बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

सिर हाथ पर रख लड़ी लड़ाई, इस योद्धा ने नहीं स्वीकारा इस्लाम.

बाबा दीप सिंह 300 वर्ष पुराने धार्मिक शिक्षा देने वाले दमदमी टक्साल के पहले प्रमुख थे।अहमद शाह अब्दाली द्वारा हरमिंदर साहिब (गोल्डन टेंपल) को नुकसान पहुंचाए जाने की खबर जब बाबा दीप सिंह को मिली तो उनका आदेश सुनकर तकरीबन 3000 खालसा उनके बेड़े में शामिल हो गए और उन्होंने अमृतसर की ओर कूच किया।उनका अहमद शाह अब्दाली से सामना 11 नवंबर सन् 1757 को गोहलवाड़ के नजदीक हुआ।

इस लड़ाई में अट्टल खान व बाबा दीप सिंह दोनों ने एक दूसरे पर तलवार से प्रहार किया। अट्टल खान वहीं ढेर हो गया। इस हमले में बाबा दीप सिंह की गर्दन भी धड़ से अलग हो गई। हरमिंदर साहिब को अहमद शाह अब्दाली के कब्जे से छुड़वाने के लिए बाबा दीप सिंह अपनी सेना के साथ काफी बहादुरी से युद्ध कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने खालसा लड़ाकों से कहा कि उनका सिर हरमिंदर साहिब में ही गिरेगा। तरनतारन तक पहुंचते-पहुंचते उनकी सेना में तकरीबन 5000 खालसा योद्धा शामिल हो चुके थे।दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध चला और बाबा दीप सिंह की सेना विरोधी सेना को खदेड़कर छब्बा गांव तक पहुंच गई। यहां जनरल अट्टल खान और बाबा दीप सिंह के बीच युद्ध हुआ।तभी एक खालसा ने दीप सिंह को यह याद दिलाया कि उन्होंने अपना सिर हरमिंदर साहिब में गिरने की बात कही थी। खालसा की बात सुनकर उन्होंने अपने कटे हुए सिर को बांये हाथ में उठाया और वीरता से लड़ते हुए वह हरमिंदर साहिब में दाखिल हो गए। यहां बाबा दीप सिंह अपना सिर गुरुद्वारे की पावन धरती पर रखा और अंतिम सांस ली।बाबा दीप सिंह का जन्म अमृतसर के पहुविंड गांव में 20 जनवरी सन् 1682 को हुआ था। उनके पिता का नाम भाई भगतू था। सन् 1700 में उन्होंने बैसाखी के अवसर पर उन्होंने सिक्ख धर्म की दीक्षा ली और युद्ध कला और घुड़सवारी सीखी।
भाई मणी सिंह से उन्होंने गुरुमुखी की शिक्षा ली। गुरु के दरबार में दो साल शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद वह सन् 1702 में अपने गांव वापस आ गए और शादी करके यहीं रहने लगे।सन् 1705 में वह सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी से मिलने तलवंडी गए, जहां उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतियां तैयार करने में भाई मणि सिंह जी की मदद की। गुरु गोबिंद साहिब के दिल्ली चले जाने के बाद उन्होंने लंबे समय तक दमदमा साहिब में रहकर सेवा की।


श्रोत ..भास्कर डाट कॉम  ...

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