शनिवार, 6 अप्रैल 2013

!! रिश्ते दोस्ती के !!

हमारे जीवन में कुछ रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं। मित्रता ऐसा ही रिश्ता है। कहते हैं मित्र बनाए नहीं जाते, अर्जित किए जाते हैं। ये रिश्ता हमारी पूंजी भी है, सहारा भी। आजकल दोस्ती के मायने बदल गए हैं तो इस रिश्ते की गहराई भी कम हो गई है। इस संसार में हम अपनी मर्जी से जो सबसे पहला रिश्ता बनाते हैं, वो मित्रता का रिश्ता होता है। शेष सारे रिश्ते हमें जन्म के साथ ही मिलते हैं। मित्र हम खुद अपनी इच्छा से चुनते हैं। जो रिश्ता हम अपनी पसंद से बनाते हैं, उसे निभाने में भी उतनी ही निष्ठा और समर्पण रखना होता है।
रिश्ते बनाये नहीं अर्जित किये जाते है ..
आधुनिक युग में दोस्ती भी टाइम पीरियड का मामला हो गया है। स्कूली जीवन के दोस्त अलग, कॉलेज के अलग और व्यवसायिक जीवन के अलग। आजकल कोई भी दोस्ती लंबी नहीं चलती। जीवन के हर मुकाम पर कुछ पुराने दोस्त छूट जाते हैं, कुछ नए बन जाते हैं। दोस्ती जीवनभर की होनी चाहिए। हमारे पुराणों में कई किस्से मित्रता के हैं। कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, कर्ण-दुर्योधन ऐसे कई पात्र हैं जिनकी दोस्ती की कहानियां आज भी प्रेरणादायी हैं। मित्रता भरोसे और निष्ठा इन दो स्तंभों पर टिकी होती है।
कोई भी स्तंभ अपनी जगह से हिलता है तो मित्रता सबसे पहले धराशायी होती है। हमेशा याद रखें मित्रता में एक बात को कभी बीच में ना आने दें। ये चीज है मैं। इस रिश्ते में जैसे ही मैं की भावना घर करती है, रिश्ते में दुराव शुरू हो जाता है। निज की भावना से मित्रता में जितना बचा जाए, रिश्ता उतना ही दूर तक चलता है। जो भी हो उसमें हमारे की भावना हो। मित्रता में जैसे स्वार्थ आता है, हमें उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
कृष्ण-सुदामा की मित्रता में चलते हैं। दोनों एक-दूसरे के प्राण हैं। गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा पा रहे हैं। एक दिन गुरु मां ने लकड़ी लाने दोनों को जंगल भेजा। सुदामा को थोड़े चने दिए, रास्ते में खाने के लिए। कहा दोनों मिल बांटकर खा लेना। जंगल पहुंचे तो बारिश शुरू हो गई। एक पेड़ पर दोनों चढ़ गए। सुदामा ने भूख के कारण चुपके से कृष्ण के हिस्से के भी चने खा लिए। नतीजा भुगता, मित्र से बिछोह और भयंकर गरीबी।
मित्रता में कभी स्वार्थ नहीं आना चाहिए। हर हाल में अपने रिश्ते की मर्यादा का पालन करें। ये रिश्ता ईश्वर का वरदान होता है, इसमें धोखा, ईश्वर से धोखा होता है।

दुनिया में खून के रिश्ते तो होते ही हैं और बिना खून के भी रिश्ते होते है । मतलब के रिश्ते भी होते हैं.। काम में आने वालों के साथ रिश्ता बनाया जाता है, तभी दुनिया का व्यापार चलता है। मगर इन रिश्तों में स्वार्थ, वासना, लोभ, लालच की बू बैठ जाती है, जो मन को अपनेपन का सुकून देने से रोकती है।

इसीलिए कभी-कभी ऐसे रिश्ते भी बनते हैं जिनका संबंध न खून से होता है, न दुनियादारी से.। ये रिश्ते मुंहबोले हों या अनकहे इनमें अलग ही सौंधापन होता है। ये मन ही नहीं, आत्मा को भी तृप्त करने की ताकत रखते हैं। बशर्ते कालांतर में इनमें भी वासना और स्वार्थ की बू न आ घुसे।और आप सभे भी उस रिस्तो को महत्व दे जहा पर स्वार्थ नहीं हो सिर्फ प्रेम हो प्रेम के रिश्ते टिकाऊ होते है स्वार्थ के रिश्ते तभी तक जब तक स्वार्थ है .आप कौन सा रिश्ता रखना चाहते है आपके ऊपर निर्भर करता है ।



रिश्ते तो ये भी है जो चित्र में दिखाई दे रहा है

!! वात्स्यायन के कामसूत्र का हिन्दी अनुवाद !!


वात्स्यायन के कामसूत्र में कुल सात भाग हैं। प्रत्येक भाग कई अध्यायों में बँटे हैं। प्रत्येक अध्याय में कई श्लोक हैं। मित्रो की सुविधा के लिए उसका हिन्दी अनुवाद दिया गया है !

अध्याय 1 शास्त्रसंग्रहः

श्लोक (1)- धर्मार्थकामेभ्यो नमः।।

अर्थ- मै धर्म, अर्थ और काम को नमस्कार करने के बाद में इस ग्रंथ की शुरुआत करता हूं।

भारतीय सभ्यता, संस्कृति और साहित्य का यह बहुत पुराना चलन रहा है कि ग्रंथ की शुरुआत, बीच और अंत में मंगलाचरण किया जाता है। इसके बाद आचार्य वात्सायन ने ग्रंथ की शुरुआत करते हुए अर्थ, धर्म और काम की वंदना की है। दिए गए पहले सूत्र में किसी देवी या देवता की वंदना मंगलाचरण द्वारा न करके, ग्रंथ में प्रतिपाद्य विषय- धर्म, अर्थ और काम की वंदना को महत्व दिया है। इसको साफ करते हुए आचार्य वात्साययन नें खुद कहा है कि काम, धर्म और अर्थ तीनों ही विषय अलग-अलग है फिर भी आपस में जुड़े हुए है। भगवान शिव सारे तत्वों को जानने वाले हैं। वह प्रणाम करने योग्य है। उनको प्रणाम करके ही मंगलाचरण की श्रेष्ठता पाई जा सकती है।

जिस प्रकार से चार वर्ण (जाति) ब्राह्मण, शुद्र, क्षत्रिय और वेश्य होते हैं उसी प्रकार से चार आश्रम भी होते हैं- धर्म, अर्थ, मोक्ष और काम। धर्म सबके लिए इसलिए जरूरी होता है क्योंकि इसके बगैर मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। अर्थ इसलिए जरूरी होता है क्योंकि अर्थोपार्जन के बिना जीवन नहीं चल सकता है। दूसरे जीव प्रकृति पर निर्भर रहकर प्राकृतिक रूप से अपना जीवन चला सकते हैं लेकिन मनुष्य ऐसा नहीं कर सकता है क्योंकि वह दूसरे जीवों से बुद्धिमान होता है। वह सामाजिक प्राणी है और समाज के नियमों में बंधकर चलता है और चलना पसंद करता है। समाज के नियम है कि मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है तो सामाजिक, धार्मिक नियमों में बंधा होना जरूरी समझता है और जब वह सामाजिक-धार्मिक नियमों में बंधा होता है तो उसे काम-विषयक ज्ञान को भी नियमबद्ध रूप से अपनाना जरूरी हो जाता है। यही कारण है कि मनुष्य किसी खास मौसम में ही संभोग का सुख नहीं भोगता बल्कि हर दिन वह इस क्रिया का आनंद उठाना चाहता है।

इसी ध्येय को सामने रखते हुए आचार्य वात्स्यायन ने काम के सूत्रों की रचना की है। इन सूत्रों में काम के नियम बताए गए है। इन नियमों का पालन करके मनुष्य संभोग सुख को और भी ज्यादा लंबे समय तक चलने वाला और आनंदमय बना सकता है।

आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र की शुरुआत करते हुए पहले ही सूत्र में धर्म को महत्व दिया है तथा धर्म, अर्थ और काम को नमस्कार किया है।

आचार्य वात्स्यायन ने काम के इस शास्त्र में मुख्य रूप से धर्म, अर्थ और काम को महत्व दिया है और इन्हे नमस्कार किया है। भारतीय सभ्यता की आधारशिला 4 वर्ग होते हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य की सारी इच्छाएं इन्ही चारों के अंदर मौजूद होती है। मनुष्य के शरीर में जरूरतों को चाहने वाले जो अंग हो यह चारों पदार्थ उनकी पूर्ति किया करते हैं।

इसके अंतर्गत शरीर, बुद्धि, मन और आत्मा यह 4 अंग सारी जरूरतों और इच्छाओं के चाहने वाले होते हैं। इनकी पूर्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष द्वारा होती है। शरीर के विकास और पोषण के लिए अर्थ की जरूरत होती है। शरीर के पोषण के बाद उसका झुकाव संभोग की ओर होता है। बुद्धि के लिए धर्म ज्ञान देता है। अच्छाई और बुराई का ज्ञान देने के साथ-साथ उसे सही रास्ता देता है। सदमार्ग से आत्मा को शांति मिलती है। आत्मा की शांति से मनुष्य मोक्ष के रास्ते की ओर बढ़ने का प्रयास करता है। यह नियम हर काल में एक ही जैसे रहे हैं और ऐसे ही रहेंगें। आदि मानव के युग में भी शरीर के लिए अर्थ का महत्व था। जंगलों में रहने वाले कंद-मूल और फल-फूल के रूप में भोजन और शिकार की जरूरत पड़ती थी। संयुक्त परिवार कबीले के रूप में होने के कारण उनकी संभोग संबंधित विषय की पूर्ति बहुत ही आसानी से हो जाती थी। मृत्यु के बाद शरीर को जलाया या दफनाया इसीलिए जाता था ताकि मरे हुए मनुष्य को मुक्ति मिल सके। इस प्रकार अगर भोजन न किया जाए तो शरीर बेजान सा हो जाता है। काम (संभोग) के बिना मन कुंठित सा हो जाता है। अगर मन में कुंठा होती है तो वह धर्म पर असर डालती है और कुंठित मन मोक्ष के द्वार नहीं खोल सकता। इस प्रकार से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं। बिना धर्म के बुद्धि खराब हो जाती है और बिना मोक्ष की इच्छा किए मनुष्य पतन के रास्ते पर चल पड़ता है।

बुद्धि के ज्ञान के कारण समवाय संबंध बना रहता है। जैसे ही ज्ञान की बढ़ोतरी होती है वैसे ही बुद्धि का विकास भी होता जाता है। अगर देखा जाए तो बुद्धि और ज्ञान एक ही पदार्थ के दो हिस्से हैं।

जिस तरह से बुद्धि और ज्ञान एक ही है उसी तरह धर्म और ज्ञान भी एक ही पदार्थ के दो भाग है क्योंकि ज्ञान के बढ़ने से धर्म की बढ़ोतरी होती है। धर्म के ज्ञान में जितना भाग मिलता है तथा ज्ञान के अंतर्गत धर्म का जितना भाग पाया जाता है उसी के मुताबिक बुद्धि में स्थिरता पैदा होती है।

बुद्धि का संबंध जिस तरह से धर्म से है उसी तरह शरीर का अर्थ से संबंध है, मन का काम से संबंध है और आत्मा का मोक्ष का संबंध है। इन्ही अर्थ, धर्म, काम में मनुष्य के जीवन, रति, मान, ज्ञान, न्याय, स्वर्ग आदि की सारी इच्छाएं मौजूद रहती है। अर्थ यह है कि जीवन की इच्छा अर्थ में स्त्री, पुत्र आदि की, काम में यश, ज्ञान तथा न्याय की, धर्म और परलोक की इच्छा मोक्ष में समा जाती है।
इस प्रकार चारो पदार्थ एक-दूसरे के बिना बिना अधूरे से रह जाते हैं क्योंकि अर्थ- भोजन, कपड़ों के बगैर शरीर की कोई स्थिति नहीं हो सकती तथा न संभोग के बगैर शरीर ही पैदा हो सकता है। शरीर के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता तथा मोक्ष की प्राप्ति के बगैर अर्थ और काम को सहयोग तथा मदद नहीं प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार से मोक्ष की दिल में सच्ची इच्छा रखकर ही काम और अर्थ का उपयोग करना चाहिए।

अगर कोई व्यक्ति मोक्ष की सच्ची इच्छा रखकर ही काम और अर्थ का उपयोग करता है तो वह व्यक्ति लालची और कामी माना जाता है। ऐसे व्यक्ति देश और समाज के दुश्मन होते हैं।

सिर्फ धर्म के द्वारा ही प्राप्त किए गए अर्थ और काम ही मोक्ष के सहायक माने जाते हैं। यह धर्म के विरुद्ध नहीं है। आर्य सभ्यता के मुताबिक धर्मपूर्वक अर्थ और काम को ग्रहण करके मोक्ष की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

आचार्य़ वात्स्यायन इस प्रकार कामसूत्र को शुरू करते हुए धर्म, अर्थ और काम की वंदना करते हैं। आचार्य वात्स्यायन का कामसूत्र वासनाओं को भड़काने के लिए नहीं है बल्कि जो लोग काम और मोक्ष को सहायक मानते है तथा धर्म के अनुसार स्त्री का उपभोग करते हैं, उन्ही के लिए है। नीचे दिए गए सूत्र द्वारा आचार्य वात्स्यायन में यही बताने की कोशिश की है।

इसी वजह से धर्म,अर्थ और काम के मूलतत्व का बोध करने वाले आचार्यों को प्रणामकरताहूं।वह नमस्कार करने के काबिल है क्योंकि उन्होने अपने समय के देशकाल को ध्यान में रखते हुए धर्म, अर्थ और कामतत्व की व्याख्या कीहै।

पुराने समय के आचार्यों नें सिद्धांत और व्यवहार रूप में यह साबित करके बताया है कि काम को मर्यादित करके उसको अर्थ और मोक्ष के मुताबिक बनाना सिर्फ धर्म के अधीन है। न रुकने वाले काम (उत्तेजना) को काबू में करके तथा मर्यादा में रहकर मोक्ष, अर्थ और काम के बीच सामंजस्य धर्म ही स्थापित कर सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि धर्म के मुताबिक जीवन बिताकर मनुष्य लोक और परलोक दोनों ही बना सकता है। वैशैषिक दर्शन में यतोऽभ्यू दयानिः श्रेयससिद्धि स धर्मः कहकर यह साफ कर दिया है कि धर्म वही होता है जिससे अर्थ, काम संबंधी इस संसार के सुख और मोक्ष संबंधी परलौकिक सुख की सिद्धि होती है। यहां अर्थ और काम से इतना ही मतलब है जितने से शरीर यात्रा और मन की संतुष्टि का गुजारा हो सके और अर्थ तथा काम में डूबे होने का भाव पैदा न हो।

इसी का समर्थन करते हुए मनु कहते हैं जो व्यक्ति अर्थ और काम में डूबा हुआ नहीं है उन्ही लोगों के लिए धर्मज्ञान कहा गया है तथा इस धर्मज्ञान की जिज्ञासा रखने वालों के लिए वेद ही मार्गदर्शक है।

इस बात से साबित होता है कि वैशेषिक दर्शन के मत से अभ्युदय का अर्थ लोकनिर्वाह मात्र ही वेद अनुकूल धर्म होता है।

धर्म की मीमांसा करते हुए मीमांसा दर्शन नें कहा है कि वेद की आज्ञा ही धर्म है। वेद की शिक्षा ही हिन्दू सभ्यता की बुनियाद मानी जाती है। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि संसार से इतना ही अर्थ और काम लिया जाए जिससे मोक्ष को सहायता मिल सके। इसी धर्म के लिए महाभारत के रचनाकार ने बड़े मार्मिक शब्दों में बताया है कि मैं अपने दोनों हाथों को उठाकर और चिल्ला-चिल्लाकर कहता हूं कि अर्थ और काम को धर्म के अनुसार ही ग्रहण करने में भलाई है। लेकिन इस बात को कोई नहीं मानता है।

वस्तुतः धर्म एक ऐसा नियम है जो लोक और परलोक के बीच में निकटता स्थापित करता है। जिसके जरिये से अर्थ, काम और मोक्ष सरलता से प्राप्त हो जाते हैं। पुराने आचार्य़ों द्वारा बताया गया यही धर्म के तत्व का बोध माना गया है।

धर्म की तरह अर्थ भी भारतीय सभ्यता का मूल है। मनुष्य जब तक अर्थमुक्त नहीं हो जाता तब तक उसको मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। जिस तरह आत्मा के लिए मोक्ष जरूरी होता है, मन के लिए काम की जरूरत होती है, बुद्धि के लिए धर्म की जरूरत होती है, उसी तरह शरीर के लिए अर्थ की जरूरत होती है।

इसलिए भारतीय विचारकों ने बहुत ही सावधानी से विवेचन किया है। मनु के मतानुसार सभी पवित्रताओं में अर्थ की पवित्रता को सबसे अच्छा माना गया है। मनु ने अर्थ संग्रह के लिए कहा है कि जिस व्यापार में जीवों को बिल्कुल भी दुख न पहुंचे या थोड़ा सा दुख पहुंचे उसी कार्य व्यापार से गुजारा करना चाहिए।

अपने शरीर को किसी तरह की परेशानी पहुंचाए बिना ध्यान-मनन उपायों द्वारा सिर्फ गुजारे के लिए अर्थ संग्रह करना चाहिए। जो भी परमात्मा ने दिया है उसी में संतोष कर लेना चाहिए। इसी प्रकार पूरी जिंदगी काम करते रहने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा और कोई सा उपाय संभव नहीं है।
वेदों, उपनिषदों के अलावा आचार्यों ने अपने द्वारा रचियत शास्त्रों में अर्थ से संबंधी जो भी ज्ञान बोध कराए हैं उनका सारांश यही निकलता है कि मुमुक्षु को संसार से उतने ही भोग्य पदार्थों को लेना चाहिए जितने के लेने से किसी भी प्राणी को दुख न पहुंचे।

धर्म और अर्थ की तरह काम को भी हिंदू सभ्यता का आधार माना गया है। धर्म और अर्थ की तरह इसको भी मोक्ष का ही सहायक माना जाता है। अगर काम को काबू तथा मर्यादित न किया जाए तो अर्थ कभी मर्यादित नहीं हो सकता तथा बिना अर्थ मर्यादा के मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। इसी कारण से भारत के आचार्यों ने काम के बारे में बहुत ही गंभीरता से विचार किया है।

दुनिया के किसी भी ग्रंथ में आज तक अर्थशुद्धि के मूल आधार-काम-पर उतनी गंभीरता से नहीं सोचा गया है जितना कि भारतीय ग्रंथ में हुआ है।

भारतीय विचारकों नें काम और अर्थ को एक ही जानकर विचार किया है लेकिन भारतीय आचार्यों नें जिस तरह शरीर और मन को अलग रखकर विचार किया है उसी तरह शरीर से संबंधित अर्थ को और मन से संबंधित काम को एक-दूसरे से अलग मानकर विचार किया है।

!! कामसूत्र और विदेशी दुष्प्रचार !!

अक्सर मैंने कुछ लोगो विशेषत: मुसलमानों को ये कहते सुना है की सनातन धर्म में कामसूत्र एक कलंक है और वे बार बार कुछ पाखंडियो बाबाओ के साथ साथ कामसूत्र को लेकर सनातन धर्म पर तरह तरह के अनर्लग आरोप व् आक्षेप लगाते रहते है| चूँकि जब मैंने ऋषि वात्सयायन द्वारा रचित कामसूत्र का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ की कामसूत्र को लेकर जितना दुष्प्रचार हिन्दुओ ने किया है उतना तो मुसलमानों और अंग्रेजो ने भी नहीं किया | मुसलमान विद्वान व् अंग्रेज इस बात पर शोर मचाते रहते है की भारतीय संस्कृति में कामसूत्र के साथ साथ अश्लीलता भरी हुई है और ऐसे में वे खजुराहो और अलोरा अजन्ता की गुफाओं की मूर्तियों, चित्रकारियो का हवाला दे कर भारत संस्कृति के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार करते है|
      आज मैं आप सभी के समक्ष उन सभी तथ्यों को उजागर करूँगा जिसके अनुसार कामसूत्र अश्लील न होकर एक जीवन पद्दति पर आधारित है, ये भारतीय संस्कृति की उस महानता को दर्शाता है जिसने पति पत्नी को कई जन्मो तक एक ही बंधन में बाँधा जाता है और नारी को उसके अधिकार के साथ धर्म-पत्नी का दर्जा मिलता है, भारतीय संस्कृति में काम को हेय की दृष्टि से न देख कर जीवन के अभिन्न अंग के रूप में देखा गया है, इसका अर्थ ये नहीं की हमारी संस्कृति अश्लील है, कामसूत्र में काम को इन्द्रियों द्वारा नियंत्रित करके भोगने का साधन दर्शाया गया है, वास्तव में ये केवल एक दुष्प्रचार है की कामसूत्र में अश्लीलता है और ये विचारधारा तब और अधिक फैली जब कामसूत्र फिल्म आई थी, जिसमे काम को एक वासना के रूप में दिखा कर न केवल ऋषि वात्सयायन का अपमान किया गया था अपितु ऋषि वात्स्यायन द्वारा रचित कामसूत्र के असली मापदंडो के भी प्रतिकूल है,  अब आगे लेख में आप पढेंगे की ऐसा क्या है कामसूत्र में ??


कौन थे महर्षि वात्‍स्‍यायन..?

महर्षि वात्स्यायन भारत के प्राचीनकालीन महान दार्शनिक थे. इनके काल के विषय में इतिहासकार एकमत नहीं हैं. अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है. कुछ स्‍थानों पर इनका जीवनकाल ईसा की पहली शताब्‍दी से पांचवीं शताब्‍दी के बीच उल्लिखित है. वे ‘कामसूत्र’ और ‘न्यायसूत्रभाष्य’ नामक कालजयी ग्रथों के रचयिता थे. महर्षि वात्स्यायन का जन्म बिहार राज्य में हुआ था. उन्‍होंने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, बल्कि कला, शिल्पकला और साहित्य को भी श्रेष्‍ठता प्रदान की है. कामसूत्र’ का अधिकांश भाग मनोविज्ञान से संबंधित है. यह जानकर अत्‍यंत आश्‍चर्य होता है कि आज से दो हजार वर्ष से भी पहले विचारकों को स्‍त्री और पुरुषों के मनोविज्ञान का इतना सूक्ष्‍म ज्ञान था. इस जटिल विषय पर वात्‍स्‍यायन रचित ‘कामसूत्र’ बहुत ज्‍यादा प्रसिद्ध हुआ.
भारतीय संस्‍कृति में कभी भी ‘काम’ को हेय नहीं समझा गया. काम को ‘दुर्गुण’ या ‘दुर्भाव’ न मानकर इन्‍हें चतुर्वर्ग अर्थ, काम, मोक्ष, धर्म में स्‍थान दिया गया है. हमारे शास्‍त्रकारों ने जीवन के चार पुरुषार्थ बताए हैं- ‘धर्म’, ‘अर्थ’, ‘काम’ और ‘मोक्ष’. सरल शब्‍दों में कहें, तो धर्मानुकूल आचरण करना, जीवन-यापन के लिए उचित तरीके से धन कमाना, मर्यादित रीति से काम का आनंद उठाना और अंतत: जीवन के अनसुलझे गूढ़ प्रश्‍नों के हल की तलाश करना. वासना से बचते हुए आनंददायक तरीके से काम का आनंद उठाने के लिए कामसूत्र के उचित ज्ञान की आवश्‍यकता होती है. वात्‍स्‍यायन का कामसूत्र इस उद्देश्‍य की पूर्ति में एकदम साबित होता है. ‘काम सुख’ से लोग वंचित न रह जाएं और समाज में इसका ज्ञान ठीक तरीके से फैल सके, इस उद्देश्‍य से प्राचीन काल में कई ग्रंथ लिखे गए.

जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन बहुत ही आवश्‍यक है. ऋषि-मुनियों ने इसकी व्‍यवस्‍था बहुत ही सोच-विचारकर दी है. यानी ऐसा न हो कि कोई केवल धन कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और नीति-शास्‍त्रों को बिलकुल ही भूल जाए. या काम-क्रीड़ा में इतना ज्‍यादा डूब जाए कि उसे संसार को रचने वाले की सुध ही न रह जाए.
जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन बहुत ही आवश्‍यक है. ऋषि-मुनियों ने इसकी व्‍यवस्‍था बहुत ही सोच-विचारकर दी है. यानी ऐसा न हो कि कोई केवल धन कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और नीति-शास्‍त्रों को बिलकुल ही भूल जाए. या काम-क्रीड़ा में इतना ज्‍यादा डूब जाए कि उसे संसार को रचने वाले की सुध ही न रह जाए.
मनुष्‍य को बचपन और यौवनावस्‍था में विद्या ग्रहण करनी चाहिए. उसे यौवन में ही सांसारिक सुख और वृद्वावस्‍था में धर्म व मोक्ष प्राप्ति का प्रयत्‍न करना चाहिए. अवस्‍था को पूरी तरह से निर्धारित करना कठिन है, इसलिए मनुष्‍य ‘त्रिवर्ग’ का सेवन इच्‍छानुसार भी कर सकता है. पर जब तक वह विद्याध्‍ययन करे, तब तक उसे ब्रह्मचर्य रखना चाहिए यानी ‘काम’ से बचना चाहिए.
कान द्वारा अनुकूल शब्‍द, त्‍वचा द्वारा अनूकूल स्‍पर्श, आंख द्वारा अनुकूल रूप, नाक द्वारा अनुकूल गंध और जीभ द्वारा अनुकूल रस का ग्रहण किया जाना ‘काम’ है. कान आदि पांचों ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन और आत्‍मा का भी संयोग आवश्‍यक है.
स्‍पर्श विशेष के विषय में यह निश्चित है कि स्‍पर्श के द्वारा प्राप्‍त होने वाला विशेष आनंद ‘काम’ है. यही काम का प्रधान रूप है. कुछ आचार्यों का मत है कि कामभावना पशु-पक्षियों में भी स्‍वयं प्रवृत्त होती है और नित्‍य है, इसलिए काम की शिक्षा के लिए ग्रंथ की रचना व्‍यर्थ है. दूसरी ओर वात्‍स्‍यायन का मानना है कि चूंकि स्‍त्री-पुरुषों का जीवन पशु-पक्षियों से भिन्‍न है. इनके समागम में भी भिन्‍नता है, इसलिए मनुष्‍यों को शिक्षा के उपाय की आवश्‍यकता है. इसका ज्ञान कामसूत्र से ही संभव है. पशु-पक्षियों की मादाएं खुली और स्‍वतंत्र रहती हैं और वे ऋतुकाल में केवल स्‍वाभाविक प्रवृत्ति से समागम करती हैं. इनकी क्रियाएं बिना सोचे-विचारे होती हैं, इसलिए इन्‍हें किसी शिक्षा की आवश्‍यकता नहीं होती.
वात्‍स्‍यायन का मत है कि मनुष्‍य को काम का सेवन करना चाहिए, क्‍योंकि कामसुख मानव शरीर की रक्षा के लिए आहार के समान है. काम ही धर्म और अर्थ से उत्‍पन्‍न होने वाला फल है.  हां, इतना अवश्‍य है कि काम के दोषों को जानकर उनसे अलग रहना चाहिए| कुछ आचार्यों का मत है कि स्त्रियों को कामसूत्र की शिक्षा देना व्‍यर्थ है, क्‍योंकि उन्‍हें शास्‍त्र पढ़ने का अधिकार नहीं है. इसके विपरीत वात्‍स्‍यायन का मत है कि स्त्रियों को इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए, क्‍योंकि इस ज्ञान का प्रयोग स्त्रियों के बिना संभव नहीं है.
आचार्य घोटकमुख का मत है कि पुरुष को ऐसी युवती से विवाह करना चाहिए, जिसे पाकर वह स्‍वयं को धन्‍य मान सके तथा जिससे विवाह करने पर मित्रगण उसकी निंदा न कर सकें. वात्‍स्‍यायन लिखते हैं कि मनुष्‍य की आयु सौ वर्ष की है. उसे जीवन के विभिन्‍न भागों में धर्म, अर्थ और काम का सेवन करना चाहिए. ये ‘त्रिवर्ग’ परस्‍पर सं‍बंधित होना चाहिए और इनमें विरोध नहीं होना चाहिए.
कामशास्‍त्र पर वात्‍स्‍यायन के ‘कामसूत्र’ के अतिरिक्‍त ‘नागर सर्वस्‍व’, ‘पंचसायक’, ‘रतिकेलि कुतूहल’, ‘रतिमंजरी’, ‘रतिरहस्‍य’ आदि ग्रंथ भी अपने उद्देश्‍य में काफी सफल रहे.
वात्‍स्‍यायन रचित ‘कामसूत्र’ में अच्‍छे लक्षण वाले स्‍त्री-पुरुष, सोलह श्रृंगार, सौंदर्य बढ़ाने के उपाय, कामशक्ति में वृद्धि से संबंधित उपायों पर विस्‍तार से चर्चा की गई है.
इस ग्रंथ में स्‍त्री-पुरुष के ‘मिलन’ की शास्‍त्रोक्‍त रीतियां बताई गई हैं. किन-किन अवसरों पर संबंध बनाना अनुकूल रहता है और किन-किन मौकों पर निषिद्ध, इन बातों को पुस्‍तक में विस्‍तार से बताया गया है.
भारतीय विचारकों ने ‘काम’ को धार्मिक मान्‍यता प्रदान करते हुए विवाह को ‘धार्मिक संस्‍कार’ और पत्‍नी को ‘धर्मपत्‍नी’ स्‍वीकार किया है. प्राचीन साहित्‍य में कामशास्‍त्र पर बहुत-सी पुस्‍तकें उपलब्‍ध हैं. इनमें अनंगरंग, कंदर्प, चूड़ामणि, कुट्टिनीमत, नागर सर्वस्‍व, पंचसायक, रतिकेलि कुतूहल, रतिमंजरी, रहिरहस्‍य, रतिरत्‍न प्रदीपिका, स्‍मरदीपिका, श्रृंगारमंजरी आदि प्रमुख हैं.
पूर्ववर्ती आचार्यों के रूप में नंदी, औद्दालकि, श्‍वेतकेतु, बाभ्रव्‍य, दत्तक, चारायण, सुवर्णनाभ, घोटकमुख, गोनर्दीय, गोणिकापुत्र और कुचुमार का उल्‍लेख मिलता है. इस बात के पर्याप्‍त प्रमाण हैं कि कामशास्‍त्र पर विद्वानों, विचारकों और ऋषियों का ध्‍यान बहुत पहले से ही जा चुका था.

वात्‍स्‍यायन ने ब्रह्मचर्य और परम समाधि का सहारा लेकर कामसूत्र की रचना गृहस्‍थ जीवन के निर्वाह के लिए की की. इसकी रचना वासना को उत्तेजित करने के लिए नहीं की गई है. संसार की लगभग हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है. इसके अनेक भाष्य और संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं. वैसे इस ग्रन्थ के जयमंगला भाष्य को ही प्रमाणिक माना गया है. कामशास्‍त्र का तत्व जानने वाला व्‍यक्ति धर्म, अर्थ और काम की रक्षा करता हुआ अपनी लौकिक स्थिति सुदृढ़ करता है. साथ ही ऐसा मनुष्‍य जितेंद्रिय भी बनता है. कामशास्‍त्र का कुशल ज्ञाता धर्म और अर्थ का अवलोकन करता हुआ इस शास्‍त्र का प्रयोग करता है. ऐसे लोग अधिक वासना धारण करने वाले कामी पुरुष के रूप में नहीं जाने जाते.
वात्‍स्‍यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, बल्कि कला, शिल्पकला और साहित्य को भी श्रेष्‍ठता प्रदान की है. राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है. करीब दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद् सर रिचर्ड एफ़ बर्टन ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया. अरब के विख्यात कामशास्त्र ‘सुगन्धित बाग’ पर भी इस ग्रन्थ की छाप है. राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी के अतिरिक्‍त खजुराहो, कोणार्क आदि की शिल्पकला भी कामसूत्र से ही प्रेरित है.
एक ओर रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत की हैं. दूसरी ओर गीत-गोविन्द के रचयिता जयदेव ने अपनी रचना ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र का सार-संक्षेप प्रस्तुत किया है.

कामसूत्र के अनुसार -
  • स्‍त्री को कठोर शब्‍दों का उच्‍चारण, टेढ़ी नजर से देखना, दूसरी ओर मुंह करके बात करना, घर के दरवाजे पर खड़े रहना, द्वार पर खड़े होकर इधर-उधर देखना, घर के बगीचे में जाकर किसी के साथ बात करना और एकांत में अधिक देर तक ठहरना त्‍याग देना चाहिए.
  • स्‍त्री को चाहिए कि वह पति को आकर्षित करने के लिए बहुत से भूषणों वाला, तरह-तरह के फूलों और सुगंधित पदार्थों से युक्‍त, चंदन आदि के विभिन्‍न अनूलेपनों वाला और उज्‍ज्‍वल वस्‍त्र धारण करे.
  • स्‍त्री को अपने धन और पति की गुप्‍त मंत्रणा के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए.
  • पत्‍नी को वर्षभर की आय की गणना करके उसी के अनुसार व्‍यय करना चाहिए.
  • स्‍त्री को चाहिए कि वह सास-ससुर की सेवा करे और उनके वश में रहे. उनकी बातों का उत्तर न दे. उनके सामने बोलना ही पड़े, तो थोड़ा और मधुर बोले और उनके पास जोर से न हंसे. स्‍त्री को पति और परिवार के सेवकों के प्रति उदारता और कोमलता का व्‍यवहार करना चाहिए.
  • स्‍त्री और पुरुष में ये गुण होने चाहिए- प्रतिभा, चरित्र, उत्तम व्‍यवहार, सरलता, कृतज्ञता, दीर्घदृष्टि, दूरदर्शी. प्रतिज्ञा पालन, देश और काल का ज्ञान, नागरिकता, अदैन्‍य न मांगना, अधिक न हंसना, चुगली न करना, निंदा न करना, क्रोध न करना, अलोभ, आदरणीयों का आदर करना, चंचलता का अभाव, पहले न बोलना, कामशास्‍त्र में कौशल, कामशास्‍त्र से संब‍ंधित क्रियाओं, नृत्‍य-गीत आदि में कुशलता. इन गुणों के विपरीत दशा का होना दोष है.
  • ऐसे पुरुष यदि ज्ञानी भी हों, तो भी समागम के योग्‍य नहीं हैं- क्षय रोग से ग्रस्‍त, अपनी पत्‍नी से अधिक प्रेम करने वाला, कठोर शब्‍द बोलने वाला, कंजूस, निर्दय, गुरुजनों से परित्‍यक्‍त, चोर, दंभी, धन के लोभ से शत्रुओं तक से मिल जाने वाला, अधिक लज्‍जाशील.
वात्‍स्‍यायन ने पुरुषों के रूप को भी निखारने के उपाय बताए हैं. उनका मानना है कि रूप, गुण, युवावस्‍था, और दान आदि में धन का त्‍याग पुरुष को सुंदर बना देता है. तगर, कूठ और तालीस पत्र को पीसकर बनाया हुआ उबटन लगाना पुरुष को सुंदर बना देता है. पुनर्नवा, सहदेवी, सारिवा, कुरंटक और कमल के पत्तों से बनाया हुआ तेल आंख में लगाने से पुरुष रूपवान बन जाता है.
आधुनिक जीवनशैली और बढ़ती यौन-स्‍वच्‍छंदता ने समाज को कुछ भयंकर बीमारियों की सौगात दी है. एड्स भी ऐसी ही बीमारियों में से एक है. अगर लोगों को कामशास्‍त्र का उचित ज्ञान हो, तो इस तरह की बीमारियों से बचना एकदम मुमकिन है...!

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!! दुनिया भर के मर्दों सावधान ,सावधान , सावधान !!

यह ब्लॉग निश्चय ही कुछ लोगो को अश्लील लगेगा पर कडवी सच्चाई को जितना जल्दी स्वीकार कर ले उतना ही अच्छा होगा ,बीमारी का इलाज ही बीमारी से बचाव का उपाय है बीमारी को छिपाना मतलब बीमारी को बढ़ाना कुछ रोचक तथ्य है जैसे दुनिया भर के मर्द सेक्स करने के मामले में औरतों के मुकाबले कमजोर पड़ते जा रहे हैं। ऐसा किसी एक देश में न होकर दुनिया भर के मर्दों के साथ हो रहा है कि उनकी सेक्स ड्राइव कमजोर होती जा रही है। आमतौर पर यह माना जाता है कि आदमी हर समय सेक्स के बारे में सोचते रहते हैं और हमेशा प्यार करने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन एक हालिया ऑनलाइन सर्वे बताता है कि 62 फीसदी पुरुष अपनी महिला पार्टनर के मुकाबले सेक्स करने के मामले में पीछे रह जाते हैं। यह सर्वे यूकेमेडिक्स डॉट कॉम फार्मेसी की ओर से कराया गया था। इस सर्वे में हर तीसरे आदमी ने यह भी माना था कि उनकी सेक्स ड्राइव पहले के मुकाबले कमजोर हो गई है। 
तू - तू, मैं - मैं समस्या का समाधान नहीं है
भारत में 2011 में हुआ इंडिया-टुडे-नील्सन सर्वे काफी चर्चा और विवादों में रहा था। इसमें देश के छोटे-बड़े शहरों को शामिल किया गया था। इसमें यह बात सामने आई थी कि हर बार एक-तिहाई पुरुष सेक्स न करने के लिए बहाने बनाते हैं। इसके मुताबिक आठ साल से कराए जा रहे सेक्स सर्वे में पहली बार यौन संतुष्टि का आंकड़ा घट कर 27 फीसदी पर आ गया है। एक दूसरे पोल में पता चला है कि हर चार में से एक आदमी सेक्स कर ही नहीं रहा है। 55 साल या इससे ज्यादा की उम्र के 42 फीसदी लोगों में यह परेशानी पाई गई है। इस पोल में एक चौथाई पुरुषों ने माना था कि वे सेक्स करने के लिए शारीरिक तौर पर तैयार ही नहीं हो पाते हैं।
ब्रिटेन में सेक्स के मामलों के स्पेशलिस्ट डॉ. डेविड एडवर्ड्स कहते हैं कि सेक्स ड्राइव का कम होने से एक आदमी की जीवन और उसके रिश्ते खतरनाक दौर में पहुंच सकते हैं। डेविड के मुताबिक उनके पास पुरुषों के सेक्सुअल प्रॉब्लम के काफी मामले आते हैं। वे कहते हैं कि उनके पास हाल ही में एक ऐसा केस आया था जिसमें सेक्स ड्राइव कमजोर होने से एक आदमी का रिश्ता खत्म हो चुका था। उसे यह समस्या करीब 12 सालों से थी। वह आदमी डॉक्टर के पास तभी आया जब उसकी महिला पार्टनर ने उसे डॉक्टरी मदद लेने या छोड़ देने की धमकी दी।
मानसिक रूप से मजबूत बने डरे नहीं
 
शारीरिक और मानसिक समस्या है सेक्स ड्राइव का कमजोर होना

सेक्स ड्राइव का कमजोर होने के मानसिक या शारीरिक या दोनों कारण हो सकते हैं। डायबिटीज जैसी बीमारी (50 फीसदी पुरुषों को टाइप-2 डायबिटीज से टेस्टोस्टेरोन कम होने की समस्या आती है), कफ पैदा होने का ट्यूमर (अडेनोमा), क्लाइनफेल्टर (500 में से एक आदमी को होने वाला जेनेटिक सिंड्रोम), गुर्दे जैसी बीमारियों से लंबे समय से पीड़ित या सिस्टिक फाइब्रोसिस से भी टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम हो जाता है। कई बार कुछ दवाइयों के लगातार सेवन से भी सेक्स ड्राइव का समय कम हो जाता है। इसमें तनाव कम करने के लिए ली जाने वाली दवा और बीटा ब्लॉकर्स भी शामिल हैं। यह दवाइयां तनाव में रहने वाले लोगों और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को दी जाती हैं। इन दवाइयों से बुखार आने जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।
लेकिन इसके अलावा मौजूदा जीवनशैली भी इसमें अहम रोल अदा कर रही है। पुरुषों का मोटा होते जाना भी उनकी सेक्स ड्राइव को कम कर रहा है। डॉ, डेविड के मुताबिक अगर कोई पुरुष मोटा है तो उसका टेस्टोस्टेरोन का लेवल फैट कम करने में ही कम हो जाएगा। इसके अलावा टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ती उम्र के साथ भी कम होता जाता है। कुछ डॉक्टरों का मानना है कि अब कम उम्र में ही सेक्स ड्राइव कमजोर होने लगी है। 

 50 के बाद होती थी ये परेशानी और अब 30 के बाद ही हो रही है शुरू
कही आप इस तरह से तो अपने बीएड रूम में पीडित नहीं है ?
सेंटर फॉर मेंस हेल्थ के फाउंडर डॉ. मैलकॉम कैरथर्स 25 सालों से सेक्स ड्राइव कमजोर होने की परेशानी का इलाज कर रहे हैं। उनका कहना है कि सेक्स ड्राइव कमजोर होने की समस्या अब बड़े तौर पर सामने आ रही है और कम उम्र के लोगों में भी यह आम बात हो चुकी है। पहले पुरुषों को यह समस्या 50 की उम्र के बाद होती थी लेकिन अब यह 40 या 30 की उम्र के बाद ही सामने आ रही है। अमेरिका में हुए अध्ययन बताते हैं कि वहां हर दशक में टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम से कम दस फीसदी गिर रहा है, यही हाल ब्रिटेन का भी है। डॉ. कैरथर्स कहते हैं कि वातावरण में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने और गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से हॉर्मोन्स पर असर पड़ रहा है। यह भी सेक्स ड्राइव को कमजोर करने का काम कर रहा है। इसके अलावा खाने में और पैकेजिंग में पाए जाने वाले रसायनों का गर्भ के समय सेवन से भी आने वाली नस्ल पर असर पड़ रहा है।
डॉ. कैरथर्स कहते हैं कि मौजूदा आर्थिक हालात भी नई पीढ़ी पर दबाव डाल रहे हैं और इससे भी सेक्स ड्राइव कमजोर हो रही है। जीवन में दबाव और तनाव बढ़ने से स्ट्रेस हॉर्मोन्स कोर्टिसोल और एड्रेनालाईन शरीर में बढ़ रहे हैं। गुड हाउसकीपिंग मैगजीन की ओर से कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई थी कि एक चौथाई पुरुष 12 महीने पहले के मुकाबले अब नियमित तौर पर कम सेक्स करते हैं। इसका कारण लोगों का पैसे कमाने के लिए चिंता में डूबे रहने को बताया गया था। 

      सेक्स ड्राइव कमजोर होना मतलब कई बीमारियां होना
पहले के मुकाबले सेक्स में कमी आने से कई बार लोगों के घर टूटने की कगार पर पहुंच जाते हैं। मनोचिकित्सक डॉ. वीएस पॉल बताते हैं कि पुरुषों के लिए चूँकि सामाजिक स्तर पर 'पौरुष' एक मूल्य के तौर पर स्थापित है, इसलिए जब पुरुष इसे कम होता देखता है तो वह थोड़ा निराश और थोड़ा चिड़चिड़ा होने लगता है, वह इसे आसानी से हजम नहीं कर पाता है। दरअसल कमजोरी और हमेशा 'पुरुष' होने और बने रहने की सामाजिक अपेक्षा की वजह से उसका व्यवहार कभी-कभी रूखा और चिड़चिड़ा हो जाता है। इसके अलावा पुरुषों के सेक्स न करने को लेकर महिलाओं में भी यह शक घर कर जाता है कि कहीं उनके पति का बाहर कोई अफेयर तो नहीं है या उनके पति अब उन्हें पहले से कम प्यार करने लगे हैं। ऐसी स्थिति में अगर सही कदम न उठाया गया या मार्गदर्शन न मिले तो पति पत्नी में तलाक तक की नौबत आ जाती है।
सेक्स के मामलों के स्पेशलिस्ट डॉ. डेविड एडवर्ड्स के मुताबिक उनके एक पेशेंट के कमजोर सेक्स ड्राइव से उनका पारिवारिक रिश्ता लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंच गया था। करीब सात महीनों से साथ रहे रहे कपल के जीवन में सेक्स न होने से काफी तनाव आ गया था। उनके मुताबिक ऐसे समय में महिलाओं को अपने पार्टनर को इलाज और सही मार्गदर्शन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करेंगी तो बड़बोले पुरुष पारिवारिक जीवन के साथ ही अपने प्रोफेशनल करियर में भी तनाव में आ जाएगा जिसके आगे चलकर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
इसके अलावा जिन पुरूषों में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम होता है, उनको मधुमेह होने का ज्यादा खतरा होता है। हालांकि, मोटापा और खान-पान मधुमेह का प्रमुख कारण होता है लेकिन, अगर किसी व्यक्ति में‍ टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम होता है तो, उसमें डायबिटीज जैसी खतरनाक बीमारी होने का खतरा बढ जाता है। नियमित दिनचर्या और पोषणयुक्त आहार का सेवन करने के बावजूद अगर टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम होता है तो मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा टेस्टोस्टेरॉन के कम स्तर से दिल की बीमारियां होने का भी खतरा होता है। हालांकि टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम होने का प्रजनन की क्षमता पर क्या असर पड़ता है इस पर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। 


दुनिया भर के मर्दों की सेक्स ड्राइव हो रही है कमजोर!
मुह नहीं छिपाए डाक्टर के पास जाए
         पार्टनर को बताएं और डॉक्टर को दिखाएं तो होगा इलाज   
 
डॉ. एडवर्ड्स बताते हैं कि सेक्स ड्राइव कम होने के मामले से निपटने में पत्नियों और लेडी पार्टनर का बड़ा हाथ है। उनके सपोर्ट के बिना पुरुष प्रोफेशनल मदद नहीं लेते हैं। सेक्स के लिए शारीरिक तौर पर तैयार न होने वाले मामलों में केवल एक तिहाई पुरुष ही सामने आते हैं। वे डॉक्टरों के पास आकर अपनी कमी बताते हैं। इस काम के लिए पत्नियों की ओर से सपोर्ट मिलना बहुत जरूरी है। डॉ. एडवर्ड्स का कहना है कि कमजोर सेक्स ड्राइव के कारणों की जांच जरूरी है और टेस्टोस्टेरोन का लेवल चेक कराना चाहिए।
         कुछ पुरुषों के आनुवांशिक लक्षण भिन्न होने से केवल ब्लड टेस्ट से उनकी समस्या का पता नहीं चल पाता है और ऐसे में वे पुरुष बिना इलाज के ही रह जाते हैं। वे कहते हैं कि केवल एक फीसदी पुरुष ही टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट ट्रीटमेंट से फायदा ले रहे हैं। ऐसे मामलों में इलाज का तरीका यह है कि मरीज को ध्यान से सुना जाए, उसकी पुरानी और मौजूदा जिंदगी और लक्षणों के बारे में ज्यादा से ज्यादा पता लगाया जाए। अगर इलाज के दौरान कमजोरी के लक्षण दूर होते हैं तो इसका मतलब है कि इलाज ठीक दिशा में जा रहा है। टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ाने का एक तरीका इंजेक्शन देना है तो दूसरा जेल को स्किन पर रगड़ना। इसे टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट ट्रीटमेंट भी कहा जाता है। 
                   एक तरीका लाइफस्टाइल में बदलाव लाने का भी है। इसके अलावा डॉक्टर कुछ मरीजों पर हर्बल दवाइयों के इस्तेमाल भी करते हैं। इस तरह के इलाज में उन्हें सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं। इस तरह सेक्स ड्राइव कम होने की समस्या तो आम है लेकिन एक चीज साफ है कि अगर पार्टनर इस बारे में बात करते हैं तो इसका इलाज मुश्किल नहीं है। 

नोट--जिसे यह ब्लॉग अच्छा लगे ओ अपनी राय नहीं रखे जिसे बुरा लगे ओ जरुर मुझे कोस सकते है ।