बुधवार, 15 जनवरी 2014

मायावती जी 58 वां जन्मदिन पर विशेष



ये रिस्ता क्या कहलाता है ?
58 वां जन्मदिन मना रही यूपी की पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती के पास भले ही अब सत्‍ता न हो, लेकिन उनके ठाठ आज भी शाही हैं । बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और यूपी में चार बार मुख्‍यमंत्री रहीं मायावती की लाइफ स्‍टाइल देखकर कोई भी कह उठेगा कि वह देश के राष्‍ट्रपति की तरह ही जीती हैं । मायावती की इस शाही लाइफ स्‍टाइल के बारे में पहले भी कई खुलासे हो चुके हैं । 
 कुछ समय पहले ही यूपी की सत्‍ता से हटने के बाद राज्‍यसभा की सदस्‍य बनने वाली मायावती के लिए दिल्‍ली के पॉश इलाके लुटियन जोन में आवंटित तीन बंगलों को 'सुपरबंगला' बनाया गया है। दलितों के दिलों पर राज करने वाली बहन जी की शाही लाइफ यहीं खतम नहीं होती, सत्ता में न होने के बावजूद उनसे मिलने से पहले खास अप्‍वॉइंटमेंट ली जाती है। इनके खाने को भी दर्जन भर लोग चेक करते हैं। इन्होंने घर में ही एक मिनी सचिवालय बना रखा है। वहां सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक का पूरा शेड्यूल तय होता है।
कास गरीब दलितो को दो वक्त कि रोटी दिला सकती ?

वहीं, यदि इनकी संपत्ति की बात करें तो मायावती के पास दिल्ली के कनॉट प्लेस में दो व्यावसायिक अचल संपत्ति है, जिसकी कीमत लगभग 18 करोड़, 84 लाख रुपए है। यही नहीं, उनके नाम नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर एक बंगला है, जिसकी कीमत 61 करोड़, 86 लाख रुपए है। उनके प्रदेश की राजधानी लखनऊ के 9 माल एवेन्यू के बंगले की कीमत 15 करोड़, 68 लाख रुपए है। उनके पास 1 किलो, 34 ग्राम सोना और 380 कैरेट हीरे के जवाहरात हैं। सोने और हीरे के आभूषणों की कीमत 96 लाख, 53 हजार रुपए है।मायावती ने अपनी सुरक्षा व्‍यवस्‍था को हमेशा ही प्राथमिकता दी है, लिहाजा देश के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मुख्‍यमंत्री रहा हो, जिसकी सुरक्षा इस तरह की जाती हो। बंगले में 20 फीट से ज्‍यादा ऊंची बाउंड्री पर कांटों के तार लगाए गए हैं। यही नहीं, चौबीसों घंटे निगरानी के लिए वॉच टॉवर भी बनाए गए हैं। मेन इंट्रेंस से लेकर कई कॉमन जगहों पर सीसीटीवी इंस्‍टॉल किए गए हैं। ये सीसीटीवी सिर्फ आगंतुकों पर नजर रखने के लिए ही नहीं हैं। इनका काम आवास में तैनात कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों पर भी नजर रखने के लिए किया जाता है। बंगले में कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की पूरी फौज तैनात की गई है।

मायावती को जेड प्‍लस सिक्‍योरिटी मिली हुई है। करीब एक दर्जन जवानों के अलावा बंगले पर पूर्व मुख्‍यमंत्री के तौर पर करीब दो दर्जन सरकारी कर्मचारी हैं। यही नहीं, पार्टी गतिविधियां भी यहीं से चलती हैं। इसलिए संगठन के करीब तीन दर्जन लोग यहां तैनात किए गए हैं। इनमें कुछ बहन जी के बेहद करीबी माने जाते हैं, जो उनकी पार्टी और घर की हर खबर उन तक पहुंचाते हैं। बंगले पर मायावती के लिए फाइव स्‍टार होटल स्‍तर के कुक तैनात किए गए हैं। ये किसी भी तरह के खाने या नाश्‍ते की मांग मिनटों में पूरी करने में सक्षम हैं। मायावती नॉनवेज नहीं खातीं। इन कुक पर चौबीसों घंटे निगाह रखने के लिए भी कर्मचारी तैनात किए गए हैं। इसके अलावा खाना चेक करने के लिए दो लोग अलग से तैनात हैं।
ये है दलितों की मसीहा

बहनजी से मिलने का अधिकार सिर्फ उनके पर्सनल स्‍टाफ को ही है। उसके अलावा चाहे वह पार्टी का ही कितना ही बड़ा नेता हो, बिना अनुमति के मुलाकात नहीं कर सकता। पिछले साल जब प्रणब मुखर्जी राष्‍ट्रपति चुनाव के सिलसिले में लखनऊ आए तो उनका मायावती के बंगले पर भी आगमन हुआ। यहां की भव्‍यता देख उन्‍होंने भी इसकी जमकर तारीफ की।
        लखनऊ की ही तरह मायावती का नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर बंगला है, जिसमें करीब-करीब ऐसी ही सुविधाएं दी गई हैं। इस प्राइवेट बंगले में सिक्‍योरिटी की व्‍यवस्‍था के लिए सरकारी खर्च पर फोटो स्‍कैनर, सीसीटीवी, वायरलेस हैंडसेट आदि खरीदे जाने का आरोप लगा। वहीं, अगर मायावती के पैतृक आवास गौतमबुद्धनगर के बादलपुर गांव की बात करें तो यहां से मायावती का नाता तभी टूट गया था, जब वे महज ढाई साल की थीं। मायावती के पिता प्रभुदयाल दिल्ली में तार विभाग में क्लर्क थे। उनका पुश्तैनी मकान गांव में महज 22 गज जमीन पर था। यह एक कमरे का मकान था। बाद में उसे उनके पिता ने किसी बाहरी आदमी को बेच दिया। उसने उस पर दोबारा मकान का निर्माण कराया। लेकिन जैसे ही मायावती मुख्यमंत्री बनीं, उन्होंने उस मकान को वापस ले लिया।
        मायावती का परिवार अब इसी गांव में 96 बीघे में बने शानदार महल में रहता है। 100 करोड़ से भी ज्‍यादा कीमत के इस महल में दो भव्य मकान और एक बौद्ध मंदिर बनाया गया है। 96 में से 50 बीघा जमीन महल के बाहर हरित पट्टी के लिए छोड़ी गई है। जिस जमीन पर महल और मंदिर का निर्माण किया गया, वह मायावती के पिता प्रभुदयाल के नाम है। बाकी 50 बीघा जमीन के दस्तावेज उनके कुछ खास लोगों के नाम पर हैं। महल में पत्थर राजस्थान, महोबा, अरावली और इटली से मंगवाकर मार्बल लगाए गए हैं। खास बात यह है कि महल के चारों तरफ बहुजन समाज पिकनिक स्पॉट बनाने के लिए बादलपुर, सादोपुर, अच्छैजा और विश्नुली गांवों की 670 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण उत्तर प्रदेश सरकार ने किया था।
         महल में करीब 2000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का एक भवन आंगतुकों के लिए ही बनाया गया है। बाकी 24,000 वर्गमीटर में एक भव्य मकान है। महल की सुरक्षा भी किसी किले से कम नहीं है। चौबीसों घंटे हाइटेक सिक्‍योरिटी सिस्टम से इसकी निगरानी रखी जाती है। बाहर तो बाहर, गांव का भी कोई व्‍यक्ति बिना इजाजत के महल में दाखिल नहीं हो सकता। इस महल का पूरा काम मायावती के छोटे भाई आनंद ने करवाया है। मायावती के महल तक पहुंचने के लिए दिल्ली-कानपुर जीटी रोड से सीधे आरसीसी की सड़क बनाई गई है। यह महल के आगे नहर के रास्ते पर जाकर खत्म होती है।

        बात अगर संपत्ति की करें तो मायावती जब 13 मई, 2007 को उत्तर प्रदेश की चौथी बार मुख्यमंत्री बनी थीं, तब उनकी संपत्ति 52 करोड़ 27 लाख रूपए थी। 2012 में राज्‍यसभा में पर्चा दाखिल करते समय तक यह बढ़कर 111 करोड़ 64 लाख रुपये हो गई। 2010 में बसपा सुप्रीमो के पास 87 करोड़ रुपये की संपत्ति हो गई थी। उन्‍होंने बताया कि उनके पास 2 लाख, 20 हजार रुपये नकद है, जबकि 14 करोड़, 94 लाख रूपये बैंक में जमा हैं। इसके बावजूद उनके पास अपनी कोई कार या गाड़ी नहीं है, न ही कोई कृषि भूमि है। सुरक्षा को लेकर हमेशा गंभीर रहने वाली मायावती जीवन बीमा में विश्‍वास नहीं रखतीं। शायद इसीलिए उनके पास एक भी बीमा पॉलिसी नहीं है।
 
जो इन्हे हिन्दू समझ कर वोट देते है कास ओ इनका धर्म पूछ लेते ?

अचल संपत्ति की बात करें तो मायावती के पास दिल्ली के कनॉट प्लेस में दो व्यावसायिक संपत्ति है, जिसकी कीमत उन्‍होंने 18 करोड़, 84 लाख रुपये बताई है। यही नहीं, उनके नाम नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर एक बंगला है, जिसकी कीमत 61 करोड़, 86 लाख रूपये है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के 9 माल एवेन्यू के बंगले की कीमत 15 करोड़, 68 लाख रुपये हैं। उनके पास 1 किलो, 34 ग्राम सोना और 380 कैरेट हीरे के जवाहरात हैं। सोने और हीरे के आभूषण की कीमत 96 लाख, 53 हजार रुपये है ।

बहन जी को जन्म दिन कि बहुत बहुत शुभ कामनाये । ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे । पर इस लम्बी उम्र  साथ  साथ एक बड़ा ह्रदय दे जिससे दलितो कि ब्यथा को समझ सके । दलित आज भी दो वक्त कि रोटी और झोपड़ी कि तलास में इधर उधर भटक रहा है पर बहन जी के पास इतने वर्ष में अकूत सम्पत्ति आ गई और दलित आज भी भूखा है ।  
 

कांग्रेश चाहे कुछ भी कर ले मोदी का रथ नहीं रोक सकती

कांग्रेश ने केजरीवाल सरकार बनवाकर उसने मोदी को ब्रेक लगाये हैं ? 

लोकपाल बिल पास कराने का दांव हो या कुकिंग गैस के सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या 9 से बढ़ाकर 12 करने पर विचार का मामला कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार दिन-ब-दिन अलोकप्रिय होती जा रही है। भाजपा ने जब से मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित किया है, तब से कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ती जा रही हैं। कांग्रेस कशमकश में है कि वह मोदी के जवाब में राहुल को अपनी ओर से पीएम पद का कैंडिडेट बनाये या ना बनाये। सियासत की दीवार पर लिखा सच तो यह है कि अब देश की जनता का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस से भ्रष्टाचार और महंगाई की वजह से नफ़रत करने लगा है और उसने मोदी को पीएम बनाकर एक मौका देने का मन लगभग बना लिया है।
अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों को अगर छोड़ भी दिया जाये तो हिंदुओं का वह सेक्यूलर और सहिष्णु वर्ग जो भाजपा की कट्टर हिंदुत्ववादी और मोदी की 2002 के दंगों को लेकर बनी अलगाववादी दंगाई छवि को पसंद नहीं करता था, धीरे-धीरे कांग्रेस ही नहीं भ्रष्ट और जनविरोधी क्षेत्रीय दलों से भी किनारा करता नज़र आ रहा है। मिसाल के तौर पर यूपी में कांग्रेस ना केवल संसदीय चुनाव में साफ़ हो जायेगी, बल्कि सपा और बसपा भी हाफ हो सकती हैं और बीजेपी पहले के मुकाबले दो तीन गुना सीट जीत सकती है। जनवरी 2013 में इंडिया टुडे-नीलसन के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में ही संकेत मिल गया था कि चुनाव में एनडीए यूपीए पर भारी पड़ेगा। मई आते आते सर्वे कहने लगे कि चुनाव में कांग्रेस हारने जा रही है।
       इसके बाद भी यह दावे से नहीं कहा गया कि भाजपा सत्ता में आ जायेगी लेकिन जुलाई में सीएसडीएस के सर्वे में तस्वीर और साफ हुयी कि देश के 10 अहम राज्यों में से कांग्रेस 8 में पिछड़ रही है। यूपी की 80, महाराष्ट्र 48, बंगाल 42, बिहार 40, कर्नाटक 28, गुजरात 26, राजस्थान 25, ओडिशा 21, केरल 20, असम 14, झारखंड 14, पंजाब 13, छत्तीसगढ़ 11 और हरियाणा 10 सीट हैं। इन दस राज्यों की कुल 399 सीटों में से 2009 में कांग्रेस ने 164 जीतीं थीं लेकिन इस बार वह 83 पर सिमट सकती है। इसकी एक और वजह भी है। एक साल के अंदर यूपीए के दो महत्वपूर्ण घटक डीएमके और तृणमूल कांग्रेस ने उसका साथ नाराज़ होकर छोड़ा है जिससे उनकी वापसी के आसार कम हैं।

       प्रणब मुखर्जी को प्रेसीडेंट बनाकर कांग्रेस ने बंगाल में अपना आधार बढ़ाने की बजाये कम ही किया है, क्योंकि बंगाली मानुष उनको पीएम पद का सही हक़दार मानता था जो उनको ना देकर वंशवाद के कारण अयोग्य और अक्षम राहुल को दिया जा रहा है। फिलहाल कांग्रेस के पास बड़े घटकों में एनसीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ही बचे हैं जबकि 33 सीटें जिताने वाला आंध्र तेलंगाना बनाकर वह खोने जा रही है। वाईएसआर के बेटे जगनमोहन से पंगा लेकर कांग्रेस ने वहां अपनी क़ब्र राजीव गांधी के ज़माने में एनटी रामाराव के उभार की तरह खुद ही खोद ली है। उधर बिहार में कांग्रेस पहले नीतीश कुमार की जदयू के करीब बढ़ रही थी लेकिन जेल से बाहर आते ही सहानुभूति वोट की आस में वह फिर बदनाम लालू यादव की गोद में ही अपनी जगह तलाश रही है, लेकिन पासवान ने अपना रास्ता अलग बनाने की बात कहकर गठबंधन की हवा निकाल दी है।
         2004 के चुनाव में इस गठबंधन को 29 सीट मिलीं थीं तो 2009 में अलग अलग लड़ने पर कांग्रेस को मात्र दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। ऐसे ही यूपीए गठबंधन को झारखंड में पहले 8 तो अकेले लड़ने पर बाद में मात्र एक सीट मिली थी। विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस की हालत इतनी पतली हो गयी कि उसे 243 में से सिर्फ 4 सीट मिली। अकेले चुनाव लड़ने का लाभ कांग्रेस को यूपी में हुआ था, जहां सपा के भाजपा के पूर्व सीएम कल्याण सिंह से गठबंधन करने पर उसने मुसलमानों का रूख़ भांपकर 22 सीटें जीत लीं थीं लेकिन इस बार ऐसा संभव नहीं है। यूपी में कांग्रेस सपा की बजाये बसपा से जुड़ना चाहती है लेकिन मायावती का कहना है कि कांग्रेस के पास कोई वोटबैंक तो बचा ही नहीं है, इसलिये वह दलित वोट वापस उसकी झोली में नहीं डालेगी।
अजीब बात यह है कि जिस लोकदल से कांग्रेस का पैक्ट है, उसका एकमात्र जाट मतदाता अजीत के बजाये इस बार मुज़फ्फरनगर दंगा होने से पूरी तरह भाजपा के साथ खड़ा नज़र आ रहा है। ले-देकर कांग्रेस कर्नाटक में इस बार अपनी स्थिति सुधर सकती थी लेकिन वहां भाजपा का येदियुरप्पा के 18 फीसदी लिंगायत वोट साथ लेने को तालमेल बन जाने से यह उम्मीद भी कमज़ोर पड़ गयी है। कांग्रेस में इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि पार्टी के वोट बैंक में लगातार सेंध लग रही है और पार्टी सत्ता में होने के बावजूद उसको रोक नहीं पा रही है। यह एक तरह से बिल्कुल उल्टी स्थिति है क्योंकि जो दल भी सरकार चलाता है उसके पास जनहित की योजनायें चलाकर लोगों का दिल जीतने की संभावनायें और अवसर अधिक होते हैं ।ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की यूपीए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून और भूमि अधिगृहण कानून जैसे जनहिति के काम नहीं किये हैं, लकिन घोटालों से उसकी बदनामी सब कामों पर भारी पड़ रही है। कांग्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को बिना मांगे सपोर्ट देकर केजरीवाल की सरकार बनवाकर एक तीर से दो शिकार किये हैं। उसने मोदी की विजययात्रा को ब्रेक लगाया है। साथ ही उसने अपने प्रति बढ़ रहा लोगों का आक्रोश कुछ कम करने का प्रयास भी किया है लेकिन यह सच है कि आप अगर तीन सौ सीटों पर भी लोकसभा का चुनाव लड़ती है तो कांग्रेस का तो सफाया करेगी ही साथ ही चार में से तीन राज्यों का भारी भरकम बहुमत से चुनाव जीती भाजपा को भी वोटों का समीकरण बिगाड़कर खुद जीते या ना जीते, लेकिन भाजपा की 50 सीट दिल्ली की तरह कम ज़रूर कर देगी क्योंकि येदियुरप्पा को पार्टी में लेकर और उदारवादी पूंजीवादी नीतियां अपनाकर व कारपोरेट सैक्टर की पैरवी कर के बीजेपी ने आप को अपने खिलाफ प्रचार का बहुत बड़ा हथियार थमा दिया है ।

खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तदबीर से पहले । 
खुदा बंदे से यह पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है ॥

साभार --- : इक़बाल हिंदुस्तानी