शनिवार, 6 अप्रैल 2013

!! रिश्ते दोस्ती के !!

हमारे जीवन में कुछ रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं। मित्रता ऐसा ही रिश्ता है। कहते हैं मित्र बनाए नहीं जाते, अर्जित किए जाते हैं। ये रिश्ता हमारी पूंजी भी है, सहारा भी। आजकल दोस्ती के मायने बदल गए हैं तो इस रिश्ते की गहराई भी कम हो गई है। इस संसार में हम अपनी मर्जी से जो सबसे पहला रिश्ता बनाते हैं, वो मित्रता का रिश्ता होता है। शेष सारे रिश्ते हमें जन्म के साथ ही मिलते हैं। मित्र हम खुद अपनी इच्छा से चुनते हैं। जो रिश्ता हम अपनी पसंद से बनाते हैं, उसे निभाने में भी उतनी ही निष्ठा और समर्पण रखना होता है।
रिश्ते बनाये नहीं अर्जित किये जाते है ..
आधुनिक युग में दोस्ती भी टाइम पीरियड का मामला हो गया है। स्कूली जीवन के दोस्त अलग, कॉलेज के अलग और व्यवसायिक जीवन के अलग। आजकल कोई भी दोस्ती लंबी नहीं चलती। जीवन के हर मुकाम पर कुछ पुराने दोस्त छूट जाते हैं, कुछ नए बन जाते हैं। दोस्ती जीवनभर की होनी चाहिए। हमारे पुराणों में कई किस्से मित्रता के हैं। कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, कर्ण-दुर्योधन ऐसे कई पात्र हैं जिनकी दोस्ती की कहानियां आज भी प्रेरणादायी हैं। मित्रता भरोसे और निष्ठा इन दो स्तंभों पर टिकी होती है।
कोई भी स्तंभ अपनी जगह से हिलता है तो मित्रता सबसे पहले धराशायी होती है। हमेशा याद रखें मित्रता में एक बात को कभी बीच में ना आने दें। ये चीज है मैं। इस रिश्ते में जैसे ही मैं की भावना घर करती है, रिश्ते में दुराव शुरू हो जाता है। निज की भावना से मित्रता में जितना बचा जाए, रिश्ता उतना ही दूर तक चलता है। जो भी हो उसमें हमारे की भावना हो। मित्रता में जैसे स्वार्थ आता है, हमें उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
कृष्ण-सुदामा की मित्रता में चलते हैं। दोनों एक-दूसरे के प्राण हैं। गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा पा रहे हैं। एक दिन गुरु मां ने लकड़ी लाने दोनों को जंगल भेजा। सुदामा को थोड़े चने दिए, रास्ते में खाने के लिए। कहा दोनों मिल बांटकर खा लेना। जंगल पहुंचे तो बारिश शुरू हो गई। एक पेड़ पर दोनों चढ़ गए। सुदामा ने भूख के कारण चुपके से कृष्ण के हिस्से के भी चने खा लिए। नतीजा भुगता, मित्र से बिछोह और भयंकर गरीबी।
मित्रता में कभी स्वार्थ नहीं आना चाहिए। हर हाल में अपने रिश्ते की मर्यादा का पालन करें। ये रिश्ता ईश्वर का वरदान होता है, इसमें धोखा, ईश्वर से धोखा होता है।

दुनिया में खून के रिश्ते तो होते ही हैं और बिना खून के भी रिश्ते होते है । मतलब के रिश्ते भी होते हैं.। काम में आने वालों के साथ रिश्ता बनाया जाता है, तभी दुनिया का व्यापार चलता है। मगर इन रिश्तों में स्वार्थ, वासना, लोभ, लालच की बू बैठ जाती है, जो मन को अपनेपन का सुकून देने से रोकती है।

इसीलिए कभी-कभी ऐसे रिश्ते भी बनते हैं जिनका संबंध न खून से होता है, न दुनियादारी से.। ये रिश्ते मुंहबोले हों या अनकहे इनमें अलग ही सौंधापन होता है। ये मन ही नहीं, आत्मा को भी तृप्त करने की ताकत रखते हैं। बशर्ते कालांतर में इनमें भी वासना और स्वार्थ की बू न आ घुसे।और आप सभे भी उस रिस्तो को महत्व दे जहा पर स्वार्थ नहीं हो सिर्फ प्रेम हो प्रेम के रिश्ते टिकाऊ होते है स्वार्थ के रिश्ते तभी तक जब तक स्वार्थ है .आप कौन सा रिश्ता रखना चाहते है आपके ऊपर निर्भर करता है ।



रिश्ते तो ये भी है जो चित्र में दिखाई दे रहा है

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