राग और द्वेष क्रोध के मूल हैं ,क्रोध ऐसा जहर है, जिसे पीने के बाद तरक्की के मार्ग खुलते हैं, फिर आप वहीं बन जाते हैं, जो आप बनना चाहते हैं। क्रोध मनुष्य को लक्ष्य से भटकाता है, लेकिन जब आप लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प लेते हैं, तब क्रोध कमजोर पड़ जाता है। क्रोध दूर भगाईए और संयम से रहना सीखिए, क्रोध ,चिड़चिड़ापन और संकुचित दृष्टिकोण से मानसिक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं इसलिए अपने ''व्यक्तित्व'' में गंभीरता लाइए और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना होगा । सुबह से शाम तक व्यक्ति काम करके इतना नहीं थकता, जितना कि क्रोध या चिंता से एक घंटे में थक जाता है।जब किसी व्यक्ति का क्रोध बढ़ रहा हो, तब उसका विरोध करने के बजाय,उसे शांत करना होगा, फिर उसका क्रोध खुद खत्म हो जाएगा। ''महान व्यक्ति वही बनता हैं, जिसमें हमेशा ''मुस्कराते'' रहने की आदत के साथ साथ ""क्रोध रूपी"" जहर को पीना सीख लिया हो ।''
किसी भी व्यक्ति के स्वभाव का एक प्राकृतिक भाव है- क्रोध। इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि क्रोध की भी अपनी अहम् भूमिका रही है। अनेक अवसरों पर क्रोध ने इतिहास को नए मोड़ दिए हैं। क्रोध को शारीरिक शक्ति और अहंकार का सूचक भी माना गया है। भय पैदा करने में भी क्रोध की अपनी भूमिका रही है। क्रोध ने बडे-बड़े ऋषियों को शाप देने जैसी नकारात्मक भूमिका में डाला है। दुर्वासा और लक्ष्मण के व्यक्तित्व क्रोध के ही पर्याय भी बने।
कौन व्यक्ति होगा इस पृथ्वी पर जिसे क्रोध नहीं आता? क्रोध अनेक प्रकार के आवेशों और आवेगों का निमित्त बनता है। अपराधों का मूल निमित्त क्रोध को ही माना जाता है। यही कारण है कि क्रोध अपनी अतुल शक्ति के उपरान्त भी अवांछनीय माना जाता है। क्रोध को उपशान्त करने के बारे में लगभग सभी धर्म-ग्रंथ एकमत हैं। हर व्यक्ति अपने क्रोध को दबाना चाहता है। शांत और निर्मल प्रकृति का दिखाई देना चाहता है। क्रोध को जीवन में किसी भी प्रकार का सम्मान प्राप्त नहीं है।
हमारा जीवन प्राण और ऊर्जा के सहारे चलता है। मन, बुद्धि, शरीर आदि सभी का संचालन प्राण और ऊर्जाओं से होता है। पर हम इस उर्जा को क्रोध करके कम करते है !
व्यक्तित्व के अनुसार ऊर्जा शक्तियों की अभिव्यक्ति होती है। क्रोध भी एक अभिव्यक्ति है। एक भाव को रोकने का प्रयास करें तो दूसरी अभिव्यक्ति होने लगेगी। क्रोध भी इसी प्रकार स्वयं में कुछ नहीं है। एक अभिव्यक्ति मात्र है, जिसकी नकारात्मक भूमिका होने के कारण उसको उत्तम नहीं कहा जाता,यह क्रोध हमेशा ही दुखदाई और नुक्सान दायक होता है!
आप क्रोध आने पर क्या करेंगे, इसका आकलन करें। क्या-क्या करेंगे, यह क्रम देखें तो इसकी परिणति का अनुमान भी होगा। भाव-परिवर्तन के साथ आप क्रोध के आवेग की दिशा बदल सकते हैं। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि कुछ विचार करने के बाद जब क्रोध शान्त होता प्रतीत होता है तो अन्य प्रकार की अभिव्यक्ति की अभिलाषा तुरन्त मन में उठने लगती है। यह अभिव्यक्ति भी जीवन-शक्ति की तरह दिखाई देती है, जो उतनी ही गहन होती है जितना कि क्रोध, अर्थात- क्रोध भी एक जीवन-शक्ति है, ऊर्जा से ओत-प्रोत है। मात्र इसको दिशा देने की जरूरत है।
क्रोध आने का अर्थ यह भी है कि मूलाधार में ऊर्जा गतिमान है। यदि इस ऊर्जा का पूरा उपयोग नहीं किया जाए तो क्या होगा? ऊर्जा घटकर वहीं समाप्त हो जाएगी। “करो या मरो” वाली बात है। आप या तो ऊर्जा का उपयोग कर लें, अन्यथा यह व्यर्थ जाएगी। उपयोग भी सकारात्मक होना चाहिए, तभी विकास हो सकता है।तो क्रोध रूपी उर्जा का सकारात्मक उपयोग करे !
शक्ति का शान्त होना ही मृत्यु है। सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो क्रोध जीवनसूचक है। मूलाधार को गतिमान रखता है। मूलाधार के अनेक अवरोध क्रोध के कारण हटते भी हैं। मात्र भावनात्मक धरातल पर कार्यरत होने की जरूरत है।
क्रोध पर नियंत्रण कैसे करें?
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