शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

ग्रन्थ दो तरह के होते हँ धार्मिक ग्रन्थ और एक सामजिक ग्रन्थ

ग्रन्थ दो तरह के होते हँ
एक धार्मिक ग्रन्थ और एक सामजिक ग्रन्थ
धार्मिक ग्रन्थ वे होते हँ जिनमे आत्मा, परमात्मा, माया आदि का प्रधानता से वर्णन हँ , वेद , उपनिषद, वेदांत सूत्र , महाभारत, रामायण, पुराण आदि वैदिक ग्रन्थ धार्मिक ग्रन्थ हँ
ये धार्मिक ग्रन्थ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए परम कल्याणकारी हँ
इन धार्मिक ग्रंथो को हर हिन्दू मानता हँ और मानना चाहिए
लेकिन एक सामाजिक ग्रन्थ भी होते हँ जो समय समय पर कुछ लोगो द्वारा लिखे जाते हँ जिन्हें लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं हँ की उन्हें हिन्दू लोग माने ही क्योकि कोई व्यक्ति उस समय के हिसाब से अगर अपनी स्मृतियों या मनोभावों के आधार पर कुछ लिखता हँ तो समय बदलने पर उसके विचार भी अप्रासंगिक हो जाते हँ
ऐसा ही एक ग्रन्थ '' मनुस्मृति '' हँ
जैसा की नाम से ही स्पष्ट हँ ये ग्रन्थ एक मनु नाम में राजा का अपनी स्मृतियों के आधार पर लिखा हुआ ग्रन्थ हँ

मनुस्मृति नाम के एक ग्रन्थ में शुद्रो को हमेशा के लिए ही शुद्र (नौकर ) ही बनाये रखने के तरीके बताये गए हँ जिन पर कठोरता से अमल करने की भी बात कही गयी हँ
अवश्य ही मनुस्मृति में कुछ बहुत अच्छी नीति की बाते भी बताई गयी हँ लेकिन सिर्फ जानकार व्यक्ति ही मनुस्मृति में से सामाजिक नीति की अच्छी बातो को पहचान सकता हँ
लेकिन ये काम कोई जानकार व्यक्ति ही कर सकता हँ , साधारण जन समुदाय नहीं
सवामी दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रन्थ '' सत्यार्थ प्रकाश '' में मनुस्मृति से काफी उद्धरण दिए हँ लेकिन, वही पर उन्होंने उसी ग्रन्थ में ये भी साफ़ कर दिया हँ की मनुस्मृति के '' प्रक्षिप्त श्लोको '' से बचना चाहिए
लेकिन सवाल ये हँ की कितने लोग इन प्रक्षिप्त श्लोको की पहचान कर सकते हँ ?
इसलिए जानकार लोग मनुस्मृति को ऐसा ही मानते हँ जैसे विष मिला हुआ अन्न , उसे छोड़ देना ही अच्छा हँ ,
जब हमारे पास वैदिक साहित्य का विपुल भण्डार हँ तो हमे किसी सांसारिक व्यक्ति की स्मृतियों से क्या मतलब होना चाहिए ?
और अगर सामिजिक नियम कायदे कानून के लिए हमे किसी संसारी व्यक्ति के विचारों को ही तवज्जो देनी हँ तो हमे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा लिखित ''' शंकर स्मृति '' को पढना चाहिए
अक्सर लोग मनुस्मृति को धार्मिक ग्रन्थ मानकर इसकी बहुत चर्चा किया करते हँ जो की पूरी तरह से गलत धारणा हँ
दरअसल हिन्दू धर्म के सिद्धांतो से अनभिज्ञ वे लोग जो हिन्दू धर्म को पसंद नहीं करते और हिन्दू धर्म में दोष निकालना चाहते हँ वे लोग इस मनुस्मृति को धार्मिक ग्रन्थ साबित करने की कोशिश किया करते हँ
लेकिन धर्म उनके कहे अनुसार या उनकी इच्छा से नहीं चल सकता
जब बात मनुस्मृति की करते हँ तो वो पूरी तरह से एक एक सामाजिक ग्रन्थ हँ , धार्मिक नहीं, उसका किसी धार्मिक साधना से से कोई लेना देना नहीं हँ
वो मनु नाम के एक राजा ने अपनी स्मृति के आधार पर लिखा हँ, उसमे भगवान् से जुडी हुई कोई बात नहीं हँ
मनुस्मृति पूरी तरह से एक सामजिक ग्रन्थ हँ , जिसे उसे मानना हो वो उसे माने, जिसे न मानना हो वो न माने , धर्म का मामला पूरी तरह से अलग हँ और धर्म सम्बन्धी धार्मिक ग्रन्थ बिलकुल अलग विषय हँ
उस सामाजिक ग्रन्थ को तो अधिकाँश हिन्दू ही नहीं मानते , न तो पहले मानते थे और न ही आज मानते हँ
इस मनुस्मृति को प्रसिद्द करने का श्री डॉक्टर आंबेडकर को जाता हँ जिन्होंने हिन्दू धर्म की धार्मिकता का मतलब इस मनुस्मृति को ही समझा
उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू धर्म के खिलाफ जितनी स्पीच दी उसमे उन्होंने हिन्दू धर्म की बुराइया गिनवाते हुए 90 % इस मनुस्मृति का ही जिक्र किया हँ क्योकि वे धार्मिक ग्रंथो के न तो जानकार ही थे और न ही उन्हें समझ सकते थे
ब्रह्मज्ञान क्या हँ ? आत्मा क्या हँ ? आत्मा परमात्मा विवेक, साधना क्या होती हँ ? क्यों होती हँ ? कितने प्रकार की होती हँ ? सर्वश्रेस्थ साधना क्या हँ और क्यों हँ ? अद्वेतवाद क्या हँ ? द्वेत्वाद क्या हँ ? कर्मयोग क्या हँ , ज्ञानयोग क्या हँ , भक्तियोग क्या हँ ? इन बातो को आंबेडकर कदापि नहीं समझ सकते थे इसलिए वे अपनी अज्ञानता , अपनी कमजोरी को छिपाते हुए सिर्फ मनुस्मृति जैसे सामाजिक ग्रन्थ को ही धार्मिक जानकर इसे ही हिन्दू धर्म का अभिप्राय समझकर बाकी दलितों को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काया करते थे
आंबेडकर को हिन्दू धर्म से कितनी चिढ थी और वे किस हद तक इस धर्म को नीचा दिखाना चाहते थे ये उनके वांग्मय को पढ़कर आसानी से जाना जा सकता हँ
आंबेडकर वांग्मय के खंड - 6 में उन्होंने कहा हँ की '' इस परम पवित्र मनुस्मृति को हिन्दू धर्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानना चाहिए ''
अब ध्यान दीजिये , आंबेडकर क्यों चाहते हँ की मनुस्मृति को हिन्दू धर्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानना चाहिए ?? ???????????????
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और उन्हें ऐसा क्यों लगा की वे या और भी कोई हिन्दू धर्म को अपने हिसाब से चला सकते हँ ?
क्या इन बातो का कोई जवाब हँ ?
यहाँ पर एक बात ध्यान देने की और भी हँ की बाबा साहब ने मनुस्मृति भी वो पढ़ी थी जो किसी और ने हिंदी में ने ट्रांसलेट की हुई थी , क्योकि उन्हें तो साधारण संस्कृत भी नहीं आती थी फिर वैदिक संस्कृत की बात तो कौन कहे
कोई हेरानी नहीं हँ की आज भी बाबा साहब के अनुयायी मनुवादी शब्द का जिक्र बार बार किया करते हँ , लेकिन मनुवादी लोग कौन हँ ? देश में कहा रहते हँ ? और ये राजा मनु ही कौन था ? और जितनी जानकारी आपको मनुस्मृति की हँ , क्या उसकी एक चौथाई भी आपको ब्रह्मज्ञान सम्बन्धी कोई जानकारी हँ ?(सिर्फ जानकारी ही , क्योकि आंबेडकर या उनके अनुयायियों से कोई भी ये उम्मीद नहीं कर सकता की वे लोग भगवत प्राप्ति की साधना कर सकते हँ , वे लोग साधना करने की बजाय कुतर्क करने में अपना समय बर्बाद करना ज्यादा पसंद करते हँ )
इन बातो का कोई जवाब शायद ही उनके पास हो

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