सात वचन और आज्ञा पालन--विवाह
के समय वर के द्वारा वधु को सात वचन देने का रिवाज चला आ रहा है.... लेकिन
ये सात वचन कौन-कौन से है और इन्हें कहाँ से लिया गया है और क्या इसमें
वर-वधु को एक-दुसरे की आज्ञा पालन के लिए कहा गया है... इस पर हम चर्चा
करते है.....हिंदू
वैवाहिक रीति-रिवाजों का विचार करें तो शास्त्रोक्त वैवाहिक विधि-विधान
में पत्नी या पति को आज्ञा-पालन करने के लिए सीधे तौर पर नहीं कहा गया....
वैदिक विवाह पद्धति बेहद आसान थी पर धीरे-धीरे हिंदू पद्धति में बहुत सी
वैवाहिक प्रक्रियाएं जुड़ती चली गईं.....हिंदू रीति-रिवाज में मधुवर्क,
लाजामोह, पाणिग्रहण आदि वैवाहिक प्रक्रियाओं के क्रम में सप्तपदी का बहुत
महत्व माना गया है.... सप्तपदी विवाह संस्कार का आधार है.... पति को विष्णु
स्वरूप माना गया है और वह वधू को सात पग रखवाता है जो सप्तपदी कहलाते
हैं.... इन सात पगों में (ॐ दूष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव-आश्वालायन
गृहसूत्र 1-7.9 पहले पद से (विष्णु रूप पति) घर के अन्नादिक के लिए,
अनुपालन के लिए पग रखवाता है.... दूसरा पद (ॐ द्वे अर्जे) पत्नी का बल
बढ़ाने के लिए, (ॐ रायस्पोषय त्रिपदी) तीसरा यश और धन बढ़ाने के लिए, (ॐ
मयोभवाय चतुष्पदी) चौथा सुविधारूपी माया का सुख प्रदान करने के लिए (ॐ
पज्यम पषुम्य:) गो आदि पशुओं को भी सुख प्राप्त करने के लिए, छठा (ॐ षद
त्रतुभ्य:) छहों ऋतुओं में आनंद की प्राप्ति के लिए और सातवां (ॐ सखे
सप्तपदी भव) विष्णु भगवान तुम्हें सप्त पदों की प्राप्ति कराएं इसलिए
रखवाया जाता है.... विवाह की इस सप्तपदी में कहीं भी पत्नी द्वारा पति की
आज्ञा-पालन की बात नहीं कही गई.... वैसे विद्वानों के मत में हिंदू विवाह
पद्धति में मूलरूप से आज्ञा पालन की बात न कहकर परामर्श की बात कही गई
है..... भगवान शिव और पार्वती के प्रसंग में शिवपुराण के स्कन्दखंड के
विवाह प्रकरण में मौजूदा विवाह पद्धति में वधू द्वारा दिये जाने वाले सात
वचनों और वर द्वारा दिये जाने वाले पांच वचनों की चर्चा है.... विवाह में
फेरों के वचनों की 'हां' होने पर ही वधू वर की पत्नी बनने के लिए तैयार
होती है.... पहले वचन में कन्या तीर्थ, व्रत, उद्यापन, यज्ञ कार्य में
सहभागिनी बनाने पर ही वर की पत्नी बनने का वचन लेती है.... दूसरे वचन में
देव कार्य, पितृ कार्य में सहभागिता, तीसरे वचन में परिवार की रक्षा,
भरण-पोषण और पशु पालन का वचन देने पर ही वामांग आने की बात कहती है......
चौथे में आय, व्यय, धन-धान्यादि की जानकारी देने का वचन, पांचवें वचन में
मंदिर, तालाब, कुआं आदि के निर्माण एवं पूजन में सहभागिता......छठे में
देश-विदेश में संपत्ति की खरीद बेच करने की जानकारी और सातवें वचन में
विवाह से पहले तथा बाद में अन्य स्त्री से संबंध न रखना.....इन सात वचनों
को अगर वर स्वीकार करता है तभी कन्या उसकी पत्नी बनना स्वीकार करती है.....
शिव पुराण के मुताबिक, कन्या को भी पांच वचन वर को भी देने पड़ते हैं
जिनमें पहला वचन होता है कि वर से परामर्श कर फैसले लिए जाएं, दूसरा पति की
आर्थिक स्थिति के अनुसार वित्त की व्यवस्था, तीसरे वचन में पति के परिवार
की परंपराओं का पालन, चौथे में दोनों परिवारों को जोड़कर रखना और पतिव्रता
धर्म का पालन करना शामिल है.....वर एवं वधू की ओर से दिये गये वचनों में
कहीं भी आज्ञापालन की बात नहीं आती......वैदिक पुराण शास्त्रोक्त विधि
विधान में यह परंपरा नहीं थी.....परंतु विवाह पद्धति की कुछ पुस्तकों में
उद्यान आदि स्थानों में भ्रमण के लिए, मदिरा पान किये गये व्यक्ति के सामने
जाने में, अपने पिता के घर जाने में पति की आज्ञा पालन किया जाना चाहिए,
ऐसी चर्चा की गई है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें