शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

!! महाभारत काल मे हुआ था परमाणु बम, मिसाइल का प्रयोग !!

काश हिन्दू विरोधी और तथाकथित धर्म निरपेक्षता के घिनोने विकार से ग्रस्त हमारे इतिहासकर शिक्षा मे यह ध्यान देते कि विज्ञान मे हुए सर्व ‘मूल आविष्कारों का जनक’ भारत देश है तो शायद हमारा देश आज उतना भूखा नहीं होता और हमारे युवा अमेरिका, यूरोप की ओर न ताकते, आज भी हमारी किताबों मे चंद भारतीय वेज्ञानिको के नाम दिखते है । यदि इतिहासकारों को लुटेरे, बलात्कारी मुगल बादशाहो और फिरंगियों कि वाहवाही लिखने से फुर्सत मिलती तो हमारा ‘आज’ कुछ और ही होता । पिछले दिनों इस बात का खुलासा हुआ कि मोहन जोदड़ों में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे, जिसमें रेडिएशन का असर था ।  महाभारत में सौप्टिक पर्व अध्याय १३ से १५ तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गए है । Great Event of the 20th Century. How they changed our lives ? इस विश्वासाई पुस्तक में हिरोशिमा नामक जापान के नगर पर एटम बम फेंकने के बाद जो परिणाम हुए उसका वर्णन हैं दोनों वर्णन मिलते झूलते हैं । यह देख हमें विश्वास होता हैं कि 3 नवंबर ५५६१ ईसापूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र एटोमिक वेपान अर्थात परमाणु बम ही था ।
महाभारत युद्ध का आरंभ १६ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व हुआ और १८ दिन चलाने के बाद २ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । ३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया । तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी था । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने समर्थ थी ।
( तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। ) इसके बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगे । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे । भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश में बड़ा शब्द हुआ । आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई । (सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अ १४) जब दोनों अस्त्र पृथ्वी को जलाने लगे तब नारद तथा व्यास ये दो महारची बीच में आकर खड़े हो गए । उन्होने अर्जुन और अश्वत्थामा को अपने अपने अणुअस्त्रेय वापस लेने कि विनती कि । अर्जुन ने वह आज्ञा मान जल्दी अपना अस्त्र वापस ले लिया कुनतु अश्वत्थामा को अस्त्र वापस लेने कि जानकारी नहीं थी । व्यास लिखते हैं कि ब्रहास्त्र जैसा उग्र अस्त्र छोड़ने के बाद वापस लौटने का सामर्थ्य केवल अर्जुन में ही था । ब्रहमतेज से वह अस्त्र उत्पन्न होने के कारण जो ब्रह्मचारी हैं (अर्थात जो ब्रह्म के अनुसार वर्तन करता हैं) वह ही उसे वापस लौटा सकता हैं अन्य वीरों को यह असंभव होता हैं । अंग्रेज़ भी मानने लगे है की वास्तव मे महाभारत मे परमाणु बम का प्रयोग हुआ था, जिस पर शोध कार्य चल रहे है । (यहाँ देखें)
पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने तो 40 वर्ष पहले ही सिद्ध किया था कि वह महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था ।
डॉ॰ वर्तक ने १९६९ में एक किताब लिखनी शुरू कि थी ‘स्वयंभू’ नामक इस किताब के मुख्य पात्र के रूप में महाभारत के भीम को चुना गया हैं । भीम पर केन्द्रित इस पुस्तक में महाभारत कि लड़ाई कि तिथि भी बताई गई हैं । मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई यह पुस्तक हिन्दी में अनुवादित करके हिन्दी भाषियों के लिए उपलब्ध कराने का काम २००५ मे किया नाग पब्लिशर ने । आज लोग इस बात को स्वीकार कर रहे है कि महाभारत के समय परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ था । मराठी भाषा में स्वयंभू नामक पुस्तक १९७० मे ही लिखी जा चुकी थी इस पुस्तक को तब महाराष्ट्र ग्रंथोत्तेजक सभा का पहला पुरस्कार मिला था कई अखबारों कि पुस्तक कि समीक्षा में इसकी प्रशंसा हुई थी ।
यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ व्रषों तक पर्जन्यवृष्ठी नहीं हो पाती “।
३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र और ६ अगस्त १९४५ को फेंका गया एटम बम इन दोनों के परिणामों के साम्य अब देखें । दो घटनाओ के बीच ७५०६ वर्ष व्यतीत हो गए है तो भी दोनों मे पूर्ण साम्य दिखता है । आज के युग में वेज्ञानिक रिपोर्ट में एटम बम फेंका इतना ही बताया है । वह कैसा था, कितना बड़ा था, किस वस्तु का बना था , किस प्रकार फेंक दिया इसके बारें मे कुछ भी नहीं लिखा हैं महाभारत में इसी प्रकार का वर्णन आया है एक ऐषिका लेकर अश्वत्थामा ने ब्रहास्त्र छोड़ा इतना ही लिखा हैं । ऐषिका अर्थात दर्भ का तिनका ऐसा विद्वान कहते हैं, किंतु प्रमाण नहीं दे सकते । आज के वर्णन में‘बम’ शब्द का उपयोग हैं लेकिन बम क्या होता है इसका वर्णन नहीं मिलता आज से साथ सहस्त्र वर्षो बाद ‘बम’ शब्द का अर्थ वहाँ के लोग क्या कहेंगे ? वे लोग शब्द कोश में देख बम मतलब मिट्टी का गोला करेंगे मिट्टी का गोला फेंक कर इतना संहार कैसे हो सकता है ? यह सब कल्पना हैं । इसी तरह हम आज ब्रहास्त्र को कल्पना समझते हैं ।
वह गलत हैं । ‘ऐषिका’ शब्द में ‘इष’ अर्थात ज़ोर से फेंकना यह धातु हैं । इससे अर्थ हो जाता है कि ऐषिका एक साधन था जिससे अस्त्र फेंका जाता था । जैसे आज मिसाइल होते हैं जो परमाणु बम को ढ़ोने मे कारगर होते है । रॉकेट को भी ऐषिका कहा जा सकता है ।
अस्त्र ने प्रलयंकारी अग्नि निर्माण किया जो तीनों लोक जला सकता था, यह वर्णन आज के वर्णन पूरा मिलता हैं आज के पुस्तक में लिखा हैं कि बम फूटने के बाद एक भयंकर प्रकाश और अग्नि का गोला उत्पन्न हो गया जिसने सारा शहर नष्ट कर दिया ‘तेजोमंडल को ग्रस्त करने वाली महाजवाला’ विधान में प्रकाश तथा आग दोनों भी अन्तर्भूत हैं । निर्घाता बहवाश्चासंपेतु: उल्का सहस्त्रश: महाभारत लिखित इस वर्णन में ‘निर्घाता’ शब्द उपयोजित हैं । निर्घाता शब्द का अर्थ वराहमिहिर ने भी दिया हैं कि ‘विपरीत दिशा से आने वाले जो एक दूसरे पर टकराते हैं और पृथ्वी पर आघात कराते हैं उसे निर्घात कहते है ।’ आधुनिक काल बम का वर्णन देता है कि हवा का प्रचंड झोंका आ गया है एक घंटे में पाँच सौ मिल इतना ज़ोर उस वायु में था उसके कारण २.५ मिल त्रिज्या के वर्तुल में सब कुछ उद्धवस्त हुआ । अनेक वस्तुओं जैसे लकड़ी के टुकड़े, इनते पत्थर, काँच आदि ज़ोर से फेंके गए जिसने लोगो को कान्त दिया । ये वस्तुएँ उल्का जैसी फेंकी गई । महाभारत लिखता हैं कि ‘सहस्त्रश: उल्का गिरने लगी।‘ ‘आकाश शब्दमाय हो गया, पृथ्वी हिलने लगी, यह वर्णन विस्फोट का ही हुआ न ।’ब्रह्मास्त्र के कारण गाँव मे रहने वाली स्त्रियॉं के गर्भ मारे गए, ऐसा महाभारत लिखता है । वैसे ही हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट के कारण गर्भ मारे गए थे । ब्रह्मास्त्र के कारण १२ वर्ष अकाल का निर्माण होता है यह भी हिरोशिमा में देखने को मिलता है ।    

!!राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक समाज सेवी संस्था है !!

अक्सर पूछा जाता है की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग करते क्या है...?अधिकांश लोग जिन्हें मीडियाजनित जानकारी से लगता है की वे सर्वग्याता हैं उनके लिये यह पोस्ट अत्यंत लाभदायक रहेगी ... आपको मीडिया नें बताया होगा की चैनई में "थाने" नामक तूफान नें अभी हाल में उत्पात मचाया था.. फिर आपको उसी मीडिया नें यह भी बताया होगा की तूफान हलका पड़ गया और कुछ खास हानीं नहीं हुयी..
 इस चित्रावली को देखिये और समझिये की तूफान हलका हो या तेज,, नुक्सान तो पहुंचाता ही है.. राष्टीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवको नें तूफान के बाद तत्काल प्रभावित इलाकों में सर्वे किया और नुक्सान का अंदाज किया जिसमें सबसे बडी समस्या जो सामनें आयी वह थी की तूफान और बारिश के कारण बहुत से पेड़ गिर गये थे, सड़क पर लगे बिजली के खंबे भी तहस नहस हो गये थे और प्रारंभिक सहायता चैनई, कुड्डालोर और पुड्डूचेरी जिलों में सबसे ज्यादा बड़ी समस्या बिजली का नहीं होना है..!

निश्चित ही आप में से कुछ मित्र यह प्रश्न करेंगे की ये स्वयंसेवक वहां कैसे पहुंच गये जब मैं यह बतानें वाला हूं की प्रशासन प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें खाराब होनें की वजह से नहीं पहुंच पा रहा था.. तो मैं बता दूं की संघ में स्वयंसेवकों के शिक्षा वर्ग (Training Sessions) होते हैं और पुड्डूचेरी विभाग में प्राथमिक वर्ग का समापन 31 दिसंबर को होना था,, जो इन प्राकृतिक आपदा में जनता की त्वरित सहायत करनें की मंशा के कारण दिनांक 30 दिसंबर को ही समाप्त कर दिया गया (साधारणतः यह असंभव होता है) और सभी स्वयंसेवकों को प्रभावित क्षेत्रों में जनता की सहायता हेतु भेजा गया..

समस्या बिजली के नहीं होनें की थी तो उसके लिये माचिस और मोम्बत्ती का इन्तजाम किया गया,, पानीं बहुत गिर चुका था तो मच्छरों का आतंक होना स्व्भाविक है - इसके समाधान के लिये मच्छर भगानें की अगरबत्ती का भी इन्तजाम आवश्य्क था जो किया गया,, और चूंकी बिजली नहीं थी इसलिये पीनें के पानीं की व्यवस्था अत्यंत आवश्य्क हो जाती है - उसका भी इन्तजाम किया गया...

उक्त सभी वस्तुये पुड्डूचेरी के करीब 600 घरों मैं बांटी गयीं, आसपास के ग्रामींण क्षेत्रों जैसे विलियानुर, थिरुकन्नुर, कलपत्तु पंचायत क्षेत्रों में करीब 1000 घरों में उक्त सामग्री बांटी गयी..

सड़क पर पड़े हुये बिजली के खंबों को दुरुस्त किया गया, तूफान में गिरे पेड़ों को काट कर सड़क से हटाय गया ताकी सड़क मार्ग जल्दी खोला जा सके...

आगे और पढिये की कुद्दलोर जिले में उक्त सामग्री के साथ साथ 3 किलों चांवल भी बांटा गया वन्डीपलयम और पुडुपलायम ग्रामों के करीब 1,200 घरों में यानीं करीब 3,600 किलो चांवल जनता में बांट दिया गया जो प्रशिक्षण शिविर के लिये लाया गया था..

आपको यहां यह भी बताना चाहूंगा की स्वयंसेवकों के साथ स्थानींय पार्षद भी जुट गये थे जिनके अपनें चचा का देहांत उसी तूफान की वजस से हो गया था.. एक अन्य पार्षद महोदय नें सार्वजनिक रूप से सभी जनता को बताया की जो भी राहत सामग्री उन्हें बांटी जा रही है वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा लायी गयी है ना की किसी सरकारी या अन्य NGO के द्वारा...!!

करीब 50 स्वयंसेवकों की टोली पोंडी संघचालक श्री सेलवराज जी और सचिव श्री गुरु सुभ्रमनियन जी के नेतृत्व में चल रहे राहत कार्यों में सम्मिलित हुयी जो अभी तक चालू हैं..!!

ऊत्तरी चैनई में सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र में करीब 100 लोगों के लिये लगातार दो दिनों तक खानें के पैकैट उपलब्ध करवाये गये .. !!

प्राथमिक शिक्षा वर्ग 7 दिनों का होता है जिसमें स्वयंसेवकों को विभिन्न विषयों और शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है किन्तु इस प्राकृतिक आपदा के कारण उसे एक दिन पहले ही स्थगित कर सभी स्वयंसेवक परोपकार के कार्य में जुट गये जोकी सभी स्वयंसेवकों का सर्वोच्च कर्तव्य है...

अब यदी आपको स्वयंसेवकों का यह कार्य अच्छा लगा हो तो आपसे मेरा सिर्फ यही निवेदन है की इस चित्रावली और संदेश को अपनीं वाल पर अवश्य साझा करे ताकी अधिक संख्या में जनता तक यह जानकारी पहुंचे क्योंकि हम मीडीया से बिल्कुल उम्मीद नहीं करते हैं की वह जनता के सामनें इस जानकारी को कभी पहुंचायेंगे... (Please Share on Your Wall so more Indians will come to know what RSS ppl. do... )
 






आज कल जहाँ देखो संघ के खिलाफ खूब जहर उगला जा रहा है । नई पीढी के समक्ष संघ को फासीवादी और नाजीवादी सोच का बताया जा रहा है । हो सकता है कि यहाँ मुझे भी कुछ लोग इसी सोच का बताएं ! मुझे इस बात का डर नही ,मैं आजतक संघ की शाखाओ में नही गया फ़िर भी संघ के सेवा और सांस्कृतिक कार्यों को पसंद करता हूँ । वैसे यहाँ कुछ भी मैंने अपनी ओर से कुछ नही कहा है । ” हिंदुस्तान के दर्द ” को बाँटने के भागीदार कुछ चिंतकों की पोस्ट पढ़-पढ़ कर ऐसा महसूस होता है उन्हें समाज को बाँटने में ज्यादा मज़ा आता है । एक विवादित ढांचे और गुजरात दंगों का आरोप संघ परिवार पर लगा कर उसको सांप्रदायिक होने का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है । वही बुद्धिजीवी और मीडिया संघ के हजारों समाजसेवा के कार्य को नजरंदाज करती रही है । संघ के सम्बन्ध में सदी के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष नेता और हमारे बापू “महात्मा गाँधी जी ” जिनकी हत्या का आरोप भी संघ पर लगा था , ने १६- ०९- १९४७ में भंगी कोलोनी दिल्ली में कहा था -” कुछ वर्ष पूर्व ,जब संघ के संस्थापक जीवित थे , आपके शिविर में गया था आपके अनुशासन , अस्पृश्यता का अभाव और कठोर , सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ । सेवा और स्वार्थ त्याग के उच्च आदर्श से प्रेरित कोई भी संगठन दिन-प्रतिदिन अधिक शक्ति वान हुए बिना नही रहेगा । ”
बाबा साहब अम्बेडकर ने मई १९३९ में पुणे के संघ शिविर में कहा था – “अपने पास के स्वयं -सेवकों की जाति को जानने की उत्सुकता तक नही रखकर , परिपूर्ण समानता और भ्रातृत्व के साथ यहाँ व्यवहार करने वाले स्वयंसेवकों कोदेख कर मुझे आश्चर्य होता है । ”
संघ के सन्दर्भ में एक अन्य घटना की जानकारी मुझे मिली थी जब मैं भी बगैर सोचे-विचारे संघियों को कट्टरपंथी बोला करता था । उस घटना का जिक्र आप के समक्ष कर रहा हूँ – ‘ सन १९६२ में चीन ने हिन्दी-चीनी भाई के नारे को ठेंगा दिखाते हुए भारत पर हमला कर दिया । भारत को अब किसी युद्ध में जाने की जरुरत नही है सेना का कम तो बस परेड में भाग लेना भर है की नेहरूवादी सोच के कारण सेना लडाई के लिए तैयार नही थी । तब तुंरत ही स्वयंसेवक मैदान में कूद गए । सेना के जवानों के लिए जी जन से समर्थन जुटाया वहीँ भारतीय मजदूर संघ ( ये भी संघ का प्रकल्प है) ने कम्युनिस्ट यूनियनों के एक बड़े वार्ग्ग की रक्षा उत्पादन बंद करने की देशद्रोही साजिश को समाप्त किया । तब प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू संघ के कार्य से इतने प्रभावित हुए की कांग्रेसी विरोध को दरकिनार करते हुए २६ जनवरी १९६३ की गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया ।”
16 -17 जून 2013 को उत्तराखंड में जल प्रलय के समय सेवा कार्य करते हुए RSS के स्वेम सेवक !


16 -17 जून 2013 को उत्तराखंड में जल प्रलय के समय सेवा कार्य करते हुए RSS के स्वेम सेवक !

16 -17 जून 2013 को उत्तराखंड में जल प्रलय के समय सेवा कार्य करते हुए RSS के स्वेम सेवक !

16 -17 जून 2013 को उत्तराखंड में जल प्रलय के समय सेवा कार्य करते हुए RSS के स्वेम सेवक !
अन्य दो -तीन उल्लेखनीय सेवा कार्य जो मेरी स्मृति में है – *१९७९ के अगस्त माह में गुजरात के मच्छु बाँध टूटने से आई बाढ़ से मौरवी जलमग्न हो गया था । संघ के सेवा शिविर में ४००० मुसलमानों ने रोजे रखे थे । अटल जी जब वहां गए थे तो मुसलमानों ने कहा था -’अगर संघ नही होता तो हम जिन्दा नही बचते । ‘
*१२ नवम्बर १९९६ चर्खादादरी , दो मुस्लिम देशों के यात्री विमानों का टकराना , ३१२ की मौत जिसमे अधिकांश मुस्लिम और भिवानी के स्वयंसेवकों का तुंरत घटना स्थल पर पहुंचना , मलवे से शव निकलना सारी सहायता उपलब्ध करना । इतना ही नही शवों के उचित रीति रिवाज से उनके धर्मानुसार अन्तिम संस्कार का इन्तेजाम करना । तब साउदी अरेबिया के एक समाचारपत्र ‘अलरियद ‘ ने आर एस एस लिखा था- ” हमारा भ्रम कि संघ मुस्लिम विरोधी है, दूर हो गया है । ” 
संघ से जुडी सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से परेशान ५७ अनाथ बच्चों को गोद लिया हे जिनमे ३८ मुस्लिम और १९ हिंदू हे महात्मा गाँधी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से क्षुब्ध होकर १९४८ में नाथूराम गोडसे ने उनका वध कर दिया था जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद संघ को इस
आरोप से बरी किया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना भी की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का यह कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज-यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की सरकारी नीति इसके प्रमाण हैं। संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू
स्वदेश में हमेशा से ही उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और वह सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की ही बात करता है जबकि उसके विपरीत उसके आलोचकों का यह आरोप है कि ऐसे विचारों के प्रचार से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन
पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को हिन्दू कहते हों ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (अर्थात् जहाँ उसके पूर्वज
रहते आये हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है (अर्थात् जहां उसके देवी देवताओं का वास है);
हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल
यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में हैं। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला
अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक बाबरी मसजिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है। केवल हिंदुओं का ही ऐसा मानना हो यह बात नहीं, यहाँ का पढा-लिखा मुसलमान भी यह दिल से मानता है कि यहीं भगवान राम का जन्म हुआ था, कहीं और नहीं संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत सन १९२५ से होती है। उदाहरण के तौर पर सन १९६२ के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन १९६३ के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये। वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोंसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं
उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग शामिल हैं।

उड़ीसा में पैलीन तूफ़ान (ओक्टुबर २०१३ ) के दौरान दूरस्थ गाँवों में "हमेशा की तरह" मददगार साबित होते "शिंदे-दिग्गी" के हिन्दू आतंकवादी... मुझे गर्व है ऐसे आतंकवादियों पर


 केरल के कोल्लम मंदिर में हुए अग्निकांड के बाद आरएसएस के सेवक ब्लड डोनेट के लिए लाइन में खड़े हुए !(12/04/2016)