मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

! ! भारतीय ऋषि गौरव साली इतिहास के प्रतीक !!

भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेद को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है। 
कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा। 
जानिए ऐसे ही असाधारण या यूं कहें कि प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्यों को जिनसे आप भी अब तक अनजान होंगे – 

महर्षि दधीचि -
महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि 
एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए। 
आचार्य कणाद - 
कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

भास्कराचार्य -
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय  पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
आचार्य चरक -
‘चरकसंहिता’ जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की। 
भारद्वाज -
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
कण्व -
 वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
कपिल मुनि -
भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता  कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया। 
पतंजलि -
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
शौनक :  
वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
महर्षि सुश्रुत - ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। 
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी,  हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

वशिष्ठ :
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
विश्वामित्र : ऋषि बनने से पहले  विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। 
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
महर्षि अगस्त्य -
वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ। 
गर्गमुनि -
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। 
बौद्धयन -
भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
 
.हमने हजारों साल पहले ही शिखंडी का लिंग परिवर्तित कर दिया था, हम आज भी सर्वश्रेष्ठ होते यदि गुलामी काल में हमारे ग्रन्थ ना नष्ट किये गये होते ...
प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली अपने समय में अपने समयानुसार अति उन्नत अवस्था में थी। भारतीय चिकित्सा के मूलतः तीन अनुशासन थे --
१. काय चिकित्सा (मेडीसिन) -- जिसके मुख्य प्रतिपादक ऋषि - चरक ,अत्रि, हारीति व अग्निवेश आदि थे ।
२. शल्य चिकित्सा --( सर्जरी ) मुख्य शल्यक थे- धन्वन्तरि, सुश्रुत, औपधेनव, पुषकलावति।
३. स्त्री एवम बाल रोग --( ओब्स. गायनिक्स एवं पीडियाट्रिक्स ) जिसके मुख्य ऋषि कश्यप थे।
डा ह्रिश्च बर्ग ( जर्मनी) का कथन है -- “ The whole plastic surgery in Europe had taken its new flight when these cunning devices of Indian workers became known to us. The transplaats of sensible skin flaps is also Indian method.” डा ह्वीलोट का कथन है - “vaccination was known to a physician’ Dhanvantari”, who flourished before Hippocrates.” इन से ज्ञात होती है, भारतीय चिकित्सा शास्त्र के स्वर्णिम काल की गाथा।
रोगी को शल्य-परामर्श के लिये उचित प्रकार से भेजा जाता था। एसे रोगियों से काय –चिकित्सक कहा करते थे -- “अत्र धन्वंतरिनाम अधिकारस्य क्रियाविधि।“-- अब शल्य चिकित्सक इस रोगी को अपने क्रियाविधि में ले।
सुश्रुत के समय प्रयोग होने वाली शल्य –क्रिया विधियां --
१. आहार्य -- ठोस वस्तुओंको शरीर से निकालना( Extraction-foren bodies).
२. भेद्य -- काटकर निकालना (Excising).
३. छेद्य -- चीरना (incising)
४. एश्य -- शलाका डालना आदि (Probing)
५. लेख्य -- स्कार, टेटू आदि बनाना (Scarifying)
६. सिव्य -- सिलाई आदि करना (suturing)
७. वेध्य -- छेदना आदि (puncturing etc)
८. विस्रवनिया -- जलीय अप-पदार्थों को निकालना (Tapping body fluids)
शल्य क्रिया पूर्व कर्म (प्री-आपरेटिव क्रिया) -- रात्रि को हलका खाना, पेट, मुख, मलद्वार की सफ़ाई, ईश-प्रार्थना, सुगन्धित पौधे, बत्तियां –नीम, कपूर. लोबान आदि जलाना ताकि कीटाणु की रोकथाम हो।
शल्योपरान्त कर्म -- रोगी को छोडने से पूर्व ईश-प्रार्थना, पुल्टिस लगाकर घाव को पट्टी करना, प्रतिदिन नियमित रूप से पट्टी बदलना जब तक घाव भर न जाय, अधिक दर्द होने पर गुनुगुने घी में भीगा कपडा घाव पर रखा जाता था।
सुश्रुत के समय प्रयुक्त शल्य-क्रिया के यन्त्र व शस्त्र -- (Instuments & Equppements) -- कुल १२५ औज़ारों का सुश्रुत ने वर्णन किया है--
(अ) -- यन्त्र -- (अप्लायन्स) -- १०५ -- स्वास्तिक (फ़ोर्सेप्स)-२४ प्रकार; सन्डसीज़ (टोन्ग्स)-दो प्रकार; ताल यन्त्र (एकस्ट्रेक्सन फ़ोर्सेप्स)-दो प्रकार; नाडी यन्त्र-(केथेटर आदि)-२० प्रकार; शलाक्य (बूझी आदि)-३० प्रकार; उपयन्त्र –मरहम पट्टी आदि का सामान;--कुल १०४ यन्त्र; १०५ वां यन्त्र शल्यक का हाथ।
(ब) -- शस्त्र- (इन्सट्रूमेन्ट्स) -- २० --
इन्स्ट्रूमेन्ट्स सभी परिष्क्रत लोह (स्टील के बने होते थे। किनारे तेज, धार-युक्त होते थे , वे लकडी के बक्से में ,अलग-अलग भाग बनाकर सुरक्षित रखे जाते थे।
अनुशस्त्र -- (सब्स्टीच्यूड शस्त्र) -- बम्बू, क्रस्टल ग्लास, कोटरी, नेल, हेयर, उन्गली आदि भी घाव खोलने में प्रयुक्त करते थे।
निश्चेतना (एनास्थीसिया) -- बेहोशी के लिये सम्मोहिनी नामक औषधियां व बेहोशी दूर करने के लिये संजीवनी नामक औषधियां प्रयोग की जाती थीं।।।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

!! दो साल में भारत बन गया 'पोर्निस्तान' सनी लियोनी का असर ?

दिल्ली में गुड़िया और दामिनी  रेप केस के बाद देश पोर्न को प्रतिबंधित करने पर चर्चा कर रहा है। दरिंदगी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए तो सरकार भी बचाव के मूड में आ गई और पोर्न फिल्मों एवं वेबसाइटों को प्रतिबंधित करने की तैयारी कर ली। 
एक हालिया सर्वे के मुताबिक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 60 प्रतिशत लोग पोर्न सामग्री देखते हैं। यही नहीं इंटरनेट पर मौजूद 56 प्रतिशत कंटेंट किसी न किसी रूप में अश्लील है। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार पोर्न वेबसाइटों को प्रतिबंधित करने में कामयाब हो पाएगी? 
 
यदि सेक्स शब्द को सर्च करने की बात की जाए तो भी ग्राफ 2011 के बाद तेजी से बढ़ा है। गौरतलब है कि 2011 में ही सनी लियोनी भारत में अवतरित हुई थी।
इस सवाल का जबाव तलाशने से पहले हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि भारत में पोर्न महामारी कैसे बन गया? ऐसा क्या हुआ कि इंटरनेट यूज करने वाले लोग पोर्न को सर्च करने लगे? गूगल के कुछ उपयोगी टूल्स के जरिए हमने इन सवालों के जबाव तलाशने की कोशिश की और जो नतीजे सामने आए वह हैरतअंगेज हैं। 
यह शर्मनाक ही है कि भारत में भले ही पोर्न प्रतिबंधित हो लेकिन सनी लियोनी की पोर्न की दुकान यानि वेबसाइट खुलेआम चल रही है और इसे रोकने के लिए अभी कोई कानून भी नहीं है। साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल के मुताबिक यदि कोई पोर्न वेबसाइट विदेश से होस्टेड है तो उसे भारत सरकार बंद नहीं करवा सकती। हालांकि इसे भारत में प्रतिबंधित जरूर किया जा सकता है।
गूगल साल 2004 से अब तक के सर्च इंट्रेस्ट आंकड़े उपलब्ध करवाता है। 2004 से 2010 तक भारत कभी भी पोर्न सर्च करने वाले शीर्ष दस देशों में नही रहा। 2011 में भारत पहली बार इस सूची में 9वें स्थान पर आया। लेकिन 2012 में भारत इस सूची में पांचवे स्थान पर था और पिछले 12 महीनों में यह चौथे स्थान पर है। त्रिनिदाद एवं टोबैगो, पापुआ न्यू गिनी और पाकिस्तान हमसे आगे हैं। 
 
साल 2011 से पहले भारत में सनी लियोनी को कोई नहीं जानता था। सितंबर 2011 में उन्होंने गूगल सर्च पर ऊंचाई हासिल की जिसमें थोड़ी कमी जरूर आई है लेकिन यह अभी भी बरकरार है। जाहिर है सनी लियोनी भारत में पोर्न की ब्रांड एंबेस्डर बन गई हैं और भारत के लोग उनकी फिल्मों पर सीटियां बजा रहे हैं।
यही हाल सेक्स शब्द सर्च करने का भी है। भारत गूगल पर सेक्स सर्च करने के मामले में हमेशा से आगे रहा है। लेकिन सितंबर 2011 के बाद इसमें भी अप्रत्याशित तेजी आई। 
गूगल पर सेक्स के बारे में सर्च करने के मामले में भारत हमेशा से आगे रहा है। साल 2004 से अब तक आंकड़ों पर नजर डाले तो हमसे आगे सिर्फ श्रीलंका ही रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि 2011 में ऐसा क्या हुआ कि पोर्न भारत में महामारी की तरह फैला और लगातार फैलता जा रहा है। तो इसका जबाव है कि 2011 में पहली बार एक पोर्न स्टार मेनस्ट्रीम मीडिया के जरिए खबर बनी। दरअसल सनी लियोन ने बिग बॉस के जरिए भारतीय एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कदम रखा। बिग बॉस का हिस्सा बनते ही सनी लियोनी खबरों में छाई रही। 
 
पिछले 12 महीने में गूगल पर कीवर्ड सर्च करने की अगर बात की जाए तो भारत में सनी लियोनी ही ऐसी सख्शियत है जिसके बारे में पढ़ने के बारे में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। सर्च इंट्रेस्ट से यह साफ जाहिर भी होता है।
यदि गूगल सर्च कीवर्ड्स के इंट्रेस्ट पर नजर डालें तो साल 2012 में सनी लियोनी एकमात्र ऐसी सख्शियत थी जो राइसिंग सर्च में टॉप टेन कीवर्ड्स में जगह बना सकीं। यानि 2011-2012 में सनी लियोनी को खूब सर्च किया गया। और सनी लियोनी को सर्च करते-करते भारतीय पोर्न तक पहुंच गए। हालत यह हुए कि इंटरनेट पर पोर्न से दूर रहने वाले भारतीय दो साल के भीतर ही सबसे ज्यादा पोर्न सर्च करने के मामले में चौथे नंबर पर आ गए। 
 
अगर बात पिछले 12 महीनों की की जाए तो इंटरनेट पर पोर्न सर्च करने के मामले में भारत चौथे नंबर पर आ गया है। अब भारत से आगे पपुआ न्यू गिनी, त्रिनिदाद एवं टोबैगे और पाकिस्तान ही हैं।
गुड़िया रेप केस के बाद सरकार अब पोर्न को प्रतिबंधित करने की तैयारी तो कर रही है लेकिन सवाल यह है कि क्या यह संभव है। साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल मानते हैं कि पोर्न को प्रतिबंधित तो किया जा सकता है लेकिन रोका नहीं जा सकता। पवन दुग्गल कहते हैं, 'भारतीय कानूनों को मुताबिक पोर्न देखना तो अपराध नहीं है लेकिन अश्लील सामग्री का निर्माण करना और प्रसारण करना पूरी तरह गैर कानूनी हैं। आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत अश्लील कंटेंट तैयार करना, प्रकाशित करना और प्रसारित करना या ऐसा करने में मदद करना अपराध है।
 
2004 से अब तक के पोर्न सर्च के ग्रॉफ को देखा जाए तो 2011 के बाद एक अप्रत्याशित वृद्धि नजर आती है जो साबित करती है कि सनी लियोनी के अवतरित होने के बाद से ही लोगों की दिलचस्पी पोर्न में ज्यादा बढ़ी है।
 धारा 67ए के तहत एक्स रेटेट सेक्स कंटेंट तैयार करना, प्रकाशित, प्रसारित या इसमें मदद करना अपराध है। भारत में स्थित किसी सर्वर से पोर्न कंटेंट को होस्ट करना भी अपराध है लेकिन यदि कोई पोर्न वेबसाइट विदेश से चल रही हो तो भारत सरकार पूरी तरह लाचार हो जाती है।'
मौजूदा भारतीय कानूनों को असहाय बताते हुए पवन दुग्गल कहते हैं कि साइबर लॉ में बदलाव की तुरंत आवश्यक्ता है। हमारा मौजूदा आईटी एक्ट साइबर अपराधों की चुनौतियों का सामना करने और पोर्न या अश्लील कंटेंट के प्रकाशन और प्रसारण को रोकने में असमर्थ है। 
इंटरनेट पर पोर्न सर्च करने के मामले में भारत साल 2012 में पांचवे नंबर पर आ गया। जाहिर है एक साल के भीतर ही भारत में जबरदस्त तरीके से इंटरनेट पर पोर्न को सर्च किया गया।
चूंकि अधिकतर पोर्न कंटेंट विदेशों में होस्टेट है इस कारण इस चुनौती से निपटना मुश्किल भी हो जाता है। पवन दुग्गल कहते हैं, 'विदेशों में बैठकर भारतीयों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और भारत सरकार लाचारी से देख रही है। मैं मानता हूं कि पोर्न को नियंत्रण करना असंभव है। मुझे लगता है कि उतनी ही लड़ाई शुरू करनी चाहिए जिसे आप जीत सकें। अगर आप पोर्नोग्रॉफी के विरुद्ध छेड़ रहे हैं तो यह मान कर चलिए की कोई राष्ट्र इस युद्ध को जीता नहीं है। लेकिन हम लड़ाई शुरू तो कर ही सकते हैं। पहले हमें चाइल्ड पोर्नोग्रॉफी पर केंद्रित होना चाहिए क्योंकि इसमें अन्य राष्ट्रों को सफलता मिली है। एक बार हम चाइल्ड पोर्नोग्रॉफी को पूरी तरह प्रतिबंधित कर देंगे तो हम आगे की लड़ाई के लिए भी तैयार हो सकेंगे। सिर्फ घोषणाएं करने से कुछ नहीं होगा, सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने और इंटरनेट पर सामग्री उपलब्ध करवाने वाली वेबसाइटों को जिम्मेदार होने की जरूरत है। '
 
इंटरनेट पर पोर्न सर्च करने के मामले में भारत साल 2011 में 9वें नंबर पर था। इससे पहले भारत कभी भी पोर्न सर्च करने के मामले में शीर्ष दस देशों में शुमार नहीं रहा था.----

!! भारत के पडोशी देशो में चीन के क़दमों की आहट !!



काठमांडू के एक भीड़ भरे बाज़ार में दुकानों के ऊपर एक छोटे से फ़्लैट में हर सुबह चीनी भाषा सीखने के लिए लगभग 20-25 लड़के-लड़कियाँ इकट्ठा होते हैं. !
          चीनी भाषा में ‘नी-हाव’ (क्या हाल हैं?) कहकर वो अपने अध्यापक का स्वागत करते हैं. ऐसे कई इंस्टीट्यूट नेपाल के कई हिस्सों में चल रहे हैं..! 

            यही नहीं चीन की सरकार ने नेपाल के लोगों को मुफ़्त में चीनी भाषा सिखाने के लिए बाक़ायदा अध्यापकों को चीन से काठमांडू भेजा है..!  काठमांडू विश्वविद्यालय के कनफ़्यूशियस इंस्टीट्यूट और अंतरराष्ट्रीय भाषा संस्थान में चीनी भाषा और संस्कृति के बारे में सिखाने की व्यवस्था की गई है.!
     


 दशकों तक भारत के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभामंडल में रहने के बाद अब नेपाल बाँहे फैलाकर हिमालय पार के अपने पड़ोसी देश चीन का स्वागत करने को तैयार है..! और आने वाले वर्षों में नेपाल में अपनी भूमिका बढ़ने की संभावना को पहचानते हुए चीन ने भी हर क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी ह..!
            पर केंद्र में स्थित कांग्रेस सरकार को ये सब नहीं दिखाई दे रहा है की चीन किस तरह से घेर वंदी कर रहा है भारत का ..पकिस्तान तो पहले ही चीन की गोद में खेल रहा है .बांग्लादेश तो पक हुआ फल है जरा सा डाल हिलाया की चीन के गोद में गिर जायेगा ..श्री लंका की विसात ही क्या ? वर्मा (म्यामार) ,भूटान तो पहले से ही नतमस्तक है चीन के आगे ..दिखावे के लिए भारत के साथ है ..कुचल मिलकर मेरा यह कहना है इस पोस्ट के माध्यम से की आने वाले समय में भारत को सबसे अधिक ख़तरा है तो चीन से ..!
                पर हमारे देश की जनता भी इस खतरे से अनभिग्य नहीं है ..पर मुगालते पाल रखा है की चीन को निपटा देगे ..अरे चीन कोई हलवा ,मॉल पुवा नहीं है जब चाहा " खा " लिया अभी भी वक्त है सम्हल जाये ...!

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

!! जोधा बाई अकबर की पत्नी नहीं थी !!

मुर्ख इतिहास तो यही कहता है कि जयपुर के राजा भारमल की बेटी का विवाह मुगल शासक अकबर के साथ हुआ था किंतु सच कुछ और ही है...!
वस्तुत: न तो जोधाबाई का विवाह अकबर के साथ कराया गया था और न ही विदाई के समय जोधाबाई को दिल्ली ही भेजा गया था. अब प्रश्न उठता है कि फिर जोधाबाई के नाम पर किस युवती से अकबर का विवाह रचाया गया था ?
                अकबर का विवाह जोधाबाई के नाम पर दीवान वीरमल की बेटी पानबाई के साथ रचाया गया था. दीवान वीरमल का पिता खाजूखाँ अकबर की सेना का मुखिया था. किसी बड़ी ग़लती के कारण अकबर ने खाजूखाँ को जेल में डालकर खोड़ाबेड़ी पहना दी और फाँसी का हुक्म दिया. मौका पाकर खाजूखाँ खोड़ाबेड़ी तोड़ जेल से भाग गया और सपरिवार जयपुर आ पगड़ी धारणकर शाह बन गया. खाजूखाँ का बेटा वीरमल बड़ा ही तेज और होनहार था, सो दीवान बना लिया गया. यह भेद बहुत कम लोगों को ही ज्ञात था.! दीवान वीरमल का विवाह दीवालबाई के साथ हुआ था. पानबाई वीरमल और दीवालबाई की पुत्री थी. पानबाई और जोधाबाई हम उम्र व दिखने में दोनों एक जैसी थी. इस प्रकरण में मेड़ता के राव दूदा राजा मानसिंह के पूरे सहयोगी और परामर्शक रहे. राव दूदा के परामर्श से जोधाबाई को जोधपुर भेज दिया गया. इसके साथ हिम्मत सिंह और उसकी पत्नी मूलीबाई को जोधाबाई के धर्म के पिता-माता बनाकर भेजा गया, परन्तु भेद खुल जाने के डर से दूदा इन्हें मेड़ता ले गया, और वहाँ से ठिकानापति बनाकर कुड़की भेज दिया. जोधाबाई का नाम जगत कुंवर कर दिया गया और राव दूदा ने उससे अपने पुत्र का विवाह रचा दिया. इस प्रकार जयपुर के राजा भारमल की बेटी जोधाबाई उर्फ जगत कुंवर का विवाह तो मेड़ता के राव दूदा के बेटे रतन सिंह के साथ हुआ था. विवाह के एक वर्ष बाद जगत कुंवर ने एक बालिका को जन्म दिया. यही बालिका मीराबाई थी. इधर विवाह के बाद अकबर ने कई बार जोधाबाई (पानबाई) को कहा कि वह मानसिंह को शीघ्र दिल्ली बुला ले. पहले तो पानबाई सुनी अनसुनी करती रही परन्तु जब अकबर बहुत परेशान करने लगा तो पानबाई ने मानसिंह के पास समाचार भेजा कि वें शीघ्र दिल्ली चले आये नहीं तो वह सारा भेद खोल देगी. ऐसी स्थिति में मानसिंह क्या करते, उन्हें न चाहते हुए भी मजबूर होकर दिल्ली जाना पड़ा. अकबर व पानबाई उर्फ जोधाबाई दम्पति की संतान सलीम हुए, जिसे इतिहास जहाँगीर के नाम से जनता है ! 

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किसकी पत्नी थी जोधाबाई, अकबर या सलीम की  ??
  

जयपुर। जोधाबाई और भारत के मुगल शासक अकबर की प्रेमकथा देश की सबसे बड़ी प्रेम कहानियों में गिनी जाती है लेकिन ये दोनों पति-पत्नी तो क्या प्रेमी तक नहीं थी। दरअसल इतिहासकारों और कुछ गाइड्स की गलतफहमी की वजह से अकबर का नाम उन्हीं की बहु जोधाबाई के साथ जोड़ दिया गया। दरअसल जोधाबाई उनके बेटे सलीम उर्फ जहांगीर की पत्नी थी, लेकिन पिछली एक सदी में टूरिस्ट गाइड्स की वजह से उनका नाम अकबर के साथ जोड़ दिया गया। न तो जोधाबाई का विवाह अकबर के साथ हुआ था और न ही विदाई के समय जोधाबाई को दिल्ली भेजा गया था। आखिरकार प्रश्न यह उठता है कि फिर अकबर का विवाह किससे रचाया गया था? किससे हुई थी अकबर की शादी: राजस्थान के इतिहासकारों का कहना है कि आमेर (जयपुर) के कछवाहा राजपूत, राजा भारमल की बेटी हरका उर्फ हरकू बाई से अकबर की शादी हुई थी। देश की सत्ता पर मुगलों के काबिज होने के करीब छह साल बाद यानी 1562 में अकबर एक बार अपने लाव-लश्कर के साथ अजमेर स्थित दरगाह शरीफ से लौट रहे थे। रास्ते में उसकी मुलाकात राजा भारमल से हुई। भारमल ने उनसे शिकायत की, मेवात का मुगल हाकिम (गर्वनर) उन्हें आए दिन परेशान करता रहता है। उनसे मनमाना चौथ(कर) वसूलता है। अकबर ने रखी दो शर्तें: कहते हैं अकबर ने भारमल को इससे मुक्ति दिलाने के लिए दो शर्तें रखीं। पहली, राजा भारमल स्वयं उनके पास आकर मिन्नत करें यानी नतमस्तक हो। दूसरा वे अपनी बेटी हरका की शादी अकबर से कर दें। उस समय अकबर की उम्र महज बीस साल थी। कुछ इतिहासकार ऐसा भी बताते हैं कि अकबर की हरका से पहले मुलाकात हो चुकी थी और उसकी खूबसूरती का कायल होकर दिल दे बैठा था। कर से राहत पाने और अपना राजपाट ठीक से चलाने के लिए भारमल ने अपनी बेटी हरका की शादी अकबर से करवा दी। हालांकि हरका से शादी के बाद अकबर ने कई और राजपूत राजकुमारियों से शादी रचाई। बीकानेर के राजा की बेटी, जोधपुर की राजकुमारी से, रोहिल्ला राजकुमारी रुकमावती से भी।सलीम की पत्नी का नाम था जोधाबाई: राजपूत घराने में शादी रचाने की परंपरा अकबर के बेटे सलीम उर्फ जहांगीर ने भी जारी रखी। खुद अकबर ने ही अपने बेटे सलीम की शादी जोधपुर के राजघराने की बेटी जगत गोसाई से बड़ी धूम-धाम से कराई थी। जोधपुर की राजकुमारी होने की वजह से उनका नाम जोधाबाई रखा गया और यह काफी प्रचलित हुआ। जोधाबाई जनाना ड्योढ़ी में काफी प्रभावशाली रही और उनके नाम पर जनाना ड्योढ़ी का नाम जोधा महल रखा गया। ऐसा नहीं है कि हिंदुस्तान में अकबर पहला मुस्लिम राजा था जिसने हिंदु लड़कियों से शादी रचाई थी। उससे पहले अलाउद्दीन खिलजी, दक्षिण के बाहमनी राजा फिरोज शाह, गुजरात के मुहम्मद शाह सहित कई मुस्लिम राजाओं ने हिंदु रानियों से विवाह किया था। लेकिन अकबर ने हिंदु (खासतौर से राजपूत) राजघरानों में शादी को अपनी ‘राज-नीतिÓ बनाया था।जोधा महल से शुरू हुई गलतफहमी: जानकारों का मानना है कि इस गड़बड़ झाले के पीछे फतेहपुर सीकरी के गाइड जिम्मेदार हैं। दरअसल फतेहपुर सीकरी (आगरा के करीब वो शहर जो कभी अकबर की राजधानी हुआ करता था) में अकबर का किला है। इस किले का एक हिस्सा जोधा महल के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस महल में मुगल राजाओं की हिंदु रानियां रहा करती थीं। जहांगीर की पत्नी जोधा भी इसी महल में रहती थी और उन्हीं के नाम पर इस महल का नाम जोधा महल पड़ गया। फिर क्या था यहां के गाइड्स ने जोधा को अकबर की पत्नी बताना शुरू कर दिया।अकबर के साथ जोधा का नाम जोडऩे में फिल्मों की भी रही भूमिका: जोधा अकबर का नाम जोडऩे में फिल्मों की भी भूमिका रही। मुगले आजम फिल्म में मुगल राजा अकबर की पत्नी का नाम जोधाबाई बताया गया है। इसके बाद से जन मानस में जोधा-अकबर एक जोड़ी के रूप में प्रचलित हुए। 2008 में आशुतोष गोवारीकर ने जोधा अकबर फिल्म बनाई। जिसमें जोधा अकबर की प्रेम कथा को दर्शाया गया। इस फिल्म का राजस्थान में काफी विरोध हुआ। राजपूत इतिहासकारों का कहना था कि आमेर के राजा भारमल की बेटी का नाम हरका था न कि जोधा। ऐसे में अपनी ही पुत्रवधु के साथ नाम जोड़कर फिल्म बनाना पूरी तरह गलत है। जयपुर व जोधपुर में इस फिल्म के विरोध में कई प्रदर्शन भी हुए।क्या जोधाबाई ही थी पानबाई: जोधाबाई के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। अकबर का विवाह दीवान वीरमल की बेटी पानबाई के साथ रचाया गया था। दीवान वीरमल का पिता खाजू खां अकबर की सेना का मुखिया था। किसी बड़ी गलती के कारण अकबर ने खाजू खां को जेल में डालकर खोड़ा बेड़ी पहना दी और फांसी का हुक्म दिया। मौका पाकर खाजू खां खोड़ा बेड़ी तोड़ जेल से भाग गया और सपरिवार जयपुर आ पगड़ी धारणकर शाह बन गया। खाजू खां का बेटा वीरमल बड़ा ही तेज और होनहार था, सो दीवान बना लिया गया। यह भेद बहुत कम लोगों को ही ज्ञात था।

दीवान वीरमल की एक बेटी थी पानबाई। जोधाबाई और पानबाई हमउम्र थी और दिखने में भी एक जैसी ही थीं। मेड़ता के राव दूदा राजा मानसिंह के सहयोगी और परामर्शक रहे। राव दूदा के परामर्श से पानबाई को जोधपुर भेज दिया गया। इसके साथ हिम्मत सिंह और उसकी पत्नी मूलीबाई को जोधाबाई के धर्म के पिता-माता बनाकर भेजा गया। इधर, जोधाबाई का नाम जगत कुंवर कर दिया गया और राव दूदा ने उससे अपने पुत्र का विवाह रचा दिया। इस प्रकार जोधाबाई उर्फ जगत कुंवर का विवाह तो मेड़ता के राव दूदा के बेटे रतन सिंह के साथ हो गया। उधर, पानबाई उर्फ जोधाबाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया गया। अकबर व पानबाई उर्फ जोधाबाई दंपति की संतान सलीम हुए, जिसे इतिहास जहांगीर के नाम से जनता है।साम्राज्य विस्तार के लिए अपनाई शादी की राजनीति: अकबर शादियों के कारण एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। अकबर ने हिंदु (खासतौर से राजपूत) राजघराने में शादी को अपनी ‘राज-नीतिÓ बनाया था। इन शादियों से अकबर एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। इन शादियों से अकबर एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। शादी करने से एक तो इन राजपूत राजाओं से रिश्ते बन जाते थे। यानी उनके विद्रोह की संभावना लगभग ना के बराबर हो जाती थी। राजस्थान के छोटे-छोटे राजपूत राजा दिल्ली या आगरा के उन राजाओं को मुंह तोड़ जवाब देते थे जो उनकी सरजमीं की तरफ आंख उठाकर देखने की जुर्रत करते थे। दूसरा ये कि राजपूत अपनी वफादारी के लिए जाने जाते थे। आड़े वक्त में वहीं अकबर का साथ देते थे।पिता ने दिया हिंदुस्तान पर राज करने का मूल मंत्र: मरते समय अकबर के अब्बा, हुमायूं ने उसे हिंदुस्तान में राज करने का मूल-मंत्र दिया था। उसने अकबर को सीख दी थी कि,”राजपूत कौम का हमेशा ध्यान रखना, क्योंकि ना तो वे (राजपूत) कभी कानून तोड़ते हैं और ना ही कभी आज्ञा का उल्लंघन करते है। वे तो सिर्फ आज्ञा का पालन करते है और अपना (वफादारी का) फर्ज निभाते हैं। “गुजरात को कूच करते वक्त तो अकबर ने आमेर के राजा मान सिंह को ही आगरा (सत्ता का केंद्र बिंदु) की गद्दी का रखवाला घोषित कर दिया था। यहां तक की मानसिंह को और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को हरम (राजघराने में रानियों व अन्य महिलाओं के रहने की जगह) की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जो कभी भी किसी मर्द के हवाले नहीं की जाती थी। दूर-दराज के कई विद्रोह कुचलने में भी राजपूत राजाओं ने अहम भूमिका निभाई थी।अकबर करते थे महिलाओं का सम्मान: भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा राजा होगा जो किसी भी मायने में अकबर का मुकाबला कर सकता है। अकबर में ही हिंदुस्तान को एक धागे में पिरोकर रखने की क्षमता थी। अकबर ने कुछ ऐसे कदम उठाए जो आनी वाली पीढ़ी, राजाओं और व्यवस्था के लिए मील के पत्थर साबित हुए। जैसे धर्मनिरपेक्षता, महिलाओं को बराबरी का अधिकार, उसकी प्रशासनिक व्यवस्था, मनसबदारी, भूमि सुधार के लिए पहल की। अकबर को करीब से पढऩे और समझने वाले लोग उसे दैवीय शक्ति से परिपूर्ण मानते हैं। ये बात अकबर के नवरत्न या दरबारी नहीं बल्कि आज के जमाने के इतिहासकार तक मानते हैं। अकबर पर लिखी उनकी किताबों को ‘आईन-ए-अकबरÓ से किसी भी मायने में कम नहीं समझा जाता है।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

!! नरेन्द्र मोदी जी के PM बनाने के 101 कारण !!

 नोट --यह ब्लॉग पूर्ण रूप से कोपी पेस्ट है ..!!

इस देश में अगर कोई शख्स हर वक्त और सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है तो वो हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। सियासी विरोधियों के लिए कट्टर दुश्मन तो समर्थकों के लिए जुनून की हद तक प्रेम। किसी के लिए भी सियासत के कोई मायने नहीं। अपनों के लिए विकास का प्रेम रह-रहकर उपजता है तो विरोधियों के लिए दंगों से बड़ा कोई दर्द नहीं, लेकिन हकीकत यही है कि महज एक राज्य का मुख्यमंत्री होने के बाद भी केंद्र की सत्ता में बैठा हर शख्स मोदी पर अपनी नजरें गड़ाए रखता है। देश का अगर एक खास तबका इस बात से डरता है कि भूल से भी मोदी इस देश के प्रधानमंत्री न बन जाएं तो इसी देश के एक बड़े तबके (सर्वे के हिसाब से) की ये पुरजोर ख्वाहिश है कि मोदी ही अगला प्रधानमंत्री बनें ताकि भ्रष्टाचार से पूरी तरह खोखले हो चुके और नेताविहीन इस देश को एक सशक्त नेता और विकास पुरुष नसीब हो सके। दोनों तरह के लोग हर मोर्चे पर सक्रिय हैं और तमाम कोशिशें कर रहे हैं। मोदी पर हो रही इस जंग को देखते हुए मैंने सैकड़ों लेख पढ़े और मुझे मोदी के दुश्मनों से ज्यादा उनके समर्थक दिखे। उन्हीं तर्कों के आधार पर इस लेख को लिखने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर वो कौन सी 101 वजहें हैं, जिसके आधार पर मोदी को इस देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। इसमें गुजरात दंगों और विकास समेत तमाम मुद्दों को मैंने उठाया है। इसे TOP-10 या TOP-20 की तरह समझकर न पढ़ें क्योंकि हो सकता है कई अहम तर्क आखिर में लिखें हों। इसलिए इसे समग्रता में TOP-101 की तरह लिया जाए।
1- मोदी इस समय देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। हाल के तमाम सर्वे से ये जाहिर है। यहां तक कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों या सोनिया गांधी या फिर बीजेपी की तरफ से कोई भी नेता उनके आसपास नहीं टिकता।
2- प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी ज्यादा लोगों की पहली पसंद हैं। हाल के सर्वे से भी यही बात सामने आई है। नीलसल सर्वे के साथ किए गए एक न्यूज चैनल के सर्वे के मुताबिक मोदी को 48 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री पद के लिए पहली पसंद बताया जबकि महज सात फीसदी लोगों की पसंद मनमोहन सिंह हैं। सर्वे में कोई दूसरा नेता मोदी के आसपास नहीं दिखता। वहीं एक न्यूज साइट पर कराए गए ओपन सर्वे में 90 फीसदी लोगों ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी पहली पसंद बताया।
3- मोदी आम लोगों से जुड़े नेता हैं। ये बात कई दूसरे नेताओं के लिए भी कही जा सकती है लेकिन सवाल प्रधानमंत्री पद के दावेदारों का है। दावेदारों की लिस्ट में जिन लोगों के नाम लीजिए। उनमें से कई तो पार्टी को मिलने वाली सीटों के आधार पर छंट जाएंगे (मसलन नीतीश कुमार) या फिर वो आम इंसान की तरह जिंदगी गुजारते हुए इतने ऊंचे ओहदे तक नहीं पहुंचे होंगे (मसलन राहुल गांधी) या फिर वो आम लोगों से जुड़े नेता नहीं होंगे (मसलन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह)।
4- मोदी चुनाव जीतकर सियासी मैदान में आते हैं, सिर्फ गुटबाजी या रणनीति बनाने में ही माहिर नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी न सिर्फ कभी भी, कहीं भी चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं बल्कि रणनीतिक तौर पर भी कुशल राजनीतिक कारीगर हैं। कम से कम गुजरात में न कोई राजनीतिक विरोध दिखता है और न ही पार्टी के भीतर कोई प्रभावशाली गुट हावी हो पाया है।
5- सियासी तौर पर मोदी की आभा को डिकोड करने की कोशिश करूं तो वो न सिर्फ अपने राज्य से बाहर देश के कई इलाकों से अपनी सीट जीतने का माद्दा रखते हैं बल्कि अगर घोषित तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार बना दिया जाए तो अकेले दम पर कम से कम 100-150 लोकसभा सीटों पर असर डाल सकते हैं।
6- मोदी को पूरे देश में बड़ा जनाधार हासिल है। सिर्फ गुजरात ही नहीं देश के कई राज्यों का एक बड़ा तबका मोदी की ओर देख रहा है। मोदी जहां जाते हैं, लोगों और मीडिया के आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
7- चुनावी नतीजे मोदी की दावेदारी को और पुख्ता करते हैं। लगातार तीन बार उन्होंने गुजरात का चुनाव भारी बहुमत से जीता है। भारी विरोध और विपक्ष द्वारा पूरी ताकत लगाने के बावजूद मोदी का कद बढ़ा ही है।
8- मोदी खुद को गुजरात ही नहीं बल्कि देश के एक बड़े तबके में विकास पुरुष के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाब रहे हैं।
9- मोदी को यूथ से खुद को जोड़ने में कामयाबी मिली है। कई सर्वे से भी ये बात सामने आई है। इस समय देश का एक बड़ा तबका युवाओं का है, जिनके लिए बेरोजगारी, विकास, महंगाई और भ्रष्टाचार एक बडा मुद्दा है। मोदी इन मुद्दों को एक विजन के साथ पेश करते हैं। दिल्ली के SRCC कॉलेज में मोदी के भाषण में इसकी झलक दिखाई पड़ी।
10- मोदी महिलाओं में भी उतने ही लोकप्रिय हैं। Open/C-Voter के सर्वे से साफ है कि राहुल की तुलना में मोदी न सिर्फ पुरुष वोटरों की पसंद हैं बल्कि ज्यादातर महिलाओं ने भी मोदी पर ही भरोसा जताया है।
11- हर उम्र के लोगों में नरेंद्र मोदी ज्यादा लोकप्रिय है। Open/C-Voter के सर्वे में यूथ, बीच की उम्र के लोग और सीनियर सिटीजन्स के ऊपर सर्वे किया गया। मोदी सारे ग्रुप में ज्यादा लोकप्रिय हैं। हालांकि सोशल ग्रुपिंग, एजुकेशनल और इनकम ग्रुप में कहीं-कहीं वो कमजोर पड़ते नजर आते हैं लेकिन कुल मिलाकर औसत निकालें तो मोदी सब पर भारी नजर आते हैं।
12- इस समय के हालात में 2014 के चुनाव को देखते हुए एक तरफ जहां कांग्रेस खुलकर राहुल गांधी पर खेलने का फैसला कर चुकी है, वहीं बीजेपी की तरफ से मोदी की दावेदारी मजबूत है। अब अगर इन दोनों में ही तुलना की जाए तो राहुल की तुलना में मोदी ज्यादा लोगों की पसंद हैं। एक न्यूज चैनल के साथ कराए गए नीलसन सर्वे के मुताबिक देश की 48 फीसदी जनता ने अगर मोदी को पहली पसंद बताया तो महज 18 फीसदी जनता राहुल के साथ नजर आई। वहीं इंडिया टुडे पत्रिका ने भी 12,823 लोगों से बातचीत के आधार पर एक सर्वे किया। इसमें भी प्रधानमंत्री पद के लिए 36 फीसदी लोगों की पसंद मोदी थे, जबकि महज 22 फीसदी लोगों ने राहुल को अपनी पहली पसंद बताया। बाकी कई चैनलों के सर्वे का भी यही हाल है।
13- मोदी हर वक्त आम जनता से जुड़े रहते हैं। चाहे वो सोशल नेटवर्किंग साइट ही क्यों न हो, इंटरव्यू के लिए बड़ी आसानी से उपलब्ध रहते हैं। गुजरात जैसे राज्य का मुख्यमंत्री होने के बावजूद कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी हर जगह के लिए न सिर्फ उपलब्ध होते हैं, बल्कि उनकी इस व्यस्तता के बावजूद सरकारी कामकाज में भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जरा किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री या किसी पार्टी के ही बड़े नेता को बुलाकर देख लीजिए। कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं।
14- मोदी में निर्णय लेने की क्षमता है, वो बिना किसी दबाव के फैसले ले सकते हैं। क्या प्रधानमंत्री के दावेदारों में किसी दूसरे नेता के लिए ये बात बोल सकते हैं?
15- सिर्फ जेडीयू को छोड़ दें सहयोगी दलों में किसी को भी मोदी को समर्थन देने में कोई दिक्कत नहीं है। एक अहम सवाल तो खुद जेडीयू को लेकर है कि आखिर 20 सीटों के साथ जेडीयू की हैसियत ही क्या है। बल्कि बिहार बीजेपी के लोगों की मानें तो नीतीश की वजह से बिहार में पार्टी दोयम दर्जे की हो गई है। अगर नीतीश को छोड़कर बीजेपी मोदी के भरोसे चुनाव लड़े, तो बड़ी आसानी से न सिर्फ पुरानी परफोर्मेंस को दोहरा सकती है बल्कि उससे ज्यादा सीट भी हासिल कर सकती है। यही नहीं अगर नीतीश बीजेपी से अलग रास्ते पर चलना चाहते हैं तो क्या जेडीयू 20 सीट दोबारा हासिल कर पाएगी।
16- खुद जेडीयू में मोदी को लेकर मतभेद हैं। मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का आलम ये है कि जेडीयू सांसद जय नारायण निषाद ने ही न सिर्फ मोदी को खुला समर्थन दे दिया, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपने घर में दो दिनों का यज्ञ करवाया। इससे मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
17- बीजेपी में मोदी के नाम में एकमत बन सकता है। पार्टी के कई बड़े नेता खुलकर मोदी को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने की वकालत कर चुके हैं। क्या पिछले चंद सालों में किसी दूसरे नेता के लिए ये बात कही जा सकती है?
18- बीजेपी के भीतर भी मोदी के अलावा कोई दूसरा बड़ा नाम नहीं, जो जमीन से जुड़ा हो। यहां तक कि ज्यादातर सर्वे में आडवाणी भी मोदी से पिछड़ते नजर आए।
19- नरेंद्र मोदी को संघ का भी पूरा समर्थन हासिल है। ये सब कुछ जानते हुए भी कि मोदी की कार्यशैली संघ की कार्यशैली से बिल्कुल अलग है। खुद मोदी के नेतृत्व में गुजरात में संघ उतना प्रभावशाली नहीं रहा।
20- दंगों के दाग लगने के बाद भी मोदी अपनी छवि बदलने में कामयाब रहे हैं।
21- मोदी पर भ्रष्टाचार का कभी कोई आरोप नहीं लगा
22- महज एक राज्य का मुख्यमंत्री होने के बावजूद मोदी ने गुजरात मॉडल को पूरी दुनिया के सामने पेश किया, जिसकी हर तरफ वाहवाही हो रही है।
23- मोदी की धीरे-धीरे विदेशों में भी स्वीकार्यता बढ़ी है। यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अमेरिका के राजदूत ने इस बात को माना है।
24- मोदी को लेकर पूरी दुनिया की सोच बदली है। खुद बड़े देश सामने आ कर उनसे संपर्क साधने में जुटे हैं। ब्रिटेन के राजदूत गुजरात जाकर नरेंद्र मोदी से मिले। साफ है मोदी ने विकसित देशों के नुमाइंदों को भी झुकने के लिए मजबूर किया। अगर मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो इस देश की विदेश नीति कितनी मजबूत और ताकतवर होगी, आप समझ सकते हैं।
25- अमेरिका में वार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम ने भले ही मुट्ठी भर लोगों के विरोध के बाद मुख्य वक्ता नरेंद्र मोदी के भाषण को रद्द कर दिया, लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ, उससे मोदी के प्रभाव का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर करने वाली सभी कंपनियों ने हाथ पीछे खींच लिए। सबसे पहले मुख्य स्पॉन्सर अडानी ग्रुप ने किनारा किया। इसके बाद सिल्वर स्पॉन्सर कलर्स और फिर ब्रॉन्च स्पॉन्सर हेक्सावेअर ने हाथ खींच लिए। यही नहीं इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने भी शामिल होने से इनकार कर दिया। शिवसेना नेता सुरेश प्रभु ने फोरम में जाने से इनकार कर दिया। पेन्सिलवेनिया मेडिकल स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर डा. असीम शुक्ला ने इसके खिलाफ मुहिम छेड़ दी। वहीं अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट से संबद्ध और वाल स्ट्रीट जर्नल के स्तंभकार सदानंद धूमे ने ट्वीट कर वार्टन इंडिया इकोनॅामिक फोरम से दूर रहने का एलान किया। न्यूजर्सी में रहने वाले प्रख्यात चिकित्सक और पद्मश्री से सम्मानित सुधीर पारिख ने विरोध दर्ज करते हुए इस सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया।
26- यही नहीं वॉल स्ट्रीट जनरल द्वारा कराए गए जनमत सर्वेक्षण में 94 फीसदी लोगों ने मोदी के आमंत्रण रद्द करने को गलत माना है। इसके बाद अमेरिका में फ्री स्पीच को लेकर एक मुहिम भी छेड़ दी गई। US India Business Council के चेयरमैन रॉन सोमर्स ने भी मोदी का कार्यक्रम रद्द करने पर नाखुशी जताई
27- गुजरात दंगों को छोड़ दें तो मोदी कभी विवादों में नहीं रहे, कभी आपत्तिजनक बयानबाजी नहीं की, जैसे कि इस समय तमाम दिग्गज नेताओं का मीडिया में छाए रहने का शगल बन चुका है।
28- मोदी एक सुलझे हुए नेता माने जाते हैं। वो दूरदर्शी हैं। किसी भी मुद्दे को लेकर उहापोह की स्थिति में नहीं रहते, जो कि एक अच्छे statesman की पहचान है।
29- मोदी का मीडिया के साथ भी बहुत मित्रतापूर्ण बर्ताव रहा है।
30- मोदी बीजेपी के इस समय करिश्माई नेता हैं। उनकी तुलना में बीजेपी के सेकेंड जेनरेशन का कोई नेता टिकता नजर नहीं आता है।
31- मोदी के प्रति शहरी और युवा मतदाताओं में आकर्षण है। मोदी इनका भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं।
32- मोदी टेक्नोलॉजी फ्रेंडली हैं। नई-नई तकनीक का न सिर्फ इस्तेमाल करते हैं बल्कि युवाओं को प्रोत्साहित भी करते हैं।
33- आम लोगों के बीच लोकप्रिय होने के अलावा उद्योगपतियों के बीच भी मोदी बेहद लोकप्रिय है। उद्योगपतियों के बीच अच्छी पैठ है। मोदी की तमाम बैठकों और कार्यक्रमों में जिस तरह से उद्योगपति खिंचे चले आते हैं, यही कोशिश तो विकास के नाम पर देश की तमाम सरकारें कर रही हैं।
34- नैनो के बंगाल से गुजरात जाने के दौरान मोदी ने विकास को लेकर अपनी एक बेहतरीन छवि बनाई। बंगाल में भले ही टाटा के इस प्रोजेकट को लेकर काफी हंगामा हुआ हो, लेकिन गुजरात शिफ्ट करने के दौरान न तो वहां के आम लोगों को दिक्कत हुई और न ही टाटा को।
35- सिर्फ उद्योगों के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि मोदी ने बाकी क्षेत्रों में भी विकास का काम किया है।
36- समग्र विकास को लेकर मोदी के पास अपना विजन है। कम से कम दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज में मोदी ने अपने लेक्चर के दौरान इसे बेहतरीन तरीके से पेश किया। इसमें खेती से लेकर उद्योग तक हर मुद्दे पर बात हुई।
37- 2002 के गुजरात दंगों को छोड़ दें तो गुजरात में इसके बाद कोई दंगा नहीं हुआ।
38- दंगों को लेकर भले ही नरेंद्र मोदी के दामन पर दाग लगाने की कोशिश की जाती रही हो, लेकिन हकीकत ये है कि अब तक किसी अदालत ने उन्हें दोषी करार नहीं दिया है। खासकर गोधरा कांड के बाद जिस तरह से प्रतिक्रिया में गुजरात दंगे हुए उसे रोकना वाकई मुश्किल था। भारत में बदले को लेकर दंगा फसाद पहले भी हो चुका है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से सिखों का कत्लेआम किया गया, उसके बाद खुद राजीव गांधी ने ही कहा था कि \"When a big tree falls the earth must shake\". हालांकि न तो इस स्टेटमेंट का समर्थन किया जा सकता है और न ही गुजरात दंगों को कभी जायज ठहराया जा सकता है। इस मामले में मेरी राय ये है कि दोषियों को भी सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए, लेकिन क्या एक खास परिस्थिति में दंगों को न रोक पाने की वजह से मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर सवाल उठाना सही है?
39- दंगों की वजह से गुजरात की न सिर्फ देश में बदनामी हुई बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो पूरी दुनिया में भारत की जमकर बदनामी हुई, लेकिन जिस तरह से पिछले चंद सालों में मोदी ने अपनी मेहनत की वजह से गुजरात की पहचान बदली। इसे मोदी की बड़ी सफलता माना जाएगा। क्या देश को ऐसे ही Statesperson की जरूरत नहीं है?
40- दंगों को लेकर भले ही ये आरोप लगते रहे हों कि मोदी ने इसे होने दिया और पूरा प्रशासनिक अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, लेकिन हकीकत ये है कि मोदी न सिर्फ सक्रिय थे, बल्कि तमाम कार्रवाई सुनिश्चित कराने के अलावा उन्होंने 28 फरवरी 2002 को रक्षा मंत्री से भी बात की और तत्काल कार्रवाई करने की मांग की। रामजेठमलानी ने SUNDAYGUARDIAN में लिखे अपने लेख में इसे विस्तार से बताया गया है। साथ ही बताया है कि कैसे मोदी फौरन सक्रिय हो गए और दंगों को रोकने की भरपूर कोशिश की।
41- वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी ने तथ्यों के आधार पर ये भी सिद्ध करने की कोशिश की है कि गोधरा कांड के बाद दंगा स्टेट प्रायोजित नहीं था। लेख के मुताबिक दंगों के शुरुआती छह दिनों में 61 हिंदुओं और 40 मुस्लिमों की मौत हुई थी। जेठमलानी के तर्क आप SUNDAYGUARDIAN में छपे उनके लेख में पढ़ सकते हैं।
42- 27 दिसंबर 2002 को गोधरा कांड के फौरन बाद मोदी ने अपने सभी 70 हजार सुरक्षाकर्मियों को सड़कों पर उतार दिया। (The Hindustan Times Feb 28, 2002), गुजरात पुलिस ने शुरुआती तीन दिनों में 4,000 राउंड फायर किए। 27 हजार लोगों को गिरफ्तार किया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जॉन जोसेफ ने लिखा कि - 6 अप्रैल तक 126 लोग पुलिस की गोलियों में मारे गए। इसमें 77 हिंदू थे। साफ है मोदी के खिलाफ मुस्लिमों पर भेदभाव बरतने के आरोप गलत साबित होते हैं। बल्कि उस समय मीडिया में छपे कई लेख में तो गुजरात पुलिस के खिलाफ कुछ दूसरे ही आरोप लगे हैं...वो भी पत्रिकाओं के हवाले से।
43- मोदी को भले ही हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा हो, लेकिन मोदी के राज में कई मंदिरों को गैर कानूनी निर्माण की वजह से ढहा दिया गया। सिर्फ एक महीने के भीतर 80 ऐसे मंदिरों को गिरा दिया गया, जिसका निर्माण गैर कानूनी तौर पर सरकारी जमीन पर हुआ था। साफ है मोदी के मिशन का पहला नारा विकास है।
44- 2001 की जनगणना के मुताबिक गुजरात की आबादी का 9 फीसदी हिस्सा मुस्लिमों का है, यानी गुजरात में 45 लाख मुस्लिम हैं। लेकिन इनकी साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा 73 फीसदी थी। यही नहीं सेक्स रेशियो और कामकाज में जुटे आंकड़ों में ये राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। जामनगर के एक आर्किटेक्ट अली असगर ने एक लेख में लिखा कि \"अगर लोग बेरोजगार होंगे, तो हिंसा होगी। अब चूंकि हर किसी काम मिल रहा है... तो दंगे क्यों होंगे।\"
45- समय गुजरने के साथ मुस्लिमों का भरोसा भी नरेंद्र मोदी पर बढ़ा है। Open/C-Voter सर्वे के मुताबिक मुस्लिमों की भलाई और साम्प्रादियक सद्भाव के मुद्दे पर भी अल्पसंख्यकों का भरोसा मोदी पर बढ़ता नजर आता है। दलित, नक्सल औऱ कश्मीर जैसे मुद्दे के हल के लिए तो लोगों ने मोदी पर खुलकर भरोसा जताया है।
46- भले ही देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोधी पार्टी और नेता मोदी को दंगों के आधार पर घेरने की कोशिश करते हैं, लेकिन खुद गुजरात में मुसलमानों के रुख में नरमी आई है और कई जगह पर मुस्लमों ने मोदी के लिए वोट किया है - ये कहना है खुद जमीयते उलेमा के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का। इंडिया टुडे में छपे एक इंटरव्यू में मदनी ने यहां तक कहा कि गुजरात में मुस्लिमों ने बहुत तरक्की की है, बल्कि तथाकथित कुछ सेक्युलर सरकारों से ज्यादा तरक्की गुजरात के मुसलमानों ने की है।
47- मोदी को न सिर्फ अल्पसंख्यक लोगों का समर्थन धीरे-धीरे हासिल हो रहा है, बल्कि जरूरत पड़ने पर मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को टिकट देने में भी पूरा भरोसा जताया है। लोकल बॉडी चुनाव में जामनगर इलाके में मोदी ने 27 सीटों के लिए 24 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा कर दिया, इसमें 9 महिलाएं थीं। आश्चर्य की बात ये है सभी 24 मुस्लिम उम्मीदवारों ने यहां बीजेपी के कोटे से जीत हासिल की।
48- अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि निचले तबके के लोगों का भी मोदी को समर्थन हासिल है।
49- मोदी ने कभी जात-पांत की राजनीति नहीं की, जो कि इस समय देश के कई बड़े राज्यों के लिए जहर के समान हो चुकी है।
50- मोदी ने कभी भी क्षेत्रवाद को प्रश्रय नहीं दिया और न ही राजनीति की, बल्कि हमेशा राष्ट्रीय सोच के साथ आगे बढ़े।
51- मोदी ने न सिर्फ क्षेत्रवाद की राजनीति को रोका बल्कि एक कदम आगे बढ़कर देश के हर राज्य के युवाओं को गुजरात आने के लिए कहा। एक तरफ जहां देश के हर राज्य में लोग दूसरे राज्य के लोगों का विरोध करते हैं। राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं, वहीं मोदी ताल ठोककर ये कहते हैं कि गुजरात आकर रोजी रोटी कमाओ और देश का विकास करो।
52- क्षेत्रवाद से परे मोदी ने जिस तरह से गुजरात के लोगों की सोच बदली, ऐसे मौके पर मोदी देश की एक बड़ी जरूरत बन चुके हैं। खासतौर पर राष्ट्रीय एकता बहाल करने के लिए मोदी को हर हाल में देश की केंद्रीय सत्ता सौंपनी चाहिए।
53- मोदी गुजरात का मुख्यमंत्री होने के बाद भी खुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाब रहे हैं।
54- एक आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि मोदी की स्वीकार्यता पूरे देश में बढ़ी है। अब वो सिर्फ पश्चिम भारत ही नहीं बल्कि पूर्व, उत्तर और दक्षिण भारत में भी लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं। Open/C-Voter के सर्वे में एक खास तथ्य ये सामने आया कि मोदी दक्षिण भारत में किसी भी दूसरे नेता के मुकाबले दोगुना ज्यादा लोगों की पसंद बन चुके हैं। जबकि हकीकत ये है कि दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी का कोई जनाधार नहीं है। एक आश्चर्य ये भी है कि पश्चिम भारत में ही मोदी राहुल से एक प्वाइंट पीछे नजर आते हैं।
55- मोदी एक मजबूत सियासी नेता हैं। सियासत की जमीन पर तप कर आगे बढ़े हैं और उन्हें सियासत की बारीक समझ है। जाहिर है स्थायित्व और विकास के लिए इस देश को तपस्वी राजनीतिज्ञ की जरूरत है।
56- सियासी हलकों में और मीडिया के लिहाज से ये माना जाता है एक बड़ा नेता वो है, जिसके सबसे ज्यादा सियासी दुश्मन हों। इस देश में इस समय नरेंद्र मोदी इस लिस्ट में नंबर वन पर आएंगे जिनके सियासी दुश्मन सबसे ज्यादा होंगे, लेकिन इसके बाद भी मोदी कभी मैदान छोड़कर नहीं भागे, बल्कि मुकाबला करते हुए आगे ही बढ़ रहे हैं।
57- इस समय देश के सामने सबसे बड़ी विडंबना ये है कि मुश्किल की घड़ी में सर्वोच्च पद पर बैठे नेता सामने नहीं आते। खुलकर अपने बयान नहीं देते, बल्कि खुद को एसी कमरों में कैद कर लेते हैं। मोदी के सत्ता के शिखर पर बैठने से ये मुश्किल दूर हो जाएगी।
58- मोदी भले ही संघ की पसंद बन गए हों, लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी सिर्फ संघ के आदेशों का अनुसरण करेंगे, बल्कि अपने हिसाब से फैसले लेंगे। मोदी के अब तक के तेवर से साफ है कि वो वहीं काम करेंगे जो विकास के लिए जरूरी होगा।
59- मोदी एक्सपेरिमेंट करने में माहिर हैं, चाहे वो अपनी ब्रांडिंग हों, नई तकनीक से जुड़ाव हो या फिर विकास की कोई नई नीति। मसलन - गुजरात वाइब्रेंट, गूगल प्लस से लोगों से जुड़ना, राज्य में आयोजित कई तरह के महोत्सव। हकीकत ये है कि देश का विकास करना हो या फिर नई राह पर ले जाना हो तो एक्सपेरिमेंट करने ही होंगे। वर्ना पुराने रास्ते को पकड़कर तेज प्रगति मुश्किल है।
60- मोदी को अपने विरोधियों से निपटने का हुनर मालूम है। मसलन चुनाव से पहले गुजरात में कांग्रेस ने वादों की झड़ी लगाकर एकबारगी मोदी के लिए मुश्किल पैदा कर दी, लेकिन मोदी के वादों ने कांग्रेस के दावों को हवा कर दिया। हालांकि इस हुनर का गलत इस्तेमाल होने की भी आशंका है, लेकिन ये डर तो हर किसी के साथ है।
61- मोदी को इसलिए भी प्रधानमंत्री बनना चाहिए क्योंकि वो सत्ता पक्ष में बैठे लोगों के भी पहले नंबर के सियासी दुश्मन हैं। इसके बाद भी वो न सिर्फ डटे हुए हैं, बल्कि गुजरात से ही केंद्र को सीधी चुनौती देते हैं।
62- मोदी पर भले ही गुजरात दंगों के आरोप हों, लेकिन मोदी ने कभी भी सांप्रदायिक बात नहीं की। उन्होंने खुद को विकास पुरुष के तौर पर पेश करने में सफलता पाई, जबकि हकीकत यही है कि आज तमाम पार्टियां खुलकर अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए नियम कायदे ताक पर रख देती हैं, लेकिन क्या कभी मोदी ने बहुसंख्यकों के समर्थन में ही कभी कोई सांप्रदायिक बात की?
63- मोदी ने ये वादा भी किया कि गुजरात में दोबारा ऐसे दंगे नहीं होने दिए जाएंगे। ये खुद जर्मन राजदूत ने मीडिया के सामने बयान में कहा। उदाहरण भी सामने है कि गुजरात में मोदी के शासन में दोबारा कोई दंगा नहीं हुआ। यही नहीं एक दूसरा उदाहरण दूं तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश राज में एक साल के भीतर 100 से ज्यादा दंगे हुए। ये अब भी जारी है। क्या सिर्फ इसी वजह से अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटा देना चाहिए या फिर उन्हें हमेशा के लिए प्रधानमंत्री पद से वंचित कर दिया जाना चाहिए। साफ है कि हालात को देखते हुए इसका आकलन करना चाहिए।
64- अगर सिर्फ विकास के नाम पर चुनाव लड़ा जाए तो मोदी सब पर भारी पड़ेंगे। अब ये देश तो तय करना है कि दंगे के विवाद को लेकर हर वक्त रोना रोया जाए और अदालती फैसले से पहले ही मोदी को दोषी करार दिया जाए या फिर विकास का सपना देख रहे लोग मोदी को एक मौका दें।
65- मोदी बहुत अच्छे मैनेजर हैं। देश के प्रधानमंत्री पद पर ऐसे शख्स का होना जरूरी है, जो सभी चीजों को एक साथ मैनेज कर सके।
66- मोदी के नेतृत्व में पार्टी में अनुशासन कायम है। हकीकत ये है कि कोई भी नेता तभी अच्छा काम कर पाएगा जब उसे पार्टी के भीतर ही गुटबाजी का सामना न करना पड़े। हर जगह ये परेशानी बहुतायत में दिखती है, लेकिन गुजरात में मोदी के नेतृत्व में ऐसा कभी नहीं हुआ। कभी कोई पार्टी के भीतर गुटबाजी करने के बाद भी पार्टी को नुकसान नहीं पहुंचा पाया
67- मोदी सियासी विरोधियों को भी अपने करीब लाने का हुनर जानते हैं। ये सबको पता ही है कि किस तरह से केशुभाई ने गुजरात में मोदी को परेशान करने की कोशिश की, लेकिन आखिरकार जब मोदी चुनाव जीते तो सबसे पहले केशुभाई का आशीर्वाद लेकर उनका दिल जीत लिया। इस देश का एक सच ये है कि जब कोई शख्स सत्ता के शिखर पर पहुंच जाता है तो अपने सियासी दुश्मनों ने गिन-गिनकर बदले लेता है, लेकिन मोदी की यही अदा उन्हें सबसे अलग बनाती है।
68- मोदी पारिवारिक दुनिया से दूर नजर आते हैं। सत्ता और रिश्ते का कभी घालमेल नहीं दिखता। ऐसे शख्स की खासियत ये होती है कि उसे धन दौलत से ज्यादा मोह नहीं होता। इस मामले में मोदी वाजपेयी जैसे नजर आते हैं।
69- मोदी की कोई संतान नहीं, सिवाय बुजुर्ग मां के कभी किसी रिश्तेदार से करीबी नहीं, जिसके लिए भ्रष्टाचार करने की नौबत आए। (अतिश्योक्तिपूर्ण लग सकता है आपको? लेकिन ऐसे लोग ही इतिहास बदलते हैं, जिसकी मिसाल मोदी देते आए हैं।)
70- मोदी की उम्र 62 साल है, यानी वो इतनी उम्र पूरी कर चुके हैं अच्छा खासा अनुभव जुटा सकें। साथ ही ऐसी उम्र भी नहीं जहां भारतीय राजनीति का मतलब बुजुर्ग नेता ही नजर आते हों। गौरतलब है कि कैबिनेट में मंत्रियों की औसत उम्र 64 साल है।
71- मोदी में आज भी वही सादगी बरकरार है, जो उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले मौजूद थी। वो भले ही चार बार से गुजरात के मुख्यमंत्री हों, लेकिन सादगी में कभी कोई कमी नहीं आई। उनकी मां आज भी उसी मकान में रहती हैं, जहां पहले रहती थीं।
72- इस चुनाव में बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि उसने पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए हिंदुत्व के मॉडल को अपना लिया है। एक समय जहां आडवाणी हिंदुत्व के नाम पर सबसे बड़ा चेहरा थे, वहीं आज मोदी से बड़ा दूसरा चेहरा नहीं है।
73- बीजेपी की दूसरी बड़ी मजबूरी ये है कि सिर्फ हिंदुत्व की चाशनी से काम नहीं चलेगा, बल्कि पार्टी ने इसके साथ-साथ विकास का कॉकटेल भी शुरू किया है और इन दोनों हुनर में मोदी से बड़ा दूसरा नेता नहीं। आडवाणी कभी हिंदुत्व और विकास को एक साथ मिला नहीं पाए। कभी वो हिंदुओं के हृदय सम्राट बने, तो अब विकास का नारा देते वक्त उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को पीछे छोड़ दिया।
74- दुनिया की सबसे प्रभावशाली पत्रिका टाइम ने मार्च 2012 में नरेंद्र मोदी को अपने कवर पेज पर जगह दी। साथ ही ये लिखा कि मोदी का मतलब बिजनेस होता है। पत्रिका ने गुजरात के विकास के लिए न सिर्फ मोदी को श्रेय दिया, बल्कि ये भी लिखा कि मोदी एक दृढ़ और गंभीर नेता हैं, जो देश को विकास के रास्ते पर ले जा सकते हैं, जिससे ये देश चीन से मुकाबला कर सके। इससे मोदी की अंतरराष्ट्रीय तौर पर पहचान की झलक मिलती है।
75- मोदी आम लोगों से सीधे जुड़े होते हैं। उन्हें किसी बिचौलिए की जरूरत नहीं पड़ती। चाहे ये जुड़ाव सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये ही क्यों न हो। आप उनकी साइट के जरिये उनसे सीधे सवाल जवाब कर सकते हैं। मिलने का वक्त मांग सकते हैं, अपने कॉलेज-स्कूल या संस्थान के लिए बुलावा भेज सकते हैं। क्या बाकी कोई मुख्यमंत्री इतनी सहजता से उपलब्ध हैं।
76- मोदी की एक बड़ी ताकत उनकी भाषा है। वो बहुत अच्छी हिन्दी जानते हैं। गुजराती होने के बाद भी हिन्दी भाषा में पूरे देश के साथ बहुत ही बेहतरीन तरीके से खुद को कनेक्ट कर सकते हैं, यानी देश की बहुसंख्यक आबादी की मुश्किलों को उनकी भाषा में सुन सकते हैं और आसानी से उसका जवाब दे सकते हैं।
77- नरेंद्र मोदी न सिर्फ अच्छे वक्ता हैं, बल्कि उन्होंने कई कविताएं लिखी हैं, साथ ही कई लेख लिखकर अपने विचार भी सामने रखते रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा, प्रकृति और अपने अनुभव को भी कई किताबों में समेटा है। इसका मतलब ये है कि वो एक मौलिक चिंतक है, जिसकी इस देश को सख्त जरूरत है।
78- आम लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने के मामले में IBN7 Diamond States Award में गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य का अवॉर्ड मिला। मोदी के नेतृत्व में ये बड़ा योगदान है क्योंकि देश में इस समय लोगों की सुरक्षा एक बड़ा विषय बन चुका है
79- समग्र कृषि उत्पादों के मामले में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य का अवॉर्ड दिया। इसका मतलब है कि मोदी के राज में सिर्फ उद्योगों का ही विकास नहीं हुआ या फिर उद्योगपति ही खुश नहीं हुए बल्कि किसानों के लिए भी खुशखबरी आई। कृषि प्रधान इस देश को आखिर और क्या चाहिए।
80- इस समय देश की बड़ी समस्या महंगाई, भ्रष्टाचार और आर्थिक विकास है। इस मुद्दे पर भी हाल में ओपन पत्रिका और openthemagazine.com ने सर्वे कराया। साथ ही पूछा कि आखिर देश की कौन सी शख्सियत इन मुश्किलों से निजात दिला सकती है। इस मुद्दे पर भी लोगों ने राहुल के मुकाबले मोदी पर ज्यादा भरोसा जताया है।
81- गुजरात में भारत की सिर्फ 5 फीसदी आबादी रहती है जबकि 6 फीसदी एरिया है। लेकिन योगदान की बात करें तो \"Value of Output\" 16.10 फीसदी है, जबकि निर्यात का 16 फीसदी हिस्सा गुजरात से होता है। स्टॉक मार्केट कैपिटलाइजेशन में 30 फीसदी हिस्सा है। औद्योगिक उत्पादन में गुजरात का हिस्सा 16.2 फीसदी है। 10वीं पंचवर्षीय योजना में भारत का विकास दर 8.2 फीसदी तय किया गया, लेकिन गुजरात ने 10.2 फीसदी की रफ्तार से विकास किया। पहले साल में तो रिकॉर्ड 15 फीसदी के हिसाब से विकास हुआ। तटवर्ती क्रूड ऑयल के प्रोडक्शन में गुजरात का हिस्सा 54 फीसदी है। नेचुरल गैस के प्रोडक्शन में 50 फीसदी हिस्सा, भारत की रिफायनरी कैपेसिटी का 46 फीसदी और भारत के कुल क्रूड ऑयल आयात की 60 फीसदी फैसिलिटी गुजरात में है।
82- स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी मोदी ने भरपूर ध्यान दिया है, जिसकी देश-विदेश में भरपूर चर्चा हुई। WHO ने गुजरात के स्कूल हेल्थ कार्यक्रम की प्रशंसा की है। इसके तहत 1 करोड़ बच्चों की सेहत हर साल प्राइमरी स्कूल में चेक की जाती है। गर्भवती महिलाओं की देखरेख के लिए चिरंजीवी योजना की भरपूर तारीफ की गई है। सिंगापुर में एशियन इनोवेशन अवॉर्ड में इसकी पहचान पूरी दुनिया के सामने आई। UNICEF की रिपोर्ट \" State of World Children 2009 में भी इसकी भरपूर तारीफ की गई। यही नहीं गुजरात मेडिकल टूरिज्म के तौर पर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा है।
83- मोदी का मिशन \"Water for all\" विकास की एक नई कहानी बयान करता है। गुजरात में वाटर मैनेजमेंट बाकी राज्यों के लिए नजीर साबित हुआ है। चाहे वो बारिश के पानी को सहेजना हो, वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल हो, 21 नदियों को आपस में जोड़ना हो। राज्य के 14 हजार गांवों और 154 शहरों में पीने के पानी के लिए वाटर ग्रिड की स्थापना की गई है। इससे पहले जहां 4 हजार गांवों में टैंकर के जरिये पीने का पानी भेजना पड़ता था अब वो घटकर 185 गांव रह गए हैं। (3 साल पहले के आंकड़ों पर आधारित)
84- ज्योति ग्राम योजना की वजह से गुजरात देश का पहला राज्य बन गया जहां के सभी गांव में बिजली मुहैया करा दी गई है। ये नरेंद्र मोदी की कोशिशों का असर है।
85- आम लोगों को न्याय दिलाने में गुजरात की मोदी सरकार ने भी बेहतरीन काम किया है। उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर 2005 में गुजरात में 45 लाख केस पेंडिंग थे जो 2009 में घटकर 22 लाख हो गए। जबकि इन मामलों को आगे शून्य तक करने का इरादा था। सरकार ने 67 ईवनिंग कोर्ट का भी गठन किया, जिससे लोगों को वर्किंग आवर में दिक्कत न हो। लोक अदालत और नारी अदालत से भी इस काम में काफी मदद मिली।
86- भुखमरी निवारण की नीति के कार्यान्वयन को लेकर गुजरात ने तेजी से काम किया है। मोदी के समय ही पहली बार किसी राज्य ने लगातार चार बार इस मामले में पहला स्थान हासिल किया।
87- मोदी के समय में ही गुजरात देश का पहला राज्य बना, जहां कि नगरपालिकाओं और कॉरपोरेशन में ई-गवर्नेंस को पूरी तरह से लागू किया गया। अर्बन हेल्थ पॉलिसी को भी विस्तारपूर्वक लागू करने वाला गुजरात पहला राज्य है। देश का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में गुजरात पहला राज्य है, जहां के 590 विलेज काउंसिल कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़े हैं। अब तक 13,693 पंचायत या विलेज काउंसिल में कम्प्यूटर मुहैया कराया गया है। साथ ही लोगों को कंप्यूटर सिखाया जा रहा है या सिखाया जा चुका है।
88- एक तरफ जहां देश के बाकी मुख्यमंत्री गिफ्ट के जरिये अपना खजाना भरने में लगे होते हैं, वहीं इस मामले में मोदी का कोई सानी नहीं है। मोदी ने अब तक मिले सभी गिफ्ट को महिलाओं की शिक्षा के लिए सरकारी कोष में जमा करा दिया है। सिर्फ शुरुआती 5 साल के रिकॉर्ड में ही मोदी ने करीब 287 लाख 37 हजार रुपये जमा कराए।
89- एक तरफ जहां बाकी मुख्यमंत्री अगले चुनाव की तरफ देखते हैं, वहीं मोदी अगली पीढ़ी की तरफ देखते नजर आते हैं, यानी मोदी की दूरदर्शिता का कोई मुकाबला नहीं है। शायद इसीलिए एक बार उद्योगपति अनिल अंबानी ने कहा था अगर गुजरात अलग देश होता तो ये अलग ही देशों की कतार में होता, जिसमें दुनिया के विकसित देश नजर आते हैं।
90- India Today - ORG MARG के सर्वे में पांच सालों में तीन बार नरेंद्र मोदी को नंबर 1 मुख्यमंत्री का खिताब दिया गया। ये किसी भी मुख्यमंत्री को दिया गया एक अनोखा सम्मान है
91- मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी ने गुजरात की तारीफ करते हुए लिखा कि - \"मैं गुजरात का कई बार दौरा कर चुकी हूं। खासकर 2002 के दंगों के दौरान भी। गुजरात की कार्य संस्कृति को देखकर मैं दंग रह गई। गांव हो या शहर - हर तरफ जबरदस्त सड़कें... यहां तक की सुदूर गांवों में भी बिजली और पीने के पानी की व्यवस्था थी। मैं खास तौर पर पंचायत और स्थानीय लेवल में स्वास्थ्य सेवाओं को देखकर चकित थी।\" इसके बाद बंगाल में 30 साल के लेफ्ट के शासन की तुलना करती हुई वो कहती हैं- \"ये हालत पश्चिम बंगाल के जैसी नहीं है, जहां गांवों और पंचायतों में भी बिजली नहीं है। सरकार की स्वास्थ्य परिसेवा का कहीं कोई अस्तित्व नजर नहीं आता।\"
92- मोदी पर ये आरोप लगता रहा है कि वो तानाशाह प्रवृत्ति के हैं। वो न तो आरएसएस की सुनते हैं और न ही उन्होंने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी की सुनी। अब ये भले ही आरोप के तौर पर लग रहे हों, लेकिन यही मोदी की ताकत है। सवाल ये है कि मोदी के इस रुख से देश को कोई नुकसान हुआ। क्या संस्था के तौर पर बीजेपी तहस नहस हो गई? सवाल ये भी है कि क्या देश को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत नहीं जो अपने हिसाब से फैसले ले क्योंकि इस समय सबसे बड़ी कमी ये है कि देश के बड़े नेता फैसले लेने से कतराते हैं। लेकिन गठबंधन वाली सरकार में कोई भी प्रधानमंत्री तानाशाह नहीं बन सकता।
93- मोदी के विरोधियों पर उनके खिलाफ लगातार दुष्प्रचार फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। वैसे हकीकत ये है कि मोदी के समर्थक अगर 1 फीसदी होंगे तो उनके दुश्मन कम से कम 50 गुना ज्यादा। इसके बावजूद अगर मोदी अपना वर्चस्व बचाने में कामयाब रहे हैं तो इसे उनकी खासियत और ताकत के तौर पर समझना चाहिए।
94- जस्टिस काटजू हाल के दिनों में मोदी को लेकर कट्टर विरोधी के तौर पर सामने आए हैं। प्रेस काउंसिल का चेयरमैन होने के बावजूद उन्होंने व्यक्तिगत विचार रखते हुए तीखी आलोचना की है। Firstpost.com पर अनिरुद्ध दत्ता ने काटजू के बयान को लिखते हुए कई सवाल खड़े किए हैं... अनिरुद्ध ने लिखा कि --
\"And in the survey conducted by Katju (what else can it be since he has so emphatically written about it), \"The truth today is that Muslims in Gujarat are terrorized and afraid that if they speak out against the horrors of 2002 they may be attacked and victimized. In the whole of India Muslims (who are over 200 million of the people of India) are solidly against Modi (though there are a handful of Muslims who for some reason disagree).\" So Katju has surveyed over 200 million Muslims. But then what explains BJPs victory in Muslim dominated constituencies in recent Gujarat elections as well as the recent municipal elections? Probably in Justice Katju\'s views, a silly question by an Indian idiot.
How many Muslims in Gujarat has Katju spoken to? During my visit to Gujarat in November, I spoke to two for considerable length of time. They certainly did not look terrorised and discussed politics quite freely. While Katju may not know the reason why some Muslims disagree, these two Muslims very clearly said that communalism has been a scourge of Gujarat, like the rest of India, for long and this is the first time that ten years of tranquillity and peace has been enjoyed in Gujarat. Both these individuals run businesses - one is Nadeem Jaffri who runs Hearty Mart enterprises, a retail venture and the other is Talha Sareshwala, CEO & MD, of Parsoli Motors. Of course, there are Muslims who would not discuss politics and would shy away from it. But even in the lanes of Juhapura, during an earlier visit, small entrepreneurs like tentwallahs happily said that business was booming since Gujarat was growing.
95- गुजरात में मानव विकास सूचकांक को लेकर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं... लेकिन लेखक अनिरुद्ध दत्ता की मानें तो गुजरात में पिछले दस सालों में बेहतरीन तरीके से मानव विकास सूचकांक में बढ़ोतरी हुई है। अनिरुद्ध ने लिखा कि - Katju has criticised the human development indicators of the people of Gujarat and has rightly asked should they eat electricity, roads and factories. Like all of Gujarat\'s development has not happened in the last ten years, similarly Gujarat\'s human development indicators are not necessary a reflection of what has happened only in the last ten years. It\'s a legacy of the last sixty years of \"development\". Gujarat\'s human development indicators (HDI) in most cases is better than the all India average. While it is not the best in India, it is nowhere close to being the worst and its improvement in the last ten years is in most cases among the best. That is why it features among the top performing states in India Today\'s annual rankings consistently. However, there is no gain saying that the HDI indicators of India and Gujarat as well are appalling. When starvation deaths happen in Thane district, what can be more shameful than that for India.
96- आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में गुजरात ने देश में नंबर 1 स्थान हासिल किया। एक सर्वे के बाद Economic Freedom of the States of India (EFSI), 2012 नाम से रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। इस सर्वे में आर्थिक स्वतंत्रता का पता लगाने के लिए तीन पैमाने का चयन किया गया। ये थे 1) सरकार का आकार, 2) कानूनी ढांचा और 3) संपत्ति के अधिकार, कारोबार और श्रम के रेग्लुलेशन का। तीनों पैमाने को मिलाकर गुजरात को नंबर एक स्थान मिला। जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले में भारत का स्थान 144 देशों में 111वां है, जो कि पहले 76वां था। समझ लीजिए कि अगर नंबर 1 राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो क्या देश की किस्मत नहीं बदलेगी?
97- मोदी की सकारात्मक सोच उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाती है। वो विवादों में पड़ने की जगह खुद को मजबूती से एक मिशन में लगाते हैं। आज मोदी जहां भी जाते हैं, उनके भाषणों को लेकर नहीं, बल्कि विवाद खड़े कर चर्चा की जाती है कि कहां कितना विरोध हुआ। कैसे मोदी ने कांग्रेस को ललकारा, गांधी परिवार को चुनौती दी। हाल के दिनों में दिल्ली यूनिवर्सिटी के SRCC कॉलेज में उनके दौरे को भी लेकर यही बातें कही गईं, लेकिन LIVEMINT में संदीपन देब ने अनंत रंगास्वामी के हवाले से कई नई बातें सामने रखीं और 'मोदीवेशन' के बारे में बताया -
\"Anant Rangaswami has very perceptively pointed out in firstpost.com: \"Decode (Modi\'s) speech, and these are the words which pop out: Development, education, youth, progress, brands, india, success, profit and wealth creation, going abroad, pride, technology, brains and employment. That about covers all that the youth focus on.\" Dripping with positivity, Modi almost seemed like a professional motivational speaker, using pithy metaphors, humorous anecdotes and simple examples. One metaphor will surely be remembered for a long time. Holding up a glass of water, he said: \"Some say this is half empty, others say this is half full. I say this is full, half with water, and half with air.\" This is corny, but this is young populist corn at its best. In social media, a new word has already been born: Modivation.
He delighted his audience with the sort of acronyms that the young thrive on: P2G2 (pro-people good governance), 5F (farm to fibre to fabric to fashion to foreign), 3S (skill, scale, speed). He spoke of building India\'s largest convention centre in 162 days, of having 50% of India\'s gross domestic product under one roof in his Vibrant Gujarat summit, of having completely eradicated 120 cattle diseases in six years (SRCC\'s principal provided further proof of Modi\'s efficiency when he said that the college had invited 11 people, including five cabinet ministers, to address the students, and Modi\'s office was the first to reply; some replies were still awaited).\"
98- जस्टिस काटजू ने मोदी पर ये सवाल उठाया कि क्या गुजरात के कुपोषित बच्चे सड़कों, बिजली और फैक्ट्रियों को खाएंगे, लेकिन हकीकत ये है कि विकास के इन्हीं पैमाने पर चलकर गरीबी को दूर किया जा सकता है। यही नहीं जिस आधार पर काटजू ने आरोपों की झड़ी लगाई, उसका विकास भी गरीबों के लिए किया गया। कार्तिकेय ताना ने अपने एक लेख What Leftists won't tell you about Modi's 'pro-industrialist obsession' में विस्तारपूर्वक इसका जवाब दिया है। जवाब से सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन इसे सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि गरीबों का पेट भरना हो तो सड़क न बनाए जाएं, बिजली का विकास न हो और फैक्ट्रियों की स्थापना का विरोध किया जाए। लेख में कई योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो सिर्फ गरीबों के लिए गुजरात में चलाई जा रही हैं।
99- गुजरात में नरेंद्र मोदी के विकास के काम ने सभी दायरे तोड़कर उन्हें प्रशंसक दिए हैं। ऐसे ही एक प्रशंसक हैं दिग्गज कांग्रेसी नेता, पूर्व सांसद और इस सबसे बढ़कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रपौत्री सुमित्रा गांधी कुलकर्णी। सुमित्रा खुलकर मोदी के समय में हुए गुजरात में विकास के कार्यों की तारीफ करती हैं। सुमित्रा के मुताबिक मोदी के समय में गुजरात में काफी बदलाव आए हैं।
100- मोदी के खिलाफ भले ही जितने आरोप लगाए गए हों, उन्हें मौत का सौदागर भी कहा गया, लेकिन हकीकत यही है कि तमाम आरोपों और धमकियों के आगे कभी मोदी ने अपनी भावनाओं को नहीं खोया, बल्कि उन्होंने गांधीवादी तरीका ही अपनाया। दो मामलों में मोदी को जान से मारने की धमकी दी गई। 2002 में रज्जाक कासिर कासिम और 2006 में ओमर फारुख सिद्दीकी ने ये मेल भेजा था। इन मामलों में इन्हें सख्त सजा हो सकती थी, लेकिन मोदी ने न सिर्फ माफ किया, बल्कि कासिम के पूरे परिवार को बुलाकर अपनी तरफ से सफाई दी। केस खत्म करवाया और जिस कंपनी ने उसे नौकरी से निकाला था। उसे वापस रखने का आग्रह किया। आज के हालात की तुलना करें तो अगर कोई फेसबुक पर या मेल पर इस तरह की बात किसी बड़े नेता या मंत्री के खिलाफ लिख दें तो क्या हश्र होगा... अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। क्या देश को ऐसे गांधीवादी नेता नहीं चाहिए?
101- आम लोगों के बीच रिसर्च में ही नहीं, बल्कि एक मार्केट रिसर्च एजेंसी के सर्वे में भी मोदी सबसे आगे हैं। IPSOS एजेंसी के सर्वे के मुताबिक 43 फीसदी लोगों ने मोदी को पहली पसंद बताया है, जबकि 36 फीसदी लोगों ने राहुल को अपनी पहली पसंद बताया। साफ है विकास के नाम पर भी लोगों की पहली पसंद नरेंद्र मोदी हैं। खास बात ये है कि दक्षिण के कई शहरों में भी मोदी को ज्यादा लोगों ने पसंद किया है, जहां बीजेपी की पकड़ कमजोर है।
मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की ये वजहें कई तरह के अलग-अलग आंकड़ों और दिग्गजों की राय पर आधारित हैं। हो सकता है आपके पास प्रधानमंत्री न बनाने की भी दमदार वजहें हो सकती हैं। अगर आपके पास ऐसी ही वजहें हैं तो कृप्या अपना जवाब जरूर दें।