लखनऊ।
अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में छह दिसंबर यानी आज की
तारीख अहम है। 21 साल पहले इसी दिन विवादित ढांचे को ढहा दिया गया था जिसका
मुकदमा आज भी लंबित है। पढ़ें-विवाद की शुरुआत से लेकर अब तक का प्रमुख
घटनाक्रम-
1528:
अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान
राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये
मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।
1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।
1859:
ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और
बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे
दी।
1885:
मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में
बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर
की।
23 दिसंबर, 1949:
करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की
मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे।
मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
16 जनवरी, 1950:
गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की
पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी। उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर
न्यायिक रोक की भी मांग की।
5 दिसंबर, 1950:
महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद
में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम
दिया गया।
17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।
18 दिसंबर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1984:
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम
जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान
शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।
1 फरवरी, 1986:
फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी।
ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन
कमेटी का गठन किया।
जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।
1 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।
9 नवंबर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
25 सितंबर, 1990:
बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के
अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।
नवंबर 1990:
आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। बीजेपी ने
तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह
ने वाम दलों और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी। बाद में उन्होंने
इस्तीफा दे दिया।
अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।
6 दिसंबर, 1992:
हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह
दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर
बनाया गया। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का
वादा किया।
16 दिसंबर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
जनवरी 2002:
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग
शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से
बातचीत करना था।
अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।
मार्च-अगस्त 2003:
इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने
अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के
नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर
अलग-अलग मत थे।
सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।
अक्टूबर 2004: आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की बीजेपी की प्रतिबद्धता दोहराई।
जुलाई 2005:
संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल
करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को
मार गिराया।
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
28 सितंबर 2010:
सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला
देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
तथाकथित मस्जिद के ऊपर रामलला जी का तम्बू |
17 साल पहले अयोध्या में बाबरी की साजिश को अंजाम दिया गया । 6 दिसंबर, 1992 का दिन इतिहास का काला दिन बन गया तो हिन्दुओ की बहुत बड़ी आबादी इसे सौर्य दिवस के रूप में मनाने लगे ।
5 दिसंबर, 1992
बड़े
से पत्थर को बांधकर पहाड़ से नीचे गिराया गया। दरअसल ये रिहर्सल थी बाबरी
मस्जिद को गिराने की। इसी दिन अयोध्या में लाखों कारसेवक एक और नारा
बार-बार लगा रहे थे। मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़ कर जाएंगे। ये
तैयारी एक दिन पहले की थी। भगवा ब्रिगेड ने अगले दिन 12 बजे का वक्त तय
किया था कारसेवा शुरू करने का। एक अजीब का जोश सबसे चेहरे पर साफ देखा जा
सकता था।
6 दिसंबर, सुबह 11 बजे
सुबह
11 बजे के करीब कारसेवकों के एक बड़े जत्थे ने सुरक्षा घेरा तोड़ने की
कोशिश की लेकिन उन्हें वापस धकेल दिया गया। इसी वक्त वहां नजर आए वीएचपी
नेता अशोक सिंघल, कारसेवकों से घिरे हुए और उन्हें कुछ समझाते हुए। थोड़ी
ही देर में उनके साथ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी भी जुड़ गए। तुरंत ही इस
भीड़ में लाल कृष्ण आडवाणी भी नजर आए। सभी सुरक्षा घेरे के भीतर मौजूद थे
और लगातार बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे। तभी पहली बार मस्जिद का बाहरी
दरवाजा तोड़ने की कोशिश हुई लेकिन पुलिस ने उसे नाकाम कर दिया। तस्वीरें
गवाह हैं कि इस दौरान पुलिस अधिकारी दूर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे।
6 दिसंबर, सुबह साढ़े 11 बजे
मस्जिद
अब भी सुरक्षित खड़ी थी। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती
दस्ता आ पहुंचा। उसने पहले से मौजूद कारसेवकों को कुछ समझाने की कोशिश की।
जैसे वो किसी बड़ी घटना के लिए सबको तैयार कर रहे थे। कुछ ही देर में
बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी वहां से बाहर
निकलती नजर आई। न कोई विरोध, न मस्जिद की सुरक्षा की परवाह। पुलिस की इस
टुकड़ी को दूर मचान पर बैठे पुलिस अधिकारी सिर्फ देखते रहे, कुछ किया नहीं।
मस्जिद से पुलिस के हटने के तुरंत बाद मेन गेट पर दूसरा और बड़ा धावा बोला
गया। जो कुछ पुलिसवाले वहां बचे रह गए थे वो भी पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए।
6 दिसंबर, दोपहर के 12 बजे
दोपहर
12 बजे एक शंखनाद पूरे इलाके में गूंज उठा। कारसेवकों के नारों की आवाज
पूरे इलाके में गूंजती जा रही थी। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की
दीवार पर चढ़ने लगा। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया। कुछ ही
देर में मस्जिद कारसेवकों के कब्जे में थी। इस वक्त की एक और तस्वीर गौर
करने लायक है। तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए
कह रहे थे लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। उस वक्त भी ये सवाल उठा था कि
क्या ये पुलिस का विद्रोह था या फिर कैमरे के सामने किया गया सोचा-समझा
ड्रामा। इस वक्त तक पुलिसवाले पूरी तरह हथियार डाल चुके थे। कुदाल लिए हुए
कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर चुके थे। एक दिन पहले की गई
रिहर्सल काम आई और कुछ ही घंटों में तथाकथित बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ढहा दिया
गया ।