अज्ञानता
कोई मुर्खतई से सम्बन्धित नही हो सकती क्यों की ज्ञान हर जीव-जन्तु को
होता हे,.जेसे न्याजन्मा शिशु बिना ज्ञान के तो माँ के स्तनों से दूध
निकल कर नही पी सकता बिना बोले माँ को बडे आराम से बता देता हे की उस को
भूख लगी हुई हे इस सबके बाद उस शिशु को अज्ञानी तो कह नही सकते जब उसी का
ज्ञान माया की पकड़ में आजाता हे तो अज्ञानता आते देर नही लगा करती
अज्ञानता बड़ जाती हे मा(जो)या (नही हे ) माया सच को झूठ और झूठ को सच कर
के दिखलाती हे जेसे आकाश में खेती कर के दिखा देना हिजडे के उलाद पैदा कर
देना सब माया ही हे ,अगर ज्ञान और विज्ञानं दोनों का मिलन हो जावे तो
प्रत्यक्ष में झूठ सच में बदल गया होता हे सत्य ही ईश्वर होता हे सत्य का
साथ सत्संग कहलाता हे बिना ज्ञान के प्रति दिन सत्संग होते हें एक
व्यक्ति ऊँचे से मंच पर बैठ कर जो भाषण देता हे ,उसी भाषण को अज्ञानी जन
सत्संग मान लेते हे जब की एक समूह द्वारा आपसी बात चीत को सत्संग कह सकते
हेंइसी ईश्वरीय बातचीत के निर्णय को ईश्वर मान सकते हें पूर्ण ज्ञानी इस
संसार में सिवा भगवान के और कोई हो मुझे नजर नही आया मेरे एक मित्र
कस्तुरी लाल जी हें बापू आसाराम जी को अज्ञयानता वश पूर्ण ज्ञानी ,इसी
परकार हमारे एक मित्र है मनुजेन्द्र सिंह परिहार ..जय गुरुदेव के पक्के
भक्त है ये लोग इन्हें ईश्वर का अवतार बताते नही थकते मुझे बहुत आश्चर्य
होता हें ये कस्तुरी जी और मनुजेन्द्र सिंह परिहार जी ही
नही और भी कईलोग आजकल के धर्म गुरुओं को ईश्वरीय अवतार मान रहे हें उनको
दान में ज्ञान इन ढोंगियों द्वारा दिया गया बतलाते हें शास्त्रों कई आगया
हें कि (पानी पियो छान कर गुरु करो जानकर )बिनाजाने गुरु बनाना एक तो
सनातन धरम के वरुध ही नही पाप भी हें इन पाखंडी गुरु बाबाओं को तो इतना
भी ज्ञान नही होता कि अपने आश्रम से उस स्टेज तक जिस पर विराजमान हो कर
यह सत -संग करने आए हें उस रस्ते में कितने वृक्ष आए थे परन्तु इनको
पूर्ण ज्ञानी या अवतार मान कर हम गलती ही नही तो और क्या कर रहे हें ? इन
को सरकारों ,राजनेतिक पार्टियों का संरकशंन मिला हो ता हें सनातन धर्म
के अपमान और दमन कीकिसी भी कोशिश को हाथ से जाने नही देना चाहते नतीजतन
सनातन धर्म लग-भग लुप्त ही होता जा रहा हें जब-जब धर्म की हानि होतीहें
तब-तब भगवान को अवतार ले कर सनातन धरम की स्थापना करनी पडती हें कलयुगी
भगतों को यह ज्ञान तो हें भगवन के प्रति उन के प्रेम को भी देखो फिर भगवन
का अवतार हो और फिर भगवान जंगलों में भटकें हमे क्या पडी हें हमतो
अज्ञानता के बलबूते ही गुरु हो गये हें क्या यही अज्ञान होता हें ?
इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।। !! दुर्भावना रहित सत्य का प्रचार :लेख के तथ्य संदर्भित पुस्तकों और कई वेब साइटों पर आधारित हैं!! Contact No..7089898907
सोमवार, 24 सितंबर 2012
श्रृष्टि संरचना , श्रृष्टि चक्र........??
संरचना बिधान मे प्रत्येक संरचना का प्राण केंद्र यानि न्यूक्लियस का होना
अनिवार्यता है अर्थात प्राण केंद्र विहीन किसी संरचना की हम कल्पना नहीं कर
सकते हैं..प्रत्येक संरचना के प्राण केंद्र की धुरी से आबद्ध होकर उस
संरचना का अंश इलेक्ट्रान - प्रोटान अथवा उपग्रह के रूप मे निरन्तर
उसकी परिक्रमा करता रहता है ! परमाणु श्रृष्टि की सबसे छोटी संरचना है !
पदार्थ पर चारो ओर से पड़ने वाला वायु मंडलीय दबाव उसके भीतर एक प्राण
केंद्र , जो पदार्थ की संरचना की स्थिरता बनाये रखने हेतु वायु मंडलीय
दबाव के बराबर बहिर्मुखी दबाव देने का कार्य करता है , को उत्पन्न करता है ! इलेक्ट्रान व प्रोटान इस संरचना के अंश के रूप मे परमाणु के
प्राण केंद्र की परिक्रमा करते रहते हैं !पृथ्वी समस्त परमाणुओं का समेकित
स्वरूप है और चन्द्रमा पृथ्वी के प्राण केंद्र से आबद्ध होकर इसकी
परिक्रमा करता है!सौर मंडल मे सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और
सारे ग्रह व उपग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे होते हैं ! महा सौर मंडल मे
महा सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और अनेकानेक सौर मंडल महा सूर्य
की ग्रहों की भाति परिक्रमा कर रहे होते हैं!सी प्रकार महा महा सौर मंडल
मे महा महा सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है और अनेकानेक महा सौर मंडल
ग्रहों की भाति इस महा महा सौर मंडल की परिक्रमा कर रहे होते हैं !इसी
प्रकार महानतम सौर मंडल मे महानतम सूर्य की प्राण केन्द्रीय स्थिति है!
अनेकानेक महा महा सौर मंडल और ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाये इस परम प्राण
केंद्र की परिक्रमा कर रही होती हैं ....
इस परम प्राण केंद्र की तरंग दैर्घ्य ( बेब लेंथ ) ब्रह्माण्ड की हरेक
संरचना तक होने के कारण यह सर्ब व्याप्त है ! सर्बाधिक तरंग दैर्घ्य वाली
यह शक्ति ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं को परिचालित , संचालित एवं
नियंत्रित करने वाली होने के कारण यह सर्ब शक्तिमान है !यही परम प्राण
केंद्र ब्रह्माण्ड की समस्त संरचनाओं को शक्ति प्रदान करता है और उनकी
गत्यात्मकता को नियंत्रित करता है !इस प्रकार सर्ब व्यापकता , सर्ब शक्ति
मानता और सर्ब नियंता होना इसका प्रमुख गुण है................
सर्ब
नियंता , सर्ब व्यापकता एवं सर्ब शक्तिमानता इस परम प्राण केंद्र अथवा परम
सिद्धांत के गुण बोध मात्र को स्पष्ट करता है , पर इससे इस सत्ता के स्वरूप
का आभास नहीं होता, सापेक्ष जगत मे समस्त सीधी रेखा लगने वाली समस्त
तरंगें वस्तुतः सीधी रेखाएं न होकर किसी बड़े बृत की त्रिज्याएँ मात्र होती
हैं, केवल अनंत तरंग दैर्घ्य वाली त्रिज्या ही सीधी रेखा मे हो सकती है, इस प्रकार यह परम प्राण केंद्र , परम सिद्धांत एक सीधी रेखा के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं है, इस प्रकार निरपेक्ष तरंग दर्घ्य वाली सत्ता ही सीधी रेखा
मे हो सकती है , अब प्रश्न उठता है कि सीधी रेखा मे क्या हो सकता है ? कोई
भी भौतिक , मानसिक सापेक्ष संरचना सीधी रेखा मे नहीं हो सकती , सीधी रेखा
मे केवल संचेतना अथवा पुरुष ही हो सकता है , अतयव इस अनंत शक्ति सत्ता को
हम परम पुरुष अथवा ईश्वर का नाम दे सकते हैं...........
त बिना किसी परम कारक
तत्व के कार्य नहीं कर सकता है ....सत-राज-तम की त्रिगुणात्मकता शक्ति
स्वरूपा प्रकृति ही वह परम कारक व परम परिचालक के रूप मे पुरुष को शक्ति
प्रदान करते हुए संचालित करती है ,यह प्रकृति अपने त्रिगुणात्मक
स्पन्दंयुक्त कार्य विधान द्वारा सदैव क्रियाशील रहती है! प्रारंभ मे
प्रकृति के आन्तरिक त्रिगुणात्मक स्पंदन के बावजूद परम पुरुष अप्रतिहत रहता
है! यह प्रकृति की निष्क्रियता की वह स्थिति है , जहाँ परम पुरुष से अलग
प्रकृति का कोई अलग तथा उद्भासित अस्तित्व नहीं होता है ! दूसरे शब्दों मे
परम पुरुष की देह मे प्रकृति सुषुप्ति की स्थिति मे विद्यमान रहती है !
यहाँ प्रकृति और परम पुरुष की स्थिति कागज के दो पृष्ठों या सिक्के के
दोनों भाग की तरह संपृक्त होती है और जिसका बिलगाव नहीं होता ! इसे निर्गुण
ब्रह्म की स्थिति कही जा सकती है जो श्रृष्टि स्पंदन के ठहराव की स्थिति
है ..............
परम पुरुष की इच्छा जागने पर प्रकृति का त्रिगुणात्मक स्पंदन सक्रिय हो उठता है और तरंग सायुज्य की प्रक्रिया द्वारा परम पुरुष सगुण रूप धारण करना प्रारंभ करता है !सर्बप्रथम परम पुरुष प्रकृति के सत गुण स्पंदन से सायुज्य करके सगुण ब्रह्म का स्वरूप धारण करेगा ! बाद में रज गुण और अंत में तम गुण सायुज्य स्थापित करेगा ! यह भूमा मन की स्थिति होगी जो सगुण ब्रह्म की सूक्ष्म तम स्थिति होगी! इसके उपरांत तमो गुण का प्रभाव निरंतर बढ़ता जाता है और शेष दोनों गुण उत्तरोतर सुसुप्त होते जाते हैं ! इस स्थूलीकरण की प्रक्रिया में सर्बप्रथम आकाश तत्व (ध्वनी स्पंदन ) वायु तत्व (स्पर्श स्पंदन ) ,अग्नि तत्व (दृश्य स्पंदन ) ,जल तत्व (घ्राण स्पंदन )तथा छिति तत्व (स्वाद स्पंदन )अतिरिक्त रूप मे स्थान पाते हैं .. परम सिद्धांत ( परम पुरुष )पर परम कारक (प्रकृति )के परम स्थूलीकरणकी अंतिम स्थिति छिति तत्व की है ............
परम पुरुष की इच्छा जागने पर प्रकृति का त्रिगुणात्मक स्पंदन सक्रिय हो उठता है और तरंग सायुज्य की प्रक्रिया द्वारा परम पुरुष सगुण रूप धारण करना प्रारंभ करता है !सर्बप्रथम परम पुरुष प्रकृति के सत गुण स्पंदन से सायुज्य करके सगुण ब्रह्म का स्वरूप धारण करेगा ! बाद में रज गुण और अंत में तम गुण सायुज्य स्थापित करेगा ! यह भूमा मन की स्थिति होगी जो सगुण ब्रह्म की सूक्ष्म तम स्थिति होगी! इसके उपरांत तमो गुण का प्रभाव निरंतर बढ़ता जाता है और शेष दोनों गुण उत्तरोतर सुसुप्त होते जाते हैं ! इस स्थूलीकरण की प्रक्रिया में सर्बप्रथम आकाश तत्व (ध्वनी स्पंदन ) वायु तत्व (स्पर्श स्पंदन ) ,अग्नि तत्व (दृश्य स्पंदन ) ,जल तत्व (घ्राण स्पंदन )तथा छिति तत्व (स्वाद स्पंदन )अतिरिक्त रूप मे स्थान पाते हैं .. परम सिद्धांत ( परम पुरुष )पर परम कारक (प्रकृति )के परम स्थूलीकरणकी अंतिम स्थिति छिति तत्व की है ............
इस
परम सूक्ष्म से स्थूल तक की यात्रा की अंतिम परिणति छिति तत्व है , जिस पर
चारो ओर से वायु मंडलीय दबाव पड़ता है जो पृथ्वी के भीतर एक बिंदु पर
प्रतिफलित होकर प्राण केंद्र यानि न्यूक्लियस का निर्माण करता है जो पृथ्वी
के ढांचागत स्थायित्व के लिए वायु मंडलीय दबाव के बराबर बहिर्मुखी दबाव
उत्पन्न करता है.तभी एक पदार्थ का ढांचागत स्थायित्व बना रहना संभव होता
है..एक अन्य स्थिति की परिकल्पना कीजिये ,जहाँ पदार्थ के प्राण केंद्र का
बहिर्मुखी दबाव वायु मंडल के अंतर्मुखी दबाव से अधिक है..ऐसी स्थिति मे
पदार्थ का संरचनात्मक अस्तित्व बनाये रखने के उद्देश्य से उक्त पदार्थ का
एक अंश अलग होकर इतना दूर चला जाता है ,जहाँ उसके पहुचने से पदार्थ के
संरचनात्मक संतुलन मे सामंजस्य स्थापित हो जाताहै ... पदार्थ का उक्त अंश
पदार्थ के प्राण केंद्र से ही आबद्ध होकर उसी पदार्थ के उपग्रह व ग्रह के
रूप मे उसकी परिक्रमा करने लगता है ... इस प्रक्रिया को जदास्फोत कहते हैं
और विखंडन की इसी प्रक्रिया से श्रृष्टि मे विकास और गुणन प्रभाव देखने को
मिलता है . एक से अनेक होने की यह प्रक्रिया ब्रह्माण्ड मे निरन्तर चलती
रहती है...... !
अब एक ऐसी स्थिति की परिकल्पना कीजिये ,जहाँ
वायु मंडलीय दबाव पदार्थ के प्राण केंद्र के बहिर्मुखी दबाव से काफी अधिक
है ऐसी स्थिति मे पदार्थ के संकुचन की प्रक्रिया मे अणुकर्षण व अणुसंघात
की स्थिति उत्पन्न होगी .... जिसके फलस्वरूप पहले छिति चूर्ण तत्पश्चात छिति
तत्व मे अवस्थित पांच महाभूतो का सुप्त स्पंदन जागृत हो उठेगा और उपयुक्त
संयोजन के फलस्वरूप जीव उत्पन्न होने की सम्भावना होगी , सर्बप्रथम प्रकृति
के तम गुण से सायुज्य होगा तत्पश्चात जड़ संघात के फलस्वरूप एककोशीय
अमीबा बहुकोशीय होकर जैविक विकास का मार्ग प्रशस्त्र करेगा ,जीव विकास की
इस प्रक्रिया मे पहले वनस्पति फिर जलचर फिर पशु और सबसे बाद मे मनुष्य
उत्पन्न होगा, यही जैविक विकास की प्रक्रिया और क्रम है,,,,,
इस जड़ संघात की प्रक्रिया के पश्चात् मनस संघात की परिस्थितियां उत्पन्न
होंगी, मनस संघात की इस प्रक्रिया मे सर्बप्रथम वनस्पति मन फिर पशु मन फिर
मानव मन उत्पन्न होगा,कालांतर मे विकसित बुद्धि का मानव बोधि और
आध्यात्म का आलंबन लेकर सापेक्षिकता के बंधन से मुक्त होकर ब्रह्म लींन हो
जायेगा ,यह पूर्ण स्थूल से परम सूक्ष्म (पुरुष) तक की आरोही यात्रा का
क्रम है,...........
निर्गुण ब्रह्म की स्थिति ठहराव (pause) की
स्थिति है ! इस क्रिया विहीनता की स्थिति मे ही शक्ति संचयन होता है ! इसके
पश्चात् चरम बिंदु से चरम स्थूल छिति तत्व की अवरोही क्रम और छिति तत्व के
स्थूलीकरण से ब्रह्मलीन होने की आरोही क्रम की यात्रा चलती रहती है ! इसे
ही श्रृष्टि चक्र या ब्रहास्पंदन समझ सकते हैं..........
भारत की भयावह स्थिती क्यों ?
यह
निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक भारतीय मूलत: सुसंस्कारित, चारित्र्यवान,
भ्रष्टाचारमुक्त जीवन पद्धति को अनुसरित करनेंवाला और देश के लिए के लिए
हरस्तर पर मर मिटनें वाला दृढ़ निश्चयी नागरिक होता है । हर हिंदुस्तानीं
को ऐसा ही होना चाहिए । यह भी स्वयं सिद्ध है कि सच्चा नागरिक भारत की धरती
को माता मानता है और दुनिया के सभी देशों में सर्वश्रेष्ठ – सर्वसम्पन्न
देश बनानें का लक्ष्य रखकर इसकी पूर्ति के लिए समाज की आवश्यकताओं के
अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता है।
यह इंगित करनें की आवश्यकता नहीं
है कि ‘शुद्ध-स्वच्छ वातावरण में ईमानदारी से काम होता है, जिससे इंसान
सानंद, प्रामाणिकता और दृढ़ता के साथ असीमित सकारात्मक कार्य सिद्ध करता
है’। उक्त व्यक्ति के यथार्थवादी, समाजनिष्ठ और ईमानदार कर्त्तव्य परायणता
के कारण वह विश्वसनीय होकर समाज में सम्मान का पात्र बनता है । ऐसे व्यक्ति
की पहचान एक समाजसेवी कार्यकर्ता के रूप में होती है और उससे समाज की
अनेकानेक अपेक्षाए होती है।’
यह अनुभव आता है कि भविष्य में जब
यही सम्मान प्राप्त समाजसेवी राजनीतिक क्षेत्र में जाकर काम करता है, तब
समाज को उसके भाष्य, चरित्र, व्यवहार, धनबल -बाहुबल और कर्त्तव्य स्थिति
में अनावश्यक रूप से बदलाव मिलनें लगता है। कुछेक समाज सेवकों को छोड़कर
अधिकाँश राजनीति में गए व्यक्ति इसी परिवर्तित रूप में दिखाई देते है ।
जबकि हर सामान्य नागरिक केवल समाजसेवी से प्रामाणिक रहनें की अपेक्षा करता
है। परन्तु राजनीतिक हो गया व्यक्ति अब सच्चा व अच्छा समाजसेवी न रहकर दलीय
कार्यकर्ता बन जाता है, और अपनें आप को नेता कहता फिरता है
व्यक्ति का यह परिवर्तन नकारात्मक
होनें के कारण, समाज के मनमस्तिष्क पर गहरी चोट करता है,जिससे इस राजनीतिक
कार्यकर्ता अर्थात नेता को सारा समाज परोक्ष रूप से अभद्र मानता है। ये
नेता अनैतिकता और आर्थिक – सामाजिक अपराधों की सजा से पूर्णत: बेख़ौफ़ रहकर
बेशर्मी से विभिन्न स्तरों पर लूटपाट का साम्राज्य स्थापित करते है। इनकी
सरकारी क्षेत्रों में दखलंदाजी प्रभावी होती है, जिस कारण सरकारी अमला इनसे
भय रखते हुवे इनके अयोग्य कार्यों में रुकावट डालने का साहस नहीं
करता,बल्कि अपनी तरक्की या बिना श्रम अतिरिक्त धन प्राप्ति की आस में इनकी
चापलूसी करने लगता है। भारतीय मतदाता केवल ऐसे गुणोंको प्रस्तुत करने वाले
नेता, उसके सहयोगी और विचार धारासे जुड़े समूहको भविष्य में सत्ता से
दूरस्थ रखनें का मन बनाता है। यहाँ तक की सामान विचारधारा के अन्य
कार्यकर्ता भी निजी स्वार्थ के चलते ऐसे व्यक्ति को सत्ता से विचलित करनें
या चुनाव में पराभूत करनें के लिए आगे बढ़ते है, परिणामत: आतंरिक संघर्ष और
अपराधों में वृद्धि होती चली जाती है जिससे कुकुरमुत्ते की तरह नये-नये
राजनीतिक दल जन्म लेते है।
उक्त विषय में चिंतन और अनुभव
स्पष्ट करते है कि ” चुनाव में विजयश्री और सत्ता प्राप्ति ही राजनीतिक
क्षेत्र से जुड़े कार्यकताओंका ध्येय रह जाता है, जिसके लिए चुनाव फंड और
वोट-बटोरना इनकी प्राथमिकता बन जाती है । अत: ‘नैतिक मूल्यों को तिलांजलि
देकर दल का काम करो और सफलता हासिल करो’, यह परोक्ष निर्देश यथावश्यकता
श्रेष्टी नेतृत्व देता रहता है।”
” ईमानदार रहकर कभी भी सत्ता प्राप्ति संभव नहीं है ” इस वाक्य को पत्थर की लकीर मानकर अपनें सच्चे ईमानदार मन के विरुद्ध भ्रष्ट आचरण व संघर्ष करनें के लिए नेता आमादा हो जाते है। यह भ्रम- पूर्ण और देश को विनाश की और ले जानेंवाला विचार और व्यवहार देश के सभी राजनीतिक दलों में और उनके कार्यकर्ताओं में व्याप्त हो चुका है, जो देश में अशांति, व्यक्ति-समूह संघर्ष व असीमित भ्रष्टाचार का कारक तथा पोषक बना है।”
” ईमानदार रहकर कभी भी सत्ता प्राप्ति संभव नहीं है ” इस वाक्य को पत्थर की लकीर मानकर अपनें सच्चे ईमानदार मन के विरुद्ध भ्रष्ट आचरण व संघर्ष करनें के लिए नेता आमादा हो जाते है। यह भ्रम- पूर्ण और देश को विनाश की और ले जानेंवाला विचार और व्यवहार देश के सभी राजनीतिक दलों में और उनके कार्यकर्ताओं में व्याप्त हो चुका है, जो देश में अशांति, व्यक्ति-समूह संघर्ष व असीमित भ्रष्टाचार का कारक तथा पोषक बना है।”
” धन और सत्ता का लोभ ही उपरोक्त
विनाशकारी स्थिति का जनक है, जब शीर्ष स्तर से अनैतिकता को प्रोत्साहन व
संरक्षण प्राप्त होगा, तो ऊपर उल्लेखित भयावह स्थितियों की उत्पत्ति के
अलावा और अधिक क्या हो सकता है ? इसे कौन रोक सकेगा ? “
इस भयावह परिस्थिति को बदलनें के लिए निम्न उपाय संभव है :-
(१) देश के प्रत्येक नागरिक में
नैतिक मूल्यों का हर स्तर पर और हर हाल में पालन आवश्यक होना और शिक्षा
क्षेत्र में स्थापित इस कमी को दूर करना। यह एक स्थायी और सर्वोत्तम रामबाण
उपाय है परन्तु यह एक दीर्घ प्रक्रिया है, जिसमें पीढियां खप जायेंगी
तत्काल लाभ के लिए यह प्रासंगिक व संभव नहीं।
(२) दूसरा उपाय हो सकता कि
सत्तासंचालकों और उनके अधीन कर्त्तव्य करनें वाले सभी लोगों के हर कृतिको,
एक निश्चित अवधी में करवाना और उनके कार्य की निगरानी / नियंत्रण
स्वतंत्रता पूर्वक [ अर्थात सत्तापक्ष से पूर्णत: मुक्त रखकर ] किसी समूह
के माध्यम से अत्यंत कठोर कानूनों का सहारा लेकर दृढ़ता से करवाना। यह संभव
है, परन्तु अपेक्षाकृत कुछ समय लगेगा, कुछ अड़चनोंको दूर करना होगा। इन
उपायों से अधिकतम ६०-६५% लाभ मिलेगा। मा.अण्णा हजारे साहाब ने इसे ”
जनलोकपाल ” कानून कहां है ।
(३) तीसरा उपाय ” विज्ञान और
प्रौद्योगिकी के उपयोग से कर्तव्यों में पारदर्शिता इस प्रकार से लाना कि
जिससे धनलोभ और अनैतिकता को रोका जा सके या नियंत्रित किया जा सके। ” इसका
क्रियान्वयन शीघ्र संभव है, केवल मन कि ईच्छा चाहिए।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)