इतिहास में या
कथाओं में वही लिखा जाता है जो 'विजयी' लिखवाता है। हम हारी हुई कौम हैं।
अपने ही लोगों से हारी हुई कौम। हमें किसी बाहर के व्यक्ति ने नहीं अपने ही
लोगों ने बाहरी लोगों के साथ मिलकर हराया है। क्यों?
जातिवाद से संबंधित संघर्ष भारत में आए दिन होता ही रहता है, लेकिन भारतीय मुसलमान, हिन्दू और अन्य यह नहीं जानते हैं कि यह सब आखिर क्यों हो रहा है। धर्म के लिए, राज्य के लिए या किसी और के लिए। यदि भारतीय मुसलमान और हिन्दू अपने देश का पिछले 1000 वर्षों के इतिहास का गहन अध्ययन करें तो शायद पते चलेगा कि हम क्या था और अब क्या हो गए।
आज भारतीय इतने अलग अलग हो गए हैं कि अब मुश्किल है यह समझना कि हिंदू या मुसलमान, दलित या ब्राह्मण कोई और नहीं यह उनका अपना ही खून है और वह अपने ही खून के खिलाफ हथियार उठाने में अब जरा भी सोचते नहीं है। पहले भारतीयों के एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में धर्मग्रंथ दिए गए और अब रोटी वाले हाथों में हथियार थौप दिए हैं।
ग्रंथों के साथ छेड़खानी : प्राचीन काल में धर्म से संचालित होता था राज्य। हमारे धर्म ग्रंथ लिखने वाले और समाज को रचने वाले ऋषि-मुनी जब विदा हो गए तब राजा और पुरोहितों में सांठगाठ से राज्य का शासन चलने लगा। धीरे धीरे अनुयायियों की फौज ने धर्म को बदल दिया। बौद्ध काल ऐसा काल था जबकि ग्रंथों के साथ छेड़खानी की जाने लगी। फिर मुगल काल में और बाद में अंग्रेजों ने सत्यानाश कर दिया। अंतत: कहना होगा की साम्यवादी, व्यापारिक और राजनीतिक सोच ने बिगाड़ा धर्म को।
इसकी क्या ग्यारंटी है कि हमारे पास आज जो वेद हैं उसे तोड़ा-मरोड़ा नहीं गया, हमारे पास आज जो स्मृति ग्रंथ है उसमें जानबूझकर गलत बाते नहीं जोड़ी गई। हमारे हाथ में नहीं था इतिहास लिखना, हमारे हाथ में नहीं था हमारे ग्रंथों को संजोकर रखना। बस जो कंठस्थ था उसे ही हमने जिंदा बनाए रखा। हमारे पुस्तकालय जला दिए गए। हमारे विश्व विद्यालय खाक में मिला दिए गए और हमारे मंदिर तोड़ दिए गए। क्यों? इसलिए कि हम अपने असली इतिहास को भूल जाएं।
1.राजा और पुरोहितों की चाल : यह ऐसा काल था जबकि तथाकथित पुरोहित वर्ग ने पुरोहितों के फायदे के लिए स्मृति और पुराणों में हेरफेर किया। ऐसा राजा के इशारे पर भी होता रहा। बर्ट्रेंड रसेल ने अपनी पुस्तक पॉवर में लिखा है कि प्राचीन काल में पुरोहित वर्ग धर्म का प्रयोग धन और शक्ति के संग्रहण के लिए करता था। ऐसा हर देश में हुआ।
2.यह ऐसा काल था जबकि अरब, ईरानी, मंगोल और तुर्क मुसलमानों ने भारत के धार्मिक और राजनीतिक इतिहास के ग्रंथों को जलाकर उनका नामोनिशान मिटाने का प्रयास किया और इसमें वह कुछ हद तक सफल भी रहे। उन्होंने जहां हिंदू और बौद्धों के विश्वविद्यालय, ग्रंथालय और मंदिरों को जला दिया वहीं उनकी स्त्रियों को ले गए अरब और पुरुषों को दास बनाकर रखा अफगानिस्तान में। प्रो. केएस लाल की पुस्तक 'मुस्लिम स्लेव सिस्टम इन मिडायबल इंडिया' में इस संबंध में विस्तार से जानकारी मिल जाएगी।
आक्रमणकारी मुसलमानों ने ऐसा इसलिए किया ताकि भारतीय भूल जाएं सब कुछ और याद रखें सिर्फ इस्लाम। ईरानी, तुर्क और अरबी आदि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर 700 वर्ष से अधिक राज किया और यहां के गरीब हिन्दुओं को निरंतर मुसलमान बनाया और समाज में एक नई दीवार खड़ी कर दी।
3.यह ऐसा काल था जबकि अंग्रेज भारत पर शासन करना चाहते थे। इसमें 'बांटो और राज करो' के सिद्धांत का बड़ा योगदान रहा जो ब्रिटेन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति भी करता था। इसके लिए जहां उन्होंने मुसलमानों और हिन्दुओं में फूट डालने का कार्य किया वही उन्होंने हिन्दुओं को आपस में बांटकर धर्मांतरण के जरिये बंगाल सहित दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत में लोगों को ईसाई बनाया। इस तरह उन्होंने 200 से अधिक वर्ष तक सफल तरीके से शासन किया।
इस सबका परिणाम यह निकला कि जहां हिन्दू दिनहिन हो गया वहीं वह हजारों जातियों में बंटकर अपने ही लोगों को पराया समझकर उनसे दूर रहने लगा। वह धीरे-धीरे विदेशी भक्त बन गया और अपने ही धर्म तथा देश को हिन दृष्टि से देखने लगा।
जातिवाद से संबंधित संघर्ष भारत में आए दिन होता ही रहता है, लेकिन भारतीय मुसलमान, हिन्दू और अन्य यह नहीं जानते हैं कि यह सब आखिर क्यों हो रहा है। धर्म के लिए, राज्य के लिए या किसी और के लिए। यदि भारतीय मुसलमान और हिन्दू अपने देश का पिछले 1000 वर्षों के इतिहास का गहन अध्ययन करें तो शायद पते चलेगा कि हम क्या था और अब क्या हो गए।
आज भारतीय इतने अलग अलग हो गए हैं कि अब मुश्किल है यह समझना कि हिंदू या मुसलमान, दलित या ब्राह्मण कोई और नहीं यह उनका अपना ही खून है और वह अपने ही खून के खिलाफ हथियार उठाने में अब जरा भी सोचते नहीं है। पहले भारतीयों के एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में धर्मग्रंथ दिए गए और अब रोटी वाले हाथों में हथियार थौप दिए हैं।
ग्रंथों के साथ छेड़खानी : प्राचीन काल में धर्म से संचालित होता था राज्य। हमारे धर्म ग्रंथ लिखने वाले और समाज को रचने वाले ऋषि-मुनी जब विदा हो गए तब राजा और पुरोहितों में सांठगाठ से राज्य का शासन चलने लगा। धीरे धीरे अनुयायियों की फौज ने धर्म को बदल दिया। बौद्ध काल ऐसा काल था जबकि ग्रंथों के साथ छेड़खानी की जाने लगी। फिर मुगल काल में और बाद में अंग्रेजों ने सत्यानाश कर दिया। अंतत: कहना होगा की साम्यवादी, व्यापारिक और राजनीतिक सोच ने बिगाड़ा धर्म को।
इसकी क्या ग्यारंटी है कि हमारे पास आज जो वेद हैं उसे तोड़ा-मरोड़ा नहीं गया, हमारे पास आज जो स्मृति ग्रंथ है उसमें जानबूझकर गलत बाते नहीं जोड़ी गई। हमारे हाथ में नहीं था इतिहास लिखना, हमारे हाथ में नहीं था हमारे ग्रंथों को संजोकर रखना। बस जो कंठस्थ था उसे ही हमने जिंदा बनाए रखा। हमारे पुस्तकालय जला दिए गए। हमारे विश्व विद्यालय खाक में मिला दिए गए और हमारे मंदिर तोड़ दिए गए। क्यों? इसलिए कि हम अपने असली इतिहास को भूल जाएं।
1.राजा और पुरोहितों की चाल : यह ऐसा काल था जबकि तथाकथित पुरोहित वर्ग ने पुरोहितों के फायदे के लिए स्मृति और पुराणों में हेरफेर किया। ऐसा राजा के इशारे पर भी होता रहा। बर्ट्रेंड रसेल ने अपनी पुस्तक पॉवर में लिखा है कि प्राचीन काल में पुरोहित वर्ग धर्म का प्रयोग धन और शक्ति के संग्रहण के लिए करता था। ऐसा हर देश में हुआ।
2.यह ऐसा काल था जबकि अरब, ईरानी, मंगोल और तुर्क मुसलमानों ने भारत के धार्मिक और राजनीतिक इतिहास के ग्रंथों को जलाकर उनका नामोनिशान मिटाने का प्रयास किया और इसमें वह कुछ हद तक सफल भी रहे। उन्होंने जहां हिंदू और बौद्धों के विश्वविद्यालय, ग्रंथालय और मंदिरों को जला दिया वहीं उनकी स्त्रियों को ले गए अरब और पुरुषों को दास बनाकर रखा अफगानिस्तान में। प्रो. केएस लाल की पुस्तक 'मुस्लिम स्लेव सिस्टम इन मिडायबल इंडिया' में इस संबंध में विस्तार से जानकारी मिल जाएगी।
आक्रमणकारी मुसलमानों ने ऐसा इसलिए किया ताकि भारतीय भूल जाएं सब कुछ और याद रखें सिर्फ इस्लाम। ईरानी, तुर्क और अरबी आदि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर 700 वर्ष से अधिक राज किया और यहां के गरीब हिन्दुओं को निरंतर मुसलमान बनाया और समाज में एक नई दीवार खड़ी कर दी।
3.यह ऐसा काल था जबकि अंग्रेज भारत पर शासन करना चाहते थे। इसमें 'बांटो और राज करो' के सिद्धांत का बड़ा योगदान रहा जो ब्रिटेन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति भी करता था। इसके लिए जहां उन्होंने मुसलमानों और हिन्दुओं में फूट डालने का कार्य किया वही उन्होंने हिन्दुओं को आपस में बांटकर धर्मांतरण के जरिये बंगाल सहित दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत में लोगों को ईसाई बनाया। इस तरह उन्होंने 200 से अधिक वर्ष तक सफल तरीके से शासन किया।
इस सबका परिणाम यह निकला कि जहां हिन्दू दिनहिन हो गया वहीं वह हजारों जातियों में बंटकर अपने ही लोगों को पराया समझकर उनसे दूर रहने लगा। वह धीरे-धीरे विदेशी भक्त बन गया और अपने ही धर्म तथा देश को हिन दृष्टि से देखने लगा।
आगे पढ़ें वह प्रमुख पाइंट जिनसे हिंदू बंट गया जातियों में.
पाइंट 1. बौद्ध
और शंकराचार्य के काल में स्मृति और पुराण ग्रंथों में हेरफेर किया गया।
इस हेरफेर के चलते ही शास्त्र में उल्लेखित क्षूद्र शब्द के अर्थ को समझे
बगैर ही आधुनिक काल में निचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि शस्त्रों
में उल्लेखित क्षूद्र शब्द आप ही के लिए इस्तेमाल किया गया है। जबकि वेद
कहते हैं कि जन्म से सभी क्षूद्र होते हैं और वह अपनी मेहनत तथा ज्ञान के
बल पर श्रेष्ठ अर्थात आर्य बन जाते हैं।
क्षूद्र एक ऐसा शब्द था जिसने देश को तोड़ दिया। दरअसल यह किसी दलित के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था। लेकिन इस शब्द के अर्थ का अनर्थ किया गया और इस अनर्थ को हमारे आधुनिक साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों ने बखूबी अपने भाषण और लेखों में भुनाया।
पाइंट- 2 मध्यकाल में जबकि मुस्लिम और ईसाई धर्म को भारत में अपनी जड़े जमाना थी तो उन्होंने इस जातिवादी धारणा का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और इसे और हवा देकर समाज के नीचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि आपके ही लोग आपसे छुआछूत करते हैं। मध्यकाल में हिन्दू धर्म में बुराईयों का विस्तार हुआ। कुछ प्रथाएं तो इस्लाम के जोरजबर के कारण पनपी, जैसे सतिप्रथा, घर में ही पूजा घर बनाना, स्त्रीयों को घुंघट में रखना आदि।
पाइंट 3- अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो की नीति' तो 1774 से ही चल रही थी जिसके तहत हिंदुओं में उच-नीच और प्रांतवाद की भावनाओं का क्रमश: विकास किया गया अंतत: लॉर्ड इर्विन के दौर से ही भारत विभाजन के स्पष्ट बीज बोए गए। माउंटबैटन तक इस नीति का पालन किया गया। बाद में 1857 की असफल क्रांति के बाद से अंग्रेजों ने भारत को तोड़ने की प्रक्रिया के तहत हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग दर्जा देना प्रारंभ किया।
हिंदुओ को विभाजित रखने के उद्देश्य से ब्रिटिश राज में हिंदुओ को तकरीबन 2,378 जातियों में विभाजित किया गया। ग्रंथ खंगाले गए और हिंदुओं को ब्रिटिशों ने नए-नए नए उपनाप देकर उन्हों स्पष्टतौर पर जातियों में बांट दिया गया। इतना ही नहीं 1891 की जनगणना में केवल चमार की ही लगभग 1156 उपजातियों को रिकॉर्ड किया गया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज तक कितनी जातियां-उपजातियां बनाई जा चुकी होगी।
पाइंट 4- आजादी के बाद में यही काम हमारे राजीतिज्ञ करते रहे। उन्होंने भी अंग्रेजों की नीति का पालन किया और आज तक हिन्दू ही नहीं मुसलमानों को भी अब हजारों जातियों में बांट दिया। बांटो और राज करो की नीति के तहत आरक्षण, फिर जातिगत जनगणना, हर तरह के फार्म में जाति का उल्लेख करना और फिर चुनावों में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता में आना आज भी जारी है।
गरीब दलित यह नहीं जानता की हमारी जनसंख्या का फायदा हमें बांटकर उठाया जा रहा है। आजादी के 65 साल में आज भी गरीब गरीब ही है तो क्यों। नेहरुजी कहते थे हम भारत से जातिवाद और गरीबी को मिटा देगें और आज सोनिया भी यही कहती है कि हमें भारत से गरीबी मिटाना है। क्या 65 साल से ज्यादा लगते हैं गरीबी मिटाने के लिए ?
क्षूद्र एक ऐसा शब्द था जिसने देश को तोड़ दिया। दरअसल यह किसी दलित के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था। लेकिन इस शब्द के अर्थ का अनर्थ किया गया और इस अनर्थ को हमारे आधुनिक साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों ने बखूबी अपने भाषण और लेखों में भुनाया।
पाइंट- 2 मध्यकाल में जबकि मुस्लिम और ईसाई धर्म को भारत में अपनी जड़े जमाना थी तो उन्होंने इस जातिवादी धारणा का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और इसे और हवा देकर समाज के नीचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि आपके ही लोग आपसे छुआछूत करते हैं। मध्यकाल में हिन्दू धर्म में बुराईयों का विस्तार हुआ। कुछ प्रथाएं तो इस्लाम के जोरजबर के कारण पनपी, जैसे सतिप्रथा, घर में ही पूजा घर बनाना, स्त्रीयों को घुंघट में रखना आदि।
पाइंट 3- अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो की नीति' तो 1774 से ही चल रही थी जिसके तहत हिंदुओं में उच-नीच और प्रांतवाद की भावनाओं का क्रमश: विकास किया गया अंतत: लॉर्ड इर्विन के दौर से ही भारत विभाजन के स्पष्ट बीज बोए गए। माउंटबैटन तक इस नीति का पालन किया गया। बाद में 1857 की असफल क्रांति के बाद से अंग्रेजों ने भारत को तोड़ने की प्रक्रिया के तहत हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग दर्जा देना प्रारंभ किया।
हिंदुओ को विभाजित रखने के उद्देश्य से ब्रिटिश राज में हिंदुओ को तकरीबन 2,378 जातियों में विभाजित किया गया। ग्रंथ खंगाले गए और हिंदुओं को ब्रिटिशों ने नए-नए नए उपनाप देकर उन्हों स्पष्टतौर पर जातियों में बांट दिया गया। इतना ही नहीं 1891 की जनगणना में केवल चमार की ही लगभग 1156 उपजातियों को रिकॉर्ड किया गया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज तक कितनी जातियां-उपजातियां बनाई जा चुकी होगी।
पाइंट 4- आजादी के बाद में यही काम हमारे राजीतिज्ञ करते रहे। उन्होंने भी अंग्रेजों की नीति का पालन किया और आज तक हिन्दू ही नहीं मुसलमानों को भी अब हजारों जातियों में बांट दिया। बांटो और राज करो की नीति के तहत आरक्षण, फिर जातिगत जनगणना, हर तरह के फार्म में जाति का उल्लेख करना और फिर चुनावों में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता में आना आज भी जारी है।
गरीब दलित यह नहीं जानता की हमारी जनसंख्या का फायदा हमें बांटकर उठाया जा रहा है। आजादी के 65 साल में आज भी गरीब गरीब ही है तो क्यों। नेहरुजी कहते थे हम भारत से जातिवाद और गरीबी को मिटा देगें और आज सोनिया भी यही कहती है कि हमें भारत से गरीबी मिटाना है। क्या 65 साल से ज्यादा लगते हैं गरीबी मिटाने के लिए ?
By --अनिरुध्ध ....