बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

!! कलयुगी श्रवण कुमार !!



नेत्रहीन मां को 27 हजार किमी पैदल चलकर कराए चारधाम
17 साल पहले शुरू हुई यात्रा समाप्त
जेब में एक रुपया नहीं, चल दिए यात्रा पर

८७ वर्षीय मां को कावड़ में ले जाते हैं कैलाश गिरी

उज्जैन (मप्र)त्न 87 साल की नेत्रहीन मां की इच्छा पूरी करने के लिए वह इस कलियुग में श्रवण कुमार बन गया।

कैलाश ने जब यात्रा शुरू की तो उसके पास जेब में एक रुपया नहीं था।
भगवान भरोसे वह कावड़ लेकर निकल पड़ा और गर्मी, ठंड व बारिश के बीच यात्रा आगे बढ़ती चली गई।
जहां भी गया, उस शहर में लोगों ने रहने, खाने की मदद की और कुछ रुपए भी दिए, लेकिन पूरी यात्रा में कहीं कोई सरकारी मदद नहीं ली।

अपने कंधों पर कावड़ में मां को बैठाकर 17 साल और कुछ महीनों में 27 हजार किलोमीटर पैदल चलकर उसने चारधाम की तीर्थ यात्रा पूरी करा दी।
बरगी (ग्वालियर) के 40 वर्षीय कैलाश गिरि ब्रह्मचारी कावड़ में बैठी मां कीर्ति देवी के साथ सोमवार को जब उज्जैन की सड़कों से गुजरा
तो उसे देखने वालों की नजरें थम गईं और बूढ़े मां-बाप को कंधों पर यात्रा कराने वाले पौराणिक पात्र श्रवण कुमार की याद आ गई।
कैलाश गिरि ने कहा कि 1995 में क्रम से रामेश्वर, जगन्नाथपुरी, बद्रीनाथ और द्वारिका धाम की यात्रा कर अब उज्जैन में महाकाल दर्शन के
साथ यात्रा पूरी की है। हालांकि संकल्प के मुताबिक वह मां को गांव तक कावड़ से ही ले जाएगा।
उज्जैन से वह देवास के रास्ते ग्वालियर के लिए रवाना हो गया....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें