शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

!! क़ुतुब मीनार का सच .......!!


1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया ,तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में
गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था
1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई tab  वह गद्दी पर बैठा
,अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए I
1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी
अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने
क़ुतुब मीनार ,कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई I
अब कुछ प्रश्न .......
अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ?
क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने
के पहले भी वह लाहौर में था ?......शायद नहीं I
कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया
यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं
उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसके ऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी I
यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका नाम बादशाह गौरी के नाम पर "गौरी मीनार "या ऐसा ही कुछ होता
न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार I
उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार बनवाई ,अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुब मीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा
सकता है जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्व निर्धारित होता है ?
कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने के लिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी कि आवाज़ निचे तक आ भी सकती है ?
उपरोक्त सभी बातें झूठ का पुलिंदा लगती है इनमें कुछ भी तर्क की कसौटी पर सच्चा नहीं lagta
सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है वह मेहरौली कहा जाता है, मेहरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक , और
खगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन
के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था I
इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहींदिख जाती हैं I
कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं I
मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है ,अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता,
इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर " ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए "मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे
we भी हटा दिए गए होंगे ,अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है
इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे ,
इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता ,लिखा है की यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है
,सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौह स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा .उसी महानसम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट,खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण
विशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए
ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा निश्चय ही आसपास अन्य निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भ वि ष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए
इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोल शाष्त्री वराहमिहिर को जाता है I
कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज (स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर
अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया.

यूपी में मुलायम राज शुरू ???

! मुलायम जी का हाथ , कांग्रेस के साथ !

मुलायम जी का हाथ , कांग्रेस के साथ !
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समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने संवाददाताओं से कहा कि हमारा समर्थन स्पष्ट है ।तृणमूल कांग्रेस द्वारा समर्थन वापसलिए जाने से उत्पन्न स्थिति के बीच संप्रग को बड़ी राहत प्रदान करते हुए समाजवादी पार्टी ने शुक्रवार को कहा कि वह सरकार को अपना समर्थन जारी रखेगी, क्योंकि वह सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता में नहीं आने देना चाहती।
समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने संवाददाताओं से कहा कि हमारा समर्थन स्पष्ट है और रहेगा।

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1) सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों को 18 फीसदी आरक्षण की जोरदार पैरवी की।
http://www.bhaskar.com/article/NAT-demond-18-percent-quota-for-muslims-3404209.html
http://www.indianexpress.com/news/mulayams-promise-on-quota-for-muslims/914077/
2) मुलायम ने की सिमी (SIMI) की वकालत

3) माया ही नहीं मुलायम की सरकार में भी हुआ एनआरएचएम घोटाला
http://hindi.oneindia.in/news/2012/01/21/uttar-pradesh-nrhm-scam-mayawati-mulayam-singh-yadav-bjp-congress-aid0162.html
4) अखिलेश की कैबिनेट में छह दागी भी
http://www.livehindustan.com/news/up/khabre/article1-story-344-344-222850.html
5) मुलायम सिंह यादव का आयुर्वेद घोटाला
http://newsaaj.in/newsdetail.php?id=3_0_85363
6) भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस कोसमर्थन: मुलायम सिंह यादव
http://hindi.in.com/showstory.php?id=1348122
7) राष्ट्रपति चुनाव में मुलायम कांग्रेस के साथ!
http://haftekibaat.blogspot.in/2012/05/blog-post_3297.h tml
8) जनलोकपाल से अभी से ही डरे मुलायम-लालू
http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/687762/9/76/Lalu-Mulayam-frightened-of-Lokpal.html
9) 2 नवम्बर, 1990 को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4% BE_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
http://hinduexistence.wordpress.com/tag/mulayam-singh-yadav
10) अखिलेश राज में बढ़ा अपराध, 669 हत्याएं, 263 बलात्कार!
http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=58882
11) मुलायम के राज में यूपी का अनाज घोटाला 2 जी से भी बड़ा !
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7055348.cms
जय हिंद !

ग्रन्थ दो तरह के होते हँ धार्मिक ग्रन्थ और एक सामजिक ग्रन्थ

ग्रन्थ दो तरह के होते हँ
एक धार्मिक ग्रन्थ और एक सामजिक ग्रन्थ
धार्मिक ग्रन्थ वे होते हँ जिनमे आत्मा, परमात्मा, माया आदि का प्रधानता से वर्णन हँ , वेद , उपनिषद, वेदांत सूत्र , महाभारत, रामायण, पुराण आदि वैदिक ग्रन्थ धार्मिक ग्रन्थ हँ
ये धार्मिक ग्रन्थ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए परम कल्याणकारी हँ
इन धार्मिक ग्रंथो को हर हिन्दू मानता हँ और मानना चाहिए
लेकिन एक सामाजिक ग्रन्थ भी होते हँ जो समय समय पर कुछ लोगो द्वारा लिखे जाते हँ जिन्हें लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं हँ की उन्हें हिन्दू लोग माने ही क्योकि कोई व्यक्ति उस समय के हिसाब से अगर अपनी स्मृतियों या मनोभावों के आधार पर कुछ लिखता हँ तो समय बदलने पर उसके विचार भी अप्रासंगिक हो जाते हँ
ऐसा ही एक ग्रन्थ '' मनुस्मृति '' हँ
जैसा की नाम से ही स्पष्ट हँ ये ग्रन्थ एक मनु नाम में राजा का अपनी स्मृतियों के आधार पर लिखा हुआ ग्रन्थ हँ

मनुस्मृति नाम के एक ग्रन्थ में शुद्रो को हमेशा के लिए ही शुद्र (नौकर ) ही बनाये रखने के तरीके बताये गए हँ जिन पर कठोरता से अमल करने की भी बात कही गयी हँ
अवश्य ही मनुस्मृति में कुछ बहुत अच्छी नीति की बाते भी बताई गयी हँ लेकिन सिर्फ जानकार व्यक्ति ही मनुस्मृति में से सामाजिक नीति की अच्छी बातो को पहचान सकता हँ
लेकिन ये काम कोई जानकार व्यक्ति ही कर सकता हँ , साधारण जन समुदाय नहीं
सवामी दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रन्थ '' सत्यार्थ प्रकाश '' में मनुस्मृति से काफी उद्धरण दिए हँ लेकिन, वही पर उन्होंने उसी ग्रन्थ में ये भी साफ़ कर दिया हँ की मनुस्मृति के '' प्रक्षिप्त श्लोको '' से बचना चाहिए
लेकिन सवाल ये हँ की कितने लोग इन प्रक्षिप्त श्लोको की पहचान कर सकते हँ ?
इसलिए जानकार लोग मनुस्मृति को ऐसा ही मानते हँ जैसे विष मिला हुआ अन्न , उसे छोड़ देना ही अच्छा हँ ,
जब हमारे पास वैदिक साहित्य का विपुल भण्डार हँ तो हमे किसी सांसारिक व्यक्ति की स्मृतियों से क्या मतलब होना चाहिए ?
और अगर सामिजिक नियम कायदे कानून के लिए हमे किसी संसारी व्यक्ति के विचारों को ही तवज्जो देनी हँ तो हमे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा लिखित ''' शंकर स्मृति '' को पढना चाहिए
अक्सर लोग मनुस्मृति को धार्मिक ग्रन्थ मानकर इसकी बहुत चर्चा किया करते हँ जो की पूरी तरह से गलत धारणा हँ
दरअसल हिन्दू धर्म के सिद्धांतो से अनभिज्ञ वे लोग जो हिन्दू धर्म को पसंद नहीं करते और हिन्दू धर्म में दोष निकालना चाहते हँ वे लोग इस मनुस्मृति को धार्मिक ग्रन्थ साबित करने की कोशिश किया करते हँ
लेकिन धर्म उनके कहे अनुसार या उनकी इच्छा से नहीं चल सकता
जब बात मनुस्मृति की करते हँ तो वो पूरी तरह से एक एक सामाजिक ग्रन्थ हँ , धार्मिक नहीं, उसका किसी धार्मिक साधना से से कोई लेना देना नहीं हँ
वो मनु नाम के एक राजा ने अपनी स्मृति के आधार पर लिखा हँ, उसमे भगवान् से जुडी हुई कोई बात नहीं हँ
मनुस्मृति पूरी तरह से एक सामजिक ग्रन्थ हँ , जिसे उसे मानना हो वो उसे माने, जिसे न मानना हो वो न माने , धर्म का मामला पूरी तरह से अलग हँ और धर्म सम्बन्धी धार्मिक ग्रन्थ बिलकुल अलग विषय हँ
उस सामाजिक ग्रन्थ को तो अधिकाँश हिन्दू ही नहीं मानते , न तो पहले मानते थे और न ही आज मानते हँ
इस मनुस्मृति को प्रसिद्द करने का श्री डॉक्टर आंबेडकर को जाता हँ जिन्होंने हिन्दू धर्म की धार्मिकता का मतलब इस मनुस्मृति को ही समझा
उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू धर्म के खिलाफ जितनी स्पीच दी उसमे उन्होंने हिन्दू धर्म की बुराइया गिनवाते हुए 90 % इस मनुस्मृति का ही जिक्र किया हँ क्योकि वे धार्मिक ग्रंथो के न तो जानकार ही थे और न ही उन्हें समझ सकते थे
ब्रह्मज्ञान क्या हँ ? आत्मा क्या हँ ? आत्मा परमात्मा विवेक, साधना क्या होती हँ ? क्यों होती हँ ? कितने प्रकार की होती हँ ? सर्वश्रेस्थ साधना क्या हँ और क्यों हँ ? अद्वेतवाद क्या हँ ? द्वेत्वाद क्या हँ ? कर्मयोग क्या हँ , ज्ञानयोग क्या हँ , भक्तियोग क्या हँ ? इन बातो को आंबेडकर कदापि नहीं समझ सकते थे इसलिए वे अपनी अज्ञानता , अपनी कमजोरी को छिपाते हुए सिर्फ मनुस्मृति जैसे सामाजिक ग्रन्थ को ही धार्मिक जानकर इसे ही हिन्दू धर्म का अभिप्राय समझकर बाकी दलितों को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काया करते थे
आंबेडकर को हिन्दू धर्म से कितनी चिढ थी और वे किस हद तक इस धर्म को नीचा दिखाना चाहते थे ये उनके वांग्मय को पढ़कर आसानी से जाना जा सकता हँ
आंबेडकर वांग्मय के खंड - 6 में उन्होंने कहा हँ की '' इस परम पवित्र मनुस्मृति को हिन्दू धर्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानना चाहिए ''
अब ध्यान दीजिये , आंबेडकर क्यों चाहते हँ की मनुस्मृति को हिन्दू धर्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानना चाहिए ?? ???????????????
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और उन्हें ऐसा क्यों लगा की वे या और भी कोई हिन्दू धर्म को अपने हिसाब से चला सकते हँ ?
क्या इन बातो का कोई जवाब हँ ?
यहाँ पर एक बात ध्यान देने की और भी हँ की बाबा साहब ने मनुस्मृति भी वो पढ़ी थी जो किसी और ने हिंदी में ने ट्रांसलेट की हुई थी , क्योकि उन्हें तो साधारण संस्कृत भी नहीं आती थी फिर वैदिक संस्कृत की बात तो कौन कहे
कोई हेरानी नहीं हँ की आज भी बाबा साहब के अनुयायी मनुवादी शब्द का जिक्र बार बार किया करते हँ , लेकिन मनुवादी लोग कौन हँ ? देश में कहा रहते हँ ? और ये राजा मनु ही कौन था ? और जितनी जानकारी आपको मनुस्मृति की हँ , क्या उसकी एक चौथाई भी आपको ब्रह्मज्ञान सम्बन्धी कोई जानकारी हँ ?(सिर्फ जानकारी ही , क्योकि आंबेडकर या उनके अनुयायियों से कोई भी ये उम्मीद नहीं कर सकता की वे लोग भगवत प्राप्ति की साधना कर सकते हँ , वे लोग साधना करने की बजाय कुतर्क करने में अपना समय बर्बाद करना ज्यादा पसंद करते हँ )
इन बातो का कोई जवाब शायद ही उनके पास हो

अल्लाह का दरबार कैसा है ?