गुरुवार, 7 जून 2012

!!आर्थिक विकास के नाम पर जनता को धोका दिया जा रहा है!!

 
 मुझे लगता है की जान बूझ कर ही ऐसी नीतियाँ बना जा रही हें जो भविष्य को अन्धकार की ओर लेजा रही हें , क्या अभी तक भारत के अर्थ शास्त्रियों को यह सनझ नहीं आई की रुपय,डॉलर, येन, नुमा कागज़ के टुकड़े अर्थ व्यवस्था का गुणाक तो है अर्थ व्यवस्था नहीं है . जिस तरह पिछली बार आई मंदी को रोकने के लिए अमेरिका की तर्ज़ पर बाज़ार में धन परवाह बढ़ा कर देश को धोका दिया गया वह अब महंगाई का भूत बन कर जनता को डरा रहा है, जो भविष्य में और भी बड़ा हानि कारक सिद्ध होगा, देश में उत्पादन कम और धन्पर्वाह जियादा होना ही महंगाई का फिलहाल कारक है, किसी भी देश अर्थ व्यवस्था कागज़ के टुकड़े नहीं बल्कि नेट और ग्रोस उत्पादन ओर सेवा की स्तिथि ही होता है , अगर अबके बरस भारत पर इश्वर की असीम कृपा ना होती बारिश अच्छी ना होती तो महंगाई के कारण लोग भुकमरी के शिकार होकर खुद कुशी कर रहे होते क्यों की जो धन्पर्वाह साकार द्वारा बाज़ार में मंदी से निपटने को उतरा गया उसका लाब सिर्फ कपनियो या लोन लेने में शक्षम व्यक्तियों को ही मिला. जिसके कारण अमीर और अमीर होगया और गरीब महंगाई के कारण और गरीब होगया, यह फासला पैदा करने के लिए वह निति ही जुम्मेदार है. अमेरिकन निति के परभाव में जीने वाले लोग यह क्यों भूल जाते हें की भारतीय भगोल और कारोबार की स्तिथि अमेरिका से बिलकुल भिन्न है . वहाँ सिर्फ कम्पनियों का राज है बाकि सब उनके नोकर है , वहां कम्पेन्यों की मदत सीधे उनके नोकरों को मिलती है यानि वहाँ के आम आदमियों को , मगर भारत में ऐसा नहीं है यहाँ की अस्सी पर्तिशत आबादी तो गाँव में बस्ती है उनकी रोज़ी रोटी कपनियों के आधार पर नहीं चलती अपितु कृषि और मेहनत मजदूरी, और कुटीर उत्पादन से चलती है. क्या कोई बतायगा की इन सब के लिए देश की आर्थिक निति क्या है,? उस धन परवाह का जो लाभ मिला वह 10 से 15 पर्तिशत लोगो को ही मिला जो की सरकारी नोकर कम्पनिया या वो कारोबारी जिनका शेयर बाज़ार और बेंको से गहरा रिश्ता है. अनुदान और बैंक क़र्ज़ के रूप में इन पर अपार धन आगया जिसका निवेश शेहरी भूमि और सोना खरीद के रूप में सामने आया.मांग अचानक बढ़ना ही इनकी असंतुलित महंगाई का कारक बना और इसी महंगाई की तुलनात्मक अंतर्राष्ट्रय बाज़ार में रुपय की कीमत गिरती चली गई. और रुपय सस्ता होने के कारण यहाँ डॉलर महंगा होता गया और डॉलर के बदले कम्पुटर तेल और विदेशी उत्पाद महंगा होता गया, तेल महंगा होने से आम आदमी के लिए माल भाडा मंहगा होता गया और इश्वर की महरबानी हमारी फसल अच्छी भी हुई तो २ रुपय किलो आलू ने कई किसानो की जान लेली इसके लिए सरकार ने क्या किया, आलू का मंदा होना एक बात साफ़ करता है की उत्पादन ही महंगाई घटा सकता है ,, २९ रुपय और २२ रुपय रोज़ कमाने वाला अमीर होने की बात करने वाली सरकार को यह भी याद रखना चाहिए की अमेरिका में मिनिमम मजदूरी ७ डॉलर प्रति घंटा, ८ घन्टे में ५६ डॉलर. यानि लगभग २८०० रुपय. प्रति दिन,, इस हिसाब से लग भाग ९८ डॉलर का १ रूपया हो तो भारत अमेरिका की करेंसी बराबर होगी, अगर हम सरकार का २९ रुपय वाला अमीरी का फार्मूला मानते हें तो,,अगर भारत के प्रधान मंत्री अर्थ शास्त्री है तो क्या वह जान बूझ कर भारत को गर्त में धकेलना चाहते हें, और अगर हाँ तो फिर वो कोन है देश को सोचना होगा. ?

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