बुधवार, 7 नवंबर 2012

नारी के पतन का कारण गोस्वामी तुलसी दास ?

भारत में यदि किसी का  सबसे ज्यादा शोषण हुआ है तो वो स्त्री  है, फिर वो  चाहे किसी भी जाती या धर्म की हो | पुरुष ने हमेशा उसको अपनी निजी सम्पति समझा इस लिए उसपर समय समय पर बिभिन्न प्रकार  के प्रतिबंध लगाए.. पर्दा प्रथा, पराये पुरुष  से बात न करना , घर की चार दिवारी में रहना , पिता की सम्मति पर अधिकार  न होना , स्त्री पराया धन  , आदि  ऐसे नियम बनाये ताकि  पुरुष हमेशा स्त्री का शोषण कर सके |
एक बालिका को अपने पिता के निर्देशों पर जीना ….युवा अवस्था में भाई के …विवाह उपरान्त अपने पति के और प्रौढ़ अवस्था में अपने बेटे के ..यानि पुरुष ने उसे हमेशा मानसिक रूप से कमजोर रखा ताकि वो उसकी दासता से मुक्त न होने पाए |
हिन्दू धर्म में  स्त्री के बारे में कहा गया है कि
यत्र   नार्यस्तु   पूज्यन्ते  रमन्ते  तत्र  देवता: |
यत्रैतास्तु  न  पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।
अर्थात, जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमते हैं ,जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं । परन्तु क्या कारण है कि जहाँ स्त्रियों को पूजनीय समझा जाता था  उसके बिना हर  कार्य को निष्फल समझा जाता वहीं स्त्री की इतनी दुर्दशा हो गई कि इसके पैदा होने से पहले ही लोग इसे मारने लगे?
तो इसका कारण है गोस्वामी तुलसी दास …जी हाँ ..तुलसी दास !!
तुलसी दास ने रामचरित मानस लिख कर स्त्री के शोषण के युग को प्रारभ कर दिया था ….उनकी लिखी गई  सुन्दर कांड की इस  चौपाई ‘”ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी“ हिन्दू स्त्री के पतन का मुख्य कारण बनी |
शुद्र की दशा तो पहले से ही ख़राब थी और तुलसी दास एक ब्राह्मण थे तो इसके बारे में ज्यादा बताने की जरुरत नहीं…आप खुद समझ सकते हैं | तुलसी दास रचित रामचरित मानस अवधि में होने के कारण उत्तर भारत में अधिक प्रसिद्ध है और यदि देखा जाए तो उत्तर भारत में ही स्त्रियों की दशा ज्यादा दयनीय है, इसका अंदाजा आप इससे ही लगा सकते हैं की केरल, उड़ीसा, पॉन्डिचेरी, तमिल नाडू जैसे गैर-हिंदी राज्यों में कन्या जन्म दर उत्तर भारत के राज्यों( बिहार , उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब ) की अपेक्षा कही अधिक है|
स्त्री के प्रति सम्मान कम तो जन्म दर भी कम …लिंग भेद अधिक तो स्त्री का शोषण अधिक , जितनी ज्यादा रामचरित्र मानस का प्रचार हुआ उतना ही अधिक स्त्री का शोषण बढ़ता गया | रामचरित्र मानस के बारे में एक कथा परचलित है की जब तुलसी दास जी ने मानस पूरी कर ली तो उन्होंने काशी में जाके इसे सुनाया | वहां के ब्राह्मणों को उनसे इर्षा होने लगी और उन ब्राह्मणों  ने मानस को नष्ट करवाना चाहा, जिससे डर कर तुलसी दास ने मानस को अपने मित्र टोडर मल के घर कुछ समय के लिए रखवा दिया | टोडरमल जो की अकबर के नवरत्नों में से एक था और अकबर के जजिया कर का हिसाब करता था और इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना | यही टोडर मल था जिसने महाराणा प्रताप को पकडवाने में अकबर की मदद की थी  और शायद आखरी समय में इस्लाम कबूल कर लिया था |
तुलसी दास जी के काल में हुकूमत अकबर की थी, तो ये संभव नहीं था कि बिना बादशाह के इजाजत के इतने व्यापक रूप से मानस का प्रचार हो पाता?  इस्लाम में स्त्रियों की हालत क्या है ये बताने की जरुर है नहीं है ? पर्दा प्रथा , मस्जिद में नमाज़ पढने पर प्रतिबंध, स्त्री यदि शौहर का कहना न माने तो उसको पीटने का अधिकार ( सूरा ४:३4) , औरत की गवाही आधी मानी जाए ( सूरा २:२८२)…आदि |
चुंकि अकबर बादशाह अपने को एक सच्चे मुसलमान कहते थे तो क्या ये सभव नहीं कि उन्होंने मानस की इस चौपाई में कुछ हेर फेर कर दी हो ? या स्वयं तुसली दास से जबरन ये चौपाई लिखवा दी हो ? या ये भी हो सकता है की तुलसी दास इस्लाम से प्रेरित हो गए हों  तभी उन्होंने ये स्त्री विरोधी चौपाई लिख दी हो?
पाठक मित्रों आप सब का क्या विचार है?
 
जागरण जंक्सन से साभार ...

108 अंक का क्या महत्व है...?


हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!

लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????

दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l
...

आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).

अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :

1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ

150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)

2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ

1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .

3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .

4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .

5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .

1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास

6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .

1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)

7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ

8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ

9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)

1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल

@@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,

1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को

0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती

8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .

इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है..... ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.