शनिवार, 26 अगस्त 2017

नरसिंघदास महराज पनवार रीवा MP...












आज एक संत की सच्ची बाते बताता हूँ ! (पोस्ट लम्बी है पर आग्रह करूँगा पढ़िए जरूर)
मेरे गाँव (रीवा से 65 किलोमीटर और इलाहबाद से 80 किलोमीटर दूर) से मात्र 5 किलोमीटर दूर पनवार गाँव है जहां पर ''नरसिंघदास महराज'' की कुटिया ''थी'' ! मेरे गाँव के एक बुजुर्ग जिनकी उम्र 105 वर्ष थी उन्होंने भी महराज को ऐसे ही बचपन से देखा जैसे मैंने मेरे बचपन में देखा था !

महराज बहुत ही फक्कड़ किस्म के थे, सामान्य सा एक लंबा कुर्ता और सिर्फ लंगोट पहनते थे ! कभी कभार नहाते थे, कोई जटाजूट नहीं,कोई तिलक नहीं,कोई पूजा पाठ नहीं, कोई आडम्बर नहीं ! उन्हें कभी किसी ने कुछ खाते नहीं देखा , हाँ पानी जरूर पीते देखे जाते थे ! जब जिधर मूड बने चल देते थे ! महीनो कुटिया से गायब हो जाते थे ! कई बार जंगलो में घुस जाते थे तो महीनो जंगल से बाहर ही नहीं निकलते थे ! किसी को अपना पांच नहीं छूने देते थे, जिसने पाँव छूने की कोशिस किया ओ लहूलुहान होता था !

एक बार हमारे रीवा के निर्दलीय सांसद और महाराजा ''मार्तण्ड सिंह जूदेव'' ने उनका पाँव छूने की कोशिस किया तो सिर पर ऐसा डंडा फटकारा की लहूलुहान हो गए ! मार खाने के बाद महाराजा साहब ने अपनी नई इम्फ़ाला कार महराज को दान करके वापस आ गए, हालांकि के अगले चुनाव में लाखो वोट से फिर से जीत गए ! महराज की कुटिया में इतना चढ़ावा आता था पर महरान ने कभी किसी धन को हाथ तक नहीं लगाया ! महराज के सबसे प्रिय सेवक ''कौशल सिंह बाघेल'' ही कुटिया का और प्राप्त दान का ध्यान रखते थे ! दान के धन से कुटिया का नवनिर्माण होता रहता था ! कुटिया में हमेसा भंडारे का आयोजन होता है !

प्रति शनिवार को कुटिया में मेला लगता था ! जिन महिलाओ को बच्चे नहीं होते थे ओ सात शनिवार कुटिया की परिक्रमा लगाती थी और उनकी मनोकमना पूरी होती थी , इसी तरह कई बीमरी का इलाज भी कुटिया के दर्शन,परिक्रमा मात्र से दूर हो जाती थी ऐसा विश्वास है लोगो का ! महराज अपनी कुटिया का दरवाजा बंद करके महीनो अंदर ही पड़े रहते थे,जिसमे लेट्रीन - बाथरूम की कोई ब्यवस्था नहीं थी ! महराज कभी कभी पास में ही जंगलो में स्थित दुअरानाथ के हनुमान जी का दर्शन करने जाते थे इस लिए सायद शनिवार को मेला लगने लगा !

एक बार महराज भयंकर बाढ़ वाली गंगा में यमुना पुल (इलाहाबाद) से कूद गए और पानी में गायब हो गए ! जब पांच छह माह तक वापस नहीं आये तो उनके भक्तो ने उनका क्रिया कर्म करके उनका तेरहवा का भोजन, भंडारा करवा रहे थे , देखा की एक जटाजूट धारी बाबा, पंगत में बैठकर खाना खा रहे है ! (पहली बार उन्हें खाना कहते देखा गया) कौशल सिंह तुरंत पहचान गए और बाबा के पाँव पर लोट गए तब महराज जी ने कौशल सिंह को डंडे से बहुत मारा, मार मार कर उन्हें बेहोस कर दिया और जाकर कुटिया में घुस गए ! और जब सात दिन बाद कुटिया से बहार निकले तो कौशल सिंह से लिपट कर बहुत रोये ! कौशल सिंह का पूरा परिवार आज भी सुखी सम्पन्न है !

कुटिया में एक बार भंडारा चल रहा था , घी ख़त्म हो गया तो कौशल सिंह महराज के पास गए और बताया तो महराज जी बोले ''जा मैया से उधार लेकर आ '' ओ समझ गए मैया कौन है ! कुटिया से लगी हुई नदी को महराज मैया कहते थे ! कौशल सिंह गए और कुटिया से एक टीन (सायद 10 किलो ) गहि ले आये और महराज को दे दिया ! महराज ने गरम कराहे में उबलते हुए घी में पानी डाल दिया ओ घी बन गया और उससे पूड़ी तलकर भंडारा पूरा किया गया ! बाद में बनिया के यहां से घी लेकर नदी में डाल दिया तो घी पानी बन गया ! ये सच्चाई मैंने गाँव के बुजुर्गो से कई बार सुना था ! ऐसे कई चमत्कार महराज जी ने किया था ! फिर कभी लिखूंगा !

महराज की कई बार फोटो खींचने की कोशिस हुई पर उनकी फोटो कैमरे में कभी कैद नहीं हुई ! कौशल सिंह के बड़ी आग्रह के बाद महराज ने कुछ फोटो खिचवाया था, आज वही है ! बाकी कभी उनकी कोई फोटो नहीं खींच सका ! जब भी निगेटिव धुलती थी तो फोटो की जगह सिर्फ एक दिया (जलते हुए दीपक) की फोटो आती थी !

एक बार महराज के हाथ से मैंने भी मार खाया था ! मैं 10वी में पढ़ रहा था किसी काम से जवा (मेरे गाँव से 12KM) से सायकल से वापस आ रहा था ! देखा की महराज खेत से सड़क की तरफ आ रहे है, करीब छह सात लोग भी पीछे पीछे लगे हुए है ! मैं दर्शन के लिए रुक गया महराज जैसे ही आये मेरे सायकल के कॅरियर में बैठ गए और बोले ''चल'' ! मेरे तो डर के मारे हाथ पाँव फूल गए फिर डर डर कर सायकल चलाने लगा और कुछ दूर जाकर गिर गया और महराज भी गिर गए ! महराज उठे और मेरा हाथ पकड़ कर उठाया सिर पर,चेहरे पर बड़े प्यार से हाँथ घुमाया और ''ओह माई गाड़ , ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा की कई दिन तक उस कान से सुनाई नहीं दिया'' आज भी ओ थप्पड़ नहीं भूला ! महराज जी के साथ चलने वालों ने बोला ''जाओ महराज जी का आशीर्वाद मिल गया, जीवन में हमेसा ही सुखी रहोगे'' ! और ओ बात आज तक झूठी नहीं हुई !

ऐसी बहुत सी सच कहानियां है ! जिन्हे फिर कभी लिखुगा !
बाद में महराज जी ने समधी ले लिए उसी जगह महराज की समधी स्थल बन गया और आज भी उनके समाधि पर मेला लगता है !
कहने का मतलब सच्चे संत वही है जो मोह माया से कोसो दूर रहते है !
सुप्रभात मित्रो..... जय जय श्री राम .....
#NSB