शुक्रवार, 8 जून 2012

हिन्दू सनातन धर्र्म में मांसाहार बरजित है ?

हिन्दू सनातन धर्र्म में मांसाहार बरजित है ----- ऋग्वेद, यजुर्वेद, महाभारत, रामायण तथा अन्य वैदिक ग्रंथो में मदिरा सेवन व् मांसाहार की घोर निंदा की गई हे.और इसके कई सारे प्रमाण ग्रंथो में मिलते हे. दीर्घ द्रष्टा ऋषियो ने इसको दुर्व्यसन व् अधःपतन का प्रमुख कारण माना हे. मनुस्मृति, पराशर स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति में भी इसका निषेध किया गया हे. आर्य संस्कृति और सनातन धर्म ऐसे दुर्व्यसनो का हमेसा विरोधी रहा हे. यह बात का ध्यान रखा जाए. अगर कोई हिंद...ू वैदिक काल का प्रमाण देकर मदिरापान और मांसाहार करता हे तो वह गलत होगा. और साथ ही आज वर्तमान में भी कुछ देवी-देवताओ को मदिरा व् पशु बलि अर्पण की जाती हे लेकिन इसका अर्थ यह नहीं हे की इसका सम्बन्ध वैदिक संस्कृति से हे. यह एक अंधश्रद्धा मात्र हे. क्युकी देवी देवता को मांस और बलि अर्पण करना वैदिक संस्कृति में नहीं हे. जिसके कुछ प्रमाण यहाँ उपस्थित हे. - यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत: तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यत: यजुर्वेद ४०। ७ जो सभी भूतों में अपनी ही आत्मा को देखते हैं, उन्हें कहीं पर भी शोक या मोह नहीं रह जाता क्योंकि वे उनके साथ अपनेपन की अनुभूति करते हैं | जो आत्मा के नष्ट न होने में और पुनर्जन्म में विश्वास रखते हों, वे कैसे यज्ञों में पशुओं का वध करने की सोच भी सकते हैं ? वे तो अपने पिछले दिनों के प्रिय और निकटस्थ लोगों को उन जिन्दा प्राणियों में देखते हैं | - ब्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम् एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दान्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च अथर्ववेद ६।१४०।२ हे दांतों की दोनों पंक्तियों ! चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ | यह अनाज तुम्हारे लिए ही बनाये गए हैं | उन्हें मत मारो जो माता – पिता बनने की योग्यता रखते हैं | - अघ्न्या यजमानस्य पशून्पाहि - यजुर्वेद १।१ - हे मनुष्यों ! पशु अघ्न्य हैं – कभी न मारने योग्य, पशुओं की रक्षा करो | धर्म के नाम पर की जाने वाली हिंसा बंध की जाए... सनातन हिन्दू धर्म में हिंसा नहीं हे... म्लेच्छ एवं यवन जेसे अन्य जातिओ के लोगो ने वैदिक काल में हिंसा घुसाई हे... हिंसा करके अभक्ष्य खाने वाले लोग सनातनी नहीं हे. आर्य हिंसक नहीं थे. जिसका ज्वलंत उदहारण महाभारत में दर्शाया गया हे ..."सूरा- मत्स्या मधु -मांसमासवं क्रूसरौदनम धुर्तेह प्रवर्तितं ह्येत्न्नेताद वेदेषु कल्पितम" अर्थात - शराब, मछली आदि का यज्ञ में बलिदान धूर्तो द्वरा प्रवर्तित किया गया हे ! वेदों में मांस बलि का विधान निर्दिष्ट नहीं हे. (महा. शांति. २६४.९) "मांस पाक प्रतिशेधाश्च तद्वत" अर्थात वैदिक कर्मो में विहाराग्नी में मांस पकाने का निषेध हे, (मीमांसा. १२.२.२) और इसे कई प्रमाण भारतीय शास्त्र में हे... अगर इतने बड़े वैदिक शास्त्र बलि का विरोध करते हे तो आज के मंदिरों और खास कर माई मंदिरों और शाक्त उपासको द्वारा हो रहे बलि विधानों की प्रमाणिकता प्रश्नीय हे...में दावे के साथ उनको गलत, मुर्ख एवं ढोंगी कहता हु. वह धार्मिक न होकर पाखंडी हे. बलि निषेध हे. हमारा हिन्दू धर्म "सर्वं खल्विदं ब्रह्मं" मानने वाला हे... यह ध्यान रखा जाए... और एसे दुष्टों का विरोध किया जाए. सोमरस का नाम लेकर उसका प्रमाण दे कर वर्तमान में दारु का सेवन करने वाले और उसी तरह वैदिक काल में मांसाहार के प्रचलन का प्रमाण दे कर वर्तमान में मांसाहार करने वाले हिंदू समाज गलत रास्ते पर जा रहा हे और खास कर आज के हिंदू नव युवक "कभी-कभी" के नाद में जम कर दारु व् मांसाहार करते हे जो गलत हे. दुखद बात हे वर्तमान में समाज को सही रास्ता दिखने वाले ब्रह्मिन भी इससे अलिप्त नहीं रहे. हमारे वैदिक शास्त्र व् साहित्य हमेसा मदिरा-मांसाहार का निंदक रहा हे. और चूँकि सोमरस मदिरा नहीं थी सो उसके नाम पर मदिरा सेवन करना एक गलत बात हे.... हज़ार साल की ग़ुलामी किसी भी धर्म को मटियामेट कर देने के लिए काफ़ी होती है, लेकिन आज भी हम अस्सी प्रतिशत हैं तो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि हिंदु धर्म प्रगतिशील है, लचीला है, समय-देश-काल के अनुसार ख़ुद को ढाल लेता है। सबसे बड़ी बात, इतिहास में ऐसा एक भी... उदाहरण नहीं मिलेगा जो साबित करे कि हिंदु धर्म को तलवार के दम पर फैलाया गया था। इस्लाम के साथ ठीक उलटा है क्योंकि उसका "शुभारंभ" ही ख़ून-ख़राबे से हुआ था। इसके बावजूद मोहम्मद साहब, हज़रत अली और उनके बाद हुसैन साहब के साथ जो कुछ हुआ उसकी तरफ़ से आंखें मूंद लेना यहां मौजूद "ज्ञानी" पुरूषों की मजबूरी है, जिनके हिंदु पूर्वजों को कायरता का परिचय देते हुए, औरंगज़ेब की तलवार के आगे झुकना पड़ा था। अफ़सोस, कि उन्हें एक ऐसे धर्म को क़ुबूलना पड़ा जो आज भी 1400 साल पीछे ही अटका हुआ है, जिसमें सातवीं सदी से आगे बढ़ने की चाह रखने वालों को "सलमान तासीर" और "तसलीमा नसरीन" बना दिया जाता है और जिसके मानने वालों ने अपने झूठे विश्वास के चलते पूरी दुनिया को तबाह करने की ठानी हुई है। अंधेरी सुरंग में बंद करके रखे गए ऐसे धर्म के विषय में की गयी उपरोक्त भविष्यवाणी अगर कभी सही हो जाए तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। उधर नास्त्रेदेमस के अनुसार भी ईसाईयत और इस्लाम के बीच युद्ध में इस्लाम का नामोनिशान मिट जाएगा जिसके बाद विश्व हिंदु दर्शन की पताका तले ही शांति की ओर अग्रसर होगा। ईसाईयत और इस्लाम के बीच युद्ध की शुरूआत अमेरिका पर हुए हमले के साथ हो ही चुकी है। अफगानिस्तान, इराक़ और लीबिया के बाद अब शायद इसका रूख़ ईरान की तरफ़ हो, और हो सकता है, ऐसे में जल्द ही तमाम भविष्यवाणियां हक़ीक़त का रूप ले लें!!! :):)तो हम सदियों से कायम है आज भी कायम रहेगे आगे भी कायम रहेगे ,,कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है हिन्दू सनातन धर्म का ,,चाहे कोई कितना भी चिला ले .....

!! अपनी अंतरात्मा की बुराई और दुसरे की अच्छाई देखे !!



ज्यादातर लोग गलती निकालने और शिकायत करने का कोई मौका नहीं चूकते खुद को सुधारक की तरह पेश करना उनकी आदत है ! अक्सर अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की उनकी आदत को लेकर चर्चा होती है दरअसल शिकायत करना, गलतियां निकालना और जगह-जगह अपनी प्रतिक्रिया देना अहं का ही एक रुप है ! यह ‘जियो और जीने दो’ दर्शन के प्रतिकूल है!
कोई भी ब्यक्ति जो अपने चिंतन को नियंत्रित नहीं कर पाता, वह हर आदमी में बुराई खोज निकालता है ! इसक उलट चिंतन को नियंत्रित करना सीख जाएं तो हर आदमी में अच्छाई भी खोजी जा सकती है ! मन का स्वाभाव है कि वह खुद के सही होने और दूसरे के गलत होने को लेकर गोलबंदी करता रहता है ! मसला यह है कि आप इसे कितना नियंत्रित कर पाते हैं...........
अहं को कोई इतनी मजबूती नहीं देता जितना सही होने का अहसास ! व्यवसायी और चिंतक एंड्रयू कारनेगी कहते कि सामने वाला क्या है इससे अधिक जरुरी प्रश्न यह है कि आपकी तलाश क्या है? सोने की खुदाई में टनों मिट्टी को हटाना होता है !अब अगर आप मिट्टी को देखने लगे तो सारा काम बेमोल लगेगा, लेकिन सोने का देखें तो जान पाएंगे कि आपने मिट्टी के बीच क्या पाया है ! आप वही पाते हैं जो आप पाना चाहते हैं! आप बात-बात पर शिकायतें करते हैं क्योंकि आपमें इतना नैतिक बल नहीं कि सुधार कर सकें......
वैसे प्रतिभाशाली लोगों का असफल होना एक सामान्य सी बात है, जो ‘इंसानों के इंजीनियर’ नहीं होते.इंसानों के इंजीनियर होने का यह मतलब है कि आप इंसान रुपी मशीन के किसी नट-वोल्ट के घिसे होने पर टीका टिप्पणी न कर उसे कसने में मदद करें. यह भी कि अपने भीतर देखते रहें कि कहीं कोई पुर्जा घिस तो नहीं गया ! बुद्घ-महावीर ने भी कईं बरस खुद में झांका. उसके बाद ही उन्होंने दूसरों के पुर्जे दुरुस्त किए.........आप सभी को सुप्रभात ..जय हिंद ...