बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

मोदी सरकार में बिजली में कितना सुधार हुआ ?

क्या आप अभी भी पीक सीज़न में लगातार लंबी अवधि के लिए पावर कट्स का सामना कर रहे हैं ?
एक बिजली आउटेज (जिसे पावर कट, पावर आउट, पावर ब्लैकआउट, पावर फेल्योर या ब्लैकआउट भी कहा जाता है) एक विशेष अवधि के लिए बिजली का एक अल्पकालिक या दीर्घकालिक नुकसान होता है. बिजली नेटवर्क में बिजली जाने के कई कारण हैं. इन कारणों के उदाहरणों में पॉवर स्टेशनों पर कोई फॉल्ट, विद्युत संचरण लाइनों में क्षति, सबस्टेशन या वितरण प्रणाली के अन्य हिस्सों को नुकसान, शॉर्ट सर्किट, या बिजली के मुख्य तार में अधिभार (ओवरलोड) शामिल हैं.
बिजली की कमी (पीक डिमांड) के विभिन्न वर्षों के आंकड़े नीचे दिए गए हैं।
📌 यूपीए 1 (05 साल)
📎 औसत बिजली की कमी = -13.24%
🖇️ 2004-05 : -11.66 % बिजली की कमी
🖇️ 2005-06 : -12.29 % बिजली की कमी
🖇️ 2006-07 : -13.80 % बिजली की कमी
🖇️ 2007-08 : -16.60 % बिजली की कमी
🖇️ 2008-09 : -11.86 % बिजली की कमी
📌 यूपीए 2 (05 साल)
📎 औसत बिजली की कमी = -9.33%
🖇️ 2009-10 : -12.72 % बिजली की कमी
🖇️ 2010-11 : -9.84 % बिजली की कमी
🖇️ 2011-12 : -10.63 % बिजली की कमी
🖇️ 2012-13 : -8.98 % बिजली की कमी
🖇️ 2013-14 : -4.49 % बिजली की कमी
📌 एनडीए (05 साल)
📎 औसत बिजली की कमी = -1.81%
🖇️ 2014-15 : -4.70 % बिजली की कमी
🖇️ 2015-16 : -3.20 % बिजली की कमी
🖇️ 2016-17 : -1.63 % बिजली की कमी
🖇️ 2017-18 : -2.00 % बिजली की कमी
🖇️ 2018-19* : +2.50 % बिजली की अधिकता
🙌 हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि 'मोदी सरकार' पावर कट्स को कम करने में सफल रही है.
स्रोत: केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए 18-19 रिपोर्ट)