शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

भीमा कोरेगाँव क्यों हुआ ?

पोस्ट लंबा है पर भीमा कोरेगाँव क्यों हुआ ? गुजरात में पाटीदार आंदोलन क्यों हुआ ? उत्तरप्रदेश में चुनाव के ठीक पहले सहारनपुर में दलितों ने आगजनी क्यों किया ? जिसे सवर्ण-दलित संघर्ष का नाम मायावती ने दिया ! समय निकालकर ही पढ़े, यदि इच्छा हो तो !
देश का मानस आज दो भाग में बंट गया है ''मोदी समर्थक और मोदी विरोधी'' !
मोदी समर्थक में ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें न तो राजनीति से मतलब है और न ही RSS से ! पर ये है पक्के देश भक्त, इन्हे मोदी से अधिक देश की चिंता है और आज की तारिख में मोदी से अधिक देश की चिंता सायद ही किसी को हो इसी लिए ये मोदी भक्त है ! और इन्ही मोदी भक्तों में हम जैसे, आप जैसे राष्ट्रवादी भी है ! ye निष्पक्ष हैं लेकिन मोदी में उन्हें आशा दिखती है! वर्षों की तुष्टिकरण, भ्रष्टाचार और राजनैतिक अपराध से निराश लोगों में मोदी एक हिम्मत जगाते हैं ! नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए मोदीजी अपने समर्थकों में विश्वास भी जगा चुके हैं !
अब आइए, मोदी विरोधी कौन से लोग हैं...?
मोदी विरोधी केवल विपक्ष की राजनीति या भाजपा विरोधी नेता ही नहीं हैं!
एक बड़ा वर्ग गैर-राजनीतिक लोगों का है, जिसे जानते तो सभी हैं लेकिन स्पष्ट विवरण या तस्वीर नहीं होने के कारण मूल तक नहीं पहुंच पाते!
विरोध के गैर राजनीतिक वर्ग पर नजर डालें !
इसमें पहला वर्ग है मुसलमान! अब जहां मुसलमान है वहां पाकिस्तान और बांग्लादेश स्वत: आ जाता है, इस्लाम के सहारे कह लें या मुस्लिम ब्रदरहुड!
जब बांग्लादेश और पाकिस्तान आता है, तब आतंकवाद, नकली नोट का कारोबार, स्मगलिंग, घुसपैठ और गोधन का अवैध कारोबार अपने आप शामिल हो जाता है !
दूसरा वर्ग है मिशनरीज! मिशनरीज का अर्थ है धर्मांतरण और भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं जीडीपी को तोड़कर भारत को आयात के भरोसे रखना । इनमे से ज्यादातर ''इटैलियम माई'' के कृपापात्र है जिन पर कृपा आनी रुक गई है मोदी सरकार आने से !
तीसरा वर्ग है नक्सलवाद, यह एक सूअर की प्रजाति है, जिसे गंदगी पसंद है!
मतलब भारत में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी का आलम बना रहे ताकि इसके नेताओं को समर्थक मिलते रहें, और क्रांति के नाम पर अरबों रुपये की लेवी उगाही का धंधा चलता रहे !
चौथा वर्ग है माफिया, अफसरशाही का गठजोड़, यह घरेलू दीमक है, जो दीवारों की नींव में पैठ बनाकर खोदता रहता है, और तमाम संसाधनों को चट कर जाता है! इस वर्ग में मीडिया के नाम पर जीने खाने वाले दलालों की संख्या भी बहुत बड़ी है।
अब आइए दादरी, ऊना, रोहित वेमुला, असहिष्णुता, अवार्ड वापसी, जेएनयू और तत्काल भीमा कोरेगांव के मुद्दे पर, तब स्पष्ट हो जाएगा कि मोदी विरोधी तबका कर क्या रहा है ?
कंजकिरो झारखंड का छोटा सा गांव है, इसके बगल में बोकारो थर्मल पावर स्टेशन है जहां केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की टुकड़ी तैनात रहती है!
2006- 07 के बीच इस इलाके में दो नक्सली वारदात हुए जिसमें 15 CISF जवान शहीद हो गए थे! इस हमले का मास्टरमाइंड था ''कोबाड गांधी''।
दून स्कूल का छात्र रहा उच्च शिक्षित कोबाड गांधी नक्सली समूह भाकपा माओवादी का पोलित ब्यूरो सदस्य और थिंक टैंक है ! कोबाड गांधी पर नक्सली वारदात को अंजाम देने के दर्जनों मुकदमे दर्ज हैं। इसकी पत्नी का नाम है ''अनुराधा गांधी'', वह भी नक्सली संगठन की बड़ी सिंपेथाइजर रही है! मिलिंद तेलतुंबडे नाम का इंजीनियर 80 के दशक में वेस्टर्न कोल फिल्ड्स लिमिटेड में नौकरी करता था एवं ट्रेड यूनियन का नेता था!
उन्हीं दिनों उसकी मुलाकात कोबाड गांधी की पत्नी अनुराधा गांधी से हुई, और वह नक्सली संगठन में शामिल हो गया! मघ्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जंगलों में मिलिंद तेलतुंबडे दुर्दात नक्सली नेता के रूप में कुख्यात ही नहीं है, बल्कि इस 47 वर्षीय नक्सली की 97 हजार वर्ग किमी में फैला जंगली क्षेत्र में समानांतर सरकार चलती रही है! मिलिंद तेलतुंबडे का बड़ा भाई है आनंद तेलतुंबडे! आनंद तेलतुंबडे बाबा साहब अम्बेडकर की पोती का पति है, यानि बहुजनन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश अम्बेडकर का बहनोई ! वही प्रकाश अंबेदकर जिसकी अगुआई में 1जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में विजय दिवस मनाया जा रहा था, और जिसने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया! नोटबंदी के कारण नक्सली संगठनों के अरबों रुपये बेकार हो गए, कुछ पैसों को नक्सली नेता ठिकाने लगा पाए, लेकिन उससे केवल उनकी जरूरतें पूरी हो सकती है, संगठन नहीं चल पाएगा ! नकली नोट का कारोबार जो बांग्लादेश और पाकिस्तान से चलता था, नोटबंदी ने उसकी कमर तोड़ दी है। बड़े नक्सली नेता जैसे झारखंड में सक्रिय चिराग दा जैसों को ढेर कर दिया गया है, और कोबाड गांधी 17/12/2017 को हैदराबाद से झारखंड पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है ! कोबाड गांधी के जरिए सरकार पूरे नक्सली तंत्र की गुत्थी सुलझाने लगी है, समाजसेवी संगठन और NGOs जो नक्सली संगठनों से पोषित हो रहे हैं उनका लेखा-जोखा सरकार को मिलने लगा है ! कोबाड गांधी के जरिए मिलिंद तेलतुंबडे के बारे में कई जानकारियां सरकार को मिल रही है, जिसकी आंच की तपिश में प्रकाश अंबेदकर का झुलसना तय है, इसीलिए प्रकाश अम्बेडकर जो आजतक नेपत्थ्य में था अचानक बाहर छटपटाता हुआ दिखने लगा है! "द वायर" नाम का न्यूज पोर्टल और NDTV कोबाड गांधी का सिंपेथाइजर है, नक्सली लेवी से उगाही का पैसा कहां कहां लगाते हैं, इससे आप स्पष्ट समझ सकते हैं!
''उमर खालिद'' (खा-लीद ) पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का सॉफ्ट चेहरा है ! जाहिर है भीमा कोरेगांव के कार्यक्रम में वह क्यों शामिल था, आपको समझ आ गया होगा ! मोदी सरकार देशद्रोह में संलिप्त चूहों के बिल में आग लगा चुकी है, वे बिलबिलाकर बाहर आने लगे हैं, बिल से वे बाहर तो आ गए हैं, लेकिन सरकार उन्हें कितना रगड़ पाती है यह देखना अभी बाकी है !
आखिर दलित आंदोलन ही क्यों....?
नक्सलियों में नई भर्ती लगभग बंद हो चुकी है, नब्बे के दशक में हर वर्ग के आपराधिक प्रवृति के युवा नक्सली संगठनों में शामिल हो रहे थे, एवं जंगलों में आदिवासी युवक युवतियों की बड़ी संख्या उनके लच्छेदार भाषणों के जाल में फंसकर बड़ी फौज बन गई! कांग्रेस सरकार में मिशनरीज की तूती बोलने लगी थी, सो नक्सलवाद के जरिए उनका भी हित सधने लगा था ! अब आदिवासी समाज का नक्सलवाद से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है, इसलिए नक्सली नेता दलितों पर डोरे डाल रहे हैं ! उन्हें खंडित इतिहास पढ़ाकर बरगलाया जा रहा है ! पहले चरण में उन्हें मोदी विरोध की पट्टी पढ़ाई जा रही है, ताकि कांग्रेस और भाजपा विरोधी पार्टियों का वोट बढ़ जाए, और उसके बाद उन्हें नक्सली संगठनों से जोड़ने का प्रयास होगा, ताकि नक्सली फौज खड़ी करके फिर से अरबों रूपयों की लेवी उगाही की अर्थव्यवस्था कायम हो सके ! एक सवाल छूट रहा है ! आखिर कांग्रेस के युवराज इन कथित दलित आंदोलनों में क्यों हाँथ सेक रहे है ?
मतलब साफ़ है समझिये ... दरसल युवराज,सहजादे इन सभी के सहारे 2019 में सत्ता की सिखर पर जाना चाहते है ! अब निर्णय आपको लेना है की युवराज को सत्ता सौपना है या एक फ़कीर को ?
#NSB

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