पोप का मतलब होता है, पापा यानी पिताजी. इस शब्द का इस्तेमाल उस
व्यक्ति के लिए किया जाता है, जो कैथोलिक चर्च पर राज करता है. पोप के पद
को लेकर बहुत सारे किस्से-कहानियां प्रचलित हैं.
कुछ किस्से दुष्ट पोप के बारे में बताए जाते हैं तो इसके विपरीत पोप
सेंट ग्रिओगरी द ग्रेट, जिन्होंने दुनिया को कैलेंडर दिया के बारे में भी
बात की जाती है. इतिहास में पोप के पद से जुड़े लोगों का कई तरह से
खून-खराबे से भी नाता रहा है. .......
'पोप सेंट पीटर' (13 अक्टूबर 64 A.D.)
पोप सेंट पीटर प्रभु यीशु से बहुत प्रभावित थे। वह अपने समय में ईसाई धर्म के बड़े पैरोकार माने जाते थे। ईसाईयों से नफरत करने वाले रोमन शासक 'नीरो' एक बार पोप सिमोन पीटर से नाराज हो गए। उनके आदेश पर पोप को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, लेकिन वह किसी तरह भाग निकले। 'पीटर' को बाद में पश्चाताप हुआ। उन्होंने सम्राट नीरो के सामने आत्मसर्मपण कर अपने लिए मौत मांगी। उन्होंने कहा कि 'मेरे साथ वैसा ही बर्ताव किया जाए, जैसे यीशु के साथ हुआ। पोप को क्रूस पर लटका दिया गया, लेकिन उनकी गर्दन टेढ़ी होने के कारण वह लटकते हुए तड़पते रहे. बड़ी मुश्किल से आत्मा ने उनका साथ छोड़ा।
पोप सेंट सिक्टस-II (6 अगस्त 257)
पोप स्टीफन के मरने के बाद ही सिक्टस-II को नया पोप घोषित किया गया।
उनके समय में राजा वेलेरियन के आदेश के तहत सभी ईसाईयों को रोमन देवताओं के
सम्मान समारोहों में आना अनिवार्य था। पोप होने के कारण सिर्फ सिक्टर पर
समारोह में जाने का आदेश लागू नहीं होता था। आदेश की अवहेलना करने वाले कई
ईसाई पादरियों, बिशप और छोटे पादरियों को मौत के घाट उतार दिया गया। वहीं
भक्तों को उपदेश देने के दौरान राजा के आदमियों ने सिक्टस का सिर कलम कर
दिया। यह साल 248 की सबसे भयावह घटना मानी जाती है..
पोप सेंट पीटर प्रभु यीशु से बहुत प्रभावित थे। वह अपने समय में ईसाई धर्म के बड़े पैरोकार माने जाते थे। ईसाईयों से नफरत करने वाले रोमन शासक 'नीरो' एक बार पोप सिमोन पीटर से नाराज हो गए। उनके आदेश पर पोप को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, लेकिन वह किसी तरह भाग निकले। 'पीटर' को बाद में पश्चाताप हुआ। उन्होंने सम्राट नीरो के सामने आत्मसर्मपण कर अपने लिए मौत मांगी। उन्होंने कहा कि 'मेरे साथ वैसा ही बर्ताव किया जाए, जैसे यीशु के साथ हुआ। पोप को क्रूस पर लटका दिया गया, लेकिन उनकी गर्दन टेढ़ी होने के कारण वह लटकते हुए तड़पते रहे. बड़ी मुश्किल से आत्मा ने उनका साथ छोड़ा।
पोप सेंट क्लिमेंट-I (99 A.D.)
पोप सेंट स्टीफन-I (2 अगस्त 257)
एक किवदंती के अनुसार, रोम से निर्वासित होने के बाद पोप क्लिमेंट को
सजा के तौर पर दूर एक खदान में काम करने के लिए भेज दिया। वहां क्लिमेंट ने
एक कैदी साथी को प्यास से तड़पते हुए देखा। वह भगवान से प्रार्थना करने
लगे, तभी उन्हें पहाड़ी पर एक भेड़ का बच्चा दिखा। वे एक कुदाल लेकर आए और
उस जगह खोदना शुरू कर दिया, जहां भेड़ का बच्चा था। थोड़ी देर में ही वहां
से पानी का फव्वारा निकल पड़ा। इस चमत्कार को देख स्थानीय निवासी और
कैदियों ने उसी समय ईसाई धर्म अपना लिया। इस बात से नाराज सुरक्षा गार्डो
ने उनके गले में भारी एंकर बांध 'काले सागर' में फेंक दिया।
पोप सेंट स्टीफन-I (2 अगस्त 257)
स्टीफन केवल अकेले व्यक्ति थे, जो सिर्फ तीन साल के लिए पोप बने। उनके
साथ चर्च और बाहरी ताकतों के साथ विवादों की अनगिनत कहानियां थीं। चर्च
में वह पापी ईसाईयों के पुर्नदीक्षा के विरोध में सबसे ज्यादा मुखर होकर
बोलते थे। वहीं बाहर, कभी ईसाई लोगों के सहायक माने जाने वाले राजा
वेलेरियन दो राजाज्ञाओं का पालन न किए जाने के कारण उनके विरोधी हो गए थे।
एक उत्सव के दौरान स्टीफन राजा के सिंहासन पर बैठ गए थे। इसे देख राजा के
आदमियों ने उन्हें वहीं सिर कलम कर दिया। पूरा सिंहासन खून से लथपथ हो गया।
ऐसा कहा जाता है कि 18वीं सदी तक चर्च के पास यह खून से सना सिंहासन था।
पोप सेंट सिक्टस-II (6 अगस्त 257)
पोप जॉन-VII (18 अक्टूबर 707)
सीनेटर के पोते और राज्याधिकारी के बेटे जॉन सप्तम अपने प्रतिष्ठित
परिवार से पहले पोप थे। वह बैंजाटाइन पैपेसी के समय पोप थे, जहां सभी पोप
राजा बैंजाटाइन के आदेशों का पालन करते थे। हालांकि कई पोप उनके आदेशों को
ठीक नहीं मानते थे, लेकिन उन्हें मौत से डर लगता था। एक महिला के साथ सोते
हुए पकड़े जाने के अधिनियम के तहत जॉन को जमकर पीटा गया और बाद में मौत के
घाट उतार दिया
पोप जॉन-VIII (16 दिसम्बर 882)
अगर सारी बातों को दरकिनार कर दिया जाए पोप जॉन अष्टम अपने समय के
सबसे बेहतरीन पोप थे। उनके समय में राजनीतिक षड्यंत्र का बोलबाला था। पोप
भी इससे बचे नहीं थे। उन्होंने एक बार अंदाजा कहा था कि या तो उनकी हत्या
कर दी जाएगी या फिर उन्हें चर्च के खजाने की चोरी के इल्जाम में पद से हटा
दिया जाएगा। एक शाम पोप के रिश्तेदार उनसे मिलने आए और चुपचाप से उनकी
ड्रिंक में जहर मिला दिया। कुछ देर बाद रिश्तेदार ने देखा कि जहर का असर
नहीं हो रहा है तो उसने हथौड़ा उठाकर उनके सिर में जोर से दे मारा..
पोप स्टीफन-VII (अगस्त 897)
पोप स्टीफन (सप्तम) अपने किसी आदेश और परोपकार के कामों के लिए
प्रसिद्ध नहीं थे। उनके दुश्मनों ने उनके कपड़े उतारकर जमकर पीटा, फिर उनके
दाएं हाथ की तीन अंगुलियां काट डाली। फिर उन्हें टिबर नदी में फेंक दिया।
उनके द्वारा दिए गए सारे आदेशों को रद्द कर दिया गया। उन्हें जेल में डाल
दिया गया, जहां घुट-घुट कर उनकी मौत हो गई।
पोप जॉन-12 (14 मई 964)
पोप के बारे में सोचते ही दयालू, परोपकारी और भक्तों के घिरे हुए आदमी
का चेहरा उभरता है, लेकिन पोप जॉन-12 उनमें से नहीं थे। पोप बनते ही
उन्होंने सोचा कि सारी उम्र वह ब्रह्मचारी बने रहना उनके लिए संभव नहीं
हैं। उनके समय हत्या, लूटपाट, अनाचार ने जमकर सिर उठाया। एक बार एक घर में
एक महिला के साथ सेक्स करते हुए पकड़े जाने पर महिला के पति ने उन्हें
पीट-पीट कर मार डाला।
पोप जॉन-XXI (18 अगस्त 1277)
पोप जॉन-XXI के बड़े प्रसिद्ध लेखक होने के साथ डॉक्टरी की प्रैक्टिस
भी करते थे। उनके लेखन में तथ्य, दर्शन, मेडिकल का मिश्रण होता था। अपने
समय में उन्होंने डेंट्स का क्लासिक महाकाव्य लिखा। सच्चे मायनों वे स्वर्ग
जाने का हकदार थे। इटली में उनके पैलेस में एक नई विंग का निर्माण किया
गया था। दुर्भाग्य से उसकी छत कमजोर निकली। जिस समय वह सोए हुए थे, छत उनके
ऊपर गिर गई। आठ दिनों तक तड़पने के बाद उनकी मौत हो गई।
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