शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

गोडसे ने गाँधी के वध करने के 150 कारण न्यायालय के समक्ष बताये थे।





उन्होंने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर
सुनाना चाहते है । अतः उन्होंने वो १५० बयान माइक पर पढ़कर सुनाए। लेकिन
कांग्रेस सरकार ने (डर से) नाथूराम गोडसे के गाँधी वध के कारणों पर बैन
लगा दिया कि वे बयां भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पायें। गोडसे के उन
बयानों में से कुछ बयान क्रमबद्ध रूप में, में लगभग १० भागों में आपके
समक्ष प्रस्तुत करूंगा। आप स्वं ही विचार कर सकते है कि गोडसे के बयानों
पर नेहरू ने क्यो रोक लगाई ?और गाँधी वध उचित था या अनुचित।

अनुच्छेद, १५ व १६....
.."इस बात को तो मै सदा
बिना छिपाए कहता रहा हूँ कि में गाँधी जी के सिद्धांतों के विरोधी
सिद्धांतों का प्रचार कर रहा हूँ। मेरा यह पूर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा
का अत्यधिक प्रचार हिदू जाति को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अंत में यह
जाति ऐसी भी नही रहेगी कि वह दूसरी जातियों से ,विशेषकर मुसलमानों के
अत्त्याचारों का प्रतिरोध कर
सके।"
---"हम
लोग गाँधी जी कि अहिंसा के ही विरोधी ही नही थे,प्रत्युत इस बात के अधिक
विरोधी थे कि गाँधी जी अपने कार्यों व विचारों में मुसलमानों का अनुचित
पक्ष लेते थे और उनके सिद्धांतों व कार्यों से हिंदू जाति कि अधिकाधिक
हानि हो रही थी।" -----


(पार्ट 1  इससे पहले नोट में हम बता चुके है)
गाँधी वध क्यों? ...जानिए .....पार्ट-2-विस्तार से

अनुच्छेद, ६९ ..
....."३२ वर्ष से गाँधी जी
मुसलमानों के पक्ष में जो कार्य कर रहे थे और अंत में उन्होंने जो
पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया दिलाने के लिए अनशन करने का निश्चय किया ,इन
बातों ने मुझे विवश किया कि गाँधी जी को समाप्त कर देना चाहिए।
"---

अनुच्छेद,७०..भाग ख .."खिलाफ
त आन्दोलन जब असफल हो
गया तो मुसलमानों को बहुत निराशा हुई और अपना क्रोध उन्होंने हिन्दुओं पर
उतारा।
--"मालाबार,पंजाब,बंगाल ,
सीमाप्रांत में हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार हुए। जिसको मोपला विद्रोह
के नाम से पुकारा जाता है। उसमे हिन्दुओं कि धन, संपत्ति व जीवन पर सबसे
बड़ा आक्रमण हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया,स्त्रियों के
अपमान हुए। गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौन
रहे।"-
----"प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि
मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया।यद्यपि उनके मुस्लिम
मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।

-और उल्टे मोपला मुसलमानों
के लिए फंड शुरू कर दिया। "---------

गाँधी वध क्यों? ...जानिए .....पार्ट-3

जैसा की पिछले भाग में बताया गया है कि गोडसे गाँधी की मुस्लिम तुस्टीकरण
की निति से किस प्रकार छुब्द था अब उससे आगे के बयान


अनुच्छेद ७० का भाग ग ...जब खिलाफत आन्दोलन असफल हो
गया -
--इस ध्येय के लिए
गाँधी अली भाइयों ने गुप्त से अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर हमला करने
का निमंत्रण दिया.इस षड़यंत्र के पीछे बहुत बड़ा इतिहास है।

-गाँधी जी के एक लेख का अंश नीचे
दिया जा रहा है...."मै नही समझता कि जैसे ख़बर फैली है,अली
भाइयों को क्यो जेल मे डाला जाएगा और मै आजाद रहूँगा?उन्होंने ऐसा कोई
कार्य नही किया है कि जो मे न करू। यदि उन्होंने अमीर अफगानिस्तान को
आक्रमण के लिए संदेश भेजा है,तो मै भी उसके पास संदेश भेज दूँगा कि जब वो
भारत आयेंगे तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारतवासी उनको हिंद से बहार
निकालने में सरकार कि सहायता नही करेगा।"

गाँधी वध क्यों? ...जानिए .....पार्ट-4

अनुच्छेद ७० का भाग ठ..हिन्द
 के विरूद्ध
हिदुस्तानी --राष्ट्र भाषा के प्रश्न पर गाँधी जी ने
मुसलमानों का जिस प्रकार अनुचित पक्षलिया----किसी
 भी
द्रष्टि से देखा जाय तो राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है। परंतु
मुसलमानों खुश करने के लिए वे हिन्दुस्तानी का प्रचार करने
लगे-यानि बादशाह राम व बेगम सीता जैसे
शब्दों का प्रयोग होने लगा। ---हिन्दु
स्तानी के रूप
में स्कूलों में पढ़ाई जाने लगी इससे कोई लाभ नही था ,प्रत्युत इसलिए की
मुस्लमान खुश हो सके। इससे अधिक सांप्रदायिक अत्याचार और क्या होगा?

अनुच्छेद ७० का भाग ड.---न गाओ वन्देमातरम
कितनी लज्जा जनक बात है की मुस्लमान वन्देमातरम पसंद नही
करते। गाँधी जी पर जहाँ तक हो सका उसे बंद करा दिया।


अनुच्छेद ७० का भाग ढ .

गाँधी ने शिवबवनी पर रोक लगवा दी ----शिवबवन
५२ छंदों का एक
संग्रह है,जिसमे शिवाजी महाराज की प्रशंसा की गई है.-इसमे
एक छंद में कहा गया है की अगर शिवाजी न होते तो सारा देश मुस्लमान हो
जाता। -इतिहास और हिंदू धर्म के दमन के अतिरिक्त
उनके सामने कोई सरल मार्ग न था।

गाँधी वध क्यों? ...जानिए .....पार्ट-5

अनुच्छेद ७० का भाग फ
....कश्मीर के विषय
में गाँधी हमेशा ये कहते रहे की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौप दी जाय, केवल
इसलिए की कश्मीर में मुसाल्मान अधिक है। इसलिए गाँधी जी का मत था की
महाराज हरी सिंह को सन्यास लेकर काशी चले जन चाहिए,परन्तु हैदराबाद के
विषय में गाँधी की निति भिन्न थी। यद्यपि वहां हिन्दुओं की जनसँख्या अधिक
थी ,परन्तु गाँधी जी ने कभी नही कहा की निजाम फकीरी लेकर मक्का चला जाय।

अनुच्छेद ७० का भाग म ..............................
कोंग्रेस ने गाँधी
जी को सम्मान देने के लिए चरखे वाले झंडे को राष्ट्रिय ध्वज बनाया।
प्रत्येक अधिवेशन में प्रचुर मात्रा में ये झंडे लगाये जाते थे.
------------------------------
-इस झंडे के साथ कोंग्रेस का अति घनिष्ट
समबन्ध था। नोआखली के १९४६ के दंगों के बाद वह ध्वज गाँधी जी की कुटिया
पर भी लहरा रहा था, परन्तु जब एक मुस्लमान को ध्वज के लहराने से आपत्ति
हुई तो गाँधी ने तत्काल उसे उतरवा दिया। इस प्रकार लाखों करोडो
देशवासियों की इस ध्वज के प्रति श्रद्धा को अपमानित किया। केवल इसलिए की
ध्वज को उतरने से एक मुस्लमान खुश होता था।

गाँधी वध क्यों? ...जानिए .....पार्ट-6

अनुच्छेद ७८ .........................गाँधी
 जी
-----------------------------स
ुभाषचंद्र बोस अध्यक्ष पद पर रहते हुए
गाँधी जी की निति पर नही चले। फ़िर भी वे इतने लोकप्रिय हुए की गाँधी जी
की इच्छा के विपरीत पत्ताभी सीतारमैया के विरोध में प्रबल बहुमत से चुने
गए ------------------------गाँधी जी को दुःख हुआ.उन्होंने कहा की सुभाष
की जीत गाँधी की हार है। -----------------जिस समय तक सुभाष बोस को
कोंग्रेस की गद्दी से नही उतरा गया तब तक गाँधी का क्रोध शांत नही हुआ।

अनुच्छेद ८५ .......................मुस्लिम
 लीग देश की शान्ति को भंग कर
रही थी। और हिन्दुओं पर अत्याचार कर रही थी। -------------------कोंग्रेस
इन अत्याचारों को रोकने के लिए कुछ भी नही करना चाहती थी,क्यो की वह
मुसलमानों को प्रसन्न रखना चाहती थी। गाँधी जी जिस बात को अपने अनुकूल
नही पते थे ,उसे दबा देते थे। इसलिए मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है की
आजादी गाँधी जी ने प्राप्त की । मेरा विचार है की मुसलमानों के आगे झुकना
आजादी के लिए लडाई नही थी।------------------गाँधी व उनके साथी सुभाष को
नष्ट करना चाहते थे।

गाँधी वध क्यों? ...जानिए .....पार्ट-7 एवं इति 

अनुच्छेद ८८ .गाँधी जी के हिंदू मुस्लिम एकता
का सिद्धांत तो उसी समय नष्ट हो गया, जिस समय पाकिस्तान बना। प्रारम्भ से
ही मुस्लिम लीग का मत था की भारत एक देश नही है।
हिंदू तो गाँधी के परामर्श पर चलते रहे किंतु मुसलमानों ने गाँधी की तरफ़ ध्यान नही दिया और अपने
व्यवहार से वे सदा हिन्दुओं का अपमान और अहित करते रहे और अंत में देश दो टुकडों में बँट गया।



1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश
में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया
जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर
दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो,
गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने
अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में
कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध
था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को
मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित
ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि
आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने
मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को
अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने
की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की
मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान
बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के
बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस
कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा
हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू
गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर
मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का
परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल
हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से
चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण
उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत
से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का
समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण
पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ
किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की
बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी
जी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने
स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम
जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने
अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी
व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि
मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के
प्रस्ताव को निरस्त करवाया और
13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का
सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में
जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध,
स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात
बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे
पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की
राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को
देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने
उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि
पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर
दिया न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य
का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक
पुस्तक में लिखा- "नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था।
खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने
में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे।
न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा
जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह
घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"

फेसबुक पेज से साभार । 

बुधवार, 13 नवंबर 2013

रावण के पास सच में था पुष्पक-विमान-- भाग 1




भारत के प्राचीन ग्रन्थों में आज से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व विमानों तथा उन के युद्धों का विस्तरित वर्णन है - जैसे रावन का पुष्पक विमान। सैनिक क्षमताओं वाले विमानों के प्रयोग, विमानों की भिडन्त, तथा एक दूसरे विमान का अदृष्य होना और पीछा करना किसी आधुनिक वैज्ञिानिक उपन्यास का आभास देते हैं लेकिन वह कोरी कलपना नहीं यथार्थ है। आईये जाने कैसे..प्राचीन विमानों की दो श्रेणिया इस प्रकार थी - मानव निर्मित विमान, जो आधुनिक विमानों की तरह पंखों के सहायता से उडान भरते थे। और आश्चर्य जनक विमान, जो मानव निर्मित नहीं थे किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक ‘उडन तशतरियों’ के अनुरूप है।भारतीय उल्लेख प्राचीन संस्कृत भाषा में सैंकडों की संख्या में उपलब्द्ध हैं, किन्तु खेद का विषय है कि उन्हें अभी तक किसी आधुनिक भाषा में अनुवादित ही नहीं किया गया। राचीन भारतीयों ने जिन विमानों का अविष्कार किया था उन्हों ने विमानों की संचलन प्रणाली तथा उन की देख भाल सम्बन्धी निर्देश भी संकलित किये थे, जो आज भी उपलब्द्ध हैं और उन में से कुछ का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया जा चुका है। विमान विज्ञान विषय पर कुछ मुख्य प्राचीन ग्रन्थों का ब्योरा इस प्रकार है.ऋगवेद में कम से कम 200 बार विमानों के बारे में उल्लेख है। उन में तिमंजिला, त्रिभुज आकार के, तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है जिन्हे अश्विनों (वैज्ञिानिकों) ने बनाया था। उन में साधारणत्या तीन यात्री जा सकते थे। विमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण, रजत तथा लोह धातु का प्रयोग किया गया था तथा उन के दोनो ओर पंख होते थे। वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। अहनिहोत्र विमान के दो ईंजन तथा हस्तः विमान (हाथी की शक्ल का विमान) में दो से अधिक ईंजन होते थे। एक अन्य विमान का रुप किंग-फिशर पक्षी के अनुरूप था। इसी प्रकार कई अन्य जीवों के रूप वाले विमान थे। इस में कोई सन्देह नहीं कि बीसवीं सदी की तरह पहले भी मानवों ने उड़ने की प्रेरणा पक्षियों से ही ली होगी। याता-यात के लिये ऋग वेद में जिन विमानों का उल्लेख है वह इस प्रकार है...यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद 6.58.3)यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद 9.14.1)  विमान का आकार तिमंजिला था। (ऋग वेद 3.14.1)यह तिपहिया विमान आकाश में उड सकता था। (ऋग वेद 4.36.1)रथ की शकल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता था। (ऋग वेद 5.41.6 )इस  प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता था। (ऋग वेद 3.14.1)यजुर्वेद में भी एक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली उल्लेख है जिस का निर्माण जुडवा अशविन कुमारों ने किया था। इस विमान के प्रयोग से उन्हो मे राजा भुज्यु को समुद्र में डूबने से बचाया था । 1875 ईसवी में भारत के ऐक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की एक प्रति मिली थी। इस ग्रन्थ को ईसा से 400 वर्ष पूर्व का बताया जाता है तथा ऋषि भारदूाज रचित माना जाता है। इस का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है। इसे ग्रन्थ के आधार पर आधुनिक विमान कि रचना के लिए रास्ता निकला । इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तरित जानकारी देते हैं। खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं। इन ग्रन्थों के विषय इस प्रकार थे...विमान के संचलन के बारे में जानकारी, उडान के समय सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी, तुफान तथा बिजली के आघात से विमान की सुरक्षा के उपाय, आवश्यक्ता पडने पर साधारण ईंधन के बदले सौर ऊर्जा पर विमान को चलाना आदि। इस से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि इस विमान में ‘एन्टी ग्रेविटी’ क्षेत्र की यात्रा की क्षमता भी थी । विमानिका शास्त्र में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उडाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है। ऐक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था जिस के विधान की पूरी जानकारी लिखित है किन्तु इस में से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं। इस ग्रन्थ के आठ भाग हैं जिन में विस्तरित मानचित्रों से विमानों की बनावट के अतिरिक्त विमानों को अग्नि तथा टूटने से बचाव के तरीके भी लिखित हैं। ग्रन्थ में 31 उपकरणों का वर्तान्त है तथा 16 धातुओं का उल्लेख है जो विमान निर्माण में प्रयोग की जाती हैं जो विमानों के निर्माण के लिये उपयुक्त मानी गयीं हैं क्यों कि वह सभी धातुयें गर्मी सहन करने की क्षमता रखती हैं और भार में हल्की हैं। यह विमान विकास के प्राचीन ग्रन्थ: यन्त्र सर्वस्वः  ऋषि भारदूाजरचित है। इस के 40 भाग हैं जिन में से एक भाग ‘विमानिका प्रकरण’के आठ अध्याय, लगभग 100 विषय और 500 सूत्र हैं जिन में विमान विज्ञान का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में ऋषि भारदूाजने विमानों को तीन श्रेऩियों में विभाजित किया है...अन्तरदेशीय – जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय – जो एक देश से दूसरे देश को जाते। अन्तीर्क्षय – जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते।इन में सें अति-उल्लेखलीय सैनिक विमान थे जिन की विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं और वह अति-आधुनिक साईंस फिक्शन लेखक को भी आश्चर्य चकित कर सकती हैं। उदाहरणार्थ सैनिक विमानों की विशेषतायें इस प्रकार की थीं.पूर्णत्या अटूट, अग्नि से पूर्णत्या सुरक्षित, तथा आवश्यक्ता पडने पर पलक झपकने मात्र समय के अन्दर ही ऐक दम से स्थिर हो जाने में सक्ष्म। शत्रु से अदृष्य हो जाने की क्षमता। शत्रुओं के विमानों में होने वाले वार्तालाप तथा अन्य ध्वनियों को सुनने में सक्ष्म। शत्रु के विमान के भीतर से आने वाली आवाजों को तथा वहाँ के दृष्यों को रिकार्ड कर लेने की क्षमता।

रावण के पास सच में था पुष्पक-विमान -- भाग 2

शत्रु के विमान की दिशा तथा दशा का अनुमान लगाना और उस पर निगरानी रखना। शत्रु के विमान के चालकों तथा यात्रियों को दीर्घ काल के लिये स्तब्द्ध कर देने की क्षमता। निजि रुकावटों तथा स्तब्द्धता की दशा से उबरने की क्षमता।आवश्यक्ता पडने पर स्वयं को नष्ट कर सकने की क्षमता। चालकों तथा यात्रियों में मौसमानुसार अपने आप को बदल लेने की क्षमता। स्वचालित तापमान नियन्त्रण करने की क्षमता। हल्के तथा उष्णता ग्रहण कर सकने वाले धातुओं से निर्मित तथा आपने आकार को छोटा बडा करने, तथा अपने चलने की आवाजों को पूर्णत्या नियन्त्रित कर सकने में सक्ष्मविचार करने योग्य तथ्य है कि इस प्रकार का विमान अमेरिका के अति आधुनिक स्टेल्थ फाईटरऔर उडन तशतरी का मिश्रण ही हो सकता है। ऋषि भारदूाज कोई आधुनिक ‘फिक्शन राईटर’ नहीं थे परन्तु ऐसे विमान की परिकल्पना करना ही आधुनिक बुद्धिजीवियों को चकित कर सकता है कि भारत के ऋषियों ने इस प्रकार के वैज्ञिानक माडल का विचार कैसे किया। उन्होंने अंतरीक्ष जगत और अति-आधुनिक विमानों के बारे में लिखा जब कि विश्व के अन्य देश साधारण खेती बाडी का ज्ञान भी पूर्णत्या हासिल नहीं कर पाये थे। समरांगनः सुत्रधारा ग्रन्थ विमानों तथा उन से सम्बन्धित सभी विषयों के बारे में जानकारी देता है।इस के 230 पद्य विमानों के निर्माण, उडान, गति, सामान्य तथा आकस्माक उतरान एवम पक्षियों की दुर्घटनाओं के बारे में भी उल्लेख करते हैं।





लगभग सभी वैदिक ग्रन्थों में विमानों की बनावट त्रिभुज आकार की दिखायी गयी है। किन्तु इन ग्रन्थों में दिया गया आकार प्रकार पूर्णत्या स्पष्ट और सूक्ष्म है। कठिनाई केवल धातुओं को पहचानने में आती है।

समरांगनः सुत्रधारा के आनुसार सर्व प्रथम पाँच प्रकार के विमानों का निर्माण ब्रह्मा, विष्णु, यम, कुबेर तथा इन्द्र के लिये किया गया था। पश्चात अतिरिक्त विमान बनाये गये। चार मुख्य श्रेणियों का ब्योरा इस प्रकार है...

रुकमा – रुकमानौकीले आकार के और स्वर्ण रंग के थे। सुन्दरः –सुन्दर राकेट की शक्ल तथा रजत युक्त थे। त्रिपुरः –त्रिपुर तीन तल वाले थे। शकुनः – शकुनः का आकार पक्षी के जैसा था।

दस अध्याय संलगित विषयों पर लिखे गये हैं जैसे कि विमान चालकों का परिशिक्षण, उडान के मार्ग, विमानों के कल-पुरज़े, उपकरण, चालकों एवम यात्रियों के परिधान तथा लम्बी विमान यात्रा के समय भोजन किस प्रकार का होना चाहिये। ग्रन्थ में धातुओं को साफ करने की विधि, उस के लिये प्रयोग करने वाले द्रव्य, अम्ल जैसे कि नींबु अथवा सेब या कोई अन्य रसायन, विमान में प्रयोग किये जाने वाले तेल तथा तापमान आदि के विषयों पर भी लिखा गया है
सात प्रकार के ईजनों का वर्णन किया गया है तथा उन का किस विशिष्ट उद्देष्य के लिये प्रयोग करना चाहिये तथा कितनी ऊचाई पर उस का प्रयोग सफल और उत्तम होगा। सारांश यह कि प्रत्येक विषय पर तकनीकी और प्रयोगात्मक जानकारी उपलब्द्ध है। विमान आधुनिक हेलीकोपटरों की तरह सीधे ऊची उडान भरने तथा उतरने के लिये, आगे पीछ तथा तिरछा चलने में भी सक्ष्म बताये गये हैं
कथा सरित-सागर ग्रन्थ उच्च कोटि के श्रमिकों का उल्लेख करता है जैसे कि काष्ठ का काम करने वाले जिन्हें राज्यधर और प्राणधर कहा जाता था। यह समुद्र पार करने के लिये भी रथों का निर्माण करते थे तथा एक सहस्त्र यात्रियों को ले कर उडने वालो विमानों को बना सकते थे। यह रथ-विमान मन की गति के समान चलते थे।

कोटिल्लय के अर्थ शास्त्र में अन्य कारीगरों के अतिरिक्त सोविकाओं का उल्लेख है जो विमानों को आकाश में उडाते थे । कोटिल्लय ने उन के लिये विशिष्ट शब्द आकाश युद्धिनाह का प्रयोग किया है जिस का अर्थ है आकाश में युद्ध करने वाला (फाईटर-पायलेट) आकाश रथ, चाहे वह किसी भी आकार के हों का उल्लेख सम्राट अशोक के आलेखों में भी किया गया है जो उस के काल 256-237 ईसा पूर्व में लगाये गये थे।

उपरोक्त तथ्यों को केवल कोरी कल्पना कह कर नकारा नहीं जा सकता क्यों कल्पना को भी आधार के लिये किसी ठोस धरातल की जरूरत होती है। क्या विश्व में अन्य किसी देश के साहित्य में इस विषयों पर प्राचीन ग्रंथ हैं ? आज तकनीक ने भारत की उन्हीं प्राचीन ‘कल्पनाओं’ को हमारे सामने पुनः साकार कर के दिखाया है।




शनिवार, 9 नवंबर 2013

मोदी ने पटना के भाषण में कुछ ग़लत नहीं कहा'-- देवेन्द्र स्वरूप इतिहासकार

राजनीति इतिहास के बिना नहीं चलती. एक स्थापित मान्यता है कि आज की राजनीति कल का इतिहास है और बीते हुए कल की राजनीति आज का इतिहास है. इसलिए राजनीति और इतिहास का चोली-दामन का साथ है.
विपिनचंद्र पाल ने तो यहाँ तक कहा था कि यदि कोई देश अपने इतिहास का बार-बार स्मरण नहीं करता तो वो रास्ता भटक जाता है.कोई राजनेता अपने श्रोताओं के सामने इतिहास का उपयोग करे तो मुझे इसमें कुछ भी अनुचित नहीं लगता. ध्यान देने की बात यह है कि वो इतिहास के जिन तथ्यों को प्रस्तुत कर रहा है वो सही हैं या ग़लत.
इसलिए  के पटना भाषण का भी इसी आधार पर मूल्यांकन होना चाहिए. 

मोदी का परिप्रेक्ष्य सही

जहाँ तक नरेंद्र मोदी द्वारा अपने भाषण में ग़लत तथ्यों के इस्तेमाल की बात है तो यह ऐतिहासिक तथ्य है कि सिकन्दर पोरस से युद्ध के बाद वापस नहीं गया था, झेलम नदी के तट पर कई विकट युद्धों और नदियों को पार करने के बाद वो व्यास नदी तक पहुँचा था. यह बात सत्य है कि वो  कभी नहीं गया.लेकिन जो मोदी का भाषण है उसमें इस प्रसंग को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है उसे इतिहास के तथ्यों के आलोक में समझने की आवश्यकता है. सिकंदर व्यास नदी के पार जाना चाहता था, लेकिन उसके सेनापतियों ने विद्रोह कर दिया था. उसके सैनिकों ने कहा था कि व्यास नदी तक पहुँचने में हमें बहुत संघर्ष करना पड़ा. व्यास नदी के उस पार नंदों का साम्राज्य है. ग्रीक इतिहासकारों के मुताबिक सिकंदर प्रतिरोध के बाद शिविर में चला गया और उसने खाना-पीना छोड़ दिया. फिर उसे मनाया गया, उससे कहा गया कि विजेता वही होता है जो विजय के क्षणों को पहचानकर पराजय को टालने के लिए वापस लौटे.
नंद का जो साम्राज्य था उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, बिहार की शक्ति उसके पीछे थी. इसलिए मोदी का बिहार की जनता के सामने यह कहना कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को भगा दिया, एक इतिहासकार की दृष्टि से मुझे इसमें कुछ असत्य नहीं लगता. भाषणों में निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है न कि इतिहास की पूरी जानकारी दी जाती है. मोदी ने भी अपने भाषण में यही किया. इतिहास का सत्य यही है कि नंद वंश की शक्ति से भयभीत होकर सिकंदर भारत से वापस लौटा. इसके बाद वह पिछले रास्ते से न लौटकर दक्षिण यानी सिंध से होकर वापस लौटा. ग्रीक इतिहासकारों के मुताबिक सिकंदर प्रतिरोध के बाद शिविर में चला गया और उसने खाना-पीना छोड़ दिया. फिर उसे मनाया गया, उससे कहा गया कि विजेता वही होता है जो विजय के क्षणों को पहचानकर पराजय को टालने के लिए वापस लौटे.
नंद का जो साम्राज्य था उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, बिहार की शक्ति उसके पीछे थी. इसलिए मोदी का बिहार की जनता के सामने यह कहना कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को भगा दिया, एक इतिहासकार की दृष्टि से मुझे इसमें कुछ असत्य नहीं लगता. भाषणों में निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है न कि इतिहास की पूरी जानकारी दी जाती है. मोदी ने भी अपने भाषण में यही किया. इतिहास का सत्य यही है कि नंद वंश की शक्ति से भयभीत होकर सिकंदर भारत से वापस लौटा. इसके बाद वह पिछले रास्ते से न लौटकर दक्षिण यानी सिंध से होकर वापस लौटा.
नरेंद्र मोदी
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लोकमानस और इतिहास

इतिहास लोकमानस से विच्छिन्न होकर खड़ा नहीं रह सकता. यह निर्णय करना बहुत कठिन है कि कहाँ पर माइथॉलजी है और कहाँ इतिहास है. डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की ये बात ज़्यादा उचित है कि, ''मुझे इससे संबंध नहीं है कि राम पैदा हुए या नहीं या कृष्ण पैदा हुए या नहीं. मैं ये जानता हूँ कि भारत की वर्तमान चेतना के निर्माण में जितना योगदान राम और कृष्ण का है उतना और किसी का नहीं है. राम ने भारत को उत्तर से दक्षिण को जोड़ा और कृष्ण ने पूर्व से पश्चिम को जोड़ा.'' इतिहास और माइथॉलजी को देखने की ये भी एक दृष्टि है. मैं समझता हूँ कि कौटिल्य के काल को शोषणकारी राज्य कहना भी गलत है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में करनीति के अध्याय-दो, प्रकरण-17 में लिखा है कि मौर्य काल में किसानों को किस प्रकार प्रोत्साहन मिलना चाहिए. इस अध्याय में लिखा है, "किसान ने अगर स्वयं मेहनत करके ऊसर या बंजर ज़मीन को खेती योग्य बनाया है तो राजा को चाहिए कि ऐसी जमीन को कभी वापस न ले, ऐसी जमीनों पर किसानों का पूर्ण अधिकार होना चाहिए. यदि कोई किसान खेती योग्य भूमि को बिना जोते परती ही रखता है तो राजा को चाहिए ऐसी भूमि को उस किसान से लेकर किसी ज़रूरतमंद किसान को दे दे और ऐसे किसी ज़रूरतमंद किसान के न मिलने पर उसे उस गाँव के मुखिया या व्यापारी को खेती करने के लिए दे दे."
मैं नहीं मानता कि कोई शोषक राज्य ऐसा करेगा.

'अर्थशास्त्र'

प्रोफ़ेसर  डीएन झा ने कौटिल्य के काल को स्वर्णकाल कहे जाने पर एतराज़ जताया है और इसके प्रमाण के तौर पर कहा है कि उस युग में किसानों से उनकी उपज का एक चौथाई हिस्सा कर के रूप में ले लिया जाता था. इसके प्रमाण के तौर पर वो सम्राट अशोक की उस घोषणा का ज़िक्र करते हैं जिसमें किसानों की उपज पर टैक्स एक चौथाई से कम करके एक बटा छह कर दिया गया था. सम्राट अशोक बौद्ध संघ की दीक्षा लेने के बाद तीर्थयात्रा के लिए लुम्बिनी गए थे और इसी खुशी में उन्होंने ये घोषणा की थी.
तीर्थयात्रा पर जाने पर वहाँ के लोगों को कुछ राहत देना उनकी अध्यात्मिक चेतना की अभिव्यक्ति थी, इसे राज्य की नीति से जोड़ना अन्याय है. अगर ये राज्य की नीति का अंग होता तो पूरे राज्य के अन्दर वो नई नीति की घोषणा करते.
नरेंद्र मोदी
प्रोफ़ेसर झा ये भी कहते हैं कि कौटिल्य ने गाँवों में शूद्रों की बड़ी संख्या को ये कहते हुए अच्छा बताया है कि उनसे काम लेना आसान होता है.
कौटिल्य अर्थशास्त्र के सबसे बड़े जानकार आर.पी. कांगले के अनुसार नए जनपद को बसाने के लिए पर्याप्त संख्या में किसान और शूद्र होने चाहिए. लेकिन इसमें कहीं भी शोषण शब्द या उस भावना का संकेत नहीं मिलता.कौटिल्य ने शूद्र की जो व्याख्या की है उसके अनुसार शिल्प का काम करने वालों को शूद्र कहा जाता था. जो लोग खेती और शिल्प का काम करते थे उन्हें नए जनपद के लिए बसाना ज़रूरी बताया गया था.

इतिहास दृष्टि

जहाँ तक राजनेताओं की ओर से ऐतिहासिक तथ्यों के इस्तेमाल की बात है, ख़ासकर चुनावी परिप्रेक्ष्य में, तो इतिहासकार इसे अलग-अलग दृष्टि से देखते हैं. अगर नरेंद्र मोदी वामपंथी पार्टी से जुड़े नेता होते तो डीएन झा इन्हीं तथ्यों का समर्थन करते. ये बात मेरे बारे में भी कही जा सकती है पर मेरे तर्क का आधार ऐतिहासिक तथ्य हैं और कौटिल्य का अर्थशास्त्र है. तथ्यों के आधार पर मैं इस मुद्दे पर डीएन झा से बात करने को तैयार हूँ. कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के नौवें अधिकरण में पूरे भारत, उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक की एकता की व्याख्या की है. वास्तव में जो स्वप्न कौटिल्य ने प्रस्तुत किया उसी की पूर्ति चन्द्रगुप्त मौर्य ने की, न कि अशोक ने. ऐतिहासिक तथ्यों का पक्षपात पूर्ण प्रतिपादन बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और वामपंथी इतिहासकारों ने इसमें बहुत अनर्थ किया है. वामपंथियों ने आरसी मजूमदार, केएन शास्त्री जैसे पुराने पीढ़ी के इतिहासकारों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया.