बुधवार, 5 सितंबर 2012

! प्रमोशन में रिजर्वेशन का नफा-नुकसान समझिए..!

१--संविधान और उसके निर्माताओं की भावना के खिलाफ:  
संविधान निर्माता और दलित समाज के मसीहा माने जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर  और देश के पहले प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू जातियों का भेद मिटाने और सभी तरह के आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म किए जाने के हिमायती थे। लेकिन सरकार की ताज़ा कोशिशों इन दोनों बातों के खिलाफ दिखती हैं। जानकार बताते हैं कि संविधान निर्माताओं ने सरकार को समाज के एक ऐसे तबके को आगे करने के लिए आरक्षण का विवेकाधिकार दिया था, जो बरसों से पीछे था। लेकिन अब आरक्षण जाति आधारित समाज के बंटवारे और जातिवाद की प्रतियोगिता का मुख्य 'औजार' बन गया है। बड़ी संख्या में अब कई जातियां आरक्षण की मांग कर रही हैं। देश में नौकरशाही के सबसे ऊंचे पायदान कैबिनेट सचिव की कुर्सी से रिटायर हुए टीएसआर सुब्रह्मण्मय का कहना है कि सरकार की ताज़ा नीति संविधान के अनुच्छेद 14 की मूल भावना के भी खिलाफ है। संविधान का यह अनुच्छेद कानून के सामने हर नागरिक को समान अधिकार देता है। सुब्रह्मण्मय के मुताबिक, 'अगर संविधान में बदलाव भी होता है तो इस बात की पूरी गुंजाइश है कि सुप्रीम कोर्ट इस संशोधन को संविधान की मूल भावना के खिलाफ मानते हुए रद्द कर सकती है। इस बात का शुक्र है कि अब भी संसद सर्वोच्च नहीं है! हमारे पास संविधान है।'
२--मेरिट को 'मार' देगा: टीएसआर सुब्रह्मण्यम प्रमोशन में आरक्षण को देशहित के खिलाफ बता चुके हैं। सुब्रह्मण्यम का कहना है कि प्रमोशन में रिजर्वेशन से समाज का बहुत नुकसान होगा। उनका कहना है कि इससे मेरिट की जगह जाति के आधार पर लोग तरक्की पाएंगे। अपनी दलील में पूर्व कैबिनेट सचिव ने कहा कि जब भी कोई व्यक्ति भारतीय प्रशासनिक सेवा या किसी भी सरकारी नौकरी का हिस्सा बनता है तो एक तरह से वह भारतीय संवैधानिक मशीनरी का हिस्सा बन जाता है। सुब्रह्मण्यम ने उदाहरण देते हुए कहा कि किसी भी जिले का डीएम उस जिले का प्रमुख होता है। उसकी जाति या धर्म क्या है, इसका महत्व नहीं रह जाता है। वह भारत सरकार का नुमाइंदा होता है जिसकी न कोई जाति होती और न ही कोई धर्म। सुब्रह्मण्यम ने कहा कि आप ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए की कोई कर्नल अपनी जाति के दम पर कई जनरलों को पछाड़ते हुए सेनाध्यक्ष बन जाता है तो उसका सेना के मनोबल पर कैसा असर पड़ेगा? प्रमोशन में आरक्षण के समर्थक अक्सर कहते हैं कि पिछड़े तबके को अफसर कैबिनेट सचिव या मुख्य सचिव जैसे शीर्ष पदों पर नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए इन तबकों को पदोन्नति में आरक्षण दिया जाना चाहिए। लेकिन सुब्रह्मण्यम स्वामी इस तर्क से भी सहमत नहीं हैं। अपनी दलील में उन्होंने कहा, 'आरक्षित वर्ग के लोग उम्र में छूट की वजह से वे औसतन सेवा में देर से आते हैं। इसकी वजह से अक्सर उनका सेवाकाल अन्य अफसरों की तुलना में छोटा होता है। शीर्ष पदों पर न पहुंचने की यह बड़ी वजह है।': पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े तबके के लिए आरक्षण से जुड़ी मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू करवाने में अहम भूमिका निभाई थी)
३--जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा: आरक्षण के समर्थक इस बात की दलील देते हैं कि इससे समाज का कमजोर तबका आर्थिक रूप से संपन्न होगा और वह समाज की मुख्यधारा में आ जाएगा। इसके बाद उससे जातिगत भेदभाव मिट जाएगा। लेकिन प्रमोशन में रिजर्वेशन के विरोधी यह तर्क देते हैं कि इससे तो जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा। जाति खत्म होने की बजाय नौकरी पाने और नौकरी में प्रमोशन की गारंटी बन जाएगी। आरक्षण के विरोधी तर्क देते हैं कि आज के दौर में कई राज्यों में गुर्जर समाज के अलावा राजस्थान में ब्राह्मण और राजपूत जैसी अगड़ी मानी जाने वाली जातियां भी आरक्षण की मांग कर रही हैं। आरक्षण के लागू होने से लेकर आज तक आरक्षण के दायरे में तमाम जातियां शामिल हो गई हैं। शायद यही वजह है कि जातिगत भेदभाव मिटने की जगह विभिन्न जातियां अपने-अपने संगठन बनाकर आरक्षण की लड़ाई लड़ रही हैं और जातिगत भेद मिटने की जगह ऐसे फर्क और गहरे और तीखे होते जा रहे हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे माधव खोसला भी प्रमोशन में रिजर्वेशन के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, 'इस तरह का रिजर्वेशन समानता की मूल भावना के ही खिलाफ है।': पिछड़े तबके के लिए आरक्षण की सिफारिश करने वाले पूर्व सांसद और राजनेता बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल
४--नौकरियों में कितना है 'पिछड़ापन', कोई नहीं जानता: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को खारिज करते हुए सरकार से पूछा था कि वह बताए कि देश में नौकरी कर रहे अनुसूचित जाति और जनजाति के 'पिछड़ेपन' का आंकड़ा कितना है, जिसके आधार पर प्रमोशन में रिजर्वेशन की मांग की जा रही है। लेकिन सरकार अब तक यह नहीं बता पाई है कि इस बारे में आंकड़ा क्या है। आरक्षण लागू किए जाने से जातियों का पिछड़ापन कितना दूर हुआ है और कितने लोगों ने इसका फायदा उठाया है, इसे लेकर सरकार ने आज तक कोई ठोस अध्ययन नहीं करवाया है। : यूपी की पूर्व सीएम मायावती एससी/एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने की जोरदार हिमायती हैं)
५--समाज में वैमनस्य बढ़ेगा: आरक्षण के विरोधी यह तर्क देते हैं कि नौकरी में ही आरक्षण की व्यवस्था से समाज का बहुत नुकसान हो चुका है। उनका कहना है कि आरक्षण ने 'मेरिट का गला घोंट' दिया है। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने के बाद देश भर में युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा था और कई जगहों पर छात्रों ने खुद को आग के हवाले कर दिया था। कई लोग मानते हैं कि नौकरी के बाद अब प्रमोशन में भी आरक्षण दिए जाने से समाज में 'बेचैनी' बढ़ सकती है। प्रमोशन में रिजर्वेशन के विरोधी समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने पिछले दिनों कहा था कि ऐसी व्यवस्था लागू होगी तो समाज में वैमनस्य बढ़ेगा। तमाम सर्वे के नतीजों पर निगाह डालें तो पता चलता है कि देश का एक बड़ा तबका ऐसे रिजर्वेशन के खिलाफ है और उसके अंदर इस बात को लेकर 'गुस्सा' भी है। अब आगे की तस्वीरों में उन तर्कों पर नज़र डालते हैं, जो आरक्षण की हिमायत करते हैं।
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