आज सरदार बल्ल्भ भाई पटेल की 139 जयंती है । सरदार जी ने देश की 500 से अधिक रियासतो को भारतीय गणराज्य मिलाने का अतुलनीय कार्य किया था । कई रियासते ऐसी थी जो भारत में विलय के लिए तैयार नहीं थी जैसे, भोपाल,हैदराबाद,जूनागढ़ ,रीवा आदि कई रियासते है । सरदार पटेल जी जब रीवा (MP) की रियासत के विलय के लिए गए तो हमारे यहाँ रीवा के महाराजा ''गुलाब सिंह जूदेव'' ने सरदार पटेल को जबाब दिया ''आपकी दाल यहाँ नहीं गलेगी'' तब सरदार जी ने जबाब दिया
'' पानी होगा तो दाल जरूर गलेगी'' मतलब साफ़ इसारा था की इज्जत बचानी है तो भारत में विलय हो जाओ नहीं तो सेना जबरजस्ती विलय कर लेगी । और तत्कालीन (1918-1947 ) महाराजा गुलाब सिंह जूदेव सहर्ष विलय के लिए तैयार हो गए । इसी तरह तरह से जूनागढ़ का नबाब तो पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दिया
हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन गुजरात के जूनागढ़ में आजादी के बाद भी मातम का माहौल था। यहां के लोग दहशत में थे कि जूनागढ़ कहीं पाकिस्तान का हिस्सा न हो जाए। एक ओर जहां पूरा देश खुशियां मना रहा था, वहीं जूनागढ़ के लोग डरे-सहमे हुए थे।
इसी बीच लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल ने मोर्चा संभाल लिया और जूनागढ़ को भारत का हिस्सा बनाकर ही दम लिया। सरदार पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) के अवसर पर आपको पटेल के द्वारा जूनागढ़ रियासत को भारत में मिलाने के प्रयासों के बारे में जानकारी दे रहा है।
जूनागढ़ का नवाब नवाब मोहम्मद महाबत पाकिस्तान भाग निकला और 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़, भारत का हिस्सा घोषित कर दिया गया। इसीलिए 9 नवंबर को पाकिस्तान में 'ब्लैक डे' माना जाता है, जबकि इस दिन गुजरात में खुशियां मनाई जाती हैं। इसका पूरा श्रेय भी सरदार पटेल को ही जाता है।
दरअसल 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, उस समय भी देश की तीन ऐसी रियासतें थीं, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था। ये रियासतें थीं जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और गुजरात का जूनागढ़,मध्यप्रदेश की भोपाल और रीवा रियासत । जूनागढ़ की बात की जाए तो इस समय मुस्लिम लीग के कट्टर समर्थक शहनवाज भुट्टो जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की अंदर ही अंदर पूरी तैयारी कर चुके थे। इस समय जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खान थे।
इतिहासकारों की मानें तो शहनावाज भुट्टो ने जूनागढ़ के नवाब मुहम्मद महाबत को अपने झांसे में पूरी तरह ले भी लिया था। इतना ही नहीं, 15 अगस्त 1947 को शहनावाज ने जूनागढ़ का पाकिस्तान के साथ जुड़ने वाला एलान भी करा दिया था। जब अखबारों में यह खबर प्रकाशित हुई तो जूनागढ़ की जनता भड़क उठी। वहीं, सरदार पटेल ने भी जूनागढ़ के लिए कमर कस ली।
इस समय तक जूनागढ़ की जनता में भी आक्रोश चरम पर पहुंच गया था। जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल न होने देने के लिए एक बार फिर से स्वतंत्रता सेनानी खड़े हो गए।
वहीं 25 सितंबर 1947 को MUMBAI में स्वतंत्रता सेनानियों के नेताओं की एक बैठक हुई, जिसमें जूनागढ़ की आजादी के लिए आरजी हुकुमत नामक एक जन आंदोलन शुरू करने की योजना बनाई गई। इस आंदोलन की घोषणा होते ही स्वतंत्रता सेनानियों ने जूनागढ़ रियासत के मुख्य गांवों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। इसी का नतीजा यह रहा कि आरजी हुकुमत ने 2 नवंबर तक जूनागढ़ राज्य के 36 गांवों पर कब्जा कर लिया था। इससे जूनागढ़ के नवाबी शासन की नींव हिल गई। अब जूनागढ़ के लोगों को आशा की किरण दिखाई देने लगी थी।
स्वतंत्रता सेनानियों के बढ़ते कदमों को देखकर नवाब मोहम्मद महाबत समझ गया था कि अब उसके हाथों से जूनागढ़ की रियासत निकल चुकी है और अब तो उसे अपनी जान बचाकर भागने का मौका ढूंढना था। सरदार पटेल ने भी नवाब को जूनागढ़ से भाग जाने की सलाह दी। स्वतंत्रता सेनानियों और जूनागढ़ की जनता के आक्रोश को देखते हुए नवाब चुपके से 24 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान भाग निकला।
नवाब को पाकिस्तान जाकर अपनी गलती का अहसास हुआ था। इतना ही नहीं, नवाब ने पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चचुक्त श्रीप्रकाश से मुलाकात कर उन्हें बताया था कि वह वापस जूनागढ़ जाना चाहता है। हालांकि नवाब के लिए अब काफी देर हो चुकी थी। अगर उसने आजादी के ही दिन जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा घोषित कर दिया होता तो ताउम्र उसके नाम का डंका जूनागढ़ रियासत में बजता।
अगर सरदार पटेल ने समय रहते जूनागढ़ के लिए अथक प्रयास नहीं किए होते तो शायद गुजरात का यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर पाकिस्तान का हिस्सा होता । सरदार पटेल जी की 139 वी जन्म तिथि पर सत सत नमन ।
'' पानी होगा तो दाल जरूर गलेगी'' मतलब साफ़ इसारा था की इज्जत बचानी है तो भारत में विलय हो जाओ नहीं तो सेना जबरजस्ती विलय कर लेगी । और तत्कालीन (1918-1947 ) महाराजा गुलाब सिंह जूदेव सहर्ष विलय के लिए तैयार हो गए । इसी तरह तरह से जूनागढ़ का नबाब तो पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दिया
हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन गुजरात के जूनागढ़ में आजादी के बाद भी मातम का माहौल था। यहां के लोग दहशत में थे कि जूनागढ़ कहीं पाकिस्तान का हिस्सा न हो जाए। एक ओर जहां पूरा देश खुशियां मना रहा था, वहीं जूनागढ़ के लोग डरे-सहमे हुए थे।
इसी बीच लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल ने मोर्चा संभाल लिया और जूनागढ़ को भारत का हिस्सा बनाकर ही दम लिया। सरदार पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) के अवसर पर आपको पटेल के द्वारा जूनागढ़ रियासत को भारत में मिलाने के प्रयासों के बारे में जानकारी दे रहा है।
जूनागढ़ का नवाब नवाब मोहम्मद महाबत पाकिस्तान भाग निकला और 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़, भारत का हिस्सा घोषित कर दिया गया। इसीलिए 9 नवंबर को पाकिस्तान में 'ब्लैक डे' माना जाता है, जबकि इस दिन गुजरात में खुशियां मनाई जाती हैं। इसका पूरा श्रेय भी सरदार पटेल को ही जाता है।
दरअसल 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, उस समय भी देश की तीन ऐसी रियासतें थीं, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था। ये रियासतें थीं जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और गुजरात का जूनागढ़,मध्यप्रदेश की भोपाल और रीवा रियासत । जूनागढ़ की बात की जाए तो इस समय मुस्लिम लीग के कट्टर समर्थक शहनवाज भुट्टो जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की अंदर ही अंदर पूरी तैयारी कर चुके थे। इस समय जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खान थे।
इतिहासकारों की मानें तो शहनावाज भुट्टो ने जूनागढ़ के नवाब मुहम्मद महाबत को अपने झांसे में पूरी तरह ले भी लिया था। इतना ही नहीं, 15 अगस्त 1947 को शहनावाज ने जूनागढ़ का पाकिस्तान के साथ जुड़ने वाला एलान भी करा दिया था। जब अखबारों में यह खबर प्रकाशित हुई तो जूनागढ़ की जनता भड़क उठी। वहीं, सरदार पटेल ने भी जूनागढ़ के लिए कमर कस ली।
प्रारंभिक पहल करते हुए सरदार पटेल और जामनगर (गुजरात) के महाराजा
दिग्विजय सिंह ने जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत से कहा कि वह अपनी रियासत
जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने के निर्णय को वापस ले लें। सरदार पटेल ने
नवाब से यह भी कहा कि जूनागढ़ को भारत का हिस्सा बनाने में सहयोग करें।
इसके एवज में उन्हें यहां सम्माननीय पद भी दिया जाएगा। लेकिन नवाब महाबत
अपनी जिद पर अड़ा रहा।
इस समय तक जूनागढ़ की जनता में भी आक्रोश चरम पर पहुंच गया था। जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल न होने देने के लिए एक बार फिर से स्वतंत्रता सेनानी खड़े हो गए।
वहीं 25 सितंबर 1947 को MUMBAI में स्वतंत्रता सेनानियों के नेताओं की एक बैठक हुई, जिसमें जूनागढ़ की आजादी के लिए आरजी हुकुमत नामक एक जन आंदोलन शुरू करने की योजना बनाई गई। इस आंदोलन की घोषणा होते ही स्वतंत्रता सेनानियों ने जूनागढ़ रियासत के मुख्य गांवों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। इसी का नतीजा यह रहा कि आरजी हुकुमत ने 2 नवंबर तक जूनागढ़ राज्य के 36 गांवों पर कब्जा कर लिया था। इससे जूनागढ़ के नवाबी शासन की नींव हिल गई। अब जूनागढ़ के लोगों को आशा की किरण दिखाई देने लगी थी।
स्वतंत्रता सेनानियों के बढ़ते कदमों को देखकर नवाब मोहम्मद महाबत समझ गया था कि अब उसके हाथों से जूनागढ़ की रियासत निकल चुकी है और अब तो उसे अपनी जान बचाकर भागने का मौका ढूंढना था। सरदार पटेल ने भी नवाब को जूनागढ़ से भाग जाने की सलाह दी। स्वतंत्रता सेनानियों और जूनागढ़ की जनता के आक्रोश को देखते हुए नवाब चुपके से 24 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान भाग निकला।
नवाब को पाकिस्तान जाकर अपनी गलती का अहसास हुआ था। इतना ही नहीं, नवाब ने पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चचुक्त श्रीप्रकाश से मुलाकात कर उन्हें बताया था कि वह वापस जूनागढ़ जाना चाहता है। हालांकि नवाब के लिए अब काफी देर हो चुकी थी। अगर उसने आजादी के ही दिन जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा घोषित कर दिया होता तो ताउम्र उसके नाम का डंका जूनागढ़ रियासत में बजता।
अगर सरदार पटेल ने समय रहते जूनागढ़ के लिए अथक प्रयास नहीं किए होते तो शायद गुजरात का यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर पाकिस्तान का हिस्सा होता । सरदार पटेल जी की 139 वी जन्म तिथि पर सत सत नमन ।