ज्यादातर लोग गलती निकालने और शिकायत करने का कोई मौका नहीं चूकते खुद को सुधारक की तरह पेश करना उनकी आदत है ! अक्सर अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की उनकी आदत को लेकर चर्चा होती है दरअसल शिकायत करना, गलतियां निकालना और जगह-जगह अपनी प्रतिक्रिया देना अहं का ही एक रुप है ! यह ‘जियो और जीने दो’ दर्शन के प्रतिकूल है!
कोई भी ब्यक्ति जो अपने चिंतन को नियंत्रित नहीं कर पाता, वह हर आदमी में बुराई खोज निकालता है ! इसक उलट चिंतन को नियंत्रित करना सीख जाएं तो हर आदमी में अच्छाई भी खोजी जा सकती है ! मन का स्वाभाव है कि वह खुद के सही होने और दूसरे के गलत होने को लेकर गोलबंदी करता रहता है ! मसला यह है कि आप इसे कितना नियंत्रित कर पाते हैं...........
अहं को कोई इतनी मजबूती नहीं देता जितना सही होने का अहसास ! व्यवसायी और चिंतक एंड्रयू कारनेगी कहते कि सामने वाला क्या है इससे अधिक जरुरी प्रश्न यह है कि आपकी तलाश क्या है? सोने की खुदाई में टनों मिट्टी को हटाना होता है !अब अगर आप मिट्टी को देखने लगे तो सारा काम बेमोल लगेगा, लेकिन सोने का देखें तो जान पाएंगे कि आपने मिट्टी के बीच क्या पाया है ! आप वही पाते हैं जो आप पाना चाहते हैं! आप बात-बात पर शिकायतें करते हैं क्योंकि आपमें इतना नैतिक बल नहीं कि सुधार कर सकें......
वैसे प्रतिभाशाली लोगों का असफल होना एक सामान्य सी बात है, जो ‘इंसानों के इंजीनियर’ नहीं होते.इंसानों के इंजीनियर होने का यह मतलब है कि आप इंसान रुपी मशीन के किसी नट-वोल्ट के घिसे होने पर टीका टिप्पणी न कर उसे कसने में मदद करें. यह भी कि अपने भीतर देखते रहें कि कहीं कोई पुर्जा घिस तो नहीं गया ! बुद्घ-महावीर ने भी कईं बरस खुद में झांका. उसके बाद ही उन्होंने दूसरों के पुर्जे दुरुस्त किए.........आप सभी को सुप्रभात ..जय हिंद ...
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