आरक्षण के समर्थन अथवा बिरोध में लगातार बहस चलती रहती है और कई बार तो उग्र रूप धारण कर लेती हैं. आरक्षण के बारे में मैं अपने बिचार प्रस्तुत कर रहा हूँ आपको पसन्द आये अथवा नहीं लेकिन अपने बिचार अवश्य दीजिए. लेकिन आपसे निवेदन है की भाषा की मर्यादा का ध्यान अवश्य रखियेगा. मुझे लगता है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण जरूरी है मगर कुछ प्रतिबंधों के साथ .
जो लोग सामाजिक या आर्थिक रूप से पीछे रह गए हैं उनको आगे लाने के लिए आरक्षण एक बहुत अच्छा उपाए है. जो लोग काफी समय से मानसिक गुलामी और शोषण का शिकार रहा हैं, वो तो मुकाबला करने के लिए सामने आने का साहस भी नहीं कर सकेगा, मुकाबला करना और मुकाबला करके जीतना तो बहुत दूर की बात है.
लेकिन उनमे से जो आगे निकल गए हैं उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. जैसे कि आरक्षण के साथ में प्रतिबंध लगा दिया जाए कि - जो सरकारी अधिकारी हैं, सांसद अथवा विधायक हैं (अथवा रह चुके हैं), एक करोड से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं, एक से अधिक पत्नी या दो से अधिक बच्चे हैं, आदि उनको तथा उनके आश्रितों को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं मिलेगा.
...
अधिकतर ये देखा गया है कि - दलितों और पिछडों में से जो लोग आगे निकल चुके, आरक्षण का सारा लाभ बार-बार वही लोग उठाते हैं. अन्य जरुरत मंद लोगों को तो इसका लाभ मिल भी नहीं पाता है. अगर चुनाव में किसी सुरक्षित सीट पर बार-बार मायावती या राम विलास पासवान ही चुनाव लड़ते हैं तो पीछे लाइन में खड़े अन्य दलित के लिए तो बैसी ही रुकावट है, जैसी किसी सवर्ण के होने से होती.
अगर सरकारी अफसर बनने के बाद भी, सांसद / विधायक / मंत्री / मुख्यमंत्री आदि बनने के बाद भी या करोड़ों की संपत्ति होने के बाद भी कोई व्यक्ति अपने आपको बंचित / दलित / पिछड़ा आदि कहता है, तो वो केवल पाखण्ड कर रहा है. ठीक बैसे ही, जैसे कोइ हट्टा-कट्टा व्यक्ति अपने शरीर पर रंग और पट्टियाँ बाँध कर नकली जख्म दिखा कर भीख मांग रहा हो.
जो ब्यक्ति गरीब है ओ किसी भी जाती या धर्म का है उसके लिए शिक्षा में सुविधाएँ देने में, किसी भी साधारण पद पर नौकरी में भर्ती के समय, पहली बार सांसद या विधायक बनने में, आरक्षण अवश्य होना चाहिएपर जातिगत नहीं , लेकिन उसके बाद बड़े पद को प्राप्त करने के लिए सभी को एक ही प्रिक्रिया से गुजारना चाहिए. पिछड़े हुए लोगों को अवसर प्रदान करना "सामाजिक न्याय" है लेकिन देश के हित में महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले पद पर, किसी भी बजह से, किसी भी अयोग्य व्यक्ति को बैठाना "देश के साथ अन्याय" है .
प्रधान मंत्री, जनरल ,कर्नल, जज, जिलाधिकारी, तहसीलदार आदि जैसे महत्वपूर्ण पदों को देने के लिए एकमात्र पैमाना उनकी योग्यता ही होनी चाहिए उनकी जाति नहीं . डाक्टर, इंजिनियर बनाने के लिए पिछडों/दलितों को पढाने के लिए, आप जो भी सुविधा देना चाहे दीजिए लेकिन डाक्टर और इन्जीनियर बनने के बाद उनकी भर्ती के लिए एक सामान प्रक्रिया से गुजारना चाहिए. चुनाव में भी प्रतिबन्ध होना चाहिए कि - आरक्षित सीट पर चुनाव जीतने वाला विधायक या सांसद, मंत्री नहीं बन सकेगा....यदि आप मेरे विचार से सहमत नहीं है तो टिपण्णी करके मुझे अवगत कराये .........
जो लोग सामाजिक या आर्थिक रूप से पीछे रह गए हैं उनको आगे लाने के लिए आरक्षण एक बहुत अच्छा उपाए है. जो लोग काफी समय से मानसिक गुलामी और शोषण का शिकार रहा हैं, वो तो मुकाबला करने के लिए सामने आने का साहस भी नहीं कर सकेगा, मुकाबला करना और मुकाबला करके जीतना तो बहुत दूर की बात है.
लेकिन उनमे से जो आगे निकल गए हैं उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. जैसे कि आरक्षण के साथ में प्रतिबंध लगा दिया जाए कि - जो सरकारी अधिकारी हैं, सांसद अथवा विधायक हैं (अथवा रह चुके हैं), एक करोड से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं, एक से अधिक पत्नी या दो से अधिक बच्चे हैं, आदि उनको तथा उनके आश्रितों को किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं मिलेगा.
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अधिकतर ये देखा गया है कि - दलितों और पिछडों में से जो लोग आगे निकल चुके, आरक्षण का सारा लाभ बार-बार वही लोग उठाते हैं. अन्य जरुरत मंद लोगों को तो इसका लाभ मिल भी नहीं पाता है. अगर चुनाव में किसी सुरक्षित सीट पर बार-बार मायावती या राम विलास पासवान ही चुनाव लड़ते हैं तो पीछे लाइन में खड़े अन्य दलित के लिए तो बैसी ही रुकावट है, जैसी किसी सवर्ण के होने से होती.
अगर सरकारी अफसर बनने के बाद भी, सांसद / विधायक / मंत्री / मुख्यमंत्री आदि बनने के बाद भी या करोड़ों की संपत्ति होने के बाद भी कोई व्यक्ति अपने आपको बंचित / दलित / पिछड़ा आदि कहता है, तो वो केवल पाखण्ड कर रहा है. ठीक बैसे ही, जैसे कोइ हट्टा-कट्टा व्यक्ति अपने शरीर पर रंग और पट्टियाँ बाँध कर नकली जख्म दिखा कर भीख मांग रहा हो.
जो ब्यक्ति गरीब है ओ किसी भी जाती या धर्म का है उसके लिए शिक्षा में सुविधाएँ देने में, किसी भी साधारण पद पर नौकरी में भर्ती के समय, पहली बार सांसद या विधायक बनने में, आरक्षण अवश्य होना चाहिएपर जातिगत नहीं , लेकिन उसके बाद बड़े पद को प्राप्त करने के लिए सभी को एक ही प्रिक्रिया से गुजारना चाहिए. पिछड़े हुए लोगों को अवसर प्रदान करना "सामाजिक न्याय" है लेकिन देश के हित में महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले पद पर, किसी भी बजह से, किसी भी अयोग्य व्यक्ति को बैठाना "देश के साथ अन्याय" है .
प्रधान मंत्री, जनरल ,कर्नल, जज, जिलाधिकारी, तहसीलदार आदि जैसे महत्वपूर्ण पदों को देने के लिए एकमात्र पैमाना उनकी योग्यता ही होनी चाहिए उनकी जाति नहीं . डाक्टर, इंजिनियर बनाने के लिए पिछडों/दलितों को पढाने के लिए, आप जो भी सुविधा देना चाहे दीजिए लेकिन डाक्टर और इन्जीनियर बनने के बाद उनकी भर्ती के लिए एक सामान प्रक्रिया से गुजारना चाहिए. चुनाव में भी प्रतिबन्ध होना चाहिए कि - आरक्षित सीट पर चुनाव जीतने वाला विधायक या सांसद, मंत्री नहीं बन सकेगा....यदि आप मेरे विचार से सहमत नहीं है तो टिपण्णी करके मुझे अवगत कराये .........
नोट ---लेख का मूल आधार है भाई Naveen Varma JI .(फेसबुक से ).उनके लेख में मैंने कुछ परिवर्तन किया है ......
छोटे पद वाले व्यक्ति से गलती होने पर ज्यादा हानि नही होगी , लेकिन बड़े पद पर बैठे व्यक्ति के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है , उसके एक गलत निर्णय से बहुत से लोगों को नुकशान पहुँच सकता है. यहाँ मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा कि किसी दलित या पिछड़े को बड़ा पद नहीं मिलना चाहिए बल्कि ये कह रहा हूँ कि बड़ा पद केवल सबसे योग्य व्यक्ति को ही मिलना चाहिए चाहे वो किसी भी जाति , पंथ अथवा धर्म का हो .
जवाब देंहटाएंplz visit www.amkp.in
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