मंगलवार, 6 सितंबर 2016

बैसवारा (बैस राजपूत) का इतिहास


किसी क्षेत्र विशेष का महत्व उसकी भौगोलिक स्थिति सांस्कृतिक विरासत सामाजिक एवं ऐतिहासिक स्थिति की वजह से और भी अधिक बढ़ जाता है| इन्हीं विशेषताओं से समृद्ध उत्तरप्रदेश के अंतर्गत अवध क्षेत्र में अधिकतर अवधी भाषा बोली जाती है| यहां की बैसवारा रियासत उन्नाव, रायबरेली एवं फतेहपुर के एक बड़े भूभाग पर फैली हुई है| बैसवारा रियासत का डौडिया खेडा किला गत वर्ष सोने की खुदाई को लेकर चर्चित रहा| रियासत उन्नाव गजेटियर १९२३-पृष्ठ १५४ में बक्सर का उल्लेख करते हुए लिखा है- गंगा उत्तरायणी बह कर यहां शिव को अर्घ्य प्रदान करती है, जिससे यह बहुत महत्वपूर्ण स्थान है| यहां पर चिरजीवी दाल्भ मुनि के सुपुत्र बक ॠषि का आश्रम था, उसके पास स्थापित बकेश्‍वर महादेव मंदिर आज भी मौजूद है| बक्सर का वैदिक कालीन नाम बकाश्रम था| 
महाभारत के युद्ध के समय बलरामजी बक्सर के बकाश्रम में ॠषि से आशीर्वाद लेने आया करते थे| यही वह तपस्थली है जहां मेघातिथि ॠषि ने चंडिका देवी की गहन पूजा अर्चना करके राजा सुरथ एवं समधि वैश्य को तप विधि का ज्ञान कराया था| दुर्गा सप्तशती के अध्याय १३, श्‍लोक १३-१५ में इसी कथा का वर्णन है| देवी मां ने इसी स्थान पर चंड-मुंड एवं शुंभ-निशुंभ आदि राक्षसों का वध किया था| दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है| मार्कण्डेय ॠषि मृकण्ड मुनि के पुत्र भृगुवंशी ब्राह्मण थे| यहीं वे स्थल हैं जहां राजा सुरथ एवं समधि वैश्य ने तप करके चंडिका देवी को प्रसन्न किया था| समधि वैश्य ने मोक्ष की कामना की किंतु राजा सुरथ ने खोया हुआ राजपाट मांगते हुए अगले जन्म में प्रतापी राजा होने का वरदान प्राप्त किया| उन्हें राज्य वापस मिल गया और वे अगले जन्म में सावर्णिक मनु के रूप में पैदा होकर विश्‍वव्यापी सम्राट बने| उन्होंने विधि-विधान के लिए मनु स्मृति लिख कर राज्य का सूत्र संचालन किया| बक्सर गंगा तट पर मेघातिथि मुनि, राजा सुरथ तथा समधि वैश्य के टीले आज भी स्थित एवं प्रसिद्ध हैं|
उन्नाव गजेटियर १९२३ - पृष्ठ - १५४ पर बक्सर का विस्तृत उल्लेख करके महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए लिखा गया है कि बैसवारे के बक्सर-उन्नाव में चंडिका देवी का बहुत विशाल मंदिर है| जहां हर वर्ष नवरात्रि और हिंदू त्योहारों में एक विशाल मेला लगता है| रायबरेली गजेटियर १८९३ में लिखा है कि यह वही स्थान है जिसमें सन १८५७ में अंग्रेजी विद्रोह के समय राजा रावराम बक्स ने लगभग एक दर्जन अंग्रेजों को शिव मंदिर में सेना से जलवा कर मार दिया था|
बक्सर का विवरण बाल्मिकि रामायण में भी मिलता है| यह महर्षि विश्‍वामित्र की तपस्थली थी| वे कान्यकुब्ज प्रदेश के राजा गाधि के पुत्र तथा प्रसिद्ध गायत्री मंत्र के रचयिता थे| पिता के निधन के बाद वे राजा बने| गुरु वशिष्ठ जी से संघर्ष के बाद विश्‍वामित्र का मन पूजा-पाठ में नहीं लगा| वे यहीं बक्सर में आकर गंगा के किनारे तपस्या करने लगे| उन्होंने कई प्रकार की वनस्पतियों की सृष्टि की थी| यहीं पर वे राक्षसों के हवन-पूजन के विघ्न दूर करने के लिए अयोध्या से राम-लक्ष्मण को लेकर आए थे, जिन्होंने राक्षसों का वध करके ॠषि-मुनियों के विघ्नों को दूर किया था| वाल्मीकि रामायण में इस प्रदेश को कारूप्रद प्रदेश बताया गया है जो अयोध्या से पश्‍चिम-दक्षिण के कोने पर स्थित है| तत्कालीन दाण्यक-उपनिषद में अश्‍वशिर विद्या का यहीं बड़ा केंद्र था| महाराजा हाग्रीव की राजधानी भी यहीं थी| गर्ग ॠषि ने यहीं आकर गंगा तट पर गेगासों नगर (गर्गस्त्रोत धाम) बसाया जो आज भी लालगंज-बैसवारा-फतेहपुर रोड पर गंगा के किनारे स्थित है|
अभय सिंह बैस और निर्भय सिंह बैस ने बक्सर के गंगा मेले में गंगा स्नान करने आई अर्गल नरेश की राजकुमारी रत्ना एवं राजमाता को अवध नवाब के सेनापति से युद्ध करके बचाया था| वह जबरदस्ती अपहरण करके रत्ना को नवाब के हरम की शोभा बनाना चाहता था| उनकी वीरता से प्रसन्न होकर राजा ने अपनी पुत्री रत्ना का विवाह अभय सिंह के साथ कर दिया था और दहेज में बैसवारे का किला दे दिया| उन दिनों किले में हर जाति के लोगों का कब्जा था| वे राजा को लगान भी नहीं देते थे| होली की रात दोनों भाइयों ने सेना लेकर किले पर हमला कर दिया| उस भीषण युद्ध में उनकी विजय तो हुई किंतु युद्ध में निर्भय सिंह शहीद हो गए| अभय सिंह किले में रह कर राज्य संचालन करने लगे|
उन दिनों कन्नौज के राजा जयचंद का राज्य डलमऊ तक फैला हुआ था| इसलिए यहां के ब्राह्मणों को कनवजिया बाह्मण भी कहा जाता है| डलमऊ में गंगा तट पर आल्हा-ऊदल की बैठक तथा राजा जयचंद के किले के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं| गंगा के किनारे इसी किले के पास स्थित अवधूत आश्रम में बैठ कर महाकवि निरालाजी पत्नी मनोहरा के वियोग में आंसू बहाकर कविताएं लिखा करते थे| राजा जयचंद के पतन के बाद तेरहवीं शताब्दी में राजा डलदेव डलमऊ रियासत के राजा बने जो जौनपुर के शासक मुहम्मद तुगलक के सेनापति शाह सर्की द्वारा युद्ध करते हुए शहीद हो गए थे| उसके बाद डलदेव के पुत्र चंदा-बंदा ने बाल्यावस्था में ही शर्की से युद्ध करके उसे मार डाला, उसकी कब्र आज भी डलमऊ में गंगा पुल के किनारे देखी जा सकती है| 
गौतम बुद्ध के काल में इस क्षेत्र को हामुख या अयोमुख कहा जाता था| यहीं द्रोणिक्षेत्र नगर का द्रौणिमुख बंदरगाह था, जो गंगाजी के जलमार्ग से नाव द्वारा व्यापारिक सुविधा के लिए बनवाया गया था| द्रौणि का अर्थ (तट) किनारा होता है| यही गांव आज डौडिया खेडा के नाम से जाना जाता है| सन २०१३ में सोने के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा इसी बैसवारा रियासत के (डौडिया खेडा) किले की आंशिक खुदाई की गई थी जो बाद में राजनीति का शिकार होकर बंद कर दी गई| 
एलेक्जेंडर-कनिंघम् और चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा कुछ अन्य देशी-विदेशी विद्वानों ने ‘अयोमुख’ नगर को ही डौडिया खेडा बताया है| हर्षवर्धन के राजकवि बाणभट्ट ने कादंबरी और हर्षचरित्र में चंडिका देवी के मंदिर का उल्लेख किया है जो डौडिया खेडा रियासत के किले से एक मील की दूरी पर स्थित है|
चौदहवीं शताब्दी में बैसवारे के राजा जाजन देव के पिता श्री घाटम देव थे, जिन्होंने कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील को बसाया| बाद में वह बड़ा नगर बन गया| तुगलकी बादशाहों के आक्रमण से राज्य की स्थिति बहुत बिगड़ गई थी| राजा घाटमदेवजी माता चण्डिका देवी की शरण में गए| चंडिका मां के तत्कालीन पुजारी ने मंदिर के जीर्णोद्धार की सलाह दी| देवी मंदिर का जीर्णोद्धार होते ही उनका खजाना कई गुना बढ़ गया तथा वे महान शासकों में प्रसिद्ध हो गए| उन्होंने अपनी पुत्री की शादी रीवां भद्र नरेश के साथ की थी|
पंद्रहवीं शताब्दी में राजा त्रिलोकचंद्र सिंह का जन्म होते ही उनके पिता सातनदेव की अचानक मृत्यु हो गई तथा उनकी बाल्यावस्था बड़े संकट-विपन्नता में बीती| उनके गुरु लक्ष्मणदेव ने कुलदेवी चंण्डिका का हवन-पूजन करवाया| देवी मां के वरदान से त्रिलोकचंद्र सिंह ने थोड़ी सी सेना से ही समस्त खोया हुआ राज्य फिर से जीत लिया तथा बैसवारा क्षेत्र का निर्माण तथा बहुत प्रसार किया| लोगों का कहना है कि उनके समान शूरवीर तथा प्रतापी राजा बैसवारे में कोई दूसरा नहीं पैदा हुआ| वे युद्ध में कभी नहीं हारे|
मां चंण्डिका देवी के परम भक्त कविवर्य आचार्य सुखदेवजी मिश्र थे| वे पहले असोथर के राजा भगवंतराय खीची के यहां रहते थे, वे वहां से डौडिया खेडा (बैसवारा) चले आए| उन्होंने १६७९ में पुस्तक रसार्णव, वृत्ति विचार पिंगल एवं मर्दन विरुदावली लिखी थी| उन दिनों बैसवारे में राजा मर्दन सिंह का राज्य था| उन्होंने सुखदेव मिश्र को चंडिका देवी के पूजन हेतु एक आश्रम की जगह दे रखी थी| एक दिन मिश्रजी अमेठी गए थे, उसी समय मौरावां के विख्यात कवि निशाकर बक्सर (डोडिया खेडा) आए| राजा ने सुखदेव जी का निवास उन्हें रहने के लिए दे दिया| पं. सुखदेव मिश्र लौट कर आए तो अपने निवास पर दूसरे को ठहरा हुआ देख कर बहुत क्रोधित हुए| उन्होंने गुस्से में राजा को श्राप दे दिया कि ‘अब बैसवारा में हम नहीं सिर्फ निशाचर ही निवास करेंगे|’ उनके जाने के दो वर्ष बाद राज्य में भीषण समस्याएं आने लगीं|

वे गुस्से में बक्सर छोड़ कर मुरारमऊ चले गए| तत्कालीन राजा अमर सिंह ने सुखदेवजी की मर्जी से गंगा के किनारे एक बड़ा भूखंड दान स्वरूप दे दिया| सुखदेव मिश्र ने उसी जगह ग्राम दौलतपुर बसाया, जहां हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ| जिन्होंने अंग्रेजी शासन काल में हिंदी भाषा-साहित्य का परिष्करण करके हिंदी भाषा-साहित्य का युग प्रवर्तन किया| बैसवारे के अंतिम राजा रावराम बक्स एवं राणा बेनीमाधव सिंह थे, जिन्होंने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया पर परास्त हो गए|
अंग्रेजों ने शंकरपुर एवं डौडिया खेडा बैसवारा रियासत के दोनों किले ध्वस्त कर दिए| अपने कुछ गद्दार सैनिकों के कारण १८५७ के भीषण संग्राम में राणा बेनी माधव तथा बैसवारे के राजा रावराम बक्स दोनों ही बुरी तरह परास्त हुए| राणा जी नेपाल की ओर चले गए जिनका आज तक पता नहीं चला, किंतु रावराम बक्स को अंग्रेजों ने अंग्रेजी शासन से गद्दारी करने का अभियोग लगाकर पुराने बक्सर के बरगद के पेड़ में खुले आम फांसी की सजा दी| आजादी के बाद वह उसी स्थान पर रावराम का स्मारक बनाया गया है|
बैसवारे के कवि-साहित्यकारों में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, डॉ. रामविलास शर्मा, मलिक मुहम्मद जायसी, भगवती चरण वर्मा, डॉ. जगदंबा प्रसाद दीक्षित, पं. प्रतापनारायण मिश्र, डॉ. राममनोहर त्रिपाठी, रमेशचंद्र, काका बैसवारी एवं डॉ. गिरिजाशंकर त्रिवेदी आदि ने हिंदी को गौरवांकित किया|
(Copy)

96 टिप्‍पणियां:

  1. आप के द्वारा दी गई जानकारी सही है। इसके साथ एक जानकारी और जोड़े। श्री राजा रावराम बक्स जी के वंशज आज गाजियाबाद जिले मे रेहते है। बिना किसी की जानकारी और ना ही किसी प्रशासनीक मदद के साघारण जीवन व्यतीत कर रहे है। जिनका नाम राजा महेंद्र प्रताप सिंह एवं रानी प्रवीन सिंह बैस है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Some migrated to nearby district I.e. Jhansi where many bais villages like Khisni bujurg, dhamna payak were established

      हटाएं
    2. Raja Rao Ram Baksh Singh ji ki do betiyon ke alava koi putra nahi tha, unhone kisi visvas patra ko god liya tha, tatha ye sayad unhi ke vanshaj honge.

      हटाएं
  2. आपके द्वारा दी गई जानकारी लगभग सही है लेकिन आप एक जगह चुक गए हैं
    वो यह कि राजकुमारी रत्ना के साथ दुर्व्यवहार किसी नवाब ने नहीं बल्कि भेर वंश के राजकुमार ने किया था

    जवाब देंहटाएं
  3. Is vansh ke Kshatriya barso se Jharkhand ke Hazaribag dist ke GARWA,Baliya, Bajha,Shahpur,Katkamsandi,manjauliya,
    Charhi aur Chanaro village me rahte hai Jo Ramgarh Rajgharane ke period me jamindari ka kaam dekhte the par aaj apne mehnat aur lagan se sammanpurvak jivanyapan kar rahe hain bina kisi sarkari labh ke

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या किसी के पास लालगंज बैसवारा का book है। तो कृपा करके हमे बताये। मैं उसका पूरा इतिहास जानना चाहता हूं। मुझे बताये। क्योंकि मेरे पूर्वज वही से आये है।

    जवाब देंहटाएं
  5. हम भी डिस्ट्रिक्ट फ़िरोज़ाबाद में रहते हैं हम भी बैस हैं डौडिया खेड़ा से आए हैं थैंक यू


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Sir mai bhi bais ( teilokchand ) hu mai kuldevi ke darshan karne kaise jaa sakta hu jankari deve please call me 9893459087

      हटाएं
  6. भाई हम तो मध्य प्रदेश के सिंगरौली में रहते है हम भी बैस है हमारे पूर्वज वहां से यहाँ आ गए हमें भी बैसवारा में रहने वाले बैसों से बात करने की इक्छा है मेरा मोबाइल नंबर 9754417781 है

    जवाब देंहटाएं
  7. भाई हम तो मध्य प्रदेश के सिंगरौली में रहते है हम भी बैस है हमारे पूर्वज वहां से यहाँ आ गए हमें भी बैसवारा में रहने वाले बैसों से बात करने की इक्छा है मेरा मोबाइल नंबर 9754417781 है

    जवाब देंहटाएं
  8. राजा राव राम बक्श के ही बंशज जाे कि राजा राजेन्द्र सिंह जी दिल्ली मे रहते है राजा राजेन्द्र सिंह जी से हमारा ब्यक्तिगत संबंध है हमारे भी पूर्वज बैसवारा से ही गाेंडा आये थे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. में बैस राजपूत सिंगरौली जिले में हूं मनोज कुमार सिंह बैंस मेरा मोबाइल नंबर 7024980122

      हटाएं
  9. किसी काे भी यदि संबधित जानकारी चाहिए पूरी वंशावली की जानकारी मिल जाएगी
    विजय सिंह प्रदेश मंत्री अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा दिल्ली प्रदेश
    माे- 8745066972

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भाई मुझे अभयचंद के बाद की पूरी वर्तमान तक की वंशावली चाहिए है

      हटाएं
    2. जय भवानी मेरा नाम कमलेश सिंह बैस है भाई लोगो हमारे पूर्वज भी डोडिया खेड़ा बैसवाड़ा से आये थे वर्तमान निवास क्षेत्र जिला सीधी मध्यप्रदेश है जब हमारे पूर्वज बैसवाड़ा से पलायन करके के आये तो यहां के रीवा राज्य क्षेत्र के राजा ने हम लोगों को रहने का स्थान दिया और जमींदारी भी दिए आज भी हमारे समाज में बहुत जमीनदार है हमारे पूर्वज बैसवाड़ा से आने के कारण बैसवाड़ा के नाम से हम लोगों को बैसवार कहने लगे लेकिन आज भी यहां के बघेल जोकि रीवा क्षेत्र बघेल खण्ड के नाम से जाना जाता है वह आज भी बैस जी कहकर ही सम्बोधित करते हैं हम लोग हमारे पूर्वज जहां जहां बसे वहां वहां तालाब और शिव मंदिर का निर्माण करवाया है । कृपया बैसवाड़ा 17वीं/18वीं सदी में विस्थापित बैस राजपूतों की कोई जानकारी या कोई किताब छपी हुई तो के बारे में जानकारी दें मेरा मोबाइल नंबर 8319099882 है कृपया जानकारी अवश्य साझा करें

      हटाएं
    3. Hum bhi bais rajput h suryavanshi gotra h par purvajo ki jankari nhi hai ....plz help me 7415578946

      हटाएं
    4. Hum log kanpur farukkhabad ke h dada ji desh ki azadi me bhag lene jabalpur m.p. aaye the fir wo yahi ruk gaye plz kuch jankari mil jye to bataye 7415578946

      हटाएं
  10. सुर्नमे-बैस
    गोत्र- भारद्वाज
    कृपया कर हमें बताएं कि हमें किस कुलदेवी की पूजा करनी है तथा वह कहां पर स्थित है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बैस वंश की देवी हैं कालका
      देवता है महादेव

      हटाएं
    2. कुलदेवी माता का मंदिर कहा है ।।कृपा कर के बताए

      हटाएं
    3. माता महेश्वरी की पूजा करनी चाहिए वही हमारी कुलदेवी है

      हटाएं
  11. Hum bhi trilokchandi bais hai mujhe raja trilokchandi bais ki vansawali chahiye

    जवाब देंहटाएं
  12. कृपया बैसवारा के कुल देवता की जानकारी प्रदान करे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरा नाम सिंह अमर बैस है हम मध्य प्रदेश के पन्ना जिले मे निवास करते है हमारे पूर्वज डोडिया खेड़ा से आये थे हमारे पूर्वज सबसे शक्तिशाली सबसे धनबान और हमारे कुल गुरू अपने ज्ञान के पूरे जिला मे जाने जाते थे आज हमारे पूर्वज अपने अदम्य वीरता के लिये देव रुप मे पूजे जाते है हम अपने पूर्वजो के इतिहास केबारे मे पूरी जानकारी चाहते है ा

      हटाएं
  13. Mai bhi Bais hu lekin mere purvaj Rajasthan se the Abhi mai 5 pidhi se Maharashtra me rahta hu krupya mujhe vashawali bataye 9359371105

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. राजस्थान के किस एरिया आये मेवाड़ या मारवाड़ मेरे को आप से बात करनी है कभी फ्री होतो तो 7219124486

      हटाएं
  14. कृपया बैस राजपूतों के कुलदेवता के बारे में बताएं।
    विक्रम सिंह बैस, मैनपुरी

    जवाब देंहटाएं
  15. सभी बैस राजपूत अपने वंश की विस्तृत जानकारी रखे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मुझे कुलदेवी पूजा की सही विधि की जानकारी कैसे मिलेगी सहयोग करे

      हटाएं
  16. I am also a baisa Rajput from Bihar Dist sitamadhi I am also interested a history of bais.kindly sare it.

    जवाब देंहटाएं
  17. I am also a bsis Rajput from Shahjadpur Dist Madhepura Bihar I am also interested a history of bais. Kindly sare it.

    जवाब देंहटाएं
  18. I m a bais rajput and belongs to marhawra block in Saran district. Mahadev is our kuldevta.

    जवाब देंहटाएं
  19. Mai bais rajput hun gaon fatehpur distric patna bihar humare bhi purvaj migrate kiye the baisbada up se . aaj humare yaha 12 gaon hai bais ke karib 30 thousand population hai .

    जवाब देंहटाएं
  20. is me ek aur bais vansh raja ko bhi chod diya jo ki suryavanshi bais the samrat Harshvardhan singh bais hum ye hamre hi vansh ke hai hum harshvardhan singh hi hamre purvaj hai hum suryvanshi bais hai hum bhi baiswara se haiaur ab hum rajgharh me rehte hai hum bhi wahi se aaye hai to aap apni is history me samrat Harshvardhan singh bais ki bhi history ko jodo

    जवाब देंहटाएं
  21. मैं भी वैसवारा उन्नाव गांव अकवाबाद तहसील बीघापुर जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश का निवासी हूं जिस गांव में श्री काका बैसवारी का जन्म हुआ था वहीं से लनभग 4 किलोमीटर पर श्री शूर्यकांत त्रिपाठी की जन्म स्थली गढाकोला भी है । वर्तमान में वडोदरा गुजरात और अपने गांव दोनों जगह कुछ कुछ समय रहता हूं बड़ोदरा में यदि कोई व्यक्ति संपर्क करना चाहे मैं नीचे दे रहा हूं । एक भाई ने कुल देवता के है में पूंछा है तो बैस वंस के कुल देवता श्री संकर भगवान यानी शिव जी हैं । मेरिट मो नं 9662675166 है संपर्क कर सकते हैं यदि गुजरात में है तो मिल सकते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  22. निरकुंवर बाबा हमारे आदर्श हैं।
    कुलदेवी- माँ बन्नी परमेश्वरी/कालिका/जमाई माता
    इष्टदेवता- शिवजी रुद्र रूपवाले
    शाखा-चंदौसिया, चंद, भाले सुल्तान, राव राजा नैथम, राजा त्रिलोकचंदी ...

    ध्वज- नाग अंकित
    वंश- सूर्यवंश
    सूर्यवंशी राजा वैशाली(वशु) से वैश/बैस वंश चला।


    जवाब देंहटाएं
  23. Mai jaunpur se bais rajput hu aur jaunpur me 46 gaun bais ke aur 2 MLA 1 MLC aur singaramau riyasat raja harpal singh bais rajput hai

    जवाब देंहटाएं
  24. Hm v bais h mp. Satna thseel birsinghpur gram bandhi jaitwara jiske pass wanshawali ho btaye hme 9174646564

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप सभी से मेरा अनुरोध है की जो भी बैस भाई है सभी अपने अपने मोबाइल नंबर देकर व्हाट्सअप ग्रुप बनाए ओर सभी को जानकारी दे व परिचय कराया जाय

      हटाएं
  25. में बेस राजपूत हू
    राव प्रताप सिहं चंदोसिया
    पूरा ईतिहास नही मिला है

    जवाब देंहटाएं
  26. राहुल सिंह पुत्र श्री चंद्रभानु सिंह बैस क्षत्रिय।
    फतेहपुर, उत्तर-प्रदेश मो-६३९३७२४०९१

    जवाब देंहटाएं
  27. जब क्षत्रियों में बैस सूर्यवंशी है तो चौहान, परिहार, परमार,कछवाह,सेंगर से छोटे कैसे हो गये?

    जवाब देंहटाएं
  28. भाई हम वैश ठाकुर का ग्रुप। बनाना चाहते है इसी नो पे हम msg kare 9076648676

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अजय सिंह वर्तमान निवास अम्बिकापुर, सरगुजा,छत्तीसगढ़ मूल निवास सिंहपुर आजमगढ़
      9425582584

      हटाएं
  29. मेरा नाम सन्तोष कुमार सिंह है मै त्रिलोकचंदी बैस हूँ।हमारे पूर्वज प्रतापगढ़ से आये है।पहले मध्यप्रदेश में आता था अब बर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में आता है ।बिलासपुर सम्भाग,जिला जांजगीर,विकास खण्ड अकलतरा छत्तीसगढ़
    मेरा गोत्र गर्ग है,प्रवर पांच है भारद्वाज,अंगिरस,बार्हस्पत्य,सैन्य,गार्ग्य,
    कुल देवता शिवजी,
    कुलदेवी कालिका,
    वेद यजुर्वेद,
    उपवेद धनुर्वेद ,
    शिखा दाहिना,
    पाद दाहिना है,
    मेरा मोबाइल नम्बर 7879606542

    जवाब देंहटाएं
  30. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  31. मैं शेखर सिंह पिताजी देवेंद्र सिंह बैस
    दमोह मध्य प्रदेश
    गोत्र भारद्वाज
    Mo. 8359035110

    जवाब देंहटाएं
  32. क्या गांव रारी जिला फतेहपुर के बसों के बारे में किसी के पास कोई जानकारी है। यदि हो तो पोस्ट करें

    जवाब देंहटाएं
  33. May bhi baiswara hu mera name shivendra Singh hai may sonbhadra jile ke shivdwar ja rahne wala hu mere villege me shiv bhagwan ki bhaby murti hai

    जवाब देंहटाएं
  34. नमस्कार महोदय,
    मैं उत्कर्ष सिंह राणा, त्रिलोकचंदी बैस गोत्र-भारद्वाज।
    हमारे पूर्वज सन 1900 के आस-पास डौडियाखेड़ा से पलायन कर पेंड्रा जमींदारी (तत्कालीन छत्तीसगढ़) आये थे परिवार में किसी जमीनी विवाद को लेकर मेरे परदादा जी की माँ अपने तीनो बच्चों सहित जान बचाकर भाग निकले थे। किसी सज्जन के पास डौडियाखेड़ा के किसी भी राणा की जानकारी हो तो उपलब्ध करने का कष्ट करें मैं अपने पूर्वजों मात्र की जानकारी चाहता हूँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महेंद्र सिंह पटवारी साहब के घर के हो क्या


      हटाएं
  35. Jay Baiswara jinko bi Bais vansh ki jankari lene ho hamse Sampras Karen Mera mob.no 9335130507 hi

    जवाब देंहटाएं
  36. Yha per click kre
    https://www.facebook.com/groups/1265724380446793/?ref=share

    जवाब देंहटाएं
  37. हम भी bais तिरलोकचंदी है up se हमारे पूर्वज आए थे pr kha se कुछ माधवपुर मवाई up ke aspass थे। पर दादा जी के समय भाट आते थे कुछ जानकारी मिल सकती हो तो प्रदान करे कुलदेवी की पूजा नवरात्रे में ९ दिन होती है
    कृपया कुछ जानकारी hoto प्रदान करने की कृपा करे

    जवाब देंहटाएं
  38. Vinod singh bais sultanpur up
    Please provide kuldevi and dewata name

    जवाब देंहटाएं
  39. कृपया हमे डौडिया खेड़ा का इतिहास हो तो बताएं

    जवाब देंहटाएं
  40. I am a Bais Rajput, myself Col samar Vijay Singh from vill Ashokpur(khemipur)mob 7985176196 near Nawabganj Gonda.Our ancestor Rao Havan Shah(Prince from Daudiakhera) was married to daughter of Raja Achal Narain Singh,princess of Gonda(UP) in 1542 and he was given 42 villages in South Gonda with a fort in Naipur villagein Tarabganj Tehsil.I have the treeline of our ancestors since 1542.

    जवाब देंहटाएं
  41. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  42. हमारे दादा जी को मडौली की रानी साहिबा ने गोद लिया था उनका नाम कुंवर विशेश्वर सिंह था जो अब उनका बाकी परिवार हनुमान गढ़ी पोस्ट भरावन जिला हरदोई में है
    किताब में लिखा इतिहास जो आज भी मेरे पास है
    ये किताब मेरे दादा जी के नाम सहित कौन कौन से गांव और उनके पूर्वजों की वंशावली भी लिखी है
    🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  43. Mai bhi Vais kshatriya hoo mera no. 7310827487. Mera naan Praveen Vais hai

    जवाब देंहटाएं
  44. KRAPYA ISEE NUMBER PAR PDF DAAL DENA PLEASE.BOOK VAIS KSHATRIYO KA ITIHAS

    जवाब देंहटाएं
  45. कितनी भी मनगढंत बाते कर लो लेकिन सच्चाई तो ये है कि भरों/राजभरों के ज़िक्र किये बिना बैसों का इतिहास अधूरा है

    जवाब देंहटाएं
  46. डलमऊ,बरेली के शाशक डलदेव एक भारशिवः/भर/राजभर वंश के राजा थे । पूरा इतिहास बताइए

    जवाब देंहटाएं
  47. Yunis khan , मैं त्रिलोकचंदी बैस हूं। मेरे पूर्वज रायबरेली के बैसवाड़ा रियासत से प्रतापगढ़ की कैथौला रियासत की गद्दी पर आए थे । मेरा गांव उसी रियासत में है और मैं मुंबई में रहता हूं । Mob 9869338865

    जवाब देंहटाएं