रोजगार: एक आकलन के मुताबिक भारत में खुदरा अर्थव्यवस्था करीब 400 अरब अमेरिका डॉलर का है। इसमें 1. 2 करोड़ खुदरा व्यापारी करीब 4 करोड़ लोगों को रोजगार दिए हुए हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि वॉल-मार्ट का टर्नओवर 420 अरब अमेरिकी डॉलर का है। लेकिन इस कंपनी ने सिर्फ 21 लाख लोगों को रोजगार दिया है। खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के विरोधियों का कहना है कि अगर वॉल-मार्ट जैसी कंपनी इतने कम लोगों के दम पर उतना ही कारोबार कर रही है, जितना की भारत का कुल खुदरा बाज़ार है तो उस कंपनी से क्या उम्मीद की जा सकती है। एफडीआई के विरोधी पूछते हैं कि क्या ऐसी कंपनी से 4-5 करोड़ लोगों को रोज़गार देने की उम्मीद की जा सकती है?
नए तरह के बिचौलिए आ जाएंगे सामने: खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के समर्थकों का कहना है कि इससे बाजा़र में सबसे ज़्यादा फायदे में रहने वाले बिचौलिए गायब हो जाएंगे क्योंकि खुदरा की विदेशी दुकानें किसानों से उनके उत्पाद सीधे तौर पर खरीदेंगे और इससे किसानों को काफी फायदा होगा। लेकिन कृषि विशेषज्ञ डॉ. देविंदर शर्मा का कहना है कि यह धारणा गलत है। उन्होंने अमेरिका में हुए एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि 20 वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका के किसानों को लागत निकालने के बाद करीब 70 फीसदी की कमाई होती थी। लेकिन 2005 में यह फायदा गिरकर 4 फीसदी पर आ गया। ऐसे में किसानों को कहां फायदा हो रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि खुदरा की बड़ी दुकानें अपने साथ नए तरह के बिचौलिए लेकर आती हैं। एफडीआई के बाद क्वॉलिटी कंट्रोलर, स्टैंडर्डाइजर, सर्टिफिकेशन एजेंसी, प्रॉसेसर और पैकेजिंग कंसलटेंट के रूप में नए बिचौलिए सामने आएंगे।
अनाज को सड़ने से नहीं बचाएंगी कंपनियां: एफडीआई के समर्थकों का कहना है कि खुदरा बाज़ार में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियां वैज्ञानिक ढंग से लाखों टन अनाज को सड़ने से बचाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करेंगी। लेकिन खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के विरोधी पूछते हैं कि दुनिया के किस देश में ऐसी बड़ी कंपनियां किसानों के अनाज को सड़ने से बचाने के लिए भंडारण की सुविधा दे रही हैं? गौर करने वाली बात यह है कि सरकार ने भंडारण (स्टोरेज) के क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत पहले ही दे रखी है। लेकिन अब तक इस क्षेत्र में कोई विदेशी निवेश नहीं हुआ है।
दाम में कमी नहीं: बडी़ खुदरा दुकानें बाज़ार पर धीरे-धीरे एकाधिकार (मोनोपली) बना लेती हैं। एकाधिकार के बाद यही कंपनियां मनमानी दरों पर अपने उत्पाद बेचती हैं। एफडीआई का विरोध कर रहे जानकारों का दावा है कि अफ्रीका और एशिया में कुछ सुपरमार्केट में वस्तुओं के दाम खुले बाज़ार से 20 से 30 फीसदी से ज़्यादा पाए गए।
कृषि: प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का दावा है कि एफडीआई भारत के कृषि क्षेत्र के लिए 'वरदान' साबित होगा। लेकिन कृषि विशेषज्ञ डॉ. देविंदर शर्मा के मुताबिक यह सच नहीं है। उनका कहना है कि खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के सबसे बड़े पैरोकार अमेरिका में भी खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ है। अमेरिका में फेडरल सरकार की मदद की वजह से वहां के किसान फायदे में रहते हैं। 2008 में आए फार्म बिल में अमेरिका ने अगले 5 सालों के लिए कृषि क्षेत्र के लिए 307 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रावधान किया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर खुदरा में एफडीआई या बड़ी पूंजी लगाने से किसानों को बडा़ फायदा होता तो अमेरिकी सरकार को अपने किसानों को इतनी भारी भरकम सब्सिडी क्यों देनी पड़ती? पश्चिमी देशों में किसानों को कई तरह की सब्सिडी के बावजूद एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि यूरोप में हर मिनट एक किसान खेती बाड़ी का काम छोड़ रहा है
बिचौलिए से छुटकारा: बाज़ार में सबसे ज्यादा फायदा बिचौलिए उठाते हैं। न
तो किसी भी माल का उत्पादन करने वाले किसान और न ही वस्तु के अंतिम खरीदार
(ग्राहक) को ही इसमें कोई फायदा होता है। बिचौलिए बेहद सस्ती दरों पर
किसानों से उनके उत्पाद लेकर ग्राहकों को दूनी या कई बार तीन गुनी कीमत पर
बेचते हैं। एफडीआई के समर्थक जानकारों का दावा है कि एफडीआई के आने से
बिचौलिए गायब हो जाएंगे, जिससे किसानों को पहले से कहीं अधिक दाम मिलेगा और
ग्राहकों को भी पहले की तुलना में काफी सस्ती चीजें मिल जाएंगी।
बिचौलिए से छुटकारा: बाज़ार में सबसे ज्यादा फायदा बिचौलिए उठाते हैं। न
तो किसी भी माल का उत्पादन करने वाले किसान और न ही वस्तु के अंतिम खरीदार
(ग्राहक) को ही इसमें कोई फायदा होता है। बिचौलिए बेहद सस्ती दरों पर
किसानों से उनके उत्पाद लेकर ग्राहकों को दूनी या कई बार तीन गुनी कीमत पर
बेचते हैं। एफडीआई के समर्थक जानकारों का दावा है कि एफडीआई के आने से
बिचौलिए गायब हो जाएंगे, जिससे किसानों को पहले से कहीं अधिक दाम मिलेगा और
ग्राहकों को भी पहले की तुलना में काफी सस्ती चीजें मिल जाएंगी।
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