मैं
पाप और पुण्य के अवधारणा को तो नहीं मानता हु क्योकि पाप और पुन्य का फल
इसी जन्म में इसी धरती पर मिलता है ..पर यदि पुनर्जन्म को माना जाए तो मैं
मनुष्य ही बनाना चाहुगा अगले सभी जन्मो में क्योकि सामवेद में कहा गया है
कि कई जन्मों के अच्छे कर्मों की वजह से मनुष्य का शरीर मिलता है.. वैदिक
परंपरा में माना जाता है कि मनुष्य का जन्म चौरासी लाख योनियों में आत्मा
के भटकने के बाद मिलता है.. मनुष्य के अलावा दूसरे सभी जन्मों में भोग ही
प्रमुख रहता है.. अच्छे कर्म केवल मनुष्य शरीर मिलने के बाद ही किए जा सकते
हैं! वेदों में कहा गया है, 'मनुर्भव!' यानी मनुष्य बनें। इसका अर्थ है कि
केवल मनुष्य शरीर पाने से हम मनुष्य नहीं हो जाते, बल्कि इसके लिए अच्छे
कर्म करने की जरूरत है...........बेकार न जाए यह जन्म: तुलसीदास ने एक
स्थान पर लिखा है कि मनुष्य जन्म की बड़ाई देवता, ऋषि-मुनि और संतजनों ने
की है, इसलिए हमें इसकी कीमत समझनी चाहिए,मनुष्य का जन्म पाकर भी जो लोग
केवल मौजमस्ती में जिंदगी गंवा देते हैं, उनका जन्म बेकार चला ,जाता है,
इंसान और शेष जीवधारियों में चार बातें समान हैं, खाना-पीना, संतान उत्पन्न
करना, जन्म और मृत्यु, केवल एक 'विशेषता' की वजह से इंसान दूसरे जीवों से
अलग है, वह है चिंतन-मनन की शक्ति,, केवल इसी की वजह से हम मनुष्य हैं,,
अगर किसी इंसान में मनन (सोचने-समझने और अच्छाई-बुराई में भेद करने की) की
शक्ति नहीं है, तो वह मनुष्य शरीर में भी जानवर जैसा है........
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