अरब देश का भारत , महर्षि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पौत्र और्व
से एतिहासिक सम्बन्ध प्रमाणित हैं , यहाँ तक की “ हिस्ट्री ऑफ़ पर्शिया “ के
लेखक साईक्स का मत हैं की अरब का नाम महर्षि भृगु के पौत्र और्व के ही नाम
पर पड़ा जो विकृत होकर “अरब” हो गया | भारत के उत्तर – पश्चिम में इलावर्त
था , जहा दैत्य और दानव बसते थे , इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी –
पश्चिमी भाग , ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगित का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मलित
था | आदित्यो का निवास स्थान देवलोक भारत के उत्तर – पूर्व में स्थित
हिमालयी क्षेत्रो में रहा था | बेबीलोन की प्राचीन गुफाओ में पुरातात्विक
खोज में जो भित्ति चित्र मिले हैं , उनमे विष्णु को हिरण्यकश्यप के भाई
हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण किया गया हैं | उस युग में अरब एक
बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा था , इसी कारण देवों , दानवों और दैत्यों में
इलावर्त के विभाजन को लेकर १२ बार युद्ध “देवासुर संग्राम” हुए | देवतावों
के राजा इन्द्र ने अपनी पुत्री जयंती का विवाह शुक्र के साथ इसी विचार से
किया था की शुक्र उनके ( देवों ) के पक्षधर बन जायेंगे , लेकिन शुक्र
दैत्यों के गुरु बने रहे | यहाँ तक कि जब दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का
कहना न माना तो वो उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व के पास अरब में आ गए और दस
वर्ष तक रहे | साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ “ हिस्ट्री ऑफ़ पर्शिया “ में
लिखा हैं की ‘ शुक्राचार्य लिव्ड टेन इयर्स इन अरब ‘ | अरब में शुक्राचार्य
का इतना मान सम्मान हुआ की आज जिसे ‘काबा’ कहते हैं वह वस्तुतः ‘काव्य
शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके अराध्य भगवान् शिव का ही
मंदिर हैं| कालांतर में काव्य नाम विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ | अरबी
भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और इसी
से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते हैं |
“ वृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, उशना काव्योsसुराणाम् “ – जैमिनिय ब्रा. (01-125)
अर्थात वृहस्पति देवो के पुरोहित थे औरउशना काव्य ( शुक्राचार्य ) असुरो के |
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह ग्रन्थ ‘सेअरुल – ओकुल’ के 257 वें पृष्ठपर
हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा
हुएलबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफ ा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदोंको जो सम्मान दिया हैं , वह इस प्रकार हैं –
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे |
व् अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन ||1||
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सह्बी अरवे अतुन जिकरा |
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंद्तुन ||2||
यकूलूनुल्लाहः या अह्लल अरज आलमीन फुल्ल्हुम|
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन ||3||
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहेतन्जीलन |
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअनयोवसीरीयोनजातुन ||4||
जईसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का –अ-खुबातुन |
व असनात अलाऊढन व होवा मश-ए-रतुन ||5||
अर्थात –
हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे ) तू धन्य हैं , क्योकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना हैं ||1||
वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश , जो चार प्रकार स्तंभों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत
को प्रकाशित करता हैं , यह भारत वर्ष (हिंद तुन ) में ऋषियों द्वारा चार
रूप में प्रकट हुआ ||2||
और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता हैं की वेद , जो मेरे ज्ञान हैं , इनके अनुसार आचरण
करो ||3||
वह ज्ञान के भण्डार साम व यजुर हैं , जो ईश्वर ने प्रदान किये हैं |
इसलिए, हे मेरे भाईयो ! इनको मानो , क्योकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते
हैं ||4||
और दो उनमे से ऋक , अतर ( ऋग्वेद ,अथर्ववेद ) जो हमें
भातृत्व की शिक्षा देते हैं और जो इनकी शरण में आ गया , वह कभी अन्धकार को
प्राप्त नहीं होता हैं |
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं
भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप मेंजन्मे थे , और जब उन्होंने अपने
हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से सम्बन्ध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर
घोषित करना निश्चित किया तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न – भिन्न हो गया और
काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में
पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गवाने पड़े
|उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केंद्र काबा (मक्का) में इतना अधिक
सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो की भगवान् शिव के भक्त थे एवं
वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी देवताओ के अनन्य उपासक थे , उन्हें
अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे | बाद में मोहम्मद के नए
सम्प्रदाय ने उन्हें इर्ष्या वश अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी
निंदा की |
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया , उससमय वहा
वृहस्पति , मंगल , अश्वनी कुमार , गरुड़ , नृसिंह की मुर्तिया प्रतिष्ठित थी
| साथ ही एक मूर्ति वहा विश्वविजेता महाराज बलि की भी थी और दानी होने की
प्रसिद्धि से उनका एक हाथ सोने का बना था | ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह
मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्तियों के बराबर रखी थी | मुहम्मद ने
उन सब मूर्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुँए में फेक दिया ,किन्तु तोड़े गए
शिवलिंग का एक टुकड़ा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित हैं ,
वरन हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले ( अश्वेत ) प्रस्तर खण्ड अर्थात
‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चुमते हैं |
प्राचीन अरबों ने
सिंध को सिंध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशो को हिन्द निश्चित किया |
सिंध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक हैं | इस्लाम मत के
प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानी लगभग 1800 ईसवी
पूर्व भी अरब में हिन्द एवं हिन्दू शब्द का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही
के अर्थ में प्रयुक्त होता था |
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति
वैदिक थीतथा उस समय ज्ञान –विज्ञान , कला कौशल , धर्म –संस्कृति आदि में
भारत (हिन्द) के साथ उसके प्रगाढ़ सम्बन्ध थे | हिन्द नाम अरबों को इतना
प्यारा लगाकि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चो के नाम
भी हिन्द पर रखे |
अरबी काव्य संग्रह ग्रन्थ ‘सेअरुल-ओकुल’ के 253
वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचाउमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता हैं जिसमे
उन्होंने हिंदे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया हैं | हजरत
मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता नईदिल्ली स्थित मंदिर मार्ग पर
श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर ( बिडला मंदिर ) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल
पत्थर (खम्बे) पर काली स्याही से लिखी हुयी हैं , जो इस प्रकार हैं –
“कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक |
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ||1||
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा |
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ||2||
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ |
मनोजेल इल्मुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू||3||
व सहबी वे याम फीम कामिल हिंदे यौमन |
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरु ||4||
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्ल्हूम |
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ||5||
अर्थात –
वह मनुष्य जिसने अपना सारा जीवन पाप और अधर्म में बिताया हो , काम , क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो ||1||
यदि अंत में उसको पश्चाताप हो और भलाई की ओर लौटना चाहे , तो क्या उसका कल्याण हो सकता हैं ? ||2||
एक बार भी वह सच्चे ह्रदय से वह महादेवजी की पूजा करे , तो धर्म – मार्ग में उच्चसे उच्च पद को पा सकता हैं ||3||
हे प्रभु , मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत ( हिन्द ) के निवास का
दे दो , क्योकि वहा पंहुचकर मनुष्य जीवन – मुक्त हो जाता हैं ||4||
वहा की यात्रा से सारे शुभ कर्मो कीप्राप्ति होती हैं और आदर्श गुरुजनों ( गबुल हिन्दू ) का सत्संग मिलता हैं |
“ वृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, उशना काव्योsसुराणाम् “ – जैमिनिय ब्रा. (01-125)
अर्थात वृहस्पति देवो के पुरोहित थे औरउशना काव्य ( शुक्राचार्य ) असुरो के |
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह ग्रन्थ ‘सेअरुल – ओकुल’ के 257 वें पृष्ठपर हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुएलबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफ
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे |
व् अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन ||1||
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सह्बी अरवे अतुन जिकरा |
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंद्तुन ||2||
यकूलूनुल्लाहः या अह्लल अरज आलमीन फुल्ल्हुम|
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन ||3||
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहेतन्जीलन |
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअनयोवसीरीयोनजातुन ||4||
जईसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का –अ-खुबातुन |
व असनात अलाऊढन व होवा मश-ए-रतुन ||5||
अर्थात –
हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे ) तू धन्य हैं , क्योकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना हैं ||1||
वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश , जो चार प्रकार स्तंभों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता हैं , यह भारत वर्ष (हिंद तुन ) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ ||2||
और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता हैं की वेद , जो मेरे ज्ञान हैं , इनके अनुसार आचरण
करो ||3||
वह ज्ञान के भण्डार साम व यजुर हैं , जो ईश्वर ने प्रदान किये हैं | इसलिए, हे मेरे भाईयो ! इनको मानो , क्योकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते हैं ||4||
और दो उनमे से ऋक , अतर ( ऋग्वेद ,अथर्ववेद ) जो हमें भातृत्व की शिक्षा देते हैं और जो इनकी शरण में आ गया , वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता हैं |
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप मेंजन्मे थे , और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से सम्बन्ध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न – भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गवाने पड़े |उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केंद्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो की भगवान् शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी देवताओ के अनन्य उपासक थे , उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे | बाद में मोहम्मद के नए सम्प्रदाय ने उन्हें इर्ष्या वश अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निंदा की |
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया , उससमय वहा वृहस्पति , मंगल , अश्वनी कुमार , गरुड़ , नृसिंह की मुर्तिया प्रतिष्ठित थी | साथ ही एक मूर्ति वहा विश्वविजेता महाराज बलि की भी थी और दानी होने की प्रसिद्धि से उनका एक हाथ सोने का बना था | ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्तियों के बराबर रखी थी | मुहम्मद ने उन सब मूर्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुँए में फेक दिया ,किन्तु तोड़े गए शिवलिंग का एक टुकड़ा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित हैं , वरन हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले ( अश्वेत ) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चुमते हैं |
प्राचीन अरबों ने सिंध को सिंध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशो को हिन्द निश्चित किया | सिंध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक हैं | इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानी लगभग 1800 ईसवी पूर्व भी अरब में हिन्द एवं हिन्दू शब्द का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था |
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थीतथा उस समय ज्ञान –विज्ञान , कला कौशल , धर्म –संस्कृति आदि में भारत (हिन्द) के साथ उसके प्रगाढ़ सम्बन्ध थे | हिन्द नाम अरबों को इतना प्यारा लगाकि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चो के नाम भी हिन्द पर रखे |
अरबी काव्य संग्रह ग्रन्थ ‘सेअरुल-ओकुल’ के 253 वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचाउमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता हैं जिसमे उन्होंने हिंदे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया हैं | हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता नईदिल्ली स्थित मंदिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर ( बिडला मंदिर ) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर (खम्बे) पर काली स्याही से लिखी हुयी हैं , जो इस प्रकार हैं –
“कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक |
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ||1||
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा |
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ||2||
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ |
मनोजेल इल्मुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू||3||
व सहबी वे याम फीम कामिल हिंदे यौमन |
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरु ||4||
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्ल्हूम |
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ||5||
अर्थात –
वह मनुष्य जिसने अपना सारा जीवन पाप और अधर्म में बिताया हो , काम , क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो ||1||
यदि अंत में उसको पश्चाताप हो और भलाई की ओर लौटना चाहे , तो क्या उसका कल्याण हो सकता हैं ? ||2||
एक बार भी वह सच्चे ह्रदय से वह महादेवजी की पूजा करे , तो धर्म – मार्ग में उच्चसे उच्च पद को पा सकता हैं ||3||
हे प्रभु , मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत ( हिन्द ) के निवास का दे दो , क्योकि वहा पंहुचकर मनुष्य जीवन – मुक्त हो जाता हैं ||4||
वहा की यात्रा से सारे शुभ कर्मो कीप्राप्ति होती हैं और आदर्श गुरुजनों ( गबुल हिन्दू ) का सत्संग मिलता हैं |
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