यह
निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक भारतीय मूलत: सुसंस्कारित, चारित्र्यवान,
भ्रष्टाचारमुक्त जीवन पद्धति को अनुसरित करनेंवाला और देश के लिए के लिए
हरस्तर पर मर मिटनें वाला दृढ़ निश्चयी नागरिक होता है । हर हिंदुस्तानीं
को ऐसा ही होना चाहिए । यह भी स्वयं सिद्ध है कि सच्चा नागरिक भारत की धरती
को माता मानता है और दुनिया के सभी देशों में सर्वश्रेष्ठ – सर्वसम्पन्न
देश बनानें का लक्ष्य रखकर इसकी पूर्ति के लिए समाज की आवश्यकताओं के
अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता है।
यह इंगित करनें की आवश्यकता नहीं
है कि ‘शुद्ध-स्वच्छ वातावरण में ईमानदारी से काम होता है, जिससे इंसान
सानंद, प्रामाणिकता और दृढ़ता के साथ असीमित सकारात्मक कार्य सिद्ध करता
है’। उक्त व्यक्ति के यथार्थवादी, समाजनिष्ठ और ईमानदार कर्त्तव्य परायणता
के कारण वह विश्वसनीय होकर समाज में सम्मान का पात्र बनता है । ऐसे व्यक्ति
की पहचान एक समाजसेवी कार्यकर्ता के रूप में होती है और उससे समाज की
अनेकानेक अपेक्षाए होती है।’
यह अनुभव आता है कि भविष्य में जब
यही सम्मान प्राप्त समाजसेवी राजनीतिक क्षेत्र में जाकर काम करता है, तब
समाज को उसके भाष्य, चरित्र, व्यवहार, धनबल -बाहुबल और कर्त्तव्य स्थिति
में अनावश्यक रूप से बदलाव मिलनें लगता है। कुछेक समाज सेवकों को छोड़कर
अधिकाँश राजनीति में गए व्यक्ति इसी परिवर्तित रूप में दिखाई देते है ।
जबकि हर सामान्य नागरिक केवल समाजसेवी से प्रामाणिक रहनें की अपेक्षा करता
है। परन्तु राजनीतिक हो गया व्यक्ति अब सच्चा व अच्छा समाजसेवी न रहकर दलीय
कार्यकर्ता बन जाता है, और अपनें आप को नेता कहता फिरता है
व्यक्ति का यह परिवर्तन नकारात्मक
होनें के कारण, समाज के मनमस्तिष्क पर गहरी चोट करता है,जिससे इस राजनीतिक
कार्यकर्ता अर्थात नेता को सारा समाज परोक्ष रूप से अभद्र मानता है। ये
नेता अनैतिकता और आर्थिक – सामाजिक अपराधों की सजा से पूर्णत: बेख़ौफ़ रहकर
बेशर्मी से विभिन्न स्तरों पर लूटपाट का साम्राज्य स्थापित करते है। इनकी
सरकारी क्षेत्रों में दखलंदाजी प्रभावी होती है, जिस कारण सरकारी अमला इनसे
भय रखते हुवे इनके अयोग्य कार्यों में रुकावट डालने का साहस नहीं
करता,बल्कि अपनी तरक्की या बिना श्रम अतिरिक्त धन प्राप्ति की आस में इनकी
चापलूसी करने लगता है। भारतीय मतदाता केवल ऐसे गुणोंको प्रस्तुत करने वाले
नेता, उसके सहयोगी और विचार धारासे जुड़े समूहको भविष्य में सत्ता से
दूरस्थ रखनें का मन बनाता है। यहाँ तक की सामान विचारधारा के अन्य
कार्यकर्ता भी निजी स्वार्थ के चलते ऐसे व्यक्ति को सत्ता से विचलित करनें
या चुनाव में पराभूत करनें के लिए आगे बढ़ते है, परिणामत: आतंरिक संघर्ष और
अपराधों में वृद्धि होती चली जाती है जिससे कुकुरमुत्ते की तरह नये-नये
राजनीतिक दल जन्म लेते है।
उक्त विषय में चिंतन और अनुभव
स्पष्ट करते है कि ” चुनाव में विजयश्री और सत्ता प्राप्ति ही राजनीतिक
क्षेत्र से जुड़े कार्यकताओंका ध्येय रह जाता है, जिसके लिए चुनाव फंड और
वोट-बटोरना इनकी प्राथमिकता बन जाती है । अत: ‘नैतिक मूल्यों को तिलांजलि
देकर दल का काम करो और सफलता हासिल करो’, यह परोक्ष निर्देश यथावश्यकता
श्रेष्टी नेतृत्व देता रहता है।”
” ईमानदार रहकर कभी भी सत्ता प्राप्ति संभव नहीं है ” इस वाक्य को पत्थर की लकीर मानकर अपनें सच्चे ईमानदार मन के विरुद्ध भ्रष्ट आचरण व संघर्ष करनें के लिए नेता आमादा हो जाते है। यह भ्रम- पूर्ण और देश को विनाश की और ले जानेंवाला विचार और व्यवहार देश के सभी राजनीतिक दलों में और उनके कार्यकर्ताओं में व्याप्त हो चुका है, जो देश में अशांति, व्यक्ति-समूह संघर्ष व असीमित भ्रष्टाचार का कारक तथा पोषक बना है।”
” ईमानदार रहकर कभी भी सत्ता प्राप्ति संभव नहीं है ” इस वाक्य को पत्थर की लकीर मानकर अपनें सच्चे ईमानदार मन के विरुद्ध भ्रष्ट आचरण व संघर्ष करनें के लिए नेता आमादा हो जाते है। यह भ्रम- पूर्ण और देश को विनाश की और ले जानेंवाला विचार और व्यवहार देश के सभी राजनीतिक दलों में और उनके कार्यकर्ताओं में व्याप्त हो चुका है, जो देश में अशांति, व्यक्ति-समूह संघर्ष व असीमित भ्रष्टाचार का कारक तथा पोषक बना है।”
” धन और सत्ता का लोभ ही उपरोक्त
विनाशकारी स्थिति का जनक है, जब शीर्ष स्तर से अनैतिकता को प्रोत्साहन व
संरक्षण प्राप्त होगा, तो ऊपर उल्लेखित भयावह स्थितियों की उत्पत्ति के
अलावा और अधिक क्या हो सकता है ? इसे कौन रोक सकेगा ? “
इस भयावह परिस्थिति को बदलनें के लिए निम्न उपाय संभव है :-
(१) देश के प्रत्येक नागरिक में
नैतिक मूल्यों का हर स्तर पर और हर हाल में पालन आवश्यक होना और शिक्षा
क्षेत्र में स्थापित इस कमी को दूर करना। यह एक स्थायी और सर्वोत्तम रामबाण
उपाय है परन्तु यह एक दीर्घ प्रक्रिया है, जिसमें पीढियां खप जायेंगी
तत्काल लाभ के लिए यह प्रासंगिक व संभव नहीं।
(२) दूसरा उपाय हो सकता कि
सत्तासंचालकों और उनके अधीन कर्त्तव्य करनें वाले सभी लोगों के हर कृतिको,
एक निश्चित अवधी में करवाना और उनके कार्य की निगरानी / नियंत्रण
स्वतंत्रता पूर्वक [ अर्थात सत्तापक्ष से पूर्णत: मुक्त रखकर ] किसी समूह
के माध्यम से अत्यंत कठोर कानूनों का सहारा लेकर दृढ़ता से करवाना। यह संभव
है, परन्तु अपेक्षाकृत कुछ समय लगेगा, कुछ अड़चनोंको दूर करना होगा। इन
उपायों से अधिकतम ६०-६५% लाभ मिलेगा। मा.अण्णा हजारे साहाब ने इसे ”
जनलोकपाल ” कानून कहां है ।
(३) तीसरा उपाय ” विज्ञान और
प्रौद्योगिकी के उपयोग से कर्तव्यों में पारदर्शिता इस प्रकार से लाना कि
जिससे धनलोभ और अनैतिकता को रोका जा सके या नियंत्रित किया जा सके। ” इसका
क्रियान्वयन शीघ्र संभव है, केवल मन कि ईच्छा चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें