शनिवार, 26 मई 2018

बैस राजपूतों का इतिहास भाग 02


बैंस सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल है,  हालांकि कुछ विद्वान इन्हें नागवंशी भी बताते हैं।
  • इनका गोत्र भारद्वाज है
  • प्रवर-तीन है : भारद्वाज, वृहस्पति और अंगिरस
  • वेद-यजुर्वेद
  • कुलदेवी-कालिका माता
  • इष्ट देव-शिव जी
  • ध्वज-आसमानी और नाग चिन्ह
प्रसिद्ध बैस व्यक्तित्व
  • शालिवाहन - शालिवाहन राजा, शालिवाहन (जिसे कभी कभी गौतमीपुत्र शातकर्णी के रूप में भी जाना जाता है) को शालिवाहन शक के शुभारम्भ का श्रेय दिया जाता है जब उसने वर्ष 78 में उज्जयिनी के नरेश विक्रमादित्य को युद्ध में हराया था और इस युद्ध की स्मृति में उसने इस युग को आरंभ किया था। एक मत है कि, शक युग उज्जैन, मालवा के राजा विक्रमादित्य के वंश पर शकों की जीत के साथ शुरू हुआ।
  • हर्षवर्धन - हर्षवर्धन प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह अंतिम हिंदू सम्राट था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्ट रचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी।
  • त्रिलोकचंद
  • अभयचंद
  • राणा बेनी माधव बख्श सिंह
  • मेजर ध्यानचंद आदि
बैस राजपूतों की शाखाएँ
  • कोट बहार बैस
  • कठ बैस
  • डोडिया बैस
  • त्रिलोकचंदी(राव, राजा, नैथम, सैनवासी) बैस,
  • प्रतिष्ठानपुरी बैस,
  • रावत,
  • कुम्भी,
  • नरवरिया,
  • भाले सुल्तान,
  • चंदोसिया
बैस राजपूतों के प्राचीन राज्य और ठिकाने
  • प्रतिष्ठानपुरी, स्यालकोट ,स्थानेश्वर, मुंगीपट्टम्म, कन्नौज, बैसवाडा, कस्मांदा, बसन्तपुर, खजूरगाँव थालराई, कुर्रिसुदौली, देवगांव,मुरारमउ, गौंडा, थानगांव, कटधर आदि
बैस राजपूतों वर्तमान निवास
  • यूपी के अवध में स्थित बैसवाडा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, आजमगढ़, बलिया, बाँदा, हमीरपुर, प्रतापगढ़, सीतापुर रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, फतेहपुर, गोरखपुर, बस्ती, मिर्जापुर, गाजीपुर, गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, बिहार, पंजाब, पाक अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान में बड़ी आबादी है और मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी थोड़ी आबादी है।
परम्पराएँ
बैस राजपूत नागो को नहीं मारते हैं, नागपूजा का इनके लिए विशेष महत्व है, इनके ज्येष्ठ भ्राता को टिकायत कहा जाता था और सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा आजादी से पहले तक उसे ही मिलता था। मुख्य गढ़ी में टिकायत परिवार ही रहता था और शेष भाई अलग किला/मकान बनाकर रहते थे, बैस राजपूतो में आपसी भाईचारा बहुत ज्यादा होता है। बिहार के सोनपुर का पशु मेला बैस राजपूतों ने ही प्रारम्भ किया था।
बैस क्षत्रियों की उत्पत्ति : बैस राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कई मत प्रचलित हैं-
  1. ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 112-114 के अनुसार सूर्यवंशी राजा वासु जो बसाति जनपद के राजा थे, उनके वंशज बैस राजपूत कहलाते हैं, बसाति जनपद महाभारत काल तक बना रहा है
  2. देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ संख्या 67-74 के अनुसार वैशाली से निकास के कारण ही यह वंश वैस या बैस या वैश कहलाया, इनके अनुसार बैस सूर्यवंशी हैं, इनके किसी पूर्वज ने किसी नागवंशी राजा की सहायता से उन्नति की इसलिए बैस राजपूत नाग पूजा करते हैं और इनका चिन्ह भी नाग है।
  3. महाकवि बाणभट्ट ने सम्राट हर्षवर्धन जो की बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृह वर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं।
  4. महान इतिहासकार गौरीशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास के पृष्ठ संख्या 154-162 में भी बैस राजपूतों को सूर्यवंशी सिद्ध किया गया है।
  5. श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 78, 79 एवं 368, 369 के अनुसार भी बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
  6. डा देवीलाल पालीवाल की कर्नल जेम्स तोड़ कृत राजपूत जातियों का इतिहास के प्रष्ठ संख्या 182 के अनुसार बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
  7. ठाकुर बहादुर सिंह बीदासर कृत क्षत्रिय वंशावली एवं जाति भास्कर में बैस वंश को स्पष्ट सूर्यवंशी बताया गया है।
  8. इनके झंडे में नाग का चिन्ह होने के कारण कई विद्वान इन्हें नागवंशी मानते हैं,लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। अत: कुछ विद्वान बैस राजपूतो को लक्ष्मण का वंशज और नागवंशी मानते हैं,कुछ विद्वानों के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष से तक्षक नाग वंश चला जिसने तक्षशिला की स्थापना की,बाद में तक्षक नाग के वंशज वैशाली आये और उन्ही से बैस राजपूत शाखा प्रारम्भ हुई।
  9. कुछ विद्वानों के अनुसार बैस राजपूतों के आदि पुरुष शालिवाहन के पुत्र का नाम सुन्दरभान या वयस कुमार था जिससे यह वंश वैस या बैस कहलाया,जिन्होंने सहारनपुर की स्थापना की।
  10. कुछ विद्वानों के अनुसार गौतम राजा धीरपुंडीर ने 12 वी सदी के अंत में राजा अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में दिए इन बाईस परगनों के कारण यह वंश बाईसा या बैस कहलाने लगा।
  11. कुछ विद्वान इन्हें गौतमी पुत्र शातकर्णी जिन्हें शालिवाहन भी कहा जाता है उनका वंशज मानते हैं, वहीं कुछ के अनुसार बैस शब्द का अर्थ है वो क्षत्रिय जिन्होंने बहुत सारी भूमि अपने अधिकार में ले ली हो।
बैस वंश की उत्पत्ति के सभी मतों का विश्लेष्ण एवं निष्कर्ष ....
बैस राजपूत नाग की पूजा करते हैं और इनके झंडे में नाग चिन्ह होने का यह अर्थ नहीं है कि बैस नागवंशी हैं, महाकवि बाणभट्ट ने सम्राट हर्षवर्धन जो की बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृह वर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं। लक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है किन्तु लक्ष्मण जी नागवंशी नहीं रघुवंशी ही थे और उनकी संतान आज के प्रतिहार(परिहार) और मल्ल राजपूत हैं ।
जिन विद्वानों ने 12 वी सदी में धीरपुंडीर को अर्गल का गौतमवंशी राजा लिख दिया और उनके द्वारा दहेज में अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में देने से बैस नामकरण होने का अनुमान किया है वो बिलकुल गलत है,क्योंकि धीरपुंडीर गौतम वंशी नहीं पुंडीर क्षत्रिय थे जो उस समय हरिद्वार के राजा थे, बाणभट और चीनी यात्री ह्वेंस्वांग ने सातवी सदी में सम्राट हर्ष को स्पष्ट रूप से बैस या वैश वंशी कहा है तो 12 वी सदी में बैस वंशनाम की उतपत्ति का सवाल ही नहीं है, किन्तु यहाँ एक प्रश्न उठता है कि अगर बैस वंश की मान्यताओं के अनुसार शालिवाहन के वंशज वयस कुमार या सुंदरभान सहारनपुर आये थे तो उनके वंशज कहाँ गए?
बैस वंश की एक शाखा त्रिलोकचंदी है और सहारनपुर के वैश्य जैन समुदाय की भी एक शाखा त्रिलोकचंदी है इन्ही जैनियो के एक व्यक्ति राजा साहरनवीर सिंह ने अकबर के समय सहारनपुर नगर बसाया था, आज के सहारनपुर, हरिद्वार का क्षेत्र उस समय हरिद्वार के पुंडीर शासको के नियन्त्रण में था तो हो सकता है शालिवाहन के जो वंशज इस क्षेत्र में आये होंगे उन्हें राजा धीर पुंडीर ने दहेज़ में सहारनपुर के कुछ परगने दिए हों और बाद में ये त्रिलोकचंदी बैस राजपूत ही जैन धर्म ग्रहण करके व्यापारी हो जाने के कारण वैश्य बन गए हों और इन्ही त्रिलोकचंदी जैनियों के वंशज राजा साहरनवीर ने अकबर के समय सहारनपुर नगर की स्थापना की हो, और बाद में इन सभी मान्यताओं में घालमेल हो गया हो। अर्गल के गौतम राजा अलग थे उन्होंने वर्तमान बैसवारे का इलाका बैस वंशी राजा अभयचन्द्र को दहेज़ में दिया था।

गौतमी पुत्र शातकर्णी को कुछ विद्वान बैस वंशावली के शालिवाहन से जोड़ते हैं किन्तु नासिक शिलालेख में गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी को एक ब्राह्मण (अद्वितिय ब्राह्मण) तथा खतिय-दप-मान-मदन अर्थात क्षत्रियों का मान मर्दन करने वाला आदि उपाधियों से सुशेभित किया है। इसी शिलालेख के लेखक ने गौतमीपुत्र की तुलना परशुराम से की है। साथ ही दात्रीशतपुतलिका में भी शालीवाहनों को मिश्रित ब्राह्मण जाति तथा नागजाति से उत्पन्न माना गया है। अत: गौतमी पुत्र शातकर्णी अथवा शालिवाहन को बैस वंशी शालिवाहन से जोड़ना उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि बैसवंशी सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
उपरोक्त सभी मतो का अध्ययन करने पर हमारा निष्कर्ष है कि बैस राजपूत सूर्यवंशी है, प्राचीन काल में सूर्यवंशी इछ्वाकू वंशी राजा विशाल ने वैशाली राज्य की स्थापना की थी, विशाल का एक पुत्र लिच्छवी था यहीं से सूर्यवंशी की लिच्छवी, शाक्य (गौतम), मोरिय (मौर्य), कुशवाहा (कछवाहा), बैस शाखाएं अलग हुई, जब मगध के राजा ने वैशाली पर अधिकार कर लिया और मगध में शूद्र नन्दवंश का शासन स्थापित हो गया और उसने क्षत्रियों पर जुल्म करने शुरू कर दिए तो वैशाली से सूर्यवंशी क्षत्रिय पंजाब, तक्षिला, महाराष्ट्र, स्थानेश्वर, दिल्ली आदि में आ बसे, दिल्ली क्षेत्र पर भी कुछ समय बैस वंशियों ने शासन किया, बैंसों की एक शाखा पंजाब में आ बसी। इन्होंने पंजाब में एक नगर श्री कंठ पर अधिकार किया, जिसका नाम आगे चलकर थानेश्वर हुआ। दिल्ली क्षेत्र थानेश्वर के नजदीक है अत:दिल्ली शाखा,थानेश्वर शाखा,सहारनपुर शाखा का आपस में जरूर सम्बन्ध होगा, बैसवंशी सम्राट हर्षवर्धन अपनी राजधानी थानेश्वर से हटाकर कन्नौज ले गए, हर्षवर्धन ने अपने राज्य का विस्तार बंगाल, असम, पंजाब, राजपूताने, मालवा व नेपाल तक किया और स्वयं राजपुत्र शिलादित्य की उपाधि धारण की।
हर्षवर्द्धन के पश्चात् इस वंश का शासन समाप्त हो गया और इनके वंशज कन्नौज से आगे बढकर अवध क्षेत्र में फ़ैल गए, इन्ही में आगे चलकर त्रिलोकचंद नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए इनसे बैस वंश की कई शाखाएँ चली, इनके बड़े पुत्र बिडारदेव के वंशज भाले सुल्तान वंश के बैस हुए जिन्होंने सुल्तानपुर की स्थापना की.इन्ही बिडारदेव के वंशज राजा सुहेलदेव हुए जिन्होंने महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को बहराइच के युद्ध में उसकी सेना सहित मौत के घाट उतार दिया था और खुद भी शहीद हो गए थे।
चंदावर के युद्ध में हर्षवर्धन के वंशज केशवदेव भी जयचंद के साथ युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए बाद में उनके वंशज अभयचंद ने अर्गल के गौतम राजा की पत्नी को तुर्कों से बचाया जिसके कारण गौतम राजा ने अभयचंद से अपनी पुत्री का विवाह कर उसे 1440 गाँव दहेज़ में दे दिए जिसमें विद्रोही भर जाति का दमन कर अभयचंद ने बैस राज्य की नीव रखी जिसे आज बैसवाडा या बैसवारा कहा जाता है, इस प्रकार सूर्यवंशी बैस राजपूत आर्याव्रत के एक बड़े भू भाग में फ़ैल गए।
 
बैसवंशी राजपूतों का सम्राट हर्षवर्धन से पूर्व का इतिहास
बैस राजपूत मानते हैं कि उनका राज्य पहले मुर्गीपाटन पर था और जब इस पर शत्रु ने अधिकार कर लिया तो ये प्रतिष्ठानपुर आ गए, वहां इस वंश में राजा शालिवाहन हुए, जिन्होंने विक्रमादित्य को हराया और शक सम्वत इन्होने ही चलाया,कुछ ने गौतमी पुत्र शातकर्णी को शालिवाहन मानकर उन्हें बैस वंशावली का शालिवाहन बताया है और पैठण को प्रतिष्ठानपुर बताया और कुछ ने स्यालकोट को प्रतिष्ठानपुर बताया है, किन्तु यह मत सही प्रतीत नहीं होते कई वंशो बाद के इतिहास में यह गलतियाँ की गई कि उसी नाम के किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को यह सम्मान देने लग गए, शालिवाहन नाम के इतिहास में कई अलग अलग वंशो में प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। भाटी वंश में भी शालिवाहन हुए हैं और सातवाहन वंशी गौतमीपुत्र शातकर्णी को भी शालिवाहन कहा जाता था, विक्रमादित्य के विक्रम सम्वत और शालिवाहन के शक सम्वत में पूरे 135 वर्ष का फासला है अत: ये दोनों समकालीन नहीं हो सकते.दक्षिण के गौतमीपुत्र शातकर्णी को नासिक शिलालेख में स्पष्ट ब्राह्मण लिखा है अत:इसका सूर्यवंशी बैस वंश से सम्बन्ध होना संभव नहीं है।
वस्तुत: बैस इतिहास का प्रतिष्ठानपुर न तो दक्षिण का पैठण है और न ही पंजाब का स्यालकोट है यह प्रतिष्ठानपुर इलाहबाद (प्रयाग) के निकट और झूंसी के पास था, किन्तु इतना अवश्य है कि बैस वंश में शालिवाहन नाम के एक प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए जिन्होंने प्रतिष्ठानपूरी में एक बड़ा बैस राज्य स्थापित किया, शालिवाहन कई राज्यों को जीतकर उनकी कन्याओं को अपने महल में ले आये, जिससे उनकी पहली तीन क्षत्राणी रानियाँ खिन्न होकर अपने पिता के घर चली गयी, इन तीन रानियों के वंशज बाद में भी बैस कहलाते रहे और बाद की रानियों के वंशज कठबैस कहलाये, ये प्रतिष्ठानपुर (प्रयाग)के शासक थे।
इन्ही शालिवाहन के वंशज त्रिलोकचंद बैस ने दिल्ली (उस समय कुछ और नाम होगा) पर अधिकार कर लिय.स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार दिल्ली पर सन 404 ईस्वी में राजा मुलखचंद उर्फ़ त्रिलोकचंद प्रथम ने विक्रमपाल को हराकर शासन स्थापित किया इसके बाद विक्र्मचन्द, कर्तिकचंद, रामचंद्र, अधरचन्द्र, कल्याणचन्द्र, भीमचंद्र, बोधचन्द्र, गोविन्दचन्द्र और प्रेमो देवी ने दो सो से अधिक वर्ष तक शासन किया,वस्तुत ये दिल्ली के बैस शासक स्वतंत्र न होकर गुप्त वंश और बाद में हर्षवर्धन बैस के सामंत के रूप में यहाँ पर होंगे,इसके बाद यह वंश दिल्ली से समाप्त हो गया,और सातवी सदी के बाद में पांडववंशी अर्जुनायन तंवर क्षत्रियों(अनंगपाल प्रथम) ने प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के स्थान पर दिल्ली की स्थापना की. वस्तुत:बैसवारा ही बैस राज्य था. (देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास पृष्ठ संख्या 70,एवं ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 113,114)

बैस वंश की शाखाएँ
  • कोट बाहर बैस - शालिवाहन की जो रानियाँ अपने पीहर चली गयी उनकी संतान कोट बाहर बैस कहलाती है।
  • कठ बैस - शालिवाहन की जो जीती हुई रानियां बाद में महल में आई उनकी संतान कोट बैस या कठ बैस कहलाती हैं।
  • डोडिया बैस - डोडिया खेड़ा में रहने के कारण राज्य हल्दौर जिला बिजनौर
  • त्रिलोकचंदी बैस - त्रिलोकचंद के वंशज इनकी चार उपशाखाएँ हैं राव, राजा, नैथम व सैनवासी
  • प्रतिष्ठानपुरी बैस - प्रतिष्ठानपुर में रहने के कारण
  • चंदोसिया - ठाकुर उदय बुधसिंह बैस्वाड़े से सुल्तानपुर के चंदोर में बसे थे उनकी संतान चंदोसिया बैस कहलाती है।
  • रावत - फतेहपुर, उन्नाव में
  • कुम्भी एवं नरवरिया - बैसवारा में मिलते हैं।

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