गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

गरीब सवर्ण को आरक्षण चाहिए

क्या अब केंद्र सरकार सवर्ण गरीबों को भी आरक्षण पर पहल करेगी? सुप्रीमकोर्ट ने  एक अहम फैसले में केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछडा वर्ग [ओबीसी] के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दिया था , लेकिन इस वर्ग की क्रीमीलेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने के निर्देश दिए। कोर्ट ने साथ आरक्षण की इस नीति की समय-समय पर समीक्षा करने का भी आदेश दिया। क्रीमी लेयर को परे रखने का फैसला तो स्वागत योग्य है मगर यह न्यायपूर्ण तभी होगा जब सवर्ण गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिले। इस बात को परे रखने के कारण ही मायावती ने सवर्णों के लिए यह मांग रख दी है। चुनाव जीतने के साथ ही उन्होंने सवर्ण गरीबों को आरक्षण का वायदा किया थापर पूरा नहीं किया क्यों ? अब जबकि केंद्र में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजर है इस लिए फौरन सवर्णों की मांग रख दी। दलितों की तो वे नेता हैं ही मगर सशक्त तरीके से गरीब सवर्णों के लिए आवाज भी उठा रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के साथ ही उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अन्य पिछड़ा वर्ग को केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण की मंजूरी के सुप्रीमकोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि उच्च वर्ग के गरीब तबके को भी इस प्रकार का लाभ दिया जाना चाहिए। मायावती ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकांश लोग आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से तरक्की नहीं कर सके हैं, इसलिए उन्हें इस प्रकार के लाभ देने की सख्त आवश्यकता थी और उन्हें आरक्षण का फायदा मिलना ही चाहिए था। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग कर रही हैं कि उच्च वर्ग के गरीब वर्ग को भी उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जाए, ताकि उनके बच्चे भी उच्च शिक्षा ग्रहण कर अपना जीवन स्तर सुधारने के साथ-साथ देश की प्रगति में भी सहायक बन सकें। मायावती की यह मांग भले राजनीति के कारण है मगर न्यायसंगत है कि गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दे सरकार।
आज मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने वाले 2006 के केंद्रीय शिक्षण संस्थान [प्रवेश में आरक्षण] कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए लंबी बहस के बाद उक्त कानून को वैध ठहराया, लेकिन साथ ही यह भी निर्देश दिया कि यदि आरक्षण का आधार जाति है तो इस वर्ग के सुविधा संपन्न यानी क्रीमीलेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाए। पीठ ने चार एक के बहुमत से उक्त कानून को वैध ठहराया। न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी ने इससे असहमति जताई। पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति अरिजित पसायत, न्यायमूर्ति सी के ठक्कर और न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन शामिल हैं।
ओबीसी के आरक्षण में दायर याचिकाओं में सरकारी कदम का जबरदस्त विरोध करते हुए कहा गया था कि पिछड़े वर्गो की पहचान के लिए जाति को शुरुआती बिंदु नहीं माना जा सकता। आरक्षण विरोधी याचिकाओं में क्रीमीलेयर को आरक्षण नीति में शामिल किए जाने का भी विरोध किया गया था। इस फैसले से न्यायालय के 29 मार्च 2007 के अंतरिम आदेश में कानून के कार्यान्वयन पर लगाई गई रोक समाप्त हो जाएगी। फैसले के बाद अब आरक्षण नीति को 2008-09 शैक्षणिक सत्र में लागू किया जा सकेगा।

ओबीसी का आरक्षण सफरनामा

आईआईटी और आईआईएम सहित केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से संबंधित विवादास्पद कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर घटनाक्रम इस प्रकार रहा:-

20 जनवरी 2006: सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गो तथा अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश देने के लिए सरकार को विशेष प्रावधान बनाने की शक्ति देने वाला संवैधानिक [93वां संशोधन] अधिनियम 2005 प्रभाव में आया।
16 मई 2006: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मामलों की स्थायी समिति ने अपनी 15वीं रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि पिछड़े वर्गो के मुद्दे को लेकर कोई जनगणना नहीं कराई गई। इसमें कहा गया कि भारत के महापंजीयक की रिपोर्ट के अनुसार 2001 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आंकड़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
22 मई 2006: अशोक कुमार ठाकुर ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर कर अधिनियम 2006 के तहत केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों के दाखिलों में आरक्षण दिए जाने के मामले को चुनौती दी। उस समय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स] में आरक्षण विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था।
27 मई 2006: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कार्यान्वयन से संबंधित अधिनियम को देखने के लिए एक निगरानी समिति बनाई। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को चेताया कि अधिनियम के कार्यान्वयन से शैक्षणिक योग्यता के साथ समझौता होगा और इससे जनसांख्यिकी आपदा पैदा होगी।
29 मई 2006: सुप्रीमकोर्ट ने याचिका पर केंद्र को नोटिस भेजा।
31 मई 2006: सुप्रीमकोर्ट ने सभी संबंधित नागरिकों को याचिका पर पार्टी बनने की अनुमति दी और उनसे नई याचिका दायर करने को कहा।
1 दिसंबर 2006: मानव संसाधन और विकास मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 186वीं रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश की और कहा कि 1931 के बाद जाति के आधार पर कोई जनगणना नहीं हुई।
1 जनवरी 2007: अधिनियम के कार्यान्वयन को चुनौती देने वाली एक और याचिका सुप्रीमकोर्ट में दायर।
29 मार्च 2007: सुप्रीमकोर्ट ने अधिनियम के कार्यान्वयन को स्थगित करते हुए अंतरिम आदेश दिया।
7 अगस्त 2007: पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अधिनियम की वैधता पर फैसला देने के लिए सुनवाई शुरू की।
11 नवंबर 2007: 25 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया।
10 अप्रैल 2008: सुप्रीमकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण उपलब्ध कराने वाले केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान [प्रवेश आरक्षण] अधिनियम 2006 की वैधता को बरकरार रखा।मै सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल तो नहीं उठा रहा अहू पर क्या यह  गरीब सवर्ण के साथ अन्याय नहीं है ???

क्या टीम अन्ना सफेद झूठ के सहारे भ्रष्टाचार का विरोध कर रही है क्या?


संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के साथ ही सरगर्म हुए राजनीतिक वातावरण में अन्ना टीम  ने एक बार फिर कमर कस ली है. इसके लिए अन्ना टीम ने एक बार फिर अपना “जनलोकपाली” कीर्तन प्रारम्भ किया है. पिछले तीन-चार दिनों से  न्यूज चैनलों पर ये अन्ना गैंग फिर चमका है और आदेशात्मक शैली में देश की संसद और संविधान को अपना स्वरचित जनलोकपाली पहाड़ा पढ़वाने की कोशिश करता दिखा है. 
यह अन्ना टीम न्यूज चैनलों के वातानुकूलित स्टूडियोज़ में बैठकर121 करोड़ देशवासियों के पूर्ण समर्थन के अपने दावे के साथ देश के लिए, देश की तरफ से सोचने, विचारने, आदेश देने, और फैसला लेने के इकलौते ठेकेदार के रूप मेंस्वयम को प्रस्तुत करता दिखा.
इस से पहले रामलीला मैदान में लगाये गए अपने “जनलोकपाली” मजमें के दौरान भी इस अन्ना टीम ने ऐसे ही हवाई दावों का भ्रमजाल कुछ न्यूज चैनलों के सहयोग और समर्थन से बढ़ चढ़ कर फ़ैलाने की कुटिल कोशिशें की थी, जबकि उसका यह दावा वास्तविकता से हजारों कोस दूर है. गणितीय प्रतीकों में कहूँ तो 5 प्रतिशत भी सही नहीं है. तथ्यपरक यथार्थ की तार्किक कसौटी इस अन्ना टीम द्वारा खुद को प्राप्त 121 करोड़ देशवासियों के समर्थन के दावे की धज्जियाँ उड़ाती स्पष्ट दिखायी देती है.
ज्ञात रहे की इस अन्ना टीम के जनलोकपाली आन्दोलन का सबसे बड़ा एवं मुख्य समर्थक वर्ग इस देश के पढ़े लिखे मध्य वर्ग, उच्च मध्यवर्ग एवं नौजवानों को ही माना गया था, इंटरनेट की ट्विटर एवं फेसबुक सरीखी दुनिया को इस टीम के समर्थन की सर्वाधिक उर्वर भूमि कहा गया.  इसके अंध समर्थक न्यूज चैनलों एवं खुद इस अन्ना गैंग का भी यही मानना था. इसीलिए इसने अपने तथाकथित जनलोकपाल बिल का मसौदा इस देश तक इंटरनेट के माध्यम से ही पहुंचाया था. उस मसौदे से सम्बन्धित सुझावों शिकायतों को प्राप्त करने के लिए भी इस टीम ने अपनी वेब साईट और Email को ही अपने और जनता के बीच का माध्यम बनाया था.
फेसबुक और ट्विटर पर अपने जनलोकपाली मजमे को मिले तथाकथित 121 करोड़ देशवासियों के ऐतिहासिक समर्थन के सामूहिक गीत अन्ना टीम ने कुछ न्यूजचैनलों के साथ संयुक्त रूप से गए थे.
उल्लेखनीय है की अप्रैल 2011 में खुद फेसबुक द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार भारत में फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या 35.7% की छमाही वृद्धि दर के साथ लगभग 2 करोड़ 30 लाख थी, अर्थात आज यह संख्या लगभग 3 करोड़ के आसपास होगी. अब जरा ध्यान से जानिये उस सच्चाई को कि इन 3 करोड़ देशवासियों के मध्य इस अन्ना टीम
टीम के समर्थन कि स्थिति क्या है.
फेसबुक में इस अन्ना टीम की संस्था INDIA AGAINST CORRUPTION के समर्थन में बने ग्रुपों/पेजों की कुल संख्या 492 है. खुद अन्ना टीम द्वारा बनाये गए इसके मुख्य पेज के समर्थकों की संख्या 5 लाख 42 हज़ार के करीब है. इसके मुख्य पेज और शेष 491 पेजों के समर्थकों की संख्या का कुल योग लगभग 8 लाख 20 हज़ार के करीब है. ज़रा ध्यान दीजिये की 3 करोड़ के करीब फेसबुक की भारतीय आबादी में से कुल 8 लाख 20 हज़ार लोगों ने इस टीम के मंच को अपना समर्थन दिया है. फेसबुक संसार की भारतीय आबादी के केवल 2.73% सदस्यों ने ही इस अन्ना टीम  और उसके मंच को अपना समर्थन दिया है. यद्यपि फेसबुक की दुनिया का हर सदस्य यह जानता है की एक सदस्य कई-कई ग्रुपों और पेजों को अपना समर्थन दे सकता है और देता भी है. यदि ऐसे साझा समर्थकों की संख्या विश्लेषित की जाए तो 2.73% समर्थन का उपरोक्त आंकड़ा 1.5% के आसपास ही पहुंचेगा. इस अन्ना टीम की चौकड़ी के सबसे मेन मेम्बर अरविन्द केजरीवाल के नाम से जो मुख्य पेज है उसमे इसके समर्थकों की संख्या है 48,790.
केजरीवाल के कुछ अंध भक्तों ने भी केजरीवाल के समर्थन के पेज बना रखे हैं. ऐसे कुल पेजों की संख्या है 53. केजरीवाल के मुख्य पेज समेत इन 54 पेजों में केजरीवाल समर्थकों की कुल संख्या है 1 लाख 34 हज़ार 971. अर्थात केवल 0.44% समर्थन
इसके बाद अन्ना टीम की मेम्बर नम्बर 2 है किरण बेदी.
किरण बेदी के नाम से जो मुख्य पेज है उसमें बेदी समर्थकों की संख्या है 1 लाख 8 हज़ार 684.
किरण बेदी के भी कुछ समर्थकों ने बेदी के समर्थन के पेज बना रखे हैं.
ऐसे कुल 76 पेज हैं और किरण बेदी के मुख्य पेज समेत इन 77 पेजों में बेदी समर्थकों की कुल संख्या है 2 लाख 13 हज़ार 387.
अर्थात केवल 0.71% समर्थन
इसके बाद नाम आता है अन्ना टीम  के फौजी नम्बर तीन प्रशांत भूषण का.
इसके समर्थन के नाम से कुल 6 पेज हैं और इन छहों पेजों में इसके समर्थकों की कुल संख्या है केवल 2369.
अर्थात केवल 0.01% समर्थन, और इस चौकड़ी के मेम्बर नम्बर चार मनीष सिसोदिया के व्यक्तिगत पेज में समर्थकों की संख्या है 4988 तथा इसके समर्थन के पेज में इसके समर्थकों की संख्या है केवल 124.
अर्थात 3 करोड़ भारतीय सदस्यों वाले फेसबुक के संसार में अन्ना गैंग की इस चौकड़ी को कुल 350851 लोगों का समर्थन प्राप्त है.
एक बार पुनः यह उल्लेख कर दूं की इसमें अधिकांश संख्या ऐसे साझा समर्थकों की होती है जो कई-कई पेजों पर जाकर अपना समर्थन व्यक्त करते हैं, और स्वाभाविक रूप से केजरीवाल को समर्थन देने वाला व्यक्ति किरण बेदी का भी समर्थक होगा. यदि यह भी जांच लिया जाए तो इस अन्ना टीम  के समर्थन की सबसे उर्वर भूमि मानी जाने वाली फेसबुक की 3 करोड़ भारतीयों की दुनिया में इस चौकड़ी के समर्थकों का आंकडा 2 से 1.5 लाख के आंकड़े के बीच झूलता नज़र आएगा.
इस टीम के मुखिया खुद अन्ना हजारे के मुख्य पेज पर समर्थकों की संख्या 3 लाख 21 हज़ार 448 है तथा अन्ना हजारे के समर्थन में बने 79 अन्य पेजों के समर्थकों की संख्या इसमें जोड़ देने पर यह आंकडा पहुँच जाता है 5 लाख 96 हज़ार 779 पर.
अर्थात केवल 01.98% समर्थन. जाहिर सी बात है की जो IAC समर्थक वही अन्ना समर्थक है.
इसी समर्थन में से अन्ना टीम की चर्चित चौकड़ी भी अपने समर्थन की बन्दर बाँट किये हुए है.
कुल मिलाकर यह स्पष्ट होता है कि 3 करोड़ भारतीयों वाले फेसबुक संसार में इस पूरी टीम और उसके जनलोकपाली मजमें के समर्थकों कि वास्तविक संख्या लगभग 6 लाख है, यानी केवल 2 प्रतिशत के आसपास ही है.
अब एक नज़र इस टीम अन्ना को ट्विटर पर प्राप्त समर्थन की.
मई 2011 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ट्विटर संसार के भारतवासी सदस्यों की संख्या लगभग 1 करोड़ 30 लाख के करीब थी.
ट्विटर कि इस दुनिया में किरण बेदी के नाम से बने 2 एकाउंट्स में से एक में किरण के समर्थकों कि संख्या है 303257 और दुसरे में 8326 यानि कुल समर्थकों कि संख्या है 311583. अर्थात लगभग 2.39%  समर्थन.
इसी ट्विट्टर की दुनिया में केजरीवाल के नाम से बने नौ एकाउंट्स में उसके कुल समर्थकों कि संख्या है 43998. अर्थात लगभग 00.33% समर्थन.
ट्विटर पर ही इस अन्ना टीम  ने जनलोकपाल के नाम से ही एकाउंट बना रखा है. ट्विटर पर इस जनलोकपाल के समर्थकों की संख्या है लगभग 181453. अर्थात 1.39%  समर्थन.
इसके अलावा जनलोकपाल  के नाम से 10-5 एकाउंट और हैं जिनमें समर्थकों की संख्या 25-50 और 100 तक है. अर्थात नगण्य.
ट्विटर पर प्रशांत भूषण नाम से बने 5-6 एकाउंटस में से किसी के समर्थकों की संख्या 2 है तो किसी की 5 और किसी की सिर्फ शून्य…!!! ये वही प्रशांत भूषन है जो देश के दो टुकड़े कर देने की सलाह पूरे देश को देता घूमता है.
कमोवेश यही स्थिति मनीष सिसोदिया नाम से बने 3 एकाउंट्स की है.
ट्विटर पर ही कुछ अन्ना समर्थकों द्वारा अन्ना हजारे के नाम से बनाये गए लगभग 100 एकाउंट्स में दर्ज समर्थकों की संख्या लगभग 42000 के करीब है. अर्थात लगभग 0.32% समर्थन.
अन्ना गैंग के समर्थन की सबसे उर्वर भूमि समझी जाने वाली इंटरनेट की दुनिया के फेसबुक एवं ट्विटर संसार में  ये है असलियत अन्ना टीम के स्वघोषित जननायकों तथा उनके जनलोकपाली मजमे को प्राप्त 121 करोड़ देशवासियों के तथाकथित समर्थन की.
अतः गाँव गरीब खेत किसान मजदूरों के लगभग 85% वास्तविक भारत में इस टीम को प्राप्त समर्थन का वास्तविक आंकडा क्या कितना और कैसा होगा, इसका आंकलन कठिन नहीं है.
इस टीम के अंध भक्तों को आइना दिख जाए  इसके लिए जिक्र ज़रूरी है की इसी ट्विटर की भारतीय दुनिया में अमिताभ बच्चन के सिर्फ एक एकाउंट के समर्थकों की संख्या ही 15 लाख 87 हज़ार 307 है, तो प्रियंका चोपड़ा के केवल एक एकाउंट के समर्थकों की संख्या 16 लाख 69 हज़ार 704 है. साझा समर्थकों की इसमें कोई सम्भावना ही नहीं.