गुरुवार, 27 सितंबर 2012

!! पैसे पेड़ पर नही उगते !!

साल- 2009-10 खर्च- 81 करोड़ 55 लाख
साल- 2010-11 खर्च- 56 करोड़ 16 लाख
साल- 2011-12 खर्च- 6 अरब 78 करोड़
पैसे पेड़ पर नही उगते न, इसलिये इतना खर्च किया मंत्रियों ने ! हर देशभक्त नागरिक से यही आव्हान करूंगा क़ीआप जिस भी मजहब ,धर्म के हों रोज सुबह भगवान, खुदा, गौड, रब को जब याद करते हो तो साथ मे यह भी दुआ करो की हे ऊपर वाले इन भ्रष्ठ राजनेताओं और इनके समर्थकों का जितनी जल्दी हो जड समेत सर्वनाश क्रो और मेरे देश को इनसे मुक्ति दिलाओ !http://navbharattimes.indiatimes.com/ministers-spent-billions-on-foreign-trips/articleshow/16565804.cms

बुधवार, 26 सितंबर 2012

!! भारत की जनगणना के आधार पर धार्मिक संख्या !!

भारत की 2011 की जनगरना के अनुसार भारत में ...
हिन्दुओं की आबादी = 80 .5 %
मुसलमानों की आबादी = 13 . 4 %
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कुल आबादी एक सौ इकीस करोड़ .

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यह आंकड़े सरकारी हैं......
लगभग 3 % त्रुटी की संभावना है .
यह आंकड़े जन्गारना विभाग की वेब साईट से लिए गए हैं.
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http://censusindia.gov.in/Ad_Campaign/drop_in_articles/04-Distribution_by_Religion.pdfhttp://censusindia.gov.in/Ad_Campaign/drop_in_articles/04-Distribution_by_Religion.pdf

! बाबा रामदेव जी के खिलाफ साजिस !!

दोस्तों अभी अभी तथाकथित भांड ABP news चैनल पर एक खबर देखा ,, मजमुन ये था कि बाबा रामदेव के खाने पीने के सामानों के नमुने देहरादुन के लैब में फेल हो गए , ,,मतलब कि उसमें मिलावट है ,, इन हरामी कांग्रेसी कुत्तों को मैं इन सरकारी लैबों की कारस्तानी का एक उदाहरण देना चाहता हुं ,,,हमारे शहर फरीदाबाद में अपने एक मित्र की डाईंग की फैक्ट्री है , आपको पता होगा कि किसी भी प्लांट से निकलने वाले प्रदुषित पानी को जमीन में बिना फिल्टर किए नही जाना चाहिए , ऎसा कोर्ट का आदेश है ,,ाब उस फैक्ट्री मालिक ने प्रदुषण नियंत्रण महकमें के आला अधिकारी को चढावा ना चढाकर बढिया पैसा खर्च कर एक RO प्लान्ट लगा दिया ,,लेकिन उससे उस अधिकारी को क्या , उसको तो चढावा चाहिए ,,उसने बोला आप कुछ भी कर लो हमें अपना हिस्सा चाहिए ,, मना करने पर उसने बोला मै जांच करने आ रहा हुं , फैक्ट्री मालिक ने किसी मुसीबत से बचने के लिए नीचे वाले कर्मचारी को सेट कर लिया ,, उसने बोला मै देख लुंगा ,,जब सैम्पल लेने की बारी आई तो उस कर्मचारी ने RO प्लांट से निकले पानी की जगह बिसलरी की बोतल का पानी सैम्पल के रुप में सील कर दिया ,,,मानो या ना मानो सिर्फ अफसर को चढावा ना देने की वजह से सरकारी लैब ने उस पानी को भी 100% प्रदुषित बता दिया ,,,ाब आप खुद ही समझ सकते है जब एक अदना सा अफसर किसी भी जाम्च रिपोर्ट को बदल सकता है तो फिर ये तो कुत्ती कांग्रेस सरकार है ,,वो क्या क्या नही करवा सकती है ,,,लेकिन ये भी ध्यान रखे ये हरामखोर कांग्रेसीजन , सत्य कभी हारता नहीं , ठहर जरुर सकता है ,,अंत में तुम लोगों के सर से ताज़ उछाली जाएंगे , तुम हमारी ठोकरों पर होगे , तुम्हारा हश्र भी गद्दाफी की ही तरह होगा अगर इसी तरह अघोषित तानाशाही करते रहोगे........
     सभी सज्जनों से विनम्र अपील  By ---संतोष यादव जी ...
अपनी शक्ति को पहचानो जो शक्ति और ताकत आपके पास है वो यूँ की किसी को आसानी से सौपकर गुलामी की जंजीरों को अपने गले में मत डालो गौर से देख क्या था हमारा हिन्दुस्तान और क्या बना दिया इन सत्ताधारियों ने हमारे हिन्दुस्तान को क्या इन्ही सत्ताधारियों को लुटने के लिए इतने क्रांतिकारियों ने अपने प्राण गंवाए थे क्या हमारे देश के रक्षक इन सत्ताधारियों के लिए रक्षा करते हुए अपने प्राण दे देते हैं l इन सत्ताधारियों के हौंसले को बल कौन देता है आप देते हैं और इसके बदले में आपको क्या मिलता है पेपरों में पढने के लिए इनके द्वारा किये गए घोटाले और उन घोटालों का क्या होता मात्र एक लिस्ट बनती है जिसको आप उछालते तो हो लेकिन उसका गला घोंट दिया जाता है और कुछ दिनों के बाद सब भूल जाते हैं ऐसे ही चलता रहता है l आप किसलिए पैदा लेते हो उन सत्ताधारियों का रास्ता साफ करने लिए उन्हें अपना समर्थन देकर मजबूत बनाने के लिए l अपने भीड़ की शक्ति उन सत्ताधारियों को देते हो क्यों ? आपको आपस में ही लड़ा दिया जाता है आप आपस में कटते हो मरते हो और उनके कानों में जूं तक नहीं रेंगती है और फिर बदले में आपको क्या मिलता है शांतवना और कुछ रुपये और फिर कुछ दिनों के बाद भूल जाते हो और ऐसा ही चलता रहता है ...... और कब तक ऐसे ही चलता रहेगा क्योंकि अब हालत बद-से-बदतर होती जा रही है माँ भारती ने पुकार लगा दी है अब जाग सको तो जाल जाओ......

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

!! शाह बानो केस: घोर साम्प्रदायिकता और तुष्टीकरण !!

राजीव गाँधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में जो अनेक मूर्खतापूर्ण निर्णय किये थे, उनमें शाह बानो का मामला अपनी तरह का अनोखा है, जिसमें एक सम्प्रदाय के कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने के लिए उन्होंने देश के संविधान, कानून, न्यायपालिका और संसद सबको अपमानित किया। 

कल्पना कीजिए कि एक 62 साल की बूढ़ी महिला शाह बानो, जिसके 5 बच्चे थे, को उसका पति केवल तीन शब्द बोलकर तलाक दे देता है और उसको कोई निर्वाह भत्ता भी नहीं देता, जिससे वह बेसहारा महिला कम से कम रोटी खा सके। बेचारी महिला इस्लाम के झंडाबरदार मुल्ला-मौलवियों के दरवाजों पर जाकर गिड़गिड़ायी कि मुझे अपने खर्च लायक भत्ता दिलवा दो। परन्तु मुल्लों ने उसे टका सा जबाब दे दिया कि इस्लामी कानून के अनुसार निर्वाह भत्ता केवल इद्दत की मियाद तक होता है, उसके बाद हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है।

बेचारी बुढि़या के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था कि वह न्यायालय में गुहार लगाती। वह हर न्यायालय में किसी प्रकार जीती, लेकिन उसका सम्पन्न पति और ऊपर की अदालत में अपील कर देता था। अन्ततः मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँचा। वहाँ विद्वान् न्यायाधीशों ने मामले पर गहरायी से विचार करके मानवीय आधार पर उसे निर्वाह भत्ता देने का निर्देश दिया। 

यह फैसला आते ही कठमुल्लों को मिर्च लग गयी। न्यायाधीशों ने मुस्लिम पर्सनल लाॅ को दर किनार करके मानवीय आधार पर फैसला दिया था, इसलिए ‘इस्लाम खतरे में है’ के नारे लगाये जाने लगे और न्यायाधीशों के पुतले जलाये जाने लगे। स्वयं को ‘सेकूलर’ कहने वाले तमाम राजनैतिक दल इस मामले में पूरी निर्लज्जता से मुस्लिम कठमुल्लावाद का समर्थन करने लगे। किसी ने यह पूछने की हिम्मत नहीं की कि यह कैसा धर्म है, जो एक बूढ़ी महिला को निर्वाह भत्ता देने मात्र से खतरे में पड़ जाता है? ओबैदुल्ला खाँ आजमी और सैयद शहाबुद्दीन जैसे ‘महा-सेकूलर’ लोगों ने तत्काल आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड का गठन कर डाला और ‘इस्लाम बचाने’ के कार्य में जुट गये।

राजीव गाँधी की तत्कालीन सरकार और कांग्रेस का रवैया इस मामले में घोर आपत्तिजनक रहा। उन्होंने न केवल सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की खुली आलोचना की, बल्कि संसद में अपने प्रचण्ड बहुमत का दुरुपयोग करते हुए संविधान में ऐसा संशोधन कर दिया, जिससे तलाक के बाद निर्वाह भत्ते के मामले कानून की परिधि से बाहर हो गये और केवल मुस्लिम पर्सनल लाॅ के अनुसार तय किये जाने लगे। इस प्रकार उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पूरी तरह बेकार कर दिया। 

‘इस्लाम’ बच गया, लेकिन उसे बचाने की कोशिश में राजीव गाँधी की सरकार ने निम्नलिखित 5 अपराध कर दिये-
1. सर्वोच्च न्यायालय और न्यायाधीशों का अपमान
2. संविधान के साथ खिलवाड़
3. संसद का घोर दुरुपयोग
4. साम्प्रदायिक तत्वों का तुष्टीकरण
5. मानवता का अपमान

राजीव गाँधी ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता को जिस प्रकार खाद-पानी दिया, उससे यह समस्या आगे चलकर और भी भयावह हो गयी, जैसा कि हम आगे देखेंगे।
देखेगे क्या सब दिखाई दे गया ......

नोट --उपरोक्त ब्लॉग नवभारत  टाइम से साभार ...
                
                     !! क्या है सह्बनो प्रकरण !!
मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम, AIR 1985 SC 945
इस मुक़दमे में अपीलार्थी मोहम्मद अहमद खान मध्य प्रदेश के प्रसिद्द नगर इंदौर के निवासी और एक नामी अधिवक्ता थे। उनकी वार्षिक आय लगभग साठ हज़ार रुपए थी, उन्होंने 1932 में अपना विवाह बाईस वर्षीय शाहबानो बेगम से किया था, इस विवाह के परिणाम स्वरुप तीन बेटे और दो बेटियों के वे पिता बने। 1975 में 65 वर्षीय शाहबानो बेगम को पति ने घर से निकाल दिया। पत्नी की अपनी सम्पति या आय न होने के कारण शाहबानो ने अपनी पुत्री के यहाँ शरण ली। पति ने जब शाहबानो की कोई खबर न ली और ना ही उसके गुज़ारे की कोई व्यवस्था की, तो घर से निष्काषित पत्नी ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत पति से 500 रूपये प्रतिमाह गुज़ारा भत्ता पाने के लिए अप्रेल 1978 में प्रथम क्ष्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट इंदौर के न्यायालय में एक आवेदन पत्र दाखिल किया। अपीलार्थी पति चूँकि पेशे से वकील था और विधि का ज्ञाता था और वह जानता था की शाहबानो बेगम अपने दावे में ज़रूर सफल होगी इसलिए उसने एक चाल चली। 6 नवंबर, 1978 ही को अपीलार्थी ने अपनी पत्नी को अप्रतीसहंरणीय तलाक यह कहकर दिया “मैं तुम्हे तलाक देता हूँ, मैं तुम्हे तलाक देता हूँ मैं तुम्हे तलाक देता हूँ!!”
अपीलार्थी पति ने अपनी पत्नी द्वारा गुज़ारे के लिए दायर वाद में न्यायिक मजिस्ट्रेट इंदौर के न्यायालय में यह बचाव लिया कि चूँकि उसने (पति) प्रत्यर्थी शाहबानो बेगम को तलाक दे दिया है और यह तलाक प्रभावी हो गया अतः उसे भरण पोषण देने का अब उसका कोई दायित्व नहीं है, तथा यह इद्दत काल के भरण पोषण के लिए और उसकी मेहर अदायगी के लिए उसने तीन हज़ार रूपये न्यायलय में जमा कर दिए हैं। पति ने अपने पेशे का लाभ उठाया और इसलिए विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट इंदौर ने यह आदेश दिया की पति द्वारा आवेदिका पत्नी को गुज़ारे करे लिए नाममात्र की धनराशि 25 रूपये प्रतिमाह दी जाए। न्यायिक मजिस्ट्रेट इंदौर के इस आदेश के विरुद्ध शाहबानो बेगम ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में रिविज़न का प्रार्थना पत्र दिया। उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश ने मासिक धनराशि को 25 रूपये से बढाकर 179.20 पैसे कर दिया। इससे क्षुब्ध होकर पति ने उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध माननीय उच्चतम न्यायालय में अपील की।
चूँकि इस मामले के निर्णय का प्रभाव आम मुसलमानों पर पड़ सकता था, इस कारण आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने प्रार्थना पत्र दिया कि उसे भी सुना जाए और इस कारण आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को भी प्रत्यर्थी (पक्षकार) बनाया गया। इस बोर्ड के अध्यक्ष दारुल उलूम देवबंद के मौलाना तैयब थे। बोर्ड ने पैरवी का इंचार्ज तत्कालीन जनता पार्टी के नेता सैय्यद शहाबुद्दीन को बनाया जो बोर्ड के सक्रीय सदस्य भी थे और आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की और से भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री युनुस सलीम (एडवोकेट ) ने बहस की। अपीलार्थी मोहम्मद आजाम खान स्वयं वकील होने के नाते उन्होंने मुक़दमे की पैरवी में कोई कसर बाकी न रखी।
अपीलार्थी की तरफ से और आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की तरफ से ये दलील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दी गयी की मुस्लिम पर्सनल ला के अनुसार तलाकशुदा पत्नी केवल इद्दत काल में ही भरण पोषण की अधिकारिणी है इद्दत की अवधि बीत जाने के पश्चात पति का कोई दायित्व नहीं है कि वह तलाकशुदा पत्नी का भरण पोषण प्रदान करे (इद्दत काल तलाक की दशा में सामान्यतः तीन मॉस का होता है )। अपनी दलील के समर्थन में वे मुस्लिम विधि की पाठ्य पुस्तके दिनशा मुल्ला की मोहम्डन ला. तथा तैय्यब जी की 'मुस्लिम ला' तथा पारस दीवान की 'मुस्लिम ला इन मोर्डन इण्डिया' का हवाला देते हैं। यह भी दलील दी गयी की चूँकि दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 125 तलाकशुदा पत्नी के भरण पोषण का प्रबंध करती है इसलिए वह मुस्लिम पर्सनल ला के विरोध में है और उसे संशोधित करती है।
किन्तु उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णित किया की उपर्युक्त मुस्ल्लिम विधि की पाठ्य पुस्तकों में जो विधि वर्णित है कि तलाकशुदा पत्नी इद्दतकाल के बाद भरण पोषण की हकदार नहीं है वह केवल धनवान पत्नी पर लागू होता है या ऐसी पत्नी पर जो अपना भरण पोषण अपनी आय या संपत्ति से कर सकती है, ना कि निर्धन या असमर्थ पत्नी पर।
शाहबानो बेगम वाद में दिए गए निर्णय से कट्टर और प्रतिक्रियावादी मुसलमानों ने कडा विरोध किया और आवाज़ उठाई की ये निर्णय उनके धर्म (शरियत) के प्रतिकूल है। कट्टरपंथी मुसलमानों के अनुसार पति तलाकशुदा पत्नी को इद्दतकाल के बाद भरण पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है।
भारतीय संसद ने इस विषय पर मुस्लिम विधि को स्पष्ट करने के लिए सन 1986 में मुस्लिम महिला (विवाह-विच्छेद पर अधिकारों का सरंक्षण) अधिनियम 1986 पारित किया।
इस केस में महत्वपूर्ण बात ये थी की सुप्रीम कोर्ट ने जहाँ कुरआन की आयतों का सहारा लेकर ये तय किया था की कुरआन में भरण पोषण जायज़ है वहीँ आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और अन्य पाठ्य पुस्तक और मुस्लिम पर्सनल ला अधिनियम 1937 का हवाला दे रहे थे। इससे साफ़ था की उनकी मंशा, मज़हब के अनुसार नहीं बल्कि तलाक के बाद पुरुष को महिला को कुछ न देना पड़े इस पर आधारित थी, एक महिला पर मुस्लिम पुरुष समाज का बड़े हिस्से का गठित हो जाना और उसमे आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का दखल बहुत अनहोनी घटना लगती है।
यहाँ ये भी ध्यान रखना चाहिए की शाहबानो पहला केस नहीं था जिसमे भरण पोषण दिया गया। अंग्रेजो के समय पारित दंड प्रक्रिया सहिंता और 1973 में पारित सहिंता के अनुसार पहले भी भरण पोषण दिया जाता था, मगर ये केस हाईलाईट हुआ क्योंकि मोहम्मद आज़म एक जाने माने वकील थे और उनकी जिद और पेंसठ साल की उम्र में बीवी को उसका हक देने की बजाय उसको तलाक दे देने की सनक ने सारे देश और न्यायविदों का ध्यान इस और खींच और हमेशा की तरह से आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का हर मामले में टांग अड़ा देना भी इसका बड़ा कारण बना।
http://www.kharinews.com/index.php

http://www.kharinews.com/index.php/2011-10-03-09-41-21/1980?tmpl=component&type=raw

सोमवार, 24 सितंबर 2012

!! कलयूग में सनातन !!

अज्ञानता कोई मुर्खतई से सम्बन्धित नही हो सकती क्यों की ज्ञान हर जीव-जन्तु को होता हे,.जेसे न्याजन्मा शिशु बिना ज्ञान के तो माँ के स्तनों से दूध निकल कर नही पी सकता बिना बोले माँ को बडे आराम से बता देता हे की उस को भूख लगी हुई हे इस सबके बाद उस शिशु को अज्ञानी तो कह नही सकते जब उसी का ज्ञान माया की पकड़ में आजाता हे तो अज्ञानता आते देर नही लगा करती अज्ञानता बड़ जाती हे मा(जो)या (नही हे ) माया सच को झूठ और झूठ को सच कर के दिखलाती हे जेसे आकाश में खेती कर के दिखा देना हिजडे के उलाद पैदा कर देना सब माया ही हे ,अगर ज्ञान और विज्ञानं दोनों का मिलन हो जावे तो प्रत्यक्ष में झूठ सच में बदल गया होता हे सत्य ही ईश्वर होता हे सत्य का साथ सत्संग कहलाता हे बिना ज्ञान के प्रति दिन सत्संग होते हें एक व्यक्ति ऊँचे से मंच पर बैठ कर जो भाषण देता हे ,उसी भाषण को अज्ञानी जन सत्संग मान लेते हे जब की एक समूह द्वारा आपसी बात चीत को सत्संग कह सकते हेंइसी ईश्वरीय बातचीत के निर्णय को ईश्वर मान सकते हें पूर्ण ज्ञानी इस संसार में सिवा भगवान के और कोई हो मुझे नजर नही आया मेरे एक मित्र कस्तुरी लाल जी हें बापू आसाराम जी को अज्ञयानता वश पूर्ण ज्ञानी ,इसी परकार हमारे एक मित्र है मनुजेन्द्र सिंह परिहार ..जय गुरुदेव के पक्के भक्त है  ये लोग इन्हें ईश्वर का अवतार बताते नही थकते मुझे बहुत  आश्चर्य होता हें ये  कस्तुरी जी और मनुजेन्द्र सिंह परिहार जी ही नही और भी कईलोग आजकल के धर्म गुरुओं को ईश्वरीय अवतार मान रहे हें उनको दान में ज्ञान इन ढोंगियों द्वारा दिया गया बतलाते हें शास्त्रों कई आगया हें कि (पानी पियो छान कर गुरु करो जानकर )बिनाजाने गुरु बनाना एक तो सनातन धरम के वरुध ही नही पाप भी हें इन पाखंडी गुरु बाबाओं को तो इतना भी ज्ञान नही होता कि अपने आश्रम से उस स्टेज तक जिस पर विराजमान हो कर यह सत -संग करने आए हें उस रस्ते में कितने वृक्ष आए थे परन्तु इनको पूर्ण ज्ञानी या अवतार मान कर हम गलती ही नही तो और क्या कर रहे हें ? इन को सरकारों ,राजनेतिक पार्टियों का संरकशंन मिला हो ता हें सनातन धर्म के अपमान और दमन कीकिसी भी कोशिश को हाथ से जाने नही देना चाहते नतीजतन सनातन धर्म लग-भग लुप्त ही होता जा रहा हें जब-जब धर्म की हानि होतीहें तब-तब भगवान को अवतार ले कर सनातन धरम की स्थापना करनी पडती हें कलयुगी भगतों को यह ज्ञान तो हें भगवन के प्रति उन के प्रेम को भी देखो फिर भगवन का अवतार हो और फिर भगवान जंगलों में भटकें हमे क्या पडी हें हमतो अज्ञानता के बलबूते ही गुरु हो गये हें क्या यही अज्ञान होता हें  ?

श्रृष्टि संरचना , श्रृष्टि चक्र........??

संरचना बिधान मे प्रत्येक संरचना का प्राण केंद्र यानि न्यूक्लियस का होना अनिवार्यता है अर्थात प्राण केंद्र विहीन किसी संरचना की हम कल्पना नहीं कर सकते हैं..प्रत्येक संरचना के प्राण केंद्र की धुरी से आबद्ध होकर उस संरचना का अंश इलेक्ट्रान - प्रोटान अथवा उपग्रह के रूप मे निरन्तर उसकी परिक्रमा करता रहता है ! परमाणु श्रृष्टि की सबसे छोटी संरचना है ! पदार्थ पर चारो ओर से पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव उसके भीतर एक प्राण केंद्र , जो  पदार्थ की संरचना की स्थिरता बनाये रखने हेतु वायु मंडलीय दबाव के बराबर बहिर्मुखी दबाव देने का कार्य करता है , को उत्पन्न करता है ! इलेक्ट्रान व प्रोटान इस संरचना के अंश के रूप मे परमाणु के प्राण केंद्र की परिक्रमा करते रहते हैं !पृथ्वी समस्त परमाणुओं का समेकित स्वरूप है और चन्द्रमा पृथ्वी के प्राण केंद्र से आबद्ध होकर इसकी परिक्रमा करता है!सौर मंडल मे सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और सारे ग्रह व उपग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे होते हैं ! महा सौर मंडल मे महा सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और अनेकानेक सौर मंडल महा  सूर्य की ग्रहों की भाति परिक्रमा कर रहे होते हैं!सी प्रकार महा महा सौर मंडल मे महा महा सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और अनेकानेक महा सौर मंडल ग्रहों की भाति इस महा महा सौर मंडल की परिक्रमा कर रहे होते हैं !इसी प्रकार महानतम सौर मंडल मे महानतम सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है! अनेकानेक  महा महा सौर मंडल और  ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाये इस परम प्राण केंद्र की परिक्रमा कर रही होती हैं ....
     इस परम प्राण केंद्र की तरंग दैर्घ्य ( बेब लेंथ ) ब्रह्माण्ड की हरेक संरचना तक होने के कारण यह सर्ब व्याप्त है ! सर्बाधिक तरंग दैर्घ्य वाली यह शक्ति ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं को परिचालित , संचालित एवं नियंत्रित करने वाली होने के कारण यह सर्ब शक्तिमान है !यही परम प्राण केंद्र ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं को शक्ति प्रदान करता है और उनकी गत्यात्मकता को नियंत्रित करता है !इस प्रकार सर्ब व्यापकता , सर्ब शक्ति मानता और सर्ब नियंता होना इसका प्रमुख गुण है................
       सर्ब नियंता , सर्ब व्यापकता एवं सर्ब शक्तिमानता इस परम प्राण केंद्र अथवा परम सिद्धांत के गुण बोध मात्र को स्पष्ट करता है , पर इससे इस सत्ता के स्वरूप का आभास नहीं होता, सापेक्ष जगत मे समस्त सीधी रेखा लगने वाली समस्त तरंगें वस्तुतः सीधी रेखाएं न होकर किसी बड़े बृत की त्रिज्याएँ मात्र होती हैं, केवल अनंत तरंग दैर्घ्य वाली त्रिज्या  ही सीधी रेखा मे हो सकती है, इस प्रकार यह परम प्राण केंद्र , परम सिद्धांत एक सीधी रेखा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, इस प्रकार निरपेक्ष तरंग दर्घ्य वाली सत्ता ही सीधी रेखा मे हो सकती है , अब प्रश्न उठता है कि सीधी रेखा मे क्या हो सकता  है ? कोई भी भौतिक , मानसिक सापेक्ष संरचना सीधी रेखा मे नहीं हो सकती , सीधी रेखा मे केवल संचेतना अथवा पुरुष ही हो सकता है , अतयव इस अनंत शक्ति सत्ता को हम परम पुरुष अथवा ईश्वर का नाम  दे सकते हैं...........
त बिना किसी परम कारक तत्व के कार्य नहीं कर सकता है ....सत-राज-तम की त्रिगुणात्मकता शक्ति स्वरूपा प्रकृति ही वह परम कारक व परम परिचालक के रूप मे पुरुष को शक्ति प्रदान करते हुए संचालित करती है ,यह प्रकृति अपने त्रिगुणात्मक स्पन्दंयुक्त कार्य विधान द्वारा सदैव क्रियाशील रहती है!  प्रारंभ मे प्रकृति के आन्तरिक त्रिगुणात्मक स्पंदन के बावजूद परम पुरुष अप्रतिहत रहता है! यह प्रकृति की निष्क्रियता की वह स्थिति है , जहाँ परम पुरुष से अलग प्रकृति का कोई अलग तथा उद्भासित अस्तित्व नहीं होता है ! दूसरे शब्दों मे परम पुरुष की देह मे प्रकृति सुषुप्ति की स्थिति मे विद्यमान रहती है ! यहाँ प्रकृति और परम पुरुष की स्थिति कागज के दो पृष्ठों या सिक्के के दोनों भाग की तरह संपृक्त होती है और जिसका बिलगाव नहीं होता ! इसे निर्गुण ब्रह्म की स्थिति कही जा सकती है जो श्रृष्टि स्पंदन के ठहराव की स्थिति है ..............
       परम पुरुष की इच्छा जागने पर प्रकृति का त्रिगुणात्मक स्पंदन सक्रिय हो उठता है और तरंग सायुज्य की प्रक्रिया द्वारा परम पुरुष सगुण रूप धारण करना प्रारंभ करता है !सर्बप्रथम परम पुरुष प्रकृति के सत गुण स्पंदन से सायुज्य करके सगुण ब्रह्म का स्वरूप धारण करेगा ! बाद में रज गुण और अंत में तम गुण सायुज्य स्थापित करेगा ! यह भूमा मन की स्थिति होगी जो सगुण ब्रह्म की सूक्ष्म तम स्थिति होगी! इसके उपरांत तमो गुण का प्रभाव निरंतर बढ़ता जाता है और शेष दोनों गुण उत्तरोतर सुसुप्त होते जाते हैं ! इस स्थूलीकरण की प्रक्रिया में सर्बप्रथम आकाश तत्व (ध्वनी स्पंदन ) वायु तत्व (स्पर्श स्पंदन ) ,अग्नि तत्व (दृश्य स्पंदन ) ,जल तत्व (घ्राण स्पंदन )तथा छिति तत्व (स्वाद स्पंदन )अतिरिक्त रूप मे स्थान पाते हैं .. परम सिद्धांत ( परम पुरुष )पर परम कारक (प्रकृति )के परम स्थूलीकरणकी अंतिम स्थिति छिति तत्व की है ............
         इस परम सूक्ष्म से स्थूल तक की यात्रा की अंतिम परिणति छिति तत्व है , जिस पर चारो ओर से वायु मंडलीय दबाव पड़ता है जो पृथ्वी के भीतर एक बिंदु पर प्रतिफलित होकर प्राण केंद्र यानि न्यूक्लियस का निर्माण करता है जो पृथ्वी के ढांचागत स्थायित्व के लिए वायु मंडलीय दबाव के बराबर बहिर्मुखी दबाव उत्पन्न करता है.तभी एक पदार्थ का ढांचागत स्थायित्व बना रहना संभव होता है..एक अन्य स्थिति की परिकल्पना कीजिये ,जहाँ पदार्थ के प्राण केंद्र का बहिर्मुखी दबाव वायु मंडल  के अंतर्मुखी दबाव से अधिक है..ऐसी स्थिति मे पदार्थ का संरचनात्मक अस्तित्व बनाये रखने के उद्देश्य से उक्त पदार्थ का एक अंश अलग होकर इतना दूर चला जाता है ,जहाँ उसके पहुचने से पदार्थ के संरचनात्मक संतुलन मे सामंजस्य स्थापित हो जाताहै ... पदार्थ का उक्त अंश पदार्थ के प्राण केंद्र से ही आबद्ध होकर उसी पदार्थ के उपग्रह व ग्रह के रूप मे उसकी परिक्रमा करने लगता है ... इस प्रक्रिया को जदास्फोत कहते  हैं और विखंडन की इसी प्रक्रिया से श्रृष्टि मे विकास और  गुणन प्रभाव देखने को मिलता है . एक से अनेक होने की यह प्रक्रिया ब्रह्माण्ड मे निरन्तर चलती रहती है...... !
     अब एक ऐसी स्थिति की परिकल्पना कीजिये ,जहाँ वायु मंडलीय दबाव पदार्थ के प्राण केंद्र के बहिर्मुखी दबाव से काफी अधिक है ऐसी स्थिति मे पदार्थ के संकुचन की प्रक्रिया मे अणुकर्षण व अणुसंघात की स्थिति उत्पन्न होगी .... जिसके फलस्वरूप पहले छिति चूर्ण तत्पश्चात छिति तत्व मे अवस्थित पांच महाभूतो का सुप्त स्पंदन जागृत हो उठेगा और उपयुक्त संयोजन के फलस्वरूप जीव उत्पन्न होने की सम्भावना होगी , सर्बप्रथम प्रकृति के तम गुण से सायुज्य होगा  तत्पश्चात जड़ संघात के फलस्वरूप एककोशीय अमीबा बहुकोशीय होकर जैविक विकास का मार्ग प्रशस्त्र करेगा ,जीव विकास की इस प्रक्रिया मे पहले वनस्पति फिर जलचर फिर पशु और सबसे बाद मे मनुष्य उत्पन्न होगा, यही जैविक विकास की प्रक्रिया और क्रम है,,,,,
      इस जड़ संघात की प्रक्रिया के पश्चात् मनस संघात की परिस्थितियां उत्पन्न होंगी, मनस संघात की इस प्रक्रिया मे सर्बप्रथम वनस्पति मन फिर पशु मन फिर मानव मन उत्पन्न होगा,कालांतर मे विकसित बुद्धि का मानव बोधि और आध्यात्म का आलंबन लेकर सापेक्षिकता के बंधन से मुक्त होकर ब्रह्म लींन हो जायेगा ,यह पूर्ण स्थूल से परम सूक्ष्म (पुरुष) तक की आरोही यात्रा का क्रम है,...........
    निर्गुण ब्रह्म की स्थिति ठहराव (pause) की स्थिति है ! इस क्रिया विहीनता की स्थिति मे ही शक्ति संचयन होता है ! इसके पश्चात् चरम बिंदु से चरम स्थूल छिति तत्व की अवरोही क्रम और छिति तत्व के स्थूलीकरण से ब्रह्मलीन होने की आरोही क्रम की यात्रा चलती रहती है ! इसे ही श्रृष्टि चक्र या ब्रहास्पंदन समझ सकते हैं..........             

भारत की भयावह स्थिती क्यों ?



यह निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक भारतीय मूलत: सुसंस्कारित, चारित्र्यवान, भ्रष्टाचारमुक्त जीवन पद्धति को अनुसरित करनेंवाला और देश के लिए के लिए हरस्तर पर मर मिटनें वाला दृढ़ निश्चयी नागरिक होता है । हर हिंदुस्तानीं को ऐसा ही होना चाहिए । यह भी स्वयं सिद्ध है कि सच्चा नागरिक भारत की धरती को माता मानता है और दुनिया के सभी देशों में सर्वश्रेष्ठ – सर्वसम्पन्न देश बनानें का लक्ष्य रखकर इसकी पूर्ति के लिए समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता है।


यह इंगित करनें की आवश्यकता नहीं है कि ‘शुद्ध-स्वच्छ वातावरण में ईमानदारी से काम होता है, जिससे इंसान सानंद, प्रामाणिकता और दृढ़ता के साथ असीमित सकारात्मक कार्य सिद्ध करता है’। उक्त व्यक्ति के यथार्थवादी, समाजनिष्ठ और ईमानदार कर्त्तव्य परायणता के कारण वह विश्वसनीय होकर समाज में सम्मान का पात्र बनता है । ऐसे व्यक्ति की पहचान एक समाजसेवी कार्यकर्ता के रूप में होती है और उससे समाज की अनेकानेक अपेक्षाए होती है।’
यह अनुभव आता है कि भविष्य में जब यही सम्मान प्राप्त समाजसेवी राजनीतिक क्षेत्र में जाकर काम करता है, तब समाज को उसके भाष्य, चरित्र, व्यवहार, धनबल -बाहुबल और कर्त्तव्य स्थिति में अनावश्यक रूप से बदलाव मिलनें लगता है। कुछेक समाज सेवकों को छोड़कर अधिकाँश राजनीति में गए व्यक्ति इसी परिवर्तित रूप में दिखाई देते है । जबकि हर सामान्य नागरिक केवल समाजसेवी से प्रामाणिक रहनें की अपेक्षा करता है। परन्तु राजनीतिक हो गया व्यक्ति अब सच्चा व अच्छा समाजसेवी न रहकर दलीय कार्यकर्ता बन जाता है, और अपनें आप को नेता कहता फिरता है
व्यक्ति का यह परिवर्तन नकारात्मक होनें के कारण, समाज के मनमस्तिष्क पर गहरी चोट करता है,जिससे इस राजनीतिक कार्यकर्ता अर्थात नेता को सारा समाज परोक्ष रूप से अभद्र मानता है। ये नेता अनैतिकता और आर्थिक – सामाजिक अपराधों की सजा से पूर्णत: बेख़ौफ़ रहकर बेशर्मी से विभिन्न स्तरों पर लूटपाट का साम्राज्य स्थापित करते है। इनकी सरकारी क्षेत्रों में दखलंदाजी प्रभावी होती है, जिस कारण सरकारी अमला इनसे भय रखते हुवे इनके अयोग्य कार्यों में रुकावट डालने का साहस नहीं करता,बल्कि अपनी तरक्की या बिना श्रम अतिरिक्त धन प्राप्ति की आस में इनकी चापलूसी करने लगता है। भारतीय मतदाता केवल ऐसे गुणोंको प्रस्तुत करने वाले नेता, उसके सहयोगी और विचार धारासे जुड़े समूहको भविष्य में सत्ता से दूरस्थ रखनें का मन बनाता है। यहाँ तक की सामान विचारधारा के अन्य कार्यकर्ता भी निजी स्वार्थ के चलते ऐसे व्यक्ति को सत्ता से विचलित करनें या चुनाव में पराभूत करनें के लिए आगे बढ़ते है, परिणामत: आतंरिक संघर्ष और अपराधों में वृद्धि होती चली जाती है जिससे कुकुरमुत्ते की तरह नये-नये राजनीतिक दल जन्म लेते है।
उक्त विषय में चिंतन और अनुभव स्पष्ट करते है कि ” चुनाव में विजयश्री और सत्ता प्राप्ति ही राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े कार्यकताओंका ध्येय रह जाता है, जिसके लिए चुनाव फंड और वोट-बटोरना इनकी प्राथमिकता बन जाती है । अत: ‘नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर दल का काम करो और सफलता हासिल करो’, यह परोक्ष निर्देश यथावश्यकता श्रेष्टी नेतृत्व देता रहता है।”
” ईमानदार रहकर कभी भी सत्ता प्राप्ति संभव नहीं है ” इस वाक्य को पत्थर की लकीर मानकर अपनें सच्चे ईमानदार मन के विरुद्ध भ्रष्ट आचरण व संघर्ष करनें के लिए नेता आमादा हो जाते है। यह भ्रम- पूर्ण और देश को विनाश की और ले जानेंवाला विचार और व्यवहार देश के सभी राजनीतिक दलों में और उनके कार्यकर्ताओं में व्याप्त हो चुका है, जो देश में अशांति, व्यक्ति-समूह संघर्ष व असीमित भ्रष्टाचार का कारक तथा पोषक बना है।”
” धन और सत्ता का लोभ ही उपरोक्त विनाशकारी स्थिति का जनक है, जब शीर्ष स्तर से अनैतिकता को प्रोत्साहन व संरक्षण प्राप्त होगा, तो ऊपर उल्लेखित भयावह स्थितियों की उत्पत्ति के अलावा और अधिक क्या हो सकता है ? इसे कौन रोक सकेगा ? “
इस भयावह परिस्थिति को बदलनें के लिए निम्न उपाय संभव है :-
(१) देश के प्रत्येक नागरिक में नैतिक मूल्यों का हर स्तर पर और हर हाल में पालन आवश्यक होना और शिक्षा क्षेत्र में स्थापित इस कमी को दूर करना। यह एक स्थायी और सर्वोत्तम रामबाण उपाय है परन्तु यह एक दीर्घ प्रक्रिया है, जिसमें पीढियां खप जायेंगी तत्काल लाभ के लिए यह प्रासंगिक व संभव नहीं।
(२) दूसरा उपाय हो सकता कि सत्तासंचालकों और उनके अधीन कर्त्तव्य करनें वाले सभी लोगों के हर कृतिको, एक निश्चित अवधी में करवाना और उनके कार्य की निगरानी / नियंत्रण स्वतंत्रता पूर्वक [ अर्थात सत्तापक्ष से पूर्णत: मुक्त रखकर ] किसी समूह के माध्यम से अत्यंत कठोर कानूनों का सहारा लेकर दृढ़ता से करवाना। यह संभव है, परन्तु अपेक्षाकृत कुछ समय लगेगा, कुछ अड़चनोंको दूर करना होगा। इन उपायों से अधिकतम ६०-६५% लाभ मिलेगा। मा.अण्णा हजारे साहाब ने इसे ” जनलोकपाल ” कानून कहां है ।
(३) तीसरा उपाय ” विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग से कर्तव्यों में पारदर्शिता इस प्रकार से लाना कि जिससे धनलोभ और अनैतिकता को रोका जा सके या नियंत्रित किया जा सके। ” इसका क्रियान्वयन शीघ्र संभव है, केवल मन कि ईच्छा चाहिए।

शनिवार, 22 सितंबर 2012

!! मुस्लिम तुष्टीकरण ही असली समाजवाद है UP में ???


जय समाजवाद .........? अच्छा है समाजवाद .??? मुस्लिम तुष्टीकरण ही असली समाजवाद है ???

 उत्तरप्रदेश सरकार को अपने वोट बैंक की अधिक चिंता है और अन्य राजनीतिक पार्टियां अल्पकालिक फायदों पर ज्यादा नजर रखती हैं. प्रायःहर राजनीतिक दल अपने वोट के नजरिए से चीजों को तौलता और देखता है !  धार्मिक संवेदनाओं का खुला इस्तेमाल अपना वोट बैंक बचाने और बनाने के लिए किया जाता रहा है. वह चाहे कश्मीर का मुद्दा हो . गुजरात के दंगे हो या असम की ताजातरीन घटना, सब राजनीति के इसी सोच के प्रतिफल हैं.असम में वोटों की खातिर सरकार ने लाखों घुसपैठियों को न सिर्फ रहने की जगह दी, उन्हें भारत का नागरिक होने का हक भी प्रदान किया. इसका परिणाम यह हुआ कि असम सांप्रदायिक हिंसा की भेट चढ़ा जिसमे लाखो लोग बेघर हो गए और न जाने कितने लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी. असम की आग देखते-देखते पूरे देश में फैल गयी. पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को जिस तरह उत्तर और दक्षिण भारत के शहरों से भागना पड़ा है और उसमें देश के सांप्रदायिक तत्वों और पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथियों द्वारा संचालित वेबसाइटों, फेसबुक और ट्वीटर ने जैसी भूमिका निभाई है, वह चिंता का विषय है.! धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश में पाकिस्तानी झंडे लहराने और शहीद स्मारक को तोड़ने और भगवान् बुध्ध के प्रतिमा को तोड़ने वाले  लोगों को मनमानी छूट नही मिलनी चाहिए, सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय पाना और जीवन को दोबारा पटरी पर लाना बेहद कठिन होता है......
तुष्टीकरण सामान्यतः ऐसी राजनयिक नीति को कहते हैं जो किसी दूसरी शक्ति या पक्ष को इसलिये छूट दे देता है ताकि युद्ध से बचा जा सके, एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकों का तुष्टीकरण उचित नहीं है, गांधी जी के अनुसार तुष्टीकरण तो सिर्फ दुश्मनों के बीच होता है, अम्बेडकर ने तुष्टीकरण को हमेशा राष्ट्र विरोधी बताया था ! तुष्टीकरण की नीति से ऊपर उठकर ऐसा खुशहाल समाज बनाने की कोशिश की जानी चाहिए जिसमें सबके लिए अवसर, उम्मीद और आकांक्षाएं हों ,, इसके लिए बहुत ही ईमानदार कोशिशों की जरूरत है....
देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टी कांग्रेस पर सपा पर ,बासापा पर ,हमेशा से ही मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है,, अतीत की बातें छोड़ दें, हाल के दिनों में अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण के लिए केन्द्र सरकार ने मजहब के आधार पर आरक्षण देने की घोषणा की थी, सर्वोच्च न्यायालय में जब इस मुद्दे को चुनौती दी गई तो सरकार को मुंह की खानी पड़ी, मजहब के आधार पर आरक्षण सम्बंधी असंवैधानिक निर्णय क्या सांप्रदायिकता को बढ़ावा देनेवाला नहीं हैं ? यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है ? इतना ही नहीं सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के द्वारा तैयार किए गए सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण अधिनियम के मसौदे में ये दलील दी गयी है कि सांप्रदायिक हंगामें के लिए कथित तौर पर बहुसंख्यक ज़िम्मेदार हैं,ये मान कर चलना कि बहुसंख्यक समुदाय के लोग ही हिंसा करेंगें या फैलाएंगे, ये गलत और आपत्तिजनक सोच है !  अजमल कसाब तथा अफजल गुरु जैसे लोगों के साथ नरमी सरकार के तुष्टीकरण नीति का ही परिचायक है!मुल्सिम वोट बैंक के मद्देनजर जो काम कांग्रेस करती है वही काम पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा, बिहार में राजद और अब जदयू, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, तमिलनाडु में द्रमुक जैसी पार्टियां करती हैं, वोट की राजनीति के कारण ही उग्र हिन्दुत्व का उभार हुआ है, भाजपा ने कांग्रेस की तुष्टीकरण की कथित नीति के खिलाफ हिन्दुओं के असंतोष को उभारा है.....धर्म और क्षेत्र के नाम पर मुखर होने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे क्षेत्रों व समुदायों के बीच शांति स्थापित करना और भी ज्यादा मुश्किल हो गया है, सबको यह समझना चाहिए कि देश में रहने वाले सर्वप्रथम भारतीय हैं, उसके बाद ही कोई हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख या ईसाई हैं !आम धारणा है कि मुसलमान सिर्फ अपने धर्म की ही परवाह करते हैं, अपने देश की नहीं,एक साजिश के तहत मुस्लिम समाज को कट्टरपन, दकियानूसीपन और पृथकतावादी मानसिकता के रास्ते पर धकेला जा रहा है, वह भ्रष्टाचार, आर्थिक विकास, राष्ट्रीय एकता, समाज सुधार आदि सब प्रश्नों से मुंह मोड़कर केवल और केवल मुसलमान के नाते सोचता और निर्णय लेता है ! इस संकुचित और पृथकतावादी मानसिकता के कारण कई तरह की शंकाएं पैदा होती हैं !आखिर क्या वजह है कि जमीयाते उलेमा ए हिंद तथा दारूल उलूम देवबंद जैसी संस्थाओं द्वारा ‘वंदे मातरम’ के खिलाफ फतवा जारी करना पड़ता है, जहां कोई अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय के साथ एकाकार होने से इंकार करता है वहां स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष उठ खड़े होते हैं,,मुसलमानों की तीव्र अतिसंवेदनशीलता, छोटे-बड़े मसलों पर उनका आक्रामक और उग्र रवैया उन्हें दूसरों से अलग-थलग करता है,,जैसे अभी हाल में हुआ है मोहम्द्दा पैगम्बर साहब पर  तथाकथित फिल्म  !! अल्पसंख्यक समुदाय को असुरक्षा का भाव एक-दूसरे के नजदीक लाता है और एकजुट समुदाय की तरह चलने के लिए प्रेरित करता है और इसी हाल के वर्षों में भारत कट्टरपंथी हमले का सबसे आसान निशाना बनकर उभरा है और यही असुरक्षा की भावना का दोहन करते है सेकुलर  ! इस्लामी कट्टरपंथी अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए समुदाय के गुमराह युवकों का इस्तेमाल कर रहे हैं! ऐसे युवकों को भी इस्लामी कट्टरता में अपना भविष्य नजर आ रहा है,मुसलमान अपनी पहचान बनाये रखने के लिए जितना मुखर होते हैं हिन्दुओं में उसकी प्रतिक्रिया उतनी ही उग्र होती है और परिणाम के रूप में असम ,गुजरात और UP के दंगे है .........
                 
हमारी राष्ट्रीय चेतना उत्तरोत्तर शिथिल हो रही है और जाति, क्षेत्र, भाषा व सम्प्रदाय की संकीर्ण चेतनाएं प्रबल हो रही हैं, क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता के उभार के कारण लोग अपने ही देश में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं !अलगावादी और कट्टरवादी शक्तियों को सख्ती से नहीं कुचला गया तो वह आधारशिला ही ढह जाएगी जिस पर एक उदार धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील समाज बनाने का सपना देखा गया था! कट्टरवाद किसी भी सूरत में ठीक नहीं है चाहे वह धार्मिक हो या सामाजिक! कट्टरवाद से केवल नुकसान ही होता है.. कट्टरवादी मानसिकता के कारण इंसान ऐसा रास्ता चुन लेता है जिसकी इजाजत न तो मानवता देती है न ही विश्व का कोई धर्म देता है......(इस्लाम में कट्टरवादी संस्कृत है ?)
कट्टरपंथ वहीं संभव होता है जहां लोकतंत्र नहीं होता, किसी भी लोकतांत्रिक देश के विकास के लिए परस्पर सौहार्द का होना नितांत आवश्यक है,,पूरे देश और सभी क्षेत्रों का सामान आर्थिक विकास, भाषा और धर्म के मामले में सच्चे अर्थों में सहिष्णुता तथा जातिवाद को समाप्त करने की सुदृढ़ चेष्टा यदि रही तो भारत सशक्त और संगठित देश के रूप में फिर उठ खड़ा होगा.....अन्यथा .....क्या होगा सोच लीजिये ..कही एक और पकिस्तान और बंगलादेश की माग नहीं उठने लगे ..........क्या करना है आप सोचे .....हम सोचे ..सभी सोचे ......अन्यथा जा कर घर में लम्बी तान कर सो जाइए .....देश जाए चूल्हे ......जले तो जले ......हम तो सतरंज के खेल में माहिर है और यह खेल खेलेगे ..............नमस्कार ..जय  हिंद जय भारत ..जय जय श्री राम........



!! तीसरा मोर्चा और मुलायम जी के सपने ...!!


‘‘किसी युवा से कभी यह मत कहिए कि यह काम असंभव है ! हो सकता है कि ईश्वर शताब्दियों से किसी ऐसे ही व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा हो जो इस काम के असंभव होने की बात तक से इतना अनजान हो कि उसे संभव ही कर दिखाए..’’ -जॉन एंड्रयू होम्स, अमेरिकी लेखक ‘मैंने सीज़र को इसलिए नहीं मारा क्योंकि मैं उनसे कम प्यार करता था, बल्कि इसलिए मारा क्योंकि मैं अपने देश से ज्यादा प्यार करता हूं
!’ - मार्क ब्रूटस, जूलियस सीज़र के निकटतम मित्रों में एक ‘महत्वाकांक्षा’ के आरोप लगाकर उन्हीं की हत्या करने के बाद ! राष्ट्रीय राजनीति में अचानक अनेक महत्वाकांक्षाएं धधकने लगी हैं ! ममता बनर्जी की इच्छा, आम आदमी का सर्वाधिक विश्वसनीय पक्षधर बनकर उभरने की है! जैसे कि 1999 में जयललिता उभरी थीं। न वो आश्चर्य था न ही यह नई बात ! हां, ऐसे निर्णयों से राजनीति का परिदृश्य अवश्य रोचक, रोमांचक और विवादास्पद हो उठा है। यकायक नई-नई शत्रुता-मित्रता दिखने-मिटने लगेगी.. जैसे ममता के हटते ही मुलायम सिंह यादव ने तीसरे मोर्चे की मानो घोषणा ही कर डाली...फिर नजाकत देख, पलट भी गए... एक ही मुद्दे पर, दूरी बनाए हुए ही सही, लेफ्ट और राइट दोनों सड़क पर नारे लगाते, भाषण देते दिखे...अचरज पैदा कर सकती हैं कुछ बातें ! सरकार के जिन फैसलों के विरुद्ध ममता ने इतना बड़ा कदम उठाया, उसी के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से इनकार कर दिया... कारण- वे भाजपा के साथ दिखना नहीं चाहतीं और माकपा के साथ दिख नहीं सकतीं... ऐसे ही 1999 में जिन मुलायम सिंह ने सोनिया गांधी को ‘‘हमें पूर्ण बहुमत यानी 272 सांसदों का समर्थन है’’ कहने पर अपना हाथ हटाकर बुरी तरह झटका दिया था, वहीं मुलायम 2008 में जब ‘अविश्वास’ चरम पर था, सोनिया संरक्षित सरकार को बचाने के लिए जी-जान से जुटे नजर आए !  अब भाजपा की बात और अलग..तीसरे मोर्चे को ‘इतिहास’करार देकर खारिज करने वाली इस पार्टी के नेता, निरंतर इसी तरह के गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपा विपक्षी मोर्चे से प्रताड़ित या प्रभावित होते रहे हैं... जो लोग डीज़ल -रिटेल विरोधी प्रदर्शन में भाजपा-भाकपा-तीसरे मोर्चे ‘जैसे’ दलों को एक साथ सड़क पर देखकर विस्मय व्यक्त कर रहे हैं, वे क्यों कर भूल रहे हैं कि यह तो सामान्य, सहज बात थी जिसका कोई भी ‘स्वाभाविक’ विरोध करेगा...जैसे कि हर तरह की हिंसा की सभी दल भत्र्सना ही तो करते दिखेंगे... हर नेता, यहां तक कि हांफ रहे, लड़खड़ा रहे नेता भी यही कहते रहे हैं कि वे किसी दौड़ में नहीं हैं !बाद में वे कुछ बने भी तो ‘राष्ट्रहित’ में.. कम से कम हमें तो उन्होंने यही बताया... जूलियस सीजर के जमाने से आज तक राजनीति में गलत-सही ‘राष्ट्रहित में ही तो किया जा रहा है..’ बहरहाल, लेफ्ट-राइट-सेंटर के एक होने का सबसे बड़ा उदाहरण तो विश्वनाथ प्रतापसिंह को प्रधानमंत्री बनाना रहा.. सारे पुराने समाजवादी इकठ्ठे.. सारे पूर्व कांग्रेसी जमा.. दक्षिणपंथी और वामपंथी भी एकजुट..सम्मानजनक या कि अपमानजनक जैसी भी हो दूरी बनाए रखी..बाहर से समर्थन दिया..इसलिए व्यर्थ है सारा विलाप ! कहीं कोई आश्चर्य नहीं,,जिस समय जिसकी जैसी महत्वाकांक्षा जगी- वह दौड़ में दिखलाई पड़ा,, हर चुनाव के पहले तलाक, राजनीतिक गठबंधन, बेमेल विवाह और अलग-अलग रहने के सभी दलों के ढेरों उदाहरण,, तीसरे मोर्चो की भी अपनी अलग गाथा,,जितनी भी बार ऐसे मोर्चे बने, हर बार ऐसा तभी हुआ जब कांग्रेस कमजोर पड़ी,,यानी हर तीसरा मोर्चा कमजोर पड़ी कांग्रेस के गर्भ से निकला,,आपातकाल के कलुषित अध्याय के बाद 1977 में ‘‘हारे, हारे और हारते चले गए.. ’’ कांग्रेसियों के सत्ता में रहते पथभ्रष्ट होने के कारण मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व वाली जनता सरकार हो या 1989 में वीपी सिंह वाले जनमोर्चे की सरकार ?? यानी कांग्रेस कमजोर तो मोर्चा बना..ठीक इसके उलट.. हर ऐसा मोर्चा कांग्रेस के समर्थन से बना रहा ! कांग्रेस रणनीतियों से लड़कर, उलझकर बिखरता...गुट, घटक, धड़े बनते टूटते.. फिर उनमें से एक, कांग्रेस की कृपा से ‘बना रहता, बढ़ जाता’..फिर स्वाभाविक है- कांग्रेस उसे तबाह कर देती। 1979 में चौधरी चरण सिंह की सरकार गिराई..1990 में युवा से वरिष्ठ ‘तुर्क’ बने चंद्रशेखर की गद्दी खींची.. सबकुछ नाटकीय..सोचो तो असंभव..जानो तो सरल, सहज ! यही क्यों, 1996 में देवेगौड़ा सरकार !‘निद्रा में लीन रहने वाले नेता’ के रूप में प्रचारित किए गए इस प्रथम दक्षिणी प्रधानमंत्री को गिराकर जगाने वाली कांग्रेस ने उतनी ही सफाई से इंद्र कुमार गुजराल को 1997 में अपदस्थ कर दिखाया ! सब कुछ संभव...राजनीति ने यह एकमात्र सकारात्मक पाठ खुलकर पढ़ाया है..सवा सौ करोड़ नागरिकों के इस महान देश की महानतम लोकतांत्रिक परम्पराएं हैं, किन्तु ‘‘संसार ऐसे ही चलता है’’ जैसी नैराश्यपूर्ण किन्तु शक्तिशाली पंक्ति को मिटाते हुए भारतीय राजनीति को देश के बुद्धिमान मतदाता ने हमेशा ‘पुरातन परम्पराओं’ को तोड़ने और हरपल कुछ ‘नया, ज्यादा और अलग’ करने पर विवश किया है ! 13 दिन के प्रधानमंत्री हमने देखे..फिर 13 माह भी पाए.. हमने ही दिए.. छह महीने पहले अतिआत्मविश्वास से भरकर ‘इंडिया शाइनिंग’ से स्वयं अंधेरे में चले गए..यहां प्रधानमंत्री दो सिपाहियों के नाम पर गिराए गए..चंद्रशेखर तो क्या, स्वयं उन सिपाहियों तक को न पता चला कि उन्होंने ‘इतना बड़ा कुछ’ कर दिया है.. राष्ट्र के निर्माण में ऐसे अच्छे-बुरे उदाहरण अत्यधिक सामान्य बात है, अनिवार्य भी है.. 2014 राहुल विरुद्ध मोदी विरुद्ध मुलायम, होगा या नहीं; बहस सहज है.. रसप्रद.भी.. ममता तब क्या कांग्रेस से इतनी ही दूर रहेंगी-?? क्योंकि लेफ्ट/राइट से दूरी विवशता है.पता नहीं,,,क्योंकि जिस द्रमुक के विरुद्ध कांग्रेस ने लड़ाई लड़ी उसी से ‘अपमानित’ होते हुए भी वह उसी के मंत्रियों को लगातार बनाए रखे हुए है,,किंतु इस तरह तो राजनीति मात्र राजनीतिज्ञों की इच्छा, प्रतिष्ठा और शक्ति बनकर रह गई है,इनमें आम आदमी के हित कहां हैं ? राजनीति में आम आदमी के हित सवरेपरि हों, ऐसा असंभव लगता है,, इसके विरुद्ध युद्ध लंबा, कुंठित कर देने वाला होगा,,किंतु लड़ना ही है, हम सभी को, अपने-अपने तरीकों से, 2014 का आम चुनाव इसके लिए श्रेष्ठ अवसर होगा, बस, आंखें खुली रखनी है...........

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

!! क़ुतुब मीनार का सच .......!!


1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया ,तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में
गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था
1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई tab  वह गद्दी पर बैठा
,अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए I
1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी
अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने
क़ुतुब मीनार ,कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई I
अब कुछ प्रश्न .......
अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ?
क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने
के पहले भी वह लाहौर में था ?......शायद नहीं I
कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया
यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं
उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसके ऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी I
यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका नाम बादशाह गौरी के नाम पर "गौरी मीनार "या ऐसा ही कुछ होता
न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार I
उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार बनवाई ,अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुब मीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा
सकता है जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्व निर्धारित होता है ?
कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने के लिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी कि आवाज़ निचे तक आ भी सकती है ?
उपरोक्त सभी बातें झूठ का पुलिंदा लगती है इनमें कुछ भी तर्क की कसौटी पर सच्चा नहीं lagta
सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है वह मेहरौली कहा जाता है, मेहरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक , और
खगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन
के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था I
इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहींदिख जाती हैं I
कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं I
मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है ,अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता,
इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर " ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए "मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे
we भी हटा दिए गए होंगे ,अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है
इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे ,
इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता ,लिखा है की यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है
,सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौह स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा .उसी महानसम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट,खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण
विशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए
ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा निश्चय ही आसपास अन्य निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भ वि ष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए
इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोल शाष्त्री वराहमिहिर को जाता है I
कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज (स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर
अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया.

यूपी में मुलायम राज शुरू ???

! मुलायम जी का हाथ , कांग्रेस के साथ !

मुलायम जी का हाथ , कांग्रेस के साथ !
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समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने संवाददाताओं से कहा कि हमारा समर्थन स्पष्ट है ।तृणमूल कांग्रेस द्वारा समर्थन वापसलिए जाने से उत्पन्न स्थिति के बीच संप्रग को बड़ी राहत प्रदान करते हुए समाजवादी पार्टी ने शुक्रवार को कहा कि वह सरकार को अपना समर्थन जारी रखेगी, क्योंकि वह सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता में नहीं आने देना चाहती।
समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने संवाददाताओं से कहा कि हमारा समर्थन स्पष्ट है और रहेगा।

...
1) सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों को 18 फीसदी आरक्षण की जोरदार पैरवी की।
http://www.bhaskar.com/article/NAT-demond-18-percent-quota-for-muslims-3404209.html
http://www.indianexpress.com/news/mulayams-promise-on-quota-for-muslims/914077/
2) मुलायम ने की सिमी (SIMI) की वकालत

3) माया ही नहीं मुलायम की सरकार में भी हुआ एनआरएचएम घोटाला
http://hindi.oneindia.in/news/2012/01/21/uttar-pradesh-nrhm-scam-mayawati-mulayam-singh-yadav-bjp-congress-aid0162.html
4) अखिलेश की कैबिनेट में छह दागी भी
http://www.livehindustan.com/news/up/khabre/article1-story-344-344-222850.html
5) मुलायम सिंह यादव का आयुर्वेद घोटाला
http://newsaaj.in/newsdetail.php?id=3_0_85363
6) भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस कोसमर्थन: मुलायम सिंह यादव
http://hindi.in.com/showstory.php?id=1348122
7) राष्ट्रपति चुनाव में मुलायम कांग्रेस के साथ!
http://haftekibaat.blogspot.in/2012/05/blog-post_3297.h tml
8) जनलोकपाल से अभी से ही डरे मुलायम-लालू
http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/687762/9/76/Lalu-Mulayam-frightened-of-Lokpal.html
9) 2 नवम्बर, 1990 को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4% BE_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
http://hinduexistence.wordpress.com/tag/mulayam-singh-yadav
10) अखिलेश राज में बढ़ा अपराध, 669 हत्याएं, 263 बलात्कार!
http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=58882
11) मुलायम के राज में यूपी का अनाज घोटाला 2 जी से भी बड़ा !
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7055348.cms
जय हिंद !

ग्रन्थ दो तरह के होते हँ धार्मिक ग्रन्थ और एक सामजिक ग्रन्थ

ग्रन्थ दो तरह के होते हँ
एक धार्मिक ग्रन्थ और एक सामजिक ग्रन्थ
धार्मिक ग्रन्थ वे होते हँ जिनमे आत्मा, परमात्मा, माया आदि का प्रधानता से वर्णन हँ , वेद , उपनिषद, वेदांत सूत्र , महाभारत, रामायण, पुराण आदि वैदिक ग्रन्थ धार्मिक ग्रन्थ हँ
ये धार्मिक ग्रन्थ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए परम कल्याणकारी हँ
इन धार्मिक ग्रंथो को हर हिन्दू मानता हँ और मानना चाहिए
लेकिन एक सामाजिक ग्रन्थ भी होते हँ जो समय समय पर कुछ लोगो द्वारा लिखे जाते हँ जिन्हें लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं हँ की उन्हें हिन्दू लोग माने ही क्योकि कोई व्यक्ति उस समय के हिसाब से अगर अपनी स्मृतियों या मनोभावों के आधार पर कुछ लिखता हँ तो समय बदलने पर उसके विचार भी अप्रासंगिक हो जाते हँ
ऐसा ही एक ग्रन्थ '' मनुस्मृति '' हँ
जैसा की नाम से ही स्पष्ट हँ ये ग्रन्थ एक मनु नाम में राजा का अपनी स्मृतियों के आधार पर लिखा हुआ ग्रन्थ हँ

मनुस्मृति नाम के एक ग्रन्थ में शुद्रो को हमेशा के लिए ही शुद्र (नौकर ) ही बनाये रखने के तरीके बताये गए हँ जिन पर कठोरता से अमल करने की भी बात कही गयी हँ
अवश्य ही मनुस्मृति में कुछ बहुत अच्छी नीति की बाते भी बताई गयी हँ लेकिन सिर्फ जानकार व्यक्ति ही मनुस्मृति में से सामाजिक नीति की अच्छी बातो को पहचान सकता हँ
लेकिन ये काम कोई जानकार व्यक्ति ही कर सकता हँ , साधारण जन समुदाय नहीं
सवामी दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रन्थ '' सत्यार्थ प्रकाश '' में मनुस्मृति से काफी उद्धरण दिए हँ लेकिन, वही पर उन्होंने उसी ग्रन्थ में ये भी साफ़ कर दिया हँ की मनुस्मृति के '' प्रक्षिप्त श्लोको '' से बचना चाहिए
लेकिन सवाल ये हँ की कितने लोग इन प्रक्षिप्त श्लोको की पहचान कर सकते हँ ?
इसलिए जानकार लोग मनुस्मृति को ऐसा ही मानते हँ जैसे विष मिला हुआ अन्न , उसे छोड़ देना ही अच्छा हँ ,
जब हमारे पास वैदिक साहित्य का विपुल भण्डार हँ तो हमे किसी सांसारिक व्यक्ति की स्मृतियों से क्या मतलब होना चाहिए ?
और अगर सामिजिक नियम कायदे कानून के लिए हमे किसी संसारी व्यक्ति के विचारों को ही तवज्जो देनी हँ तो हमे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा लिखित ''' शंकर स्मृति '' को पढना चाहिए
अक्सर लोग मनुस्मृति को धार्मिक ग्रन्थ मानकर इसकी बहुत चर्चा किया करते हँ जो की पूरी तरह से गलत धारणा हँ
दरअसल हिन्दू धर्म के सिद्धांतो से अनभिज्ञ वे लोग जो हिन्दू धर्म को पसंद नहीं करते और हिन्दू धर्म में दोष निकालना चाहते हँ वे लोग इस मनुस्मृति को धार्मिक ग्रन्थ साबित करने की कोशिश किया करते हँ
लेकिन धर्म उनके कहे अनुसार या उनकी इच्छा से नहीं चल सकता
जब बात मनुस्मृति की करते हँ तो वो पूरी तरह से एक एक सामाजिक ग्रन्थ हँ , धार्मिक नहीं, उसका किसी धार्मिक साधना से से कोई लेना देना नहीं हँ
वो मनु नाम के एक राजा ने अपनी स्मृति के आधार पर लिखा हँ, उसमे भगवान् से जुडी हुई कोई बात नहीं हँ
मनुस्मृति पूरी तरह से एक सामजिक ग्रन्थ हँ , जिसे उसे मानना हो वो उसे माने, जिसे न मानना हो वो न माने , धर्म का मामला पूरी तरह से अलग हँ और धर्म सम्बन्धी धार्मिक ग्रन्थ बिलकुल अलग विषय हँ
उस सामाजिक ग्रन्थ को तो अधिकाँश हिन्दू ही नहीं मानते , न तो पहले मानते थे और न ही आज मानते हँ
इस मनुस्मृति को प्रसिद्द करने का श्री डॉक्टर आंबेडकर को जाता हँ जिन्होंने हिन्दू धर्म की धार्मिकता का मतलब इस मनुस्मृति को ही समझा
उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू धर्म के खिलाफ जितनी स्पीच दी उसमे उन्होंने हिन्दू धर्म की बुराइया गिनवाते हुए 90 % इस मनुस्मृति का ही जिक्र किया हँ क्योकि वे धार्मिक ग्रंथो के न तो जानकार ही थे और न ही उन्हें समझ सकते थे
ब्रह्मज्ञान क्या हँ ? आत्मा क्या हँ ? आत्मा परमात्मा विवेक, साधना क्या होती हँ ? क्यों होती हँ ? कितने प्रकार की होती हँ ? सर्वश्रेस्थ साधना क्या हँ और क्यों हँ ? अद्वेतवाद क्या हँ ? द्वेत्वाद क्या हँ ? कर्मयोग क्या हँ , ज्ञानयोग क्या हँ , भक्तियोग क्या हँ ? इन बातो को आंबेडकर कदापि नहीं समझ सकते थे इसलिए वे अपनी अज्ञानता , अपनी कमजोरी को छिपाते हुए सिर्फ मनुस्मृति जैसे सामाजिक ग्रन्थ को ही धार्मिक जानकर इसे ही हिन्दू धर्म का अभिप्राय समझकर बाकी दलितों को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काया करते थे
आंबेडकर को हिन्दू धर्म से कितनी चिढ थी और वे किस हद तक इस धर्म को नीचा दिखाना चाहते थे ये उनके वांग्मय को पढ़कर आसानी से जाना जा सकता हँ
आंबेडकर वांग्मय के खंड - 6 में उन्होंने कहा हँ की '' इस परम पवित्र मनुस्मृति को हिन्दू धर्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानना चाहिए ''
अब ध्यान दीजिये , आंबेडकर क्यों चाहते हँ की मनुस्मृति को हिन्दू धर्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानना चाहिए ?? ???????????????
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और उन्हें ऐसा क्यों लगा की वे या और भी कोई हिन्दू धर्म को अपने हिसाब से चला सकते हँ ?
क्या इन बातो का कोई जवाब हँ ?
यहाँ पर एक बात ध्यान देने की और भी हँ की बाबा साहब ने मनुस्मृति भी वो पढ़ी थी जो किसी और ने हिंदी में ने ट्रांसलेट की हुई थी , क्योकि उन्हें तो साधारण संस्कृत भी नहीं आती थी फिर वैदिक संस्कृत की बात तो कौन कहे
कोई हेरानी नहीं हँ की आज भी बाबा साहब के अनुयायी मनुवादी शब्द का जिक्र बार बार किया करते हँ , लेकिन मनुवादी लोग कौन हँ ? देश में कहा रहते हँ ? और ये राजा मनु ही कौन था ? और जितनी जानकारी आपको मनुस्मृति की हँ , क्या उसकी एक चौथाई भी आपको ब्रह्मज्ञान सम्बन्धी कोई जानकारी हँ ?(सिर्फ जानकारी ही , क्योकि आंबेडकर या उनके अनुयायियों से कोई भी ये उम्मीद नहीं कर सकता की वे लोग भगवत प्राप्ति की साधना कर सकते हँ , वे लोग साधना करने की बजाय कुतर्क करने में अपना समय बर्बाद करना ज्यादा पसंद करते हँ )
इन बातो का कोई जवाब शायद ही उनके पास हो

अल्लाह का दरबार कैसा है ?

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

आप के लिए कुछ बचा क्या ?


भारत के 120 करोड़ से ज्यादा निवासियों में अधिकांश किसान हैं | करीब 40 करोड़ हिन्दुस्तानी 9 से 5 बजे तक की ( या इससे भी ज्यादा ) नौकरी बजाते हैं | ये ऐसा वर्ग है जिसे मध्य वर्ग कहा जाता है | इसके घर में छोटी छोटी चीजों के आने पर ही ख़ुशी का मौका बन जाता है | मोटर बाइक आ गई , ख़ुशी का मौका , कार आ गई , ख़ुशी का मौका | कल रेस्तुरांत में खाना खा आये तो खुश हो गए | अब जरा उन पर गौर फरमाइए जो चांदी की चम्मच लेकर ही पैदा हुए हैं | भारत में राजनीति और फिल्मों का धंधा धीरे धीरे पारिवारिक होता जा रहा है | पहले भी था लेकिन अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है | सब को पता है कि इससे बेहतर काम और कोई हो ही नहीं सकता , न पढाई लिखाई की बहुत जरूरत न कोई संघर्ष | हालाँकि सभी अच्छे पढ़े लिखे आ रहे है |
पहले जरा राजनीति की बात कारें :
नेहरु गाँधी परिवार : जवाहर लाल नेहरु – इंदिरा गाँधी एवं फिरोज गाँधी – राजीव एवं संजय गाँधी – सोनिया एवं मेनका गाँधी – राहुल एवं वरुण गाँधी ( सभी संसद सदस्य रहे हैं )
लाल बहादुर शास्त्री : हरिकृष्ण शास्त्री , सुनील शास्त्री ( सभी संसद सदस्य रहे हैं )
प्रतिभा देवी सिंह पाटिल : राजेंद्र सखावत (पुत्र ) (महाराष्ट्र में विधायक )
मुलायम सिंह यादव : रामगोपाल यादव (भाई ), धर्मेन्द्र यादव (भतीजा ) , अखिलेश यादव (पुत्र -मुख्यमंत्री ) , स्वयं – सभी संसद सदस्य
शिवपाल यादव (भाई ) विधायक-मंत्री , डिम्पल यादव (बहु) कन्नौज से सांसद , प्रतीक यादव ( इंतजार करें)
कल्याण सिंह : राजवीर सिंह (पुत्र )(विधायक रहे हैं )
राजनाथ सिंह : नीरज सिंह , पंकज सिंह (पुत्र ) -तैयारी में
विलासराव देशमुख : अमित देशमुख (पुत्र )(विधायक )
सुशिल कुमार शिंदे : प्रणीति शिंदे ( पुत्री ) विधायक
शरद पवार : अजीत पवार ( भतीजा ) ( उप मुख्य मंत्री ), सुप्रिया सुले (पुत्री ) सांसद
नारायण राने : नीलेश राने (पुत्र )-तैयार
बाला साहेब ठाकरे : उद्धव ठाकरे (पुत्र ), राज ठाकरे (भतीजा )- शिव सेना एवं मनसे प्रमुख
छगन भुजबल : पंकज भुजबल (विधायक )
देवीलाल : ओम प्रकाश चौटाला (पुत्र ) (मुख्यमंत्री ), अजय चौटाला , अभय चौटाला (पुत्र ) (विधायक) सांसद
भजन लाल : कुलदीप विश्नोई (पुत्र ) विधायक , अब सांसद बनने की तैयारी
बंसी लाल : कुमारी शैलजा ( सांसद )
माधव राव सिंधिया : ज्योतिरादित्य सिंधिया (पुत्र -सांसद ), विजयराजे सिंधिया , वसुंधरा राजे सिंधिया ( बहन )
लालू प्रसाद यादव : राबड़ी देवी (पत्नी -मुख्यमंत्री ) , साधू यादव , सुभाष यादव (साले -विधायक , सांसद )
करूणानिधि : एम्.के. स्टालिन , एम्.के .अज़गिरी (पुत्र , विधायक एवं सांसद ), कनिमोज़ी ( पुत्री -सांसद )
प्रकाश सिंह बादल : सुखवीर सिंह बादल (पुत्र -उपमुख्यमंत्री )
अमरेन्द्र सिंह – परमजीत सिंह कौर (पत्नी-सांसद )
फारूक अब्दुल्ला : उमर अब्दुल्ला
मुफ्ती मोहम्मद सईद :रूबिया
अटल बिहारी वाजपयी : करुना शुक्ल (भतीजी )-मध्य प्रदेश में विधायक
येदियुरप्पा : राघवेन्द्र , विजयेन्द्र (पुत्र)-सांसद
देवेगोड़ा : कुमारस्वामी ( मुख्यमंत्री)
वी.पी.सिंह : अजय सिंह
शीला दिक्सित : संदीप दिक्सित (सांसद )
जसवंत सिंह : दुष्यंत सिंह (पुत्र)-सांसद
प्रिय रंजन दस मुंशी : दीपा दास मुंशी (पत्नी-सांसद )
भूपेंद्र सिंह हुड्डा : रणदीप सिंह हुड्डा (पुत्र -सांसद)
प्रेम सिंह धूमल : अनुराग ठाकुर (पुत्र -सांसद )प्रणव मुखर्जी : अरिजीत मुखर्जी ( विधायक -बंगाल )
अब ज़रा फिल्मों की बात कर लें :
दलीप कुमार : कोई औलाद नहीं
प्रथ्वी राज कपूर : राज कपूर : रंधीर कपूर , ऋषि कपूर , राजीव कपूर !
शम्मी कपूर : बेटे जो फिल्म लाइन में सफल नहीं हुए
शशि कपूर : एक बेटी फिल्मो में , मगर सफल नही
***************
रंधीर कपूर : करिश्मा कपूर , करीना कपूर ( दोनों हिरोइन )

ऋषि कपूर : रणवीर कपूर ( हीरो )
देव आनंद – सुनील आनंद ( हीरो -लेकिन सफल नहीं )
चेतन आनंद
सुनील दत्त : संजय दत्त (हीरो) , प्रिया दत्त (सांसद ) , नम्रता दत्त ( कुमार गौरव की पत्नी )
अमिताभ बच्चन : अभिषेक बच्चन (बेटा -हीरो ) , ऐश्वर्या बच्चन ( बहु -हिरोइन )
***********
रोशन : संगीतकार
राकेश रोशन (हीरो -निर्माता , निर्देशक )
राजेश रोशन ( संगीतकार )
ऋतिक रोशन -हीरो
*******
धर्मेन्द्र -हीरो , निर्माता
सनी देओल – हीरो , निर्माता
बोबी देओल – हीरो
हेमा मालिनी (पत्नी ) -हिरोइन
ईशा देओल (बेटी )- हिरोइन
********
यशराज चोपड़ा – निर्माता
बलराज चोपड़ा(भाई ) -निर्माता
विधु विनोद चोपड़ा (भाई )- निर्माता
आदित्य चोपड़ा(यशराज का बेटा ) -निर्माता
उदय चोपड़ा (यश राज का बेटा ) -हीरो , निर्माता
रवि चोपड़ा( बलराज का बेटा ) -निर्माता , निर्देशक
जैकी (विधु का बेटा ) -हीरोये तो केवल एक बानगी है | बहुत सारे ऐसे हैं जो अभी लाइन में हैं या हो सकता है मुझे उनके विषय में जानकारी न हो | फिर हमारे तुम्हारे लिए क्या बचता है ? सिर्फ 9 से 5 बजे तक की नौकरी ही न ? सोचिये और बस सोचिये | क्योंकि इसके अलावा हम कुछ कर भी नहीं सकते |


yogi sarswat ji & Ranjan Kumar ji

धर्म के नाम पर बहने वाले खून का हर कतरा हमारा है..

हम सभी  एक धरमनिरपेक्ष देश मेंरहते है  जहाँ किसी धर्म कि कदर है कि नहीं मुझे नहीं पता पर इतना पता है कि कोई न कोई प्रतिदिन धर्म कि बलि पर किसी न किसी को चढाया जाता है . ऑस्ट्रेलिया में भेदभाव होता है तो भारत में उसकी प्रतिक्रिया होती या देश कि सम्पति को नुकसान पहुँचाया जाता है और सरकारें तथा कानून नग्न नाच देखता रहता है और किसी के उपर कानूनी कारवाही नहीं होती . अगर एक छोटे से व्यक्ति ने भीख मिटने के लिए खाना भी चुरा लिया जाये तो उसको मर मर कर उसकी दुर्गति कि जाती है .

कुछ लोग अपना- अलग अलग पंथ बनाकर देश का बिभाजन कर रहे हैं तो कुछ लोग क्षेत्रवाद के नाम पर ,तो कुछ धर्म के नाम पर ऐसा लगता है जैसे की सभी धर्मों का ठेका उन्होंने ले लिया है .

जब भी ऐसे उन्माद होते हैं तो उसमें मरने वालो की सबसे ज्यादा संख्या बच्चों और महिलाओं और बूदों की होती है .
जहाँ तक मुझे पता है बच्चे का कोई मजहब नहीं होता है उसे जो अपनाएगा उसी धर्म का हो जाएगा तो फिर हिंसा क्यों .

अगर एक हिन्दू मरता है तो एक सिख मरता है एक सिख मरता है तो एक मुसलमान मरता है एक मुसलमान मरता है तो एक ईसाई मरता है . हर बहने वाले खून का कतरा एक भारतीय का होता है तो क्यों हम उन लोगों का साथ दें . अगर वे अपने खून बहाने का मादा रखते तो सबसे पहले उनका खून बहता न की मासूम बच्चों और औरतों का . वो आप के लिए अपना खून क्यों बहायेंगे . आपको दो वक़्त की रोटी तो छोड़ो बीमारी के समय में सहायता नहीं कर सकते तो उनको आपकी क्या पड़ी हैं वो समय चला गया जब देशभक्त पैदा होते थे वो लोग तो धरम के नाम पर हमारी बलि दे देंगे लेकिन उनके अपने अंदर इतनी हिम्मत नहीं होती है किवो अपना खून बहाएं . शरारती तत्व हर जगह हैं .

किसी न किसी रूप में हर धर्म के व्यक्ति का देश को बनाने में सहायक होता है . (भारत के नानावटी जैसे मुख्या न्यायधीश को एक मुसलमान ने अपने परवरिश दी )और आर रहमान जैसे व्यक्ति हिन्दुत्व छोड़ कर मुसलमान बन गए .
ऐसे ही कई उदारहण हैं जो कभी हमारे सामने नहीं आये पर इंसानियत आज भी है

इसलिए भड़काऊ लोगो से बचे और अपने बच्चों के साथ अपने देश कि तथा दुसरे बच्चों और महिलाओं कि भी सुरक्षा करें .
मैं एक धरमनिरपेक्ष देश में रहता हूँ जहाँ किसी धर्म कि कदर है कि नहीं मुझे नहीं पता पर इतना पता है कि कोई न कोई प्रतिदिन धर्म कि बलि पर किसी न किसी को चढाया जाता है . ऑस्ट्रेलिया में भेदभाव होता है तो भारत में उसकी प्रतिक्रिया होती या देश कि सम्पति को नुकसान पहुँचाया जाता है और सरकारें तथा कानून नग्न नाच देखता रहता है और किसी के उपर कानूनी कारवाही नहीं होती . अगर एक छोटे से व्यक्ति ने भीख मिटने के लिए खाना भी चुरा लिया जाये तो उसको मर मर कर उसकी दुर्गति कि जाती है .
कुछ लोग अपना- अलग अलग पंथ बनाकर देश का बिभाजन कर रहे हैं तो कुछ लोग क्षेत्रवाद के नाम पर ,तो कुछ धर्म के नाम पर ऐसा लगता है जैसे की सभी धर्मों का ठेका उन्होंने ले लिया है .

जब भी ऐसे उन्माद होते हैं तो उसमें मरने वालो की सबसे ज्यादा संख्या बच्चों और महिलाओं और बूदों की होती है .
जहाँ तक मुझे पता है बच्चे का कोई मजहब नहीं होता है उसे जो अपनाएगा उसी धर्म का हो जाएगा तो फिर हिंसा क्यों .

अगर एक हिन्दू मरता है तो एक सिख मरता है एक सिख मरता है तो एक मुसलमान मरता है एक मुसलमान मरता है तो एक ईसाई मरता है . हर बहने वाले खून का कतरा एक भारतीय का होता है तो क्यों हम उन लोगों का साथ दें . अगर वे अपने खून बहाने का मादा रखते तो सबसे पहले उनका खून बहता न की मासूम बच्चों और औरतों का . वो आप के लिए अपना खून क्यों बहायेंगे . आपको दो वक़्त की रोटी तो छोड़ो बीमारी के समय में सहायता नहीं कर सकते तो उनको आपकी क्या पड़ी हैं वो समय चला गया जब देशभक्त पैदा होते थे

वो लोग तो धरम के नाम पर हमारी बलि दे देंगे लेकिन उनके अपने अंदर इतनी हिम्मत नहीं होती है किवो अपना खून बहाएं . शरारती तत्व हर जगह हैं .किसी न किसी रूप में हर धर्म के व्यक्ति का देश को बनाने में सहायक होता है . भारत के नानावटी जैसे मुख्या न्यायधीश को एक मुसलमान ने अपने परवरिश दी और आर रहमान जैसे व्यक्ति हिन्दुत्व छोड़ कर मुसलमान बन गए
ऐसे ही कई उदारहण हैं जो कभी हमारे सामने नहीं आये पर इंसानियत आज भी है

इसलिए भड़काऊ लोगो से बचे और अपने बच्चों के साथ अपने देश कि तथा दुसरे बच्चों और महिलाओं कि भी सुरक्षा करें .

!! जो मरने को राजी है, वह जीवन पा लेता है.......??

एक भिखारी भीख मांगने निकला था। वह बूढ़ा हो गया था और आंखों से उसे कम दिखता था। उसने एक मंदिर के सामने आवाज लगाई। किसी ने उससे कह, 'आगे बढ़। यह ऐसे आदमी का मकान नहीं है, जो तुझे कुछ दे सके।'भिखारी ने कहा, 'आखिर इस मकान का मालिक कौन है, जो किसी को कुछ नहीं देता?' वह आदमी बोला, 'पागल, तुझे यह भी पता नहीं कि यह मंदिर है! इस घर का मालिक स्वयं परमपिता परमात्मा है।'
भिखारी ने सिर उठाकर मंदिर पर एक नजर डाली और उसका हृदय एक जलती हुई प्यास से भर गया। कोई उसके भीतर बोला,'अफसोस, असंभव है इस दरवाजे आगे बढ़ना। आखिरी दरवाजा आ गया। इसके आगे और दरवाजा कहां है?'
उसके भीतर एक संकल्प घना हो गया। अडिग चट्टान की भांति उसके हृदय ने कहा, 'खाली हाथ नहीं लौटूंगा। जो यहां से खाली हाथ लौट गए, उनके भरे हाथों का मूल्य क्या?'
वह उन्हीं सीढि़यों के पास रुक गया। उसने अपने खाली हाथ जोड़ कर बैठ गया वही , वह प्यास था- और प्यास ही प्रार्थना है।
दिन आये और गये। माह आये और गये। ग्रीष्म बीती, वर्षा बीती,सर्दियां भी बीत चलीं। एक वर्ष पूरा हो रहा था। उस बूढ़े के जीवन की मियाद भी पूरी हो गई थी। पर अंतिम क्षणों में लोगों ने उसे नाचते देखा था.....
उसकी आंखें एक अलौकिक दीप्ति से भर गयीं थीं। उसके वृद्ध शरीर से प्रकाश झर रहा था...
उसने मरने से पूर्व एक व्यक्ति से कहा था, 'जो मंगता है, उसे मिल जाता है। केवल अपने को समर्पित करने का साहस चाहिए,,'
अपने को समर्पित करने का साहस...
अपने को मिटा देने का साहस..
जो मिटने को राजी है, वह पूरा हो जाता है,जो मरने को राजी है, वह जीवन पा लेता है.......

आरक्षण पर क्या कोई बन्धु मेरी जिज्ञासा का समाधान करेगे??


क्या कोई बन्धु मेरी जिज्ञासा का समाधान करेगे --
मेरी जिज्ञासा ----
जब संविधान में आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था तब इसका आधार जातिय रखा गया
और कुछ को अनुसूचितजाति [SC ]और कुछ को अनुसूचित जनजाति [ST ] माना गया |

...
...
प्रश्न 1 . ------------- इस बात का क्या आधार निर्धारित किया की
ये ये जातिया अनुसूचित जातिया होगी और ये ये जातिया अनुसूचित जनजातीय होगी ?

( इसी तरह एक और प्रश्न है की १९५० जब से संविधान लागु हुआ
उससे पहिले तक भारत में चमड़े का जितना भी व्यापर होता था

उस पर चमार जाति का एकाधिकार था अर्थात चमार जाति एक व्यापारी जाति थी
चमड़े की चड्स जो कुओ से पानी निकालने के काम आती थी
जिसका पानी खेतमे काम करने वाले ब्राह्मण राजपूत और अन्य सभी खेतिहर जातिया पीती थी
फिर चमार जाति को किस आधार पर आरक्षण दिया गया ?

इसी तरह राजस्थान मीणा जाति के पास १९५० से पहिले ही कृषि भूमि थी
उन्हें किस आधार पर अनुसूचित जन जाति माना गया ? मीणाजाति कृषक जाति थी )

प्रश्न 2 . ---------- ---- क्या कोई बन्धु आरक्षण में जाति का क्या CRITERIA था की जानकारी देगे ?

प्रश्न 3 .-------------------------पिछले ६२ वर्षों में किस आरक्षित जाति ने कितनी तरक्की की ?

प्रश्न 4 --------------------- कितनी जातिया आरक्षण के सहारे अगड़ी जातियों के बराबर आगयी ?

प्रश्न 5 -----------------------वो कौनसी सीमा रेखा थी जिसको पार करने पर दलित दलित नही होगा ?

प्रश्न 6 ------------------------आरक्षण के सहारे सभी दलित कब तक अगडे हो जायेगे ?

है किसी के पास इस जिज्ञासा का जवाब ?

क्या दलितो में जातिया नही होती ?

सरकार दलित जातियों में यानि SC& ST जातियों में आपसी विवाह को प्रोत्साहन क्यों नही देती ?

भंगी और चमार जाति में आपसी विवाह को प्रोत्साहन देके जातीयता को समाप्त क्यों नही करती ?

राज सत्ता दलित और गैर दलित में ही विवाह को प्रोत्साहन के लिए धन का लालच क्यों देती है ?

मेरे मित्रों इन राजनेतिक षड्यंत्रो को पहिचानो और आरक्षण के विरोध में सवर्ण जाति राजनेतिक एकता के प्रयास करों |

यदि सवर्ण एक नही हुए तो आपके वंशानुगत संस्कारो को नष्ट करने में ये देश के गद्दार पीछे नही हटेगे |

देश के गद्दार कहते है की ये जातीय हजारो सालो से दबी कुचली हुई है | हम इनसे पूछते है की ---------------

हजारो सालो से विधर्मी और विदेशी हमलो का सामना किन जातियों ने किया ? इन हमलावरों के साथ युद्ध में वीरता पूर्वक कौन लड़े ?

युध्दों में कौन जाति के लोग शहीद हुए ? जनहानी और धनहानी किन जातियों की हुई ? अंग्रेजो से आज़ादी के लिए कौन लड़े ?

जब देश के गद्दार दलितों को हर क्षेत्र में वीर जातियों के बराबर लाना चाहते है तो इन दलितों को रक्षा सेनाओ में आरक्षण क्यों नही ?

इन में वीरता के गुणों के विकास के लिए 100 % दलित आरक्षण भारत की रक्षा सेनाओ में क्यों नही करते ?

शेरो जागो इन भेडियों की गुलामी मत करों | वोट की राजनीति देश को गर्त में ले जा रही है |

जागो देश भगतो जागो और मेरी जिज्ञासा का समाधान करों

बुधवार, 19 सितंबर 2012

!! समाजसेवी श्री फकीर चन्द जी !!

यह कहानी कोपी पेस्ट है हु बहु ......
 
"खुश खबरी...खुश खबरी...खुश खबरी"...
पूरे दिल्ली शहर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी नामी और बिगड़ैल रईसजादे ने अपने अनुभवों को..अपनी भावनाओं को...अपनी कामयाबी के रहस्यों को खुलेआम सार्वजनिक करने की सोची है ताकि आने वाली पीढियाँ उन्हें अमल में ला कामयाबी के रास्ते पे चल सकें।जी हाँ!...शहर के जाने-माने सेठ और समाजसेवी श्री फकीर चन्द जी साक्षातकार के लिए मान गए हैँ और उन्हें राज़ी करने के लिए हँसते रहो वालों की पूरी टीम (जिसमें सिर्फ मैँ शामिल हूँ) को काफी पापड़ ही नहीं बेलने पड़े बल्कि उनके साथ-साथ कुछ मसालेदार 'पंजाबी वड़ियाँ' तथा 'गुजराती ढोकला' भी बनाना और खाना पड़ा।
हाँ!...तो अब आप पाठकों के समक्ष पेश है उनके साथ हुई बातचीत का अक्षरश ब्योरा:
हँसते रहो:हाँ तो!...फकीर चन्द जी....इंटरव्यू शुरू करें?...
फकीर चन्द:जी बिलकुल...
हँसते रहो:ठीक है!...तो मैँ ये टेप रेकार्डर ऑन किए देता हूँ ताकि बाद में किसी किस्म का कोई कंफ्यूज़न पैदा ना हो...
फकीर चन्द:मतलब?
हँसते रहो:वो क्या है कि बड़े लोगों को बाद में अक्सर ये मुगाल्ता लग जाता है कि उनके ब्यान के साथ अनावश्यक रूप से छेड़छाड़ की गई है
फकीर चन्द:ओह!...फिर तो आप ज़रूर ही ऑन कर दें..ये तो बहुत ही बढिया जुगाड़ बताया आपने ...इसमें तो किसी भी तरह के शक और शुबह की गुंजाईश ही नहीं
हँसते रहो:जी बिलकुल...तो फिर शुरू करें?...
फकीर चन्द:शौक से
हँसते रहो:ओ.के...
"पहले तो मैँ राजीव तनेजा अपने सभी पाठकों की तरफ से आपको धन्यवाद देता हूँ कि आप हमसे बात करने के लिए राज़ी हुए।बेशक!...इस काम में मुझे अपने हाथ-मुँह-कान और कपड़े...सब लिबेड़ने पड़े।
फकीर चन्द:नहीं-नहीं!…ऐसी कोई बात नहीं है जी...बात करने के लिए तो मैँने कभी किसी को इनकार ही नहीं किया और ना ही कभी ऐसा करने का इरादा है लेकिन ये और बात है कि किसी दूसरे को मुझसे बात करने की कभी सूझी ही नहीं।
हे हे हे हे ...
हँसते रहो:आप तो शहर के जाने-माने उद्यमी हैँ और गुप-चुप ढंग से गरीबों में दाल-चावल से लेकर कम्बल बाँटने तक और....रक्तदान से लेकर नेत्रदान तक सभी तरह के समाजसेवी  कामों में बढ-चढ कर भाग लेते रहते हैँ
फकीर चन्द:ये आपसे किसने कहा?....
हँसते रहो:मेरी बीवी संजू ने...वो लॉयंस क्लब की एक्टिव मैम्बर है...उसी ने आपको कई बार रुबरू देखा है ऐसे प्रोग्रामों में"...
फकीर चन्द: ओह!….
हँसते रहो:आपका कभी मन नहीं हुआ कि आपको भी लाईम लाईट में चर्चा का विष्य बनना चाहिए?
फकीर चन्द:नहीं!....बिलकुल भी नहीं....अब अपने इन्हीं 'पासाराम बाबू' जी को ही लो...आ गए ना 'सी.बी.आई' के लपेटे में?...बड़ा शौक चर्रा रहा था ना उनको 'टी.वी' में आ के राम कथा करने-कराने का..अब भुक्तो"...
"लाख बार समझाया था कि ये मीडिया वाले किसी के सगे नहीं होते...इनकी लाईम लाईट में आना ठीक नहीं…अपना आराम से जो करना-कराना था चुपचाप करते रहते लेकिन नहीं!...हीरो बनना चाहते थे ना?"...
"क्या हुआ?…बहुत बन लिए ना हीरो?….अब पब्लिक जूते मार-मार के ज़ीरो ना बना दे तो कहना"....
खैर हमें क्या?...
"जैसे कर्म करेगा...वैसे फल देगा भगवान....ये है गीता का ज्ञान....ये है गीता का ज्ञान"..
हँसते रहो:जी!…
फकीर चन्द:हाँ!...तो पूछें आप...क्या पूछना है आपको?
हँसते रहो:हमें अपने विश्वसनीय सूत्रों के जरिये जानकारी मिली है कि आपने हर तरह के विरोधों को धता बताते हुए अपनी मर्ज़ी से रिटायर होने का मन बना लिया है और साथ ही साथ ये भी पता चला है कि आप देश छोड़ कर…विदेश में सैटल होने की योजना बना रहे हैँ।
फकीर चन्द:किस गधे ने आपसे ऐसा कह दिया?....रिटायर हों मेरे दुश्मन...अभी तो उम्र ही क्या है मेरी?....पूरे छप्पन साल तक मैँ और एक्टिव रहने वाला हूँ"...
हँसते रहो:अपने 'एम.डी.एच मसाले' वाले बाबा की तरह" Happy
फकीर चन्द:हा...हा...हा
हँसते रहो:आप कहना चाहते हैँ कि हमें जो खबर मिली है...वो सही नहीं बल्कि गलत है?
फकीर चन्द(चौंकते हुए):कौन सी खबर?...कैसी खबर?
हँसते रहो:यही कि आपने अभी हाल ही में अपनी स्पिनिंग मिल लाला जगत नारायण  के मंझले बेटे 'सीता नारायण' को 'नकद नारायण' याने के हार्ड कैश के बदले में बेच दी है।
फकीर चन्द:तो क्या उसे जैसे दो कौड़ी के मूंजीराम को उधार में बेच अपना ही डब्बा गुल कर लेता?...और वैसे भी आजकल ज़माना कहाँ है उधार में माल बेचने का?"...
हँसते रहो:जी!...आजकल लोग बातें तो बड़ी-बड़ी धन्ना सेठों जैसी करते हैँ लेकिन जब पैसे देने की बारी आती है तो वही पुराना बहाना....आज....कल-आज...कल"...
फकीर चन्द:तेरह उधार से तो नौ नकद ही बढिया हैँ भईय्या
हँसते रहो:और ये जो आपके फर्टिलाईज़र वाले कारखाने का सौदा चल रहा है...क्या वो भी आप 'नकद नारायण' के बदले ही करेंगे?
फकीर चन्द:ओह!...तो उसकी खबर भी आपको लग ही गई....सचमुच..काफी तेज़ हैँ आप.....
हँसते रहो:काफी नहीं....सबसे तेज़...
फकीर चन्द:हम्म!..
हँसते रहो:इसका मतलब हमारी जानकारी सही है?"
फकीर चन्द:नहीं!..पूरी तरह गलत नहीं है तो सोलह ऑने  सही भी नहीं है।
हँसते रहो:मतलब?
फकीर चन्द: ये सही है कि मैँ अपने तमाम काम-धन्धे बन्द कर पैसा इकट्ठा कर रहा हूँ लेकिन ये आरोप सरासर गलत है कि मैँ देश छोड़…विदेश में बसने की सोच रहा हूँ। दरअसल!...मैँ एक सच्चा देशभक्त हूँ और मुझे अपनी मातृभूमि से बेहद प्रेम और लगाव है...इस नाते देश छोड़ना तो मेरे लिए प्राण छोड़ने के बराबर है और वैसे भी इस देश में वेल्ले रहकर जो उन्नति और तरक्की की जा सकती है....वैसी किसी और देश में नहीं"
हँसते रहो:जी!…लेकिन फिर आप अपने सारे कारखाने...सारे शोरूम बेच क्यों रहे हैँ?
फकीर चन्द:पहली बात...कि मेरा माल है..मैँ जो चाहे करूँ...किसी को क्या मतलब?...
हँसते रहो:जी...
फकीर चन्द:और फिर बेचूँ नहीं तो और क्या…ऐसे ही बिना रस के इस सूखे भुट्टे को हाथ में लिए-लिए चूसता फिरूँ?...यहाँ कभी सेल्स टैक्स का पंगा तो कभी इनकम टैक्स का लोचा...कभी बिजली ना होने के कारण माल तैयार नहीं हो पाता  है तो कभी...लेबर हड़ताल कर सारी प्राडक्शन ठप्प करे पाती है….ऊपर से कभी एक्साईज़ वालों रिश्वत दो तो कभी लेबर इंस्पैक्टर का मुँह बन्द करो"
हँसते रहो:तो फिर आप ऐसी हेराफेरी करते ही क्यों हैँ कि किसी को रिश्वत दे उसका मुँह बन्द करना पड़े?"
फकीर चन्द:क्या आपको पता है कि आज की डेट में मूंग की दाल का भाव कितने रूपए किलो का है?
हँसते रहो: मैं कुछ समझा नहीं
फकीर चन्द: अरे!..आज की तारीख में कोई बन्दा अगर चाहे कि वो सिर्फ दाल-रोटी खा के ही गुज़ारा कर ले तो बिना बेईमानी के वो भी मुमकिन नहीं….
हँसते रहो:लेकिन क्या सिर्फ इस अदना सी…चसकोड़ी ज़बान के लिए अपने जमे-जमाए काम-धन्धों को बन्द कर सैंकड़ों लोगों को बेरोज़गार कर देना ठीक है?"
फकीर चन्द:अरे!...कल के बन्द होते आज बन्द हो जाएँ...मेरी बला से...मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...ना पहले कभी मुझे इस सब की परवाह थी और ना ही अब…मुझे लोगों की रोज़गारी या बेरोज़गारी से कोई लेना-देना नहीं है
हँसते रहो: लेकिन….
फकीर चन्द: कौन सा मेरे सगे वाले हैं जो मैँ परवाह करता फिरूँ?…और वैसे भी सगे वाले कौन सा सचमुच में सगे होने का फर्ज़ निभाते हैँ?… बाहर वालों पे किसी का बस नहीं चलता तो हर कोई अपने सगे वालों को ही लूटने-खसोटने में जुटा रहता है..
हँसते रहो:लेकिन फिर भी....
फकीर चन्द:अरे…यार!..समझा कर...और वैसे भी ये सब कौन से मेरे मेन बिज़नस थे?...साईड बिज़नस ही थे ना?"..
हँसते रहो:क्या मतलब?...आपका मेन बिज़नस कोई और है?...
फकीर चन्द:और नहीं तो क्या?...
हँसते रहो:तो फिर आपका मेन बिज़नस क्या है?"...
फकीर चन्द:चन्द:टॉप सीक्रेट
हँसते रहो:लेकिन फिर भी…क्या?…पता तो चले..
फकीर चन्द:नहीं!…बिलकुल नहीं…मेरे जीते जी तो बिलकुल नहीं
हँसते रहो:लेकिन पब्लिक को मालुम तो होना चाहिए ना कि उनका ऑईडल...उनका प्रेरणा स्रोत उन्नति के इस उच्च शिखर पे कैसे विराजमान हुआ?
फकीर चन्द:नहीं!...बिलकुल नहीं...इस टेप रेकार्डर के सामने तो बिलकुल नहीं...
हँसते रहो:ओ.के!...ओ.के...मैँ इसे ऑफ किए देता हूँ…ये लीजिए…ऑफ कर दिया मैंने इसे"....
फकीर चन्द:हम्म!...वैसे मेरी इच्छा तो नहीं हो रही है तुम्हें कुछ भी बताने की लेकिन आज दिन ही कुछ ऐसा है कि अपने लाख चाहने के बावजूद..मैं तुमसे कुछ नहीं छुपा सकता
हँसते रहो:जी!…टुडे इज फ्राईडे एण्ड…इट इज माय लकी डे …
फकीर चन्द: नहीं!…ये बात नहीं है…तुम्हारी जगह कोई और भी ऐरा-गैर…नत्थू-खैरा..आज मुझसे ये सवाल करता तो मैं उससे भी कुछ नहीं छुपाता…
हँसते रहो:ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं आज के दिन में?
फकीर चन्द:आज आंशिक चन्द्रग्रहण का दिन है और मेरे ज्योतिषी ने मुझसे कहा है कि...."आज के दिन अगर तू सच बोलेगा तो तेरा कल्याण होगा".....
हँसते रहो:ओह!…
फकीर चन्द:लेकिन ध्यान रहे कि ये सारी बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहनी चाहिए 
हँसते रहो:जी!..बिलकुल...आप चिंता ना करें
फकीर चन्द:तो सुनो...मेरा असली…याने के मेन काम है…बच्चों...औरतों और अपाहिजों से  मंदिरों..मस्जिदों तथा भीड़ भरे तीर्थ स्थानों पर भीख मंगवाना..
हँसते रहो:क्क्या?…क्या कह रहे हैं आप?..
फकीर चन्द:क्यों?...झटका लगा ना ज़ोर से?...
हँसते रहो:जी!...तो इसका मतलब आप भिखारियों की कमाई खाते हैँ?...
फकीर चन्द:बिलकुल...
हँसते रहो:आपको शर्म नहीं आती?..
फकीर चन्द:कैसी शर्म?....और किस बात की शर्म?..अपने जीवन यापन में कैसी शर्म?
हँसते रहो:लेकिन ये धन्धा तो अवैध की श्रेणी में आता है…इसलिए इसे दो नम्बर के कामों में गिना जाता है
फकीर चन्द:अरे!...तुम्हारे इन एक नम्बर के तथाकथित धन्धों में इतनी कमाई ही कहाँ है कि हम आराम से ऐश ओ आराम की ज़िन्दगी जी सकें?....
हँसते रहो:लेकिन…
फकीर चन्द:इससे पहले की सरकार अपनी  निराशावादी नीतियों के चलते हमें बेइज़्ज़त कर हमारे हाथ में कटोरा थमाए…..क्यों ना उससे पहले हम खुद ही शान से कटोरा उठा खुद भीख मांगना चालू कर दें?
हँसते रहो:मांगना चालू कर दें या मंगवाना?
फकीर चन्द:एक ही बात है...किसी से कोई काम करवाने से पहले खुद को वो काम करना आना चाहिए
हँसते रहो:तो क्या आप भी?.....
फकीर चन्द:बिलकुल!...ये देखो....
"अल्लाह के नाम पे दे दे बाबा...मौला के नाम पे दे दे बाबा….भगवान तेरा भली करेंगे बाबा"....
"दो दिन से इस अँधे लाचार ने कुछ नहीं खाया है बाबा…कुछ तो दे दे बाबा" ...
हँसते रहो:हा हा हा हा...बड़े ही छुपे रुस्तम निकले आप तो...
फकीर चन्द:थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट
हँसते रहो: लेकिन ये हालात के मारे बेचारे गरीब-गुरबा क्या खाक आपकी कमाई करवाते होंगे?...
फकीर चन्द:देखिए!...आप एक जिम्मेदार नागरिक हैँ और समाज के प्रति आपका भी कुछ कर्तव्य बनता है कि नहीं?
हँसते रहो:जी!...बिलकुल बनता है
फकीर चन्द:तो फिर बिना सोचे समझे ये  'गरीब-गुरबा' जैसे ओछे और छोटे इलज़ाम लगा कर आप भिखारियों को नाहक बदनाम ना करें...

हँसते रहो:जी!..
फकीर चन्द:क्या आप जानते हैँ कि एक भिखारी पूरे दिन में कितने रुपए कमाता है?...
हँसते रहो:जी नहीं...
फकीर चन्द:तरस आता है मुझे आपके भोलेपन और नासमझी पर....आज की तारीख में कोई टुच्चा-मुच्चा अनस्किल्ड भिखारी भी पाँच-सात सौ से ज़्यादा की दिहाड़ी बड़े आराम से बना लेता है और वो भी बिना किसी प्रकार का ओवरटाईम किए हुए
हँसते रहो:तो क्या टैलैंटिड भिखारी और ज़्यादा बना लेते हैँ?
फकीर चन्द:जी!…बिलकुल ...अगर आप में कोई एक्स्ट्रा हुनर...कोई अतिरिक्त कला है तो आप इससे कहीं ज़्यादा कमा सकते हैँ"...
हँसते रहो:जैसे?...
फकीर चन्द:जैसे अगर आपकी आवाज़ अच्छी है या आपका चेहरा भयानक है तो आप दूसरों से कहीं ज्यादा कम सकते हैं…
हँसते रहो:और अगर कोई किसी अंग से लाचार अथवा अपाहिज हो तो वो भी दूसरों से इस भिखमंगी की रेस में आगे निकल सकता है?
फकीर चन्द: बिलकुल
हँसते रहो:आवाज़ का सुरीला होना ज़रूरी होता है?..
फकीर चन्द:नहीं!...बिलकुल नहीं...लेकिन बस..आपकी आवाज़ सबसे अलग...सबसे जुदा होनी चाहिए...
हँसते रहो:बेशक!..वो निहायत ही भद्दी और कर्कश क्यों ना हो?
फकीर चन्द:जी!..
हँसते रहो:लेकिन कर्कश और बेसुरी आवाज़ वालो को भला कौन भीख देगा?
फकीर चन्द:अरे!...यही तो तुम्हें नहीं मालुम…कुछ लोग तरस खा के भीख देंगे तो कुछ तंग आ के
हँसते रहो:तंग आ के?
फकीर चन्द:जी!…हाँ…तंग आ के...कुछ लोग तो भिखारियों को सिर्फ इसलिए भीख दे देते हैँ कि उनको ज़्यादा देर तक उनकी कसैली आवाज़ ना सुननी पड़े
हँसते रहो:क्या एक सफल भिखारी बनने के लिए चेहरे का भयानक होना भी ज़रूरी है?
IndiaBegger
फकीर चन्द:नहीं!..ऐसी कोई कम्पलसेशन नहीं है हमारे बिज़नस में कि आपका चेहरा भयानक ही हो...
अगर आप उम्र में बच्चे हैँ तो आपका चेहरा मासूमियत भरा होना चाहिए और अगर आप एक फीमेल हैँ तो आपके गुरबत लिए चेहरे में एक हल्का सा सैक्सी लुक होना चाहिए..एक प्यारी सी कशिश होनी चाहिए..
हँसते रहो:ओह!…
फकीर चन्द: वैसे…ज़्यादातर हमने इस सब के लिए प्रोफैशनल मेकअप मैन रखे होते हैँ जो ज़रूरत के हिसाब से चेहरों पर कालिख वगैरा पोत उन्हें आवश्यक लुक देते रहते हैँ…
beggar123
हँसते रहो:ओह!…वैरी स्ट्रेंज…
फकीर चन्द:जी!…
हँसते रहो: अभी आपने कहा कि भिखारी का अपाहिज या लाचार होना भी एक्स्ट्रा क्वालीफिकेशन में आता है
फकीर चन्द:जी!...बिलकुल...अब आम आदमी तो उसी पे तरस खाएगा ना जो किसी ना किसी कारणवश लाचार होगा…किसी हट्टे-कट्टे और मुस्सटंडे पे तो आप भी अपनी कृपा दृष्टी नहीं डालेंगे
हँसते रहो:इसका मतलब जो जन्म से तन्दुरस्त है वो कभी भी सफल भिखारी नहीं बन सकता?
फकीर चन्द:ऐसा मैँने कब कहा?
हँसते रहो:तो फिर?...
फकीर चन्द:अरे भईय्या!...आज के माड्रन ज़माने में पईस्सा फैंको तो क्या नहीं हो सकता?...
हँसते रहो: क्या मतलब?
फकीर चन्द:हमने अपने पैनल में कुछ अच्छे टैक्नीकली क्वालीफाईड डाक्टरों को भी भर्ती किया हुआ है
हँसते रहो:वो किसलिए?
फकीर चन्द:अरे!..वोही तो हमारी डिमांड के हिसाब से नए उदीयमान भिखारियों के अंग-भंग करते हैँ....
हँसते रहो:ओह!....लेकिन इस सब में काफी खर्चा आता होगा ना?
फकीर चन्द:हाँ!...आता तो है लेकिन क्या करें?....मजबूरी जो ना कराए...अच्छा है....
हँसते रहो: हम्म!…
फकीर चन्द:लेकिन हम भी कौन सा अपने पल्ले से ये सब खर्चा करते हैँ?...
हँसते रहो:तो फिर?...
फकीर चन्द:फाईनैंस करा लेते हैँ
हँसते रहो:बैंक से?...
फकीर चन्द:नहीं!...रिज़र्व बैंक ने सभी बैंको पर इस तरह के अंग-भंग के लिए लोन देने पर आजकल पाबन्दी लगा रखी है
हँसते रहो:रहो:तो फिर?..
फकीर चन्द:कुछ एक है भले मानस...जो डाक्टरी के धन्धे के साथ-साथ ब्याज पे पैसा चढाने का काम भी करते हैँ...उन्हीं से करा लेते हैँ फाईनैंस...
हँसते रहो:लेकिन उनकी ब्याज दर तो कुछ ज़्यादा नहीं होती होगी?...
फकीर चन्द:होती है लेकिन औरों के लिए...सेठ फकीर चन्द की गुडविल ही ऐसी है कि कोई फाल्तू ब्याज मांगने की जुर्रत ही नहीं करता...
हँसते रहो:ओह!…
फकीर चन्द: बस!..इस सब के बदले हमें कई कागज़ातों पे अँगूठा टेक ऐग्रीमैंट करना पड़ता है उनके साथ....
हँसते रहो:ऐग्रीमैंट?...किस तरह का ऐग्रीमैंट?"
फकीर चन्द:यही कि हम अपने क्लाईंटों के हाथ...नाक...कान....पैर तथा उँगलियाँ वगैरा हमेशा उन्हीं से कटवाएंगे और जब तक समस्त कर्ज़ा सूद समेत चुका नहीं देंगे...तब तक किसी और महाजन या बैंक का मुँह तक नहीं ताकेंगे....
हँसते रहो:लेकिन क्या ये अँगूठा टिकाना ज़रूरी होता है?
फकीर चन्द:निहायत ही ज़रुरी होता है….धन्धे में तो वो अपने बाप पे भी यकीन नहीं करते हैँ…
हँसते रहो:ओह!…
फकीर चन्द:इसलिए सिग्नेचर के साथ-साथ अँगूठा टिकाना भी बहुत ज़रूरी होता है...
हँसते रहो:क्या इस धन्धे में इतनी कमाई होती है कि ब्याज वगैरा के खर्चे निकाल के भी काफी कुछ बच जाए?
फकीर चन्द:अरे!...कमाई तो इतनी है कि हमारी सात पुश्तों को भी इस धन्धे के अलावा कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं है लेकिन ये स्साले!...मॉफिया और पुलिस वाले ढंग से जीने दें तब ना....
हँसते रहो:ओह!….
फकीर चन्द:हमारी कमाई का एक मोटा हिस्सा तो इन्हीं को हफ्ता देने में चुक जाता है...
हँसते रहो:अगर इन्हें ना दें तो?
फकीर चन्द:ना दें तो शारीरिक तौर पे मरते हैँ और...दें तो आर्थिक तौर पे मरते हैँ
हँसते रहो:ओह!..आपकी सारी बातें सही हैँ लेकिन एक बात समझ नहीं आ रही कि आप इतने भिखारियों का जुगाड़ कैसे करते हैँ?
फकीर चन्द:अरे!..जैसे हर धन्धे में सप्लायर होते हैँ…ठीक वैसे ही हमारे इस धन्धे में भी सप्लायर होते हैँ जो समय-समय पर हमारी माँग के हिसाब से गली-मोहल्लों से अबोध व मासूम बच्चों का अपहरण कर उन्हें गायब करते रहते हैँ
हँसते रहो:अगर अबोध बच्चों का जुगाड़ नहीं हो पाए तो?
फकीर चन्द:तो थोड़े बड़े बच्चों को भी उठवा लिया जाता है और जेब तराशी से लेकर उठाईगिरी तक के धन्धे में लगा दिया जाता है।
pickpocketer
हँसते रहो:ओह!…इसका मतलब आपके धन्धे में ...हर तरह का मैटिरियल खप जाता है
फकीर चन्द:जी!...बिलकुल…चाहे वो दूध-पीता न्याणा हो या फिर हो अधेड़ उम्र का उम्रदराज़...सबके लिए कोई ना कोई काम निकल ही आता है
हँसते रहो:गुड!...लेकिन जिन्हें आप ऐसे गली-मोहल्लों से ज़बरदस्ती उठवा लेते हैँ...वो क्या आसानी से मान जाते होंगे आपके कहे अनुसार करने के लिए?
फकीर चन्द:नहीं ...लेकिन डण्डे के ज़ोर के आगे भला किसकी चली है...जो उनकी चलेगी?....
हँसते रहो:क्या मतलब?
फकीर चन्द:ऐसे अड़ियल टट्टओं को सबक सिखाने के लिए हम उनके हाथ-पैर तोड़ डालते हैँ और अगर फिर भी ना माने तो 'प्लास' या 'जमूर' की मदद से नाखुन तक नुचवा डालते हैँ...
हँसते रहो:ओह!...तो क्या सभी के साथ ऐसा बर्ताव?...
फकीर चन्द:नहीं!...इतने निर्दयी भी नहीं हैं आप कि सभी को एक ही फीते से नाप दें…
हँसते रहो: मैं कुछ समझा नहीं…
फकीर चन्द:ऐसा घनघोर अनर्थ तो हम बस चौधरी बन रहे ढेढ स्याणों के  साथ ही करते हैँ...बाकि सब तो डर के मारे अपने आप ही हमारी ज़बान बोलने लगते हैँ
हँसते रहो:ओ.के!…तो क्या सिर्फ बच्चों को ही इस काम में लगाया जाता है?
फकीर चन्द:नहीं!..डिमांड के हिसाब से कई बार नाबालिग लड़्कियों को भी बहला-फुसला कर छोटे शहर और कस्बों से लाया जाता है...किसी को शादी करने का लालच दे कर...तो किसी को अच्छी नौकरी लगवाने के नाम पर....और किसी-किसी छम्मक-छल्लो टाईप की लड़की को फिल्मों में हेरोईन बनाने का झाँसा दे कर भी अपने जाल में फँसाया जाता है
हँसते रहो:हम्म!...लेकिन इतनी लड़कियों का आप क्या करते हैँ?...क्या सब की सब भीख....
फकीर चन्द:नहीं!...इतने बेगैरत भी नहीं हम कि इन फूल सी नाज़ुक और कोमल कलियों से ये भीख माँगने जैसा ओछा और घिनौना काम करवाएँ....
female begger
हँसते रहो:तो?
फकीर चन्द:हमारी दिल से पूरी कोशिश होती है कि इन्हें कोई भी ऐसा काम ना दिया जाए जो इनके ज़मीर को गवारा ना हो
हँसते रहो:दैट्स नाईस..
फकीर चन्द:इसलिए…हर एक की काबिलियत और टैलेंट को अच्छी तरह भांपने के बाद ही उन्हें उसी तरह का काम सौंपा जाता है...जिस काम के वो लायक होती हैँ
हँसते रहो:जैसे?
फकीर चन्द:जैसे अगर कोई तेज़-तरार और फुर्तीली होती है तो उसे भीड़ भरे बाज़ारों में उठाईगिरी के लिए तथा बसों-ट्रेनों में जेब तराशी के लिए भेजा जाता है...
हँसते रहो:ओह!…
फकीर चन्द:अगर किसी में दूसरों को अपने रूपजाल से सम्मोहित करने की कला होती है तो उसे हाई सोसाईटी की कॉल गर्ल बना शहर के नामी क्लबों...गैस्ट हाउसों तथा बॉरों में अमीरज़ादों को रिझा…उनकी जेबें ढीली करने के वास्ते भेजा जाता है
हँसते रहो:लेकिन क्या आपकी ये कृपा दृष्टी सिर्फ और सिर्फ महिलाओं पर ही केन्द्रित रहती है…पुरुषों पर नहीं? ?
फकीर चन्द:नहीं!...बिलकुल नहीं...हमारी नज़र में लड़के-लड़कियाँ सब बराबर हैँ...यहाँ ना कोई छोटा है...और ना ही कोई बड़ा
हँसते रहो:लेकिन आपने सिर्फ लड़कियों के ही बारे में विस्तार से बताया...इसलिए कंफ्यूज़न सा क्रिएट होने लगा था...
फकीर चन्द:ये जो आप बड़ी-बड़ी रैड लाईटों पे हॉकरो की जाम लगाती भीड़ देखते हो ना?..उनमें ज़्यादातर लड़के ही होते हैँ
हँसते रहो:तो क्या ये भी आप ही के चेले-चपाटे होते हैँ?...
फकीर चन्द:बिलकुल!...ये तो तुम जानते ही होगे कि लड़के अच्छी सेल्समैनी कर लेते हैँ...इसलिए उन्हें चौक वगैरा पे माल बेचने में लगा दिया जाता है
हँसते रहो:लेकिन आप लड़कियों को भी किसी से कमतर ना आँके...इनमें भी कई ऐसी होती हैँ जो बात-बात में ही मरे हुए गधे को ज़िन्दा कह बेच डालें
फकीर चन्द:जी!...ये तो है
हँसते रहो:लेकिन इन हॉकरों से ये रुमाल...संतरे...मिनरल वाटर....खिलौने और टिशू पेपर वगैरा बिकवा के आपको मिलता ही क्या होगा कि आपकी झोली भी भर जाए और इनका पेट भी खाली ना रहे?
फकीर चन्द:अरे!..बुद्धू!..ये सब दिखावा तो वाहन चालक और सवारियों की धूप और गरमी से बेसुध हुई आँखों में धूल झोंकने के लिए होता है..
हँसते रहो:वो कैसे?
फकीर चन्द:इनकी ही मदद से कुछ ना कुछ उल्टा-सीधा शोर-शराबा कर के चालक समेत सभी का ध्यान बंटाया जाता है कि मौका लगते ही गाड़ी में से ब्रीफकेस...थैला...झोला या जो भी हाथ लगे गायब किया जा सके
हँसते रहो:गुड...लेकिन मैँने तो उन्हें कई बार आपस में ही लड़ते-भिड़ते और खूब गाली-गलौच करते देखा है
फकीर चन्द:हा...हा...हा...ये भी हमारे बिज़नस की एक उम्दा टैक्नीक है...
हँसते रहो: क्या मतलब?"...
फकीर चन्द:अरे यार!...हर किसी को दूसरे के फटे में टांग अड़ाने की आदत होती है कि नहीं?
हँसते रहो:जी!...होती तो है...
फकीर चन्द:बस!..हम लोगों की इस कॉमन ह्यूमन हैबिट का फायदा उठाते हैँ और सबका ध्यान भंग कर अपना काम बड़ी ही सफाई और नज़ाकत से कर जाते हैँ
हँसते रहो:ओह!…लेकिन आप चाहे कुछ भी कहें...मुझे इस काम का कोई स्टैंडर्ड...कोई भविष्य...कोई फ्यूचर नज़र नहीं आता
फकीर चन्द:क्या बात करते हो?…आज की डेट में भीख मांगना या मंगवाना कोई छोंटा-मोटा नहीं बल्कि एक वैल आर्गेनाईज़्ड...वैल प्लैंनड धन्धा है
हँसते रहो:वो कैसे?
फकीर चन्द:बकायदा शहर के नामी-गिरामी 'सी.ए' तथा 'एकाउंटैंट' तक खुद आ के हमारी 'बैलैंसशीट' और 'प्राफिट एण्ड लास एकाउंट'  मेनटेन करते हैँ
हँसते रहो:ओह!…
फकीर चन्द:आज देश का पढा-लिखा तबका भी खुशी-खुशी हमारी जमात में शामिल हो रहा है...
हँसते रहो:अच्छा?...
फकीर चन्द:बेशक!...उनके काम करने का तौर तरीका बाकि सब से जुदा है और होना भी चाहिए क्योंकि सब धन्धों की तरह इसमें कम्पीटीशन न हो तो बेहतर
हँसते रहो:तो ऐसे लोग क्या करते हैँ कि पब्लिक की सहानुभूति उन्हें मिले?
फकीर चन्द:ऐसे लोग एकदम वैल ड्रैस्ड...अप टू डेट बनकर बिलकुल अलग ही स्टाईल से मिनटों में आप जैसे लोगों को फुद्दू बना आपकी सहानुभूति हासिल कर...आपसे इस अन्दाज़ में पैसे ऐंठ लेते हैँ कि आपको इल्म ही नहीं होता
हँसते रहो:वो कैसे?...
फकीर चन्द:अरे!...उनके पास एक से एक नायाब बहाना तैयार रहता है गढने के लिए
हँसते रहो:जैसे?
फकीर चन्द:जैसे कभी वो रोनी सूरत बना बस अड्डे या रेलवे स्टेशन से सामान चोरी हो जाने के नाम पर आप से पैसे ऐंठ लेते हैँ....तो कभी जेब कट जाने के नाम पर...तो कभी रास्ता भटक अनजान शहर में पहुँच जाने के नाम पर
हँसते रहो:गुड
फकीर चन्द:हमारे होनहार प्यादों में से जो कुछ थोड़े-बहुत लड़ने-भिड़ने में अव्वल रहते हैँ उन्हें किसी लोकल गैंग या फिर अंतर्राजीय मॉफिया में प्रापर ट्रेनिंग लेने के लिए भेज दिया जाता है ताकि वो वहाँ से अव्वल नम्बरों से पास हो शार्प शूटर या नक्सली जैसी काबिले तारीफ  डिग्री हासिल कर के जब बाहर निकलें तो उन्हें उनके भविष्य को उज्वल बनाने में इससे मदद मिले
हँसते रहो:अरे!..वाह...इसका मतलब तो आप देश की नौजवान पीढी को रोज़गार मुहय्या करवाने में मदद कर रहे हैँ
फकीर चन्द:देश की क्या...हम से तो विदेशी भी अछूते नहीं हैँ...
हँसते रहो:मतलब?
फकीर चन्द:हम किसी से किसी भी किस्म का कोई भेदभाव नहीं करते इसलिए हमारी नज़र में सब बराबर होते हैं ...इसीलिए हम बिना किसी भी प्रकार के जातीय भेदभाव के  उन सभी कर्मठ स्वंयसेवकों की भर्ती बेधड़क हो के कर रहे हैँ...जो हम में शामिल हो अपने साथ-साथ ...अपने देश का नाम भी रौशन करना चाहते हों...भले ही वो बाँग्लादेश से हों...या फिर नेपाल से हों या फिर वो पाकिस्तान से भी हों तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं..... 
हँसते रहो:हैरत की बात है कि आपको पाकिस्तान के नाम से भी ऐतराज़ नहीं
फकीर चन्द:एक्चुअली!....सच कहूँ तो ये आपस में नफरत भरा प्रापोगैंडा तो सिर्फ दोनों देशों के नेताओं द्वारा अपनी-अपनी गद्दी को बचाने भर के लिए ही किया जाता है और फिर हमारी आस्था...हमारा विश्वास वृहद  भारत में है ना कि संकुचित भारत में
हँसते रहो: दैट्स नाईस
फकीर चन्द:मैँ तो चाहता हूँ कि भारत की हर गली...हर कूचे से ...हर मकान से ...हर आंगन में से कम से कम एक भिखारी निकले जो हमारे काम...हमारे धन्धे का नाम पूरे विश्व में रौशन करे
हँसते रहो:जी!…वैसे देखा जाए तो कौन भिखारी नहीं है आज के ज़माने में?
फकीर चन्द:मैं कुछ समझा नहीं
हँसते रहो:क्या भारत अमेरिका से यूरेनियम की भीख नहीं माँग रहा है?...या फिर अमेरिका पाकिस्तान से लादेन को सौंप देने की भीख नहीं मांग रहा है?
फकीर चन्द:बिलकुल!...जिसे देखो वही कोई ना कोई भीख मांग रहा है कोई आज़ाद कश्मीर की....तो कोई खालिस्तान की...कोई गोरखा लैंड की तो कोई पृथक झारखण्ड प्रदेश की...
हँसते रहो:हाँ!..सभी तो देश के टृकड़े-टुकड़े करने पे तुले हैँ
फकीर चन्द:फिलहाल तो सारा देश कामन वैल्थ गेम्ज़ में अपने खिलाड़ियों से मैडल लाने की भीख माँग रहा है
हँसते रहो:वैसे देखा जाए तो इस भीख माँगने के ट्रेनिग हमें बचपन से ही...अपने घर से ही मिलनी शुरू हो जाती है
फकीर चन्द:वो कैसे?
हँसते रहो:जब घर की औरतें अपने बच्चों को पड़ोसियों के घर कभी एक कटोरी चीनी....तो कभी लाल मिर्च...तो कभी आटा....तो कभी एक चम्मच मट्ठा माँगने के लिए भेजती हैँ तो ये भी तो एक तरह से भीख मांगना ही हुआ ना?
फकीर चन्द:अरे!…यार…बड़ी ऊँची सोच है तुम्हारी तो...
हँसते रहो: थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट
फकीर चन्द: मेरा तो कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं गया...अब से मैँ अपने हर लैक्चर...हर मीटिंग में इस बात का ज़रूर जिक्र किया करूँगा
"ट्रिंग...ट्रिंग"....

फकीर चन्द:हैलो....
"हाँ जी!...बोल रहा हूँ...बस…यही कोई दस मिनट में पहुँच जाऊँगा
फकीर चन्द:ऐसा है कि अब ये साक्षातकार-वाक्षातकार वगैरा यहीं खत्म करते हैँ...कोई ज़रुरी काम आन पड़ा है
हँसते रहो: जी!…
फकीर चन्द:अच्छा तो हम चलते हैँ.....
हँसते रहो:फिर कब मिलोगे?....
फकीर चन्द:ये इंटरवियू छपने के बाद...
हँसते रहो:ज़रूर...
फकीर चन्द:बाय...
हँसते रहो:ब्बाय...
“हाँ!… फकीर चन्द जी…हम ज़रूर मिलेंगे इस साक्षातकार के छपने के बाद लेकिन आपके या मेरे दफ्तर में नहीं बल्कि जेल में…आप क्या सोचते थे कि मैँ घर से एक ही टेप रेकार्डर ले के निकला था?”…
“ये!...ये देखो...यहाँ अपनी इस अफ्लातूनी जैकेट के अन्दर मैँने एक मिनी वीडियो कैमरा और एक वॉयस रेकार्डर भी छुपाया हुआ है"...
"अब मुझे बेताबी से इंतज़ार रहेगा आप जैसे @#$%ं&* को जेल की सलाखों के पीछे देखने का"....
संजू:अरे!...क्या हुआ?..ये नींद में बड़बड़ाते हुए किसे जेल की सलाखों के पीछे करने की बात कर रहे हो?...
"उठो!...सुबह के आठ बज चुके हैँ...और याद है कि नहीं?...आज तुम्हें शहर जे जाने-माने समाजसेवी श्री फकीर चन्द जी का साक्षातकार लेने जाना है"...
राजीव:ओह!...
संजू:कपड़े पहनो और पहुँचो फटाफट...बड़ी मुश्किल से राज़ी हुए हैँ इंटरविय्यू के लिए....अपने ब्लॉग को चमकाने का अच्छा मौका हाथ लगा है तुम्हारे...इसे व्यर्थ में ही ना गँवा देना
राजीव:मालुम है बाबा
संजू:जानते तो हो ही कि अपने इलाके का सबसे बिगड़ैल शहज़ादा है…कहीं देर से आने की वजह से सनक गया तो साफ मना कर देना है उसने...
राजीव: हम्म!…
संजू: कहीं अपने ढीलेपन की वजह से इस सुनहरे मौके को गवां ना देना…
राजीव:बस!...निकल रहा हूँ...ज़रा ये कैमरा और वॉयस रेकार्डर अपनी जैकेट के अन्दर छुपा लूँ…
संजू:सुनो!…मैँने तो आपकी नई पोस्ट की पंच लाईन भी तैयार कर ली है
राजीव:क्या?
"खबरों में से खबर सुनो.....खबर सुनो  तुम बिलकुल सच्ची
'फकीर चन्द' पकड़ा गया
नाचो गाओ खुशी मनाओ...खाओ फलूदा और पिओ लस्सी"
हा....हा....हा....हा
***राजीव तनेजा***