शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

!!मनु-स्मृति क्या स्त्री बिरोधी है !!

हमारे समाज में कुछ प्रगतिशील महिलाओं और कुछ अन्य कथित प्रगतिशील लोगो का मानना है कि भगवान मनु स्त्री विरोधी थे। क्या जो मनु मनु-स्मृति हम पढ़ते और देखते है वह प्रमाणिक है ,, और अगर है तो कितने प्रतिशत ,, क्या ये वही मनु-स्मृतिहै जो भगवान् मनु ने लिखी थी और पूर्ण शुद्ध रूप में हमारे सामने है ,,,, अगर ऐसा है तो इसके श्लोको में इतना विरोधा भाष कैसे ,,, लिखने वाला एक चतुर्थ श्रेनी का लेखक भी जब अपने विषय के प्रतिकूल नहीं होता तो भगवान् मनु ने अपनी एक ही पुस्तक में इतना विरोध भाष कैसे लिख दिया ,,, एक जगह वो स्त्रियों की पूजा की बात करते है और दूसरी जगह उनकी दासता की ,, कही न कही कोई न कोई घेल मेल तो है,,,, अब वो घेल मेल क्या है उसे देखने के लिए हमें कुछ विद्वानों की ओर ताकना होगा और उनके कई शोध ग्रंथो को खगालना होगा ,,, यहाँ पर ये बहुत महत्व पूर्ण तथ्य है की हमारे जयादातर गर्न्थो का पुनर्मुद्रण और पुनर्संस्करण अग्रेजी शासन में हुआ और जयादातर अंग्रेज विद्वानों के द्बारा ही हुआ ,,, जिनका एक मात्र उद्देश्य भारत को गुलाम बनाना और भारतीय सभ्यता और संस्क्रती को नस्ट करना था,, कहीं कहीं पर उनका आल्प ज्ञान भी अर्थ को अनर्थ करने के लिए काफी था यथा

यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते॥ (ऋग्वेद क्0.90.क्क्)


अर्थात बलि देने के लिए पुरुष को कितने भागो मे विभाजित किया गया? उनके मुख को क्या कहा गया, उनके बांह को क्या और इसी तरह उनकी जंघा और पैर को क्या कहा गया? इस श्लोक का अनुवाद राल्फ टी. एच. ग्रिफिथ ने भी कमो-बेश यही किया है।

रह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य कृ त:।
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भयां शूद्रो अजायत॥ (ऋग्वेद क्0.90.क्ख्)


इस श्लोक का अनुवाद एचएच विल्सन ने पुरुष का मुख ब्राह्मण बना , बाहु क्षत्रिय एवं जंघा वैश्य बना एवं चरण से शूद्रो की उत्पत्ती हुई किया है। ठीक इसी श्लोक का अनुवाद ग्रिफिथ ने कुछ अलग तरह से ऐसे किया है- पुरुष के मुख मे ब्राह्मण, बाहू मे क्षत्रिय, जंघा मे वैश्य और पैर मे शूद्र का निवास है। इसी बात को आसानी से प्राप्त होने वाली दक्षिणा की मोटी रकम को अनुवांशिक बनाने के लिए कुछ स्वार्थी ब्राह्मणो द्वारा तोड़-मरोड़ कर मनुस्मृति मे लिखा गया कि चूंकि ब्राह्मणो की उत्पत्ती ब्रह्मा के मुख से हुई है, इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है तथा शूद्रो की उत्पत्ती ब्रह्मा के पैर से हुई है इसलिए वह सबसे निकृष्ट और अपवित्र है।

मनुस्मृति के 5/132 वे श्लोक मे कहा गया है कि शरीर मे नाभि के ऊपर का हिस्सा पवित्र है जबकि नाभि से नीचे का हिस्सा अपवित्र है। जबकि ऋग्वेद मे इस तरह का कोई विभाजन नही है। इतना ही नही इस प्रश्न पर इतिहासकारो के भी अलग-अलग विचार है। संभवत: मनुस्मृति मे पुरुष के शरीर के इस तरह विभाजन करने के पीछे समाज के एक वर्ग को दबाने, बांटने की साजिश रही होगी। मनुस्मृति के श्लोक सं1.31 के अनुसार ब्रह्मा ने लोगो के कल्याण(लोकवृद्धि)के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र का क्रमश: मुख, बाहू, जंघा और पैर से निर्माण किया। जबकि ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के रचयिता नारायण ऋषि के आदेश इसके ठीक उलट है। उन्होने सरल तरीके से (10.90.11-12)यह बताया है कि यदि किसी व्यक्ति के शरीर से मुख, बाहू, जंघा और पैर अलग कर दिया जाए तो वह ब्रह्मा ही क्यो न हो मर जाएगा। अब जब येसा है तो मनु स्मरति के किन श्लोको को प्रमाणिक कहा जाए और किन्हें नहीं इसको ले कर बहुत लम्बी बहस हो सकती है,, परन्तु इसका उत्तर भी
मनु-स्मृति में ही छिपा है ,,,
मनुस्मृति मे श्लोक (II.6) के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है। मनुस्मृति (II.13) भी वेदो की सर्वोच्चता को मानते हुए कहती है कि कानून श्रुति अर्थात वेद है। ऐसे मे तार्किक रूप से कहा जा सकता है कि मनुस्मृति की जो बाते वेदो की बातो का खंडन करती है, वह खारिज करने योग्य है। चारों वेदो के संकलनकर्ता/संपादक का ओहदा प्राप्त करने वाले तथा महाभारत, श्रीमद्भागवत गीता और दूसरे सभी पुराणो के रचयिता महर्षि वेद व्यास ने स्वयं (महाभारत 1-V-4) लिखा है-

श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥


अर्थात जहां कही भी वेदो और दूसरे ग्रंथो मे विरोध दिखता हो, वहां वेद की बात की मान्य होगी। 1899 मे प्रोफेसर ए. मैकडोनेल ने अपनी पुस्तक ''ए हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर'' के पेज 28 पर लिखा है कि वेदो की श्रुतियां संदेह के दायरे से तब बाहर होती है जब स्मृति के मामले मे उनकी तुलना होती है। पेज 31 पर उन्होने लिखा है कि सामान्य रूप मे धर्म सूत्र भारतीय कानून के सर्वाधिक पुराने स्त्रोत है और वेदो से काफी नजदीक से जुड़े है जिसका वे उल्लेख करते है और जिन्हे धर्म का सर्वोच्च स्त्रोत स्थान हासिल है। इस तरह मैकडोनेल बाकी सभी धार्मिक पुस्तको पर वेदो की सर्वोच्चता को स्थापित मानते है। न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य भी अपनी पुस्तक ''हिंदू लॉ एंड कांस्टीच्यूशन'' के पेज 16 पर लिखा है कि अगर श्रुति और स्मृति मे कही भी अंतर्विरोध हो तो तो श्रुति (वेद) को ही श्रेष्ठ माना जाएगा
,,
ऐसे मे मैकडोनेल सलाह देते है कि अच्छा होगा यदि स्मृति मे किसी बाहरी स्त्रोत के दावे/बयान को जांच लिया जाए। पर ब्रिटिश भारतीय अदालतो ने उनकी इस राय की उपेक्षा कर दी। साथ ही मनुस्मृति के वास्तविक विषय वस्तु के साथ भी खिलवाड़ किया गया जिसे ईस्ट इंडिया के कर्मचारी सर विलियम जोस ने स्वीकार किया है जिन्होने मनु स्मृति को हिंदुओ के कानूनी पुस्तक के रूप में ब्रिटिश भारतीय अदालतो मे पेश और प्रचारित किया था। मनुस्मृति मे ऐसे कई श्लोक है जो एक दूसरे के प्रतिलोम है और ये साबित करते है कि वास्तविक रचना के साथ हेरफेर किया गया है, उसमे बदलाव किया गया है। बरट्रेड रसेल ने अपनी पुस्तक पावर मे लिखा है कि प्राचीन काल मे पुरोहित वर्ग धर्म का प्रयोग धन और शक्ति के संग्रहण के लिए करता था। मध्य काल में यूरोप मे कई ऐसे देश थे जिसका शासक पोप की सहमत के सहारे राज्य पर शासनरत था। मतलब यह कि धर्म के नाम पर समाज के एक तबके द्वारा शक्ति संग्रहण भारत से इतर अन्य जगहो पर भी चल रहा था।

यहाँ पर इतना लम्बा चौडा लिखने और कई लेखको की
सहायता लेने का उद्देश्य यही है की पहले हमें मनु-स्मृति के श्श्लोको की प्रमाणिकता को सिद्ध करना होगा और प्रमाणिक श्लोको में अगर हमें कोई विरोधा भाष मिलता है और वो स्त्री विरोधी या समाज के किसी वर्ग विशेष के विरोधी मिलते है तो हमें निश्चित ही उनका विरोध करना चाहिए ,,, और मनु-स्मृति प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए हमारे पास केवल एक मात्र प्रमाणिक पुस्तक वेद ही है ,,, जिनकी साहयता से हम मनु-स्मृति के श्लोको की प्रमाणिकता जांच सकते है ,,,,, वैसे वैदिक समय में स्त्रियों की स्थिति क्या थी मै यहाँ लिखना चाहूंगा ,,,,,
ऋग्वेद की ऋचाओ मे लगभग 414 ऋषियो के नाम मिलते है जिनमे से लगभग 30 नाम महिला ऋषियो के है। इससे साफ होता है कि उस समय महिलाओ की शिक्षा या उन्हे आगे बढ़ने के मामले मे कोई रोक नही थी, उनके साथ कोई भेदभाव नही था। स्वयं भगवान ने ऋग्वेद की ऋचाओ को ग्रहण करने के लिए महिलाओ को पुरुषो के बराबर योग्य माना था। इसका सीधा आशय है कि वेदो को पढ़ने के मामले मे महिलाओ को बराबरी का दर्जा दिया गया है। वैदिक रीतियो के तहत वास्तव मे विवाह के दौरान रस्मो मे ब्7 श्लोको के वाचन का विधान है जिसे महिला ऋषि सूर्या सावित्री को भगवान ने बताया था। इसके बगैर विवाह को अपूर्ण माना गया है। पर अज्ञानता के कारण ज्यादातर लोग इन विवाह सूत्र वैदिक ऋचाओं का पाठ सप्तपदी के समय नही करते है और विवाह एक तरह से अपूर्ण ही रह जाता है !



!! रामसेतु मानव निर्मित है या स्वनिर्मित है ??

 जब भी बात होती है भगवान् श्री राम की तो उस समय पर रावन और उनकी  लंका को भी याद करते है ,पर रावन की लंका जो समुद्र के बीचोबीच स्थित वहा तक श्री राम ने कैसे सेना पहुचाया होगा उद्ध के लिए ,तो याद आता है राम सेतु ! अब यहाँ पर कुछ सेकुलरवादी खासकर कांग्रेस पार्टी जो राम सेतु को कहती है की स्वनिर्मित है ,इसी बात कप केन्द्रित करते हुए यह ब्लॉग आप सभी को समर्पित है की राम सेतु स्वनिर्मित है या मानव निर्मित है ,पढ़ लो सेकुलरो जिनको संका हो राम सेतु को लेकर !
हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्‍‌न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम' में किया है।
महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।
जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।
किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।
अतः सेकुलरो अब यह राग अपलापना बंद करो की राम सेतु स्वनिर्मित है मूर्खो भगवान् श्री राम को याद करो बुधि का विकाश होगा नहीं तो जीवन बहर बोट की राजनीत करते करते एक दिन मर जाओगे और ऊपर जाकर क्या जबाब दोगे ??     बोलो   !!!!जय जय श्री राम !!!!