शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

!! क्या हम पूर्र्ण है ? क्या हम सम्पूर्ण है ?

  
क्या हमारे जीवन में कोई पूर्णता या सम्पूर्णता ला सकता है ....यह निश्चय है की स्त्री और पुरुष एक दुसरे के बगैर अधूरे हैं.. विवाह अथवा प्रेम पूर्णता लाता है , लेकिन 'सम्पूर्णता' नहीं...एक पुरुष के जीवन में उसकी पत्नी के अतिरिक्त उसके माता-पिता, भाई-बहन ,मित्र , नौकरी , कलीग , पडोसी और समाज , सभी का कुछ न कुछ योगदान होता है उसके जीवन को पूर्ण बनाने में..... उसी प्रकार एक स्त्री के जीवन में उसके पति अथवा प्रेमी के अतिरिक्त , उसके माता-पिता, भाई, बहन, परिजन, उसकी अपनी महत्वाकांक्षाएं और समाज सभी का थोडा-थोडा योगदान होता है उसके जीवन को पूर्ण बनाने में... अतः किसी का यह कहना की वो अमुक व्यक्ति को सभी खुशियाँ दे देगा , यह मात्र एक भ्रम है... आप किसी के भी जीवन में पूर्णता तो ला सकते है पर सम्पूर्णता ..कभी नहीं ला सकते है .....हम किसी से बहुत प्रेम करते है उसके लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तत्पर है .हम सोचते है की इसे सम्पूर्ण खुसी दे सकते है ....पर यह मेरा आपका .हमारा ..सिर्फ एक अहंकार है ..और कुछ नहीं ....आप होते कौन है किसी को कुछ देने वाले ...........

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