नरेंद्र मोदी बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। आज वो भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार हैं। हम आपकों बता रहे हैं नरेंद्र मोदी का चाय की दुकान से पीएम पद के उम्मीदवार तक के सफर की कहानी।
मोदी का जन्म गुजरात के मेहसाना जिले के एक सामान्य परिवार में 17 सितंबर 1950 को हुआ। वे चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे। मोदी के पिता दामोदर दास वादनगर रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान लगाते थे। और मोदी चाय की कैटली लेकर रेल यात्रिओं को चाय बेचते थे। उनका घर भी ज्यादा बड़ा नहीं था। उनको जानने वाले कहते हैं कि वो स्कूल में भी एक सामान्य छात्र थे।
जीवनीकार निलंजन मुखोप्धयाय के मुताबिक मोदी की शादी जवानी में ही हो गई थी लेकिन वह शादी ज्यादा दिन तक नहीं चली। और मोदी ने अपनी शादी को एक राज ही बनाकर रखा क्योंकि अगर उनकी शादी की बात सार्वजनिक होती तो वो आरएसएस के प्रचारक नहीं बन सकते थे।
मोदी अक्सर घर से गायब हो जाते थे। कई बार वो हिमालय और अन्य जगहों पर रहते थे। वो कुछ दिन गिर के जंगलों में छोटे से हिंदु मंदिर में भी रहे थे। उन्होंने पूरी तरह से अपना घर 1967 में त्याग दिया था। और 1971 में भारत-पाक के युद्ध के बाद वो आरएसएस के साथ जुड़ गए। उसके बाद वो आरएसएस के दिल्ली ऑफिस पहुंच गए। जहां पर वो सुबह चार बजे उठते थे, ऑफिस की सफाई करते थे, वहां मौजूद वरिष्ठों के लिए चाय और नाश्ता तैयार करते थे। साथ ही दफ्तर में आए पत्रों का भी जवाब देते थे।
वहां पर वो बर्तन साफ करते थे, झाडू निकालते थे और पूरी इमारत में सफाई करते थे। मोदी अपने कपड़े भी खुद ही धोते थे।
जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था और इंदिरा गांधी अपने राजनीतिज्ञ विरोधियों को जेल में डाल रही थी। उसके बाद मोदी फिर दोबारा से गुजरात लौट आए और अंडरग्राउंड हो गए।
मोदी की मेहनत और बेहतर दक्षता ने भाजपा के वरिष्ठों के दिल को जीत लिया। 1987-88 में वो गुजरात भाजपा के साथ जुड़ गए और उन्हें ऑरगेनाइजिंग सेक्रेट्री नियुक्त किया गया। और इस तरह से उन्होंने मैनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में एंट्री मारी।
मोदी ने धीरे-धीरे गुजरात भाजपा में अपने पैर जमाकर पूरा कंट्रोल करना शुरू कर दिया। वे कार्यकर्ताओं से नियमित तौर पर मिलने लगे। उन्होंने आडवाणी की सौमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भाजपा का यह ऎसा कदम था जिससे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की पहचान बनी। जब मुरली मनोहर जोशी पार्टी के अध्यक्ष थे तो उनकी भी कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की एकता यात्रा करवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
लेकिन जैसे-जैसे मोदी राजनीतिक ताकत हासिल करने लगे और अपने हलके में मजबूत होने लगे तो उनके दुश्मनों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो गई। 1992 में उन्हें गुजरात भाजपा के वरिष्ठों के द्वारा साइड लाइन कर दिया गया। मोदी के रास्ते में केशूभाई पटेल, शंकरसिंन वागेला और कांशीराम अड़चन बन गए। मोदी ने दूसरे नेताओं के बीच की दरार का फायदे उठाते और उसका इस्तेमाल करते। इस प्रकार वो 2001 में वो पटेल के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री बनए गए।
उसके बाद उनके मुख्यमंत्रीकाल में ही गुजरातदंगे हुए। गुजरात दंगों के लिए आरोपी मोदी को ही ठहराया गया। उन पर आरोप थे कि दंगों को दौरान उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ हिंदु उपद्रवियों को भड़काया था। इन दंगों कई हजार लोगों की मौत हो गई थी। इन्ही दंगों की वजह से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जाती नजर आ रही थी। तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था मोदी की इसके लिए जिम्मेदारी है। लेकिन आडवाणी उस वक्त मोदी का बचाव किया था। इसके बाद 2002 में मोदी ने ही पार्टी को ऎतहासिक जीत दिलाई थी। और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बाद में मोदी विकास और सुशासन का फेस बन गए। मोदी एक हिंदु भक्त हैं जो पिछले चार दशक से नवरात्र के व्रत रख रहे हैं और व्रत के दौरान केवल पानी का सेवन करते हैं।
मुख्य बिंदू-
1987 - बीजेपी में शामिल हुए।
2001- गुजरात में भूकंप आया, जिसमें हजारों लोग मारे गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को पद से हटना पड़ा। पटेल की जगह मोदी को गुजरात की कमान मिली।
2002 - पहली बार मुख्यमंत्री चुनकर आए।
27 फरवरी, 2002 - गुजरात में दंगे भड़के, जिसमें करीब 1000 लोग मारे गए। इनमें अधिकतर मुस्लिम थे। मोदी पर आरोप लगा कि उन्होंने दंगे भड़काए।
2005 - धार्मिक असहनशीलता के कारण अमेरिका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया।
2006 - एक मैगजीन ने मोदी को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बताया।
2007 - दूसरी बार मुख्यमंत्री चुनकर आए।
2012 - मोदी लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री चुनकर आए।
फरवरी, 2012 - 2002 के गुजरात दंगों के मामले में एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दे दी।
9 जून, 2013 - मोदी को बीजेपी चुनाव प्रचार अभियान समिति की कमान सौंपी गई।
Note-- श्रोत पत्रिका डाट काम