गुरुवार, 27 जून 2013

ढोर गंवार शुद्र पशु नारी सकल ताडना के अधिकारी ?

" ढोर गंवार शुद्र पशु नारी सकल ताडना के अधिकारी "

मित्रोँ तुलसी दास जी द्वारा रचित इस पंक्ति का भावार्थ क्या है ?

कभी इस पर गौर किया है किसी ने ?

अक्सर अच्छे अच्छे विद्वानोँ को हमने इस पंक्ति की व्याख्या करते हुए सुना है और तुलसीदास जी का हवाला देकर नारी को ताड़ना देने का पक्ष लेते हुए । 
वो नारी को भी सिर्फ एक विषय भोग कि वस्तु प्रमाणित करते है ।

किन्तु क्या आप सोचते होँगे कि तुलसीदास जी इतने गिरे हुए विचारो के कैसे हो सकते हैं ?

जिन्होने रामायण मे सीता माँ, सुलोचना , मंदोदरी, तारा इत्यादि नारियो को महान बताया । इन्हे प्रातः स्मरणीय बताया । वो तुलसीदास जी नारी का ऐसा अपमान कैसे कर सकते है ?

यहा गलती तुलसीदास जी कि नहीं है, गलती है गलत अर्थ लगाने वालों की, स्वयं कि संकीर्ण विचारधारा को विद्वानो के मत्थे मढ़ने वालों की।
"ढोर गवार शुद्र पशु नारी सकल ताडना के अधिकारी।"

1) इसमे ढ़ोर का अर्थ है ढ़ोल,बजने वाला ढ़ोल । ढ़ोल को बजाने से पहले उसको कसना
पड़ता है तभी उसमे ध्वनि मधुर बजेगी । यहा ताड़ना शब्द का अर्थ कठोरता से है ना कि मारना या पीटना आदि से ।

2) इसके बाद है "गँवार शूद्र" ।
यहा गंवार और शूद्र अलग अलग नहीं है, ये एक साथ है। अर्थात ऐसा शूद्र जो गंवार हो जो सभ्य नहीं हो ।भले ही वो ब्राह्मण कुल का हो । ऐसे गंवार शुद्र माने सेवक ,को कठोरता से काम मे लेना चाहिए वरना वो अपनी दुर्बुद्दि से किसी भी सुकार्य को बिगाड़ सकता है । यहा भी ताड़ना शब्द का अर्थ कठोर व्यवहार से ही है ना कि मारना या पीटना से है।

3) पशु नारी:
अर्थात वो नारी जो पशुवत व्यवहार करती है, पशुवत व्यवहार मे व्याभिचार भी आता है क्यो कि पशुओ मे एक रिश्ते कि कोई मर्यादा नहीं होती है । सो ऐसी नारी जो पशुओ के समान कई लोगो से संबंध रखती है । ऐसी नारी से भी कठोर व्यवहार करना चाहिए एवं उसे समाज से दूर रखना चाहिए ताकि वो समाज को गंदा न कर सके।

तो मित्रो यहा 3 ही चीजे है 5 नहीं । अगर इन्हे 5 मानते है तो एक बात सोचिए जो धर्म हर प्राणी के प्रति दया की भावना रखने कि शिक्षा देता है ,वो पशुओ को मारने या ताड़ना देने की बात कैसे कर सकता है ?
किसी गंवार को सिर्फ इसलिए कि उसमे ज्ञान नहीं है उसे ताड़ना कैसे दे सकता है ?
शूद्र का अर्थ यहाँ सेवक से है ना कि शूद्र जाती से ।और सेवक किसी भी कुल या जाति का हो सकता है । शूद्र सेवा करने वालों को ही कहा जाता है । और सेवक मे भी वो सेवक जो गंवार हो उस से कठोर व्यवहार करना ।
पशु का यहाँ नारी के साथ प्रयोग किया गया है ।
सो इन्हेँ अलग अलग करने पर अर्थ गलत हो जाता है ।
न तो पशु और न ही नारी किसी ताड़ना कि अधिकारी है ।
पशुवत व्यवहार करने वाली नारी ताड़ना की अधिकारी है ।
कुछ यूँ
"ढोर, गंवारशुद्र ,पशुनारी ,
सकल ताडन के अधिकारी ॥"


इसी  तरह से इस चौपाई का एक अर्य्ह इस तरह से भी समझा जा सकता है --.
ढोल ,गावर , शुद्र , पसु और नारी ...ये सब ताडन के अधिकारी ...

जितना इस दोहे के अर्थ का ...लोगो ने अनर्थ किया है ..शायद ही किसी दुसरे दोहे का हुवा हो ...
 

सही अर्थ ...

दरअसल..... ताड़ना एक अवधी शब्द है....... जिसका अर्थ .... पहचानना .. परखना होता है.....!
तुलसीदास जी... के कहने का मंतव्य यह है कि..... अगर हम ढोल के व्यवहार (सुर) को नहीं पहचानते ....तो, उसे बजाते समय उसकी आवाज कर्कश होगी .....अतः उससे स्वभाव को जानना आवश्यक है
इसी तरह गंवार का अर्थ .....किसी का मजाक उड़ाना नहीं .....बल्कि, उनसे है जो अज्ञानी हैं... और, प्रकृति या व्यवहार को जाने बिना उसके साथ जीवन सही से नहीं बिताया जा सकता .....।
इसी तरह पशु और नारी के परिप्रेक्ष में भी वही अर्थ है कि..... जब तक हम नारी के स्वभाव को नहीं पहचानते ..... उसके साथ जीवन का निर्वाह अच्छी तरह और सुखपूर्वक नहीं हो सकता..

इसका सीधा सा भावार्थ यह है कि..... ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु .... और, नारी.... के व्यवहार को ठीक से समझना चाहिए .... और, उनके किसी भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए....