आज हम आपको 22 साल
के एक ऐसे जवान के बारे में बता रहे हैं, जिसने मात्र पांच घुड़सवार और 25
तलवारधारी सैनिकों के बल पर दिल्ली की मुगलिया सल्तनत के खिलाफ विद्रोह
का झंडा बुलंद किया था और मुगल सम्राट औरंगजेब की सत्ता को हिलाकर रख दिया
था। इस जवान ने जीवनभर कभी मुगलों की सत्ता के सामने अपना सिर नहीं
झुकाया।
इस जवान का नाम था - छत्रसाल। इसका जन्म मध्य प्रदेश के कचार कचनाई में 4 मई 1649 को चंपरातय और लालकुंअर के यहां हुआ था। युवा छत्रसाल ने अपनी ताकत के बल पर बुंदेलखंड के अधिकाश हिस्से पर अपना आधिपत्य स्थापित कर खुद को महाराजा बनाया। छत्रसाल के वंशज महाराजा रुद्रप्रताप सिंह थे, जिन्होंने ओरछा राज की स्थापना की थी। रुद्र प्रताप मुगलों के जागीरदार थे।
वीर युवा छत्रसाल ने 22 साल की उम्र में पांच घुड़सवार और 25 तलवारधारी सैनिकों को लेकर 1671 में मुगलों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की। दस साल के लगातार संघर्ष के दौरान छत्रसाल ने पूर्व में चित्रकूट और पन्ना के बीच का क्षेत्र और पश्चिम में ग्वालियर तक इलाका जीत लिया था। उनके राज्य का हिस्सा उत्तर में कालपी से लेकर दक्षिण में सागर, गढ़कोटा और दमोह तक था। उन्होंने 1680 में महोबा पर भी कब्जा किया।
हालांकि संघर्ष के दूसरे दौर में 1681 और 1707 में उन्हें कुछ नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन औरंगजेब ने अपना मुख्य ध्यान दक्षिण की ओर कर रखा था, इस कारण वह कभी भी छत्रसाल के खिलाफ अपनी पूरी सेना का उपयोग नहीं कर पाए।
मुगलों के कई सेनापतियों को हराया : बुंदेल केसरी ने अपने कुशल युद्धकला से मुगलों के कई सेनापतियों रोहिल्ला खान, कलिक मुनव्वर खान, सद्रुद्दीन, शेख अनवर, सैय्यद लतीफ, बहलोल खान और अब्दुस अहमद को युद्ध के मैदान में हराया।
महाराजा छत्रसाल के मराठा राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के साथ उनके गहरे रिश्ते रहे। उनके बाद पेशवाओं से भी यह रिश्ते प्रगाढ़ होते चले गए। इलाहाबाद के मुगल शासक मोहम्मद खान बंगश ने 1727-1728 में जब महाराजा छत्रसाल के राज्य पर हमला किया, तो इस संकट के दौर में छत्रसाल ने बाजीराव पेशवो से मदद मांगी।
सेना के साथ एक अभियान पर निकले बाजीराव ने संकट में फंसे महाराजा छत्रसाल की मदद के लिए अपनी सेना भेजी और मुगल शासक बंगश की सेना को हराकर महाराज छत्रसाल को बुंदेलखंड की गद्दी पर बिठाया। छत्रसाल ने मदद मिलने पर बाजाीराव को एक पर्सियन मुस्लिम महिला से पैदा हुई अपनी बेटी मस्तानी और झांसी, सागर और कालपी के साथ ही 33 लाख सोने की मुद्राएं भेंट में दी।
कला, साहित्य और धर्म के संरक्षक थे महाराजा छत्रसाल : महाराजा छत्रसाल ने प्रणामी समुदाय के संत प्राणनाथ जी को अपना गुरु माना और उनके मत को स्वीकार किया था। बुंदेल केसरी के दरबार में कवि भूषण, लाल कवि, बख्सी हंसराज जैसे कवियों को विशेष संरक्षण भी था।
इस जवान का नाम था - छत्रसाल। इसका जन्म मध्य प्रदेश के कचार कचनाई में 4 मई 1649 को चंपरातय और लालकुंअर के यहां हुआ था। युवा छत्रसाल ने अपनी ताकत के बल पर बुंदेलखंड के अधिकाश हिस्से पर अपना आधिपत्य स्थापित कर खुद को महाराजा बनाया। छत्रसाल के वंशज महाराजा रुद्रप्रताप सिंह थे, जिन्होंने ओरछा राज की स्थापना की थी। रुद्र प्रताप मुगलों के जागीरदार थे।
वीर युवा छत्रसाल ने 22 साल की उम्र में पांच घुड़सवार और 25 तलवारधारी सैनिकों को लेकर 1671 में मुगलों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की। दस साल के लगातार संघर्ष के दौरान छत्रसाल ने पूर्व में चित्रकूट और पन्ना के बीच का क्षेत्र और पश्चिम में ग्वालियर तक इलाका जीत लिया था। उनके राज्य का हिस्सा उत्तर में कालपी से लेकर दक्षिण में सागर, गढ़कोटा और दमोह तक था। उन्होंने 1680 में महोबा पर भी कब्जा किया।
हालांकि संघर्ष के दूसरे दौर में 1681 और 1707 में उन्हें कुछ नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन औरंगजेब ने अपना मुख्य ध्यान दक्षिण की ओर कर रखा था, इस कारण वह कभी भी छत्रसाल के खिलाफ अपनी पूरी सेना का उपयोग नहीं कर पाए।
मुगलों के कई सेनापतियों को हराया : बुंदेल केसरी ने अपने कुशल युद्धकला से मुगलों के कई सेनापतियों रोहिल्ला खान, कलिक मुनव्वर खान, सद्रुद्दीन, शेख अनवर, सैय्यद लतीफ, बहलोल खान और अब्दुस अहमद को युद्ध के मैदान में हराया।
महाराजा छत्रसाल के मराठा राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के साथ उनके गहरे रिश्ते रहे। उनके बाद पेशवाओं से भी यह रिश्ते प्रगाढ़ होते चले गए। इलाहाबाद के मुगल शासक मोहम्मद खान बंगश ने 1727-1728 में जब महाराजा छत्रसाल के राज्य पर हमला किया, तो इस संकट के दौर में छत्रसाल ने बाजीराव पेशवो से मदद मांगी।
सेना के साथ एक अभियान पर निकले बाजीराव ने संकट में फंसे महाराजा छत्रसाल की मदद के लिए अपनी सेना भेजी और मुगल शासक बंगश की सेना को हराकर महाराज छत्रसाल को बुंदेलखंड की गद्दी पर बिठाया। छत्रसाल ने मदद मिलने पर बाजाीराव को एक पर्सियन मुस्लिम महिला से पैदा हुई अपनी बेटी मस्तानी और झांसी, सागर और कालपी के साथ ही 33 लाख सोने की मुद्राएं भेंट में दी।
कला, साहित्य और धर्म के संरक्षक थे महाराजा छत्रसाल : महाराजा छत्रसाल ने प्रणामी समुदाय के संत प्राणनाथ जी को अपना गुरु माना और उनके मत को स्वीकार किया था। बुंदेल केसरी के दरबार में कवि भूषण, लाल कवि, बख्सी हंसराज जैसे कवियों को विशेष संरक्षण भी था।