शतानीक – वत्सराज – उदयन } | परीक्षत के पुत्र जनमेजय के पांचवे वंशज निचक्षु के काल में हस्तिनापुर गंगा की बाढ़ में बह गया था | अत: इस राजा ने कोशम्बी को अपनी राजधानी बनाया | कोशम्बी वत्स जनपद में थी | कोशल जनपद भी वत्स का पडोशी था, जिसकी राजधानी अयोध्या नगरी थी | पांडव अर्जुन के वंशज इस निचक्षु का ही वंशज ही उदयन था जिसका राज्य वत्स जनपद था | इसी उदयन के वंशजो ने सूर्यवंशी सुमित्र से अयोध्या का राज्य छूटने के बाद संभवत: अयोध्या पर नन्दों और मौर्यों के काल में सामंत के रूप में शासन किया होगा जैसा येवुर दानपत्र शक 975 विक्रमी 1110 में लिखा है कि उदयन के बाद इस चालुक्य वंश के 56 राजाओ ने अयोध्या में राज्य किया | (राष्ट्रकूट का इतिहास – रेऊ पृष्ट 9) (59 राजाओ के शासन की बात कहा तक सही है, कहा नहीं जा सकता है आगे चलकर उदयन के वंश में चालुक्य हुआ | मालूम होता है कि अशोक के पुत्रो के समय जब कन्नोज के ब्राह्मणों ने आबू पर्वत ( राजस्थान) पर ब्रम्ह होम किया तब वह भी वत्स या कौशल जनपद से चलकर आबू पंहुचा और आबू के ब्रम्ह होम में भाग लिया होगा | ब्रम्ह होम की इस घटना के बाद चार अग्निवंशी क्षत्रियों में से एक चालुक्य (सोलंकी) भी था |
वि.स. 1107 शक 972 के एक ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि चालुक्यो के मूलपुरुष चालुक्यदेव का विवाह कन्नोज के राष्ट्रकूट नरेश की कन्या से हुआ | ( सोलंकी राजा त्रिलोचनपाल के समय का ताम्रपत्र (इंडियन एन्टीकेरी भाग 2 पृष्ट 204 राष्ट्रकूटो का इतिहास पृष्ट 8 ) मालूम होता है | सुमित्र से अयोध्या का राज्य छीना जाने के बाद उसके वंशजो की एक शाखा कन्नोज की और से आ गयी थी | कन्नोज का नजदीकी ही वत्स जनपद था | अत: वहां के निवासी जयसिंह ने महाराष्ट्रा में अपना राज्य कायम किया | जयसिंह चालुक्य पहले पहले चालुक्य थे जिन्होंने चालुक्य वंश की नीव महाराष्ट्रा में डाली और महाराष्ट्र को अपना राज्य बनाया | यह घटना विक्रमी समंत 500 की है | यही से चालुक्य वंश ने अपना राज्य विस्तार बढाना शुरू किया था |
दक्षिण के राजराज के शक 975 विक्रमी स. 1110 के येबुर दानपत्र में लिखा है कि राजा उदयन के बाद उसके वंश के 59 राजाओ ने अयोध्या में राज्य किया | अंतिम राजा विजयादित्य ने दक्षिण में राज्य कायम किया | (राष्ट्रकूटो का इतिहास – रेऊ पृष्ट 9) उदयन पांडव अर्जुन के पोत्र परीक्षत को वंश परंपरा का था जो अयोध्या के पास वत्स पर शासन करता था |
अनेको शिलालेखो, ताम्रपत्रो, साहित्य में लिखा हुआ है कि चालुक्य (सोलंकी) चंद्रवंशी थे |
कल्याणी (दक्षिण) के चालुक्य नरेश विक्रमदेव के वि.स. 1133 व 1183 के शिलालेखी में भी लिखा है कि चालुक्य वंश की उत्पत्ति चन्द्रवंश से हुई थी | (भारत का इतिहास (राजपूत काल) डॉ. सत्यप्रकाश पृष्ट 255)
नरेश कुलोतुंग चुद्देव द्वित्य के वि.स. 1200 के ताम्रपत्र में उनको (चालुक्यो को) चंद्रवंशी, मान्वय गोत्री व हरित का वंशज लिखा है | (भारत का इतिहास (राजपूत काल) डॉ. सत्यप्रकाश पृष्ट 256) वीरनारायण मंदिर (कर्नाटक) के शिलालेख से भी सिद्ध होता है कि चालुक्य चंद्रवंशी थे |
चालुक्य विक्रमादित्य चतुर्थ के वि. 11वी. शताब्दी पूर्वाद्ध के अभिलेख से मालूम होता है कि चालुक्य चंद्रवंशी थे | (‘ओ स्वस्ति समस्त जगत्प्रसतेभगवतो ब्राह्मण: पुत्रस्यात्रेने-त्रसमुत्पत्रस्य यामिनि कामिनो ललामभुवस्य.......श्रीमानस्ती चलुक्यवंश:”)
हेमचन्द्र लिखित द्व्याश्रयकाव्य में लिखा है कि गुजरात के सोलंकी सम्राट भीमदेव प्रथम और चेदी नरेश कर्ण के दूतो में मिलन हुआ | राजा भीमदेव के दूतो से पूछा की "हमारे सम्राट की यह जानने कि इच्छा है कि चेदी नरेश कर्ण हमारे मित्र है या शत्रु" कर्ण के दूत ने उतर दिया, "राजा भीमदेव अविजय सोमवंश के है" | द्वयाश्रय काव्य सर्ग 9 श्लोक 40-49) |
इन सब साक्ष्यो से यह सिद्ध हो जाता है की सोलंकी पहले चंदवंशी थे |
चालुक्य प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश था | इनकी राजधानी बादामी (वातापी) था | अपने महत्तम विस्तार सातवी सदी के समय सम्पूर्ण कर्नाटक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्यप्रदेश, तटीय गुजरात, तथा पश्चिमी आँध्रप्रदेश तक फैला हुआ था |