एक जगतदेवता के लोकदेवता बनने की पूर्णतः सत्य कहानी..🚩🚩
करीब 150/200 वर्ष पुरानी बात होगी । मेरे गांव से करीब 6km दूर के घनघोर जंगल में एक चरवाहा अपनी बकरियां चराने लाता था । प्रतिदिन एक पत्थर पर बैठकर रोटी खाया करता था, चूंकि घनघोर जंगल था /है । जब उसे शेर, बाघ,भालू, भूत, प्रेत आदि से डर लगता तो वह जय बजरंग बली, जय बजरंग करता और बजरंग बली जी को याद करता ।
एक दिन बजरंग बली ने उसे स्वप्न दिया की "जिस पत्थर पर बैठ कर खाते हो वह मैं ही हूं" । अगले दिन वह चरवाहा गया और उस पत्थर को एक पेड़ के तने के सहारे टिका दिया और उस दिन से पूजा करने लगा । गरीब चरवाहा कहीं से सिंदूर और घी,लंगोट की व्यवस्था किया और पत्थर को सिंदूर लगाकर लंगोट पहना दिया । चूंकि जंगल में और चरवाहे भी जाते थे,यह बात धीरे धीरे फैली, तो अन्य लोग भी पूजा पाठ करना सुरु कर दिया । पूर्णत: चमत्कारी परिणाम आने लगा । कुछ माह बाद जब यह बात पास के 3km दूर गांव कल्याणपुर (कल्याणपुर बाघेल राजपूतों की 12 गांव की जागीर है) के बाघेल ठाकुर को पता चली तो उन्होंने उसी पेड़ से थोड़ा आगे एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया और हनुमान जी की एक मूर्ति लाकर प्राण प्रतिष्ठा करवा दिया और फिर हनुमान जी सच में उस पत्थर से निकलकर मूर्ति में प्रतिष्ठित हो गए ।
हमारे क्षेत्र में बहुत ही पूज्यनीय देवता हैं दुवरानाथ स्वामी ।। धीरे धीरे मंदिर के प्रति आस्था बढ़ती गई । मंदिर से कुछ km दूर गांव के एक भक्त श्री तिलकधारी जी पटेल ने पूर्व के बने छोटे से मंदिर के चारो तरफ मोटी सी दीवार खड़ी करवा दिया, ऊंचा सा चबूतरा बनवा दिया ।
हमारे बाघेलखंड में देवी देवताओं को रोट (मोटी मोटी पूड़ी जिसमे हल्का सा गुड़ मिला देते हैं) पंजीरी चढ़ाने की परंपरा है । हनुमान जी को भक्तो ने रोट,पंजीरी चढ़ाना सुरु कर दिया । श्रावण मास में मेला लगने लगा और धीरे धीरे रोट चढ़ाने की परम्परा और बलवती होती गई ।
मंदिर में बिराजे दुवरा नाथ स्वामी के प्रति इतनी आस्था बढ़ी की किसी के बीमार होने पर डाक्टर से पहले मंदिर जाकर या घर से दुवरानाथ स्वामी को मनौती मान देते । किसी के घर कोई मुसीबत आए तो दुवारा नाथ स्वामी को याद कर लिया और परिणाम इतना सकारत्मक है की आस्था दिनिदिन बढ़ती ही जा रही है ।
(एक दिन पोस्ट में मुंबई के एक सेठ के लड़के की बीमारी के बारे में पोस्ट किया था, पढ़िएगा,बसरेही के डाक्टर पटेल जी )
अभी जिस दिन हमारे घर का आयोजित अखंड मानस था उसी दिन बगल में ही एक और अखंड मानस का पाठ चल रहा था क्षेत्र में एक सज्जन की कुछ भैंस गुम गई, उन्होंने दुवरानाथ स्वामी के पास जाकर मनौती किया और एक पंडित जी के पास पूछा तो पंडित जी ध्यान लगाकर कुछ देर बाद बोले "दूवरा नाथ स्वामी ला रहे है तुम्हारी सभी भैंस" और चमत्कार देखिए तीन दिन में उनकी सभी भैंस वापस आ गई तो उन्होंने तुरंत अखंड मानस सुरु करवा दिया । ऐसे ही अनगिनत चमत्कार किए है वीर बजरंगी यानी दुवरानाथ स्वामी ने ।।
एक वीडियो के आखिरी में छोटी चौकड़ी में लाल चंदन लगाएं बड़े भाई साहब रिटायर्ड डाक्टर है और उनके बगल में एक टोपी वाले व्यक्ति को छोड़कर सफेद बाल में प्रसाद लेने में मग्न भाई साहब रिटायर्ड रेंजर है । जब भाई साहब इसी वन क्षेत्र के रेंजर थे तब दुवरानाथ स्वामी के नाम पर 30 एकड़ भूमि कर दिया था जिससे किसी निर्माण कार्य के लिए वन विभाग से स्वीकृत के लिए नही जाना पड़े ।।
मेरे भतीजे अमेरिका में साफ्टवेयर इंजीनियर है, दादा यानी बड़े भाई ने उनके बेटे (नाती) को लेकर कोई मनौती मान दिया था, उसी मनौती को पूरा करने के लिए भतीजे अमेरिका से आए हैं, अखंड मानस और फिर भंडारे का आयोजन किया । उसी भंडारे के आयोजन में सामिल होने के लिए यहां सपरिवार हम आए हुए हैं ।
और दो दिन इतनी व्यस्तता रही की एक भी एफबी पोस्ट और वाट्सअप स्टेट्स नही डाल सका ।
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