बुधवार, 23 जनवरी 2013

!! भंगी श्री मान रामनाथ बसोर और मैं !!

नोट --मेरे इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद उन लोगो को सबसे अधिक दुष्प्रचार करने का मोका मिलेगा ..जो मेरे राजपूत होने पर संदेह करते है ...फिर भी मैं मेरे मन की बात लिखुगा जिसको जो सोचना हो मेरे बारे में सोचे ..ब्लॉग में लिखी बाते सत-प्रतिसत सत्य है = == == == == == == == 
         
                बात उन दिनों की है जब मैं सन 1983 में  डिप्लोमा करता था उस समय पर कालेज में हमारे रीवा के कई साथी थे जिसमे सभी जातियों के क्षात्र थे !.उन्ही  में से एक थे "रामनाथ बसोर " जो की भंगी जाती से थे ,रामनाथ जी को उनके जाती के कारण कालेज  के हर कोने पर जलील होना पड़ता था ,तो ओ कभी कभी  बहुत दुखी  होकर एक कोने में बैठ जाते थे .एक दिन मेरी नजर उनके ऊपर पडी और उनसे जाकर उनका इस तरह से अलग थलग बैठने का कारण पूछा तो जो सच्ची रामनाथ जी ने मुझे बताया उससे मुझे बहुत दुःख हुआ ,रामनाथ जी के साथ उच्च जाती के लोग तो भेदभाव करते ही थे ..पर रामनाथ जी  के सामान ही आरक्षण प्राप्त करके प्रवेश लेने वाले अन्य तथाकथित नीच जाती के क्षात्र भी उनके साथ उतना ही भेदभाव करते थे जितना की उच्च जाती के क्षात्र करते थे ..क्योकि रामनाथ जी हिन्दू वर्णऔर जाती ब्यवस्था के सबसे नीचे  तबके के इंसान जो ठहरे ! 
                    खैर रामनाथ जी को, मैंने बोला की कल से आपके साथ कोई कुछ नहीं करेगा और ना ही आपको कोई अपमानित केरगा आपकी जाती के नाम से ! मैं अगले दिन कालेज में घुसते ही रामनाथ जी के कंधे पर हाथ रखकर कालेज में प्रवेस किया मैं ,तो  बहुत से दोस्तों और अन्य क्षत्रो ने मेरे इधर  कुछ इस तरह देखा जैसे मैंने कोई बहुत ही बड़ा अपराध कर दिया हो ...कई ने आकर बोल की "ये क्या है बाघेल साहब ?  आप एक भंगी  के  कंधे  में  इस तरह हाथ रख कर  घूमोगे  तो ये तो एक दिन  हमारे  सर  पर बैठ जाएगा पर  मैंने उन सभी  को यथोचित जबाब देकर विवाद किये बिना आगे बढ़ गया मैं चाहता तो उनसे विवाद भी  कर सकता था ..पर सोचा की रामनाथ को ये अकेले परेसान करेगे इससे अच्छा  है इनसे विवाद नहीं किया ...और इस तरह धीरे -धीरे रामनाथ जी को कुछ हद तक सम्मानित स्थित में ले आया .! और इस तरह तीन साल निकल गए उस पोलीटेक्निक कालेज में .इसी दौरान हम 13 क्षात्रो का सलेक्सन हो गया किर्लोस्कर ब्रदर लिमिटेड देवास में ...और उन्ही में से एक नाम रामनाथ जी का भी था ! 
                      और हम इस तरह से इंदौर -बिलासपुर ट्रेन की जनरल बोगी में बैठकर 13 ओक्टूबर 1986 को  देवास आ गए .जहा पर मेरा तो क्या उन १३ में से कोई भी परिचित नहीं रहता था देवास में ! 
                       ट्रेन से  करीब २.०० बजे हम  रेलवे स्टेशन पर उतर गए ...अनजान जगह अनजान लोग  .कोई जन पहचान का नहीं है इस नए सहर में ...हम सभी 13 मुसाफिर इधर उधर इश्टेसन में भटक  रहे थे ..समझ नहीं आ रहा था क्या करू किधर जाऊ ,फिर  सोचा की चलो कारखाने के गेट पर चलते है वह से सायद रहने का कोई ठिकाना मिल जाए ! किर्लोस्कर ब्रदर लिमिटेड कारखाना पास ही है रेलवे स्टेशन के ! 
                    हम सब यही  प्लान बना हे रहे थे आपस में बघेलखंडी बोली में  की हमारे रीवा के एक सज्जन (साक्षात् देवता ) श्री मान महेंद्र कुमार गौतम साहब (ब्राह्मण जाती से) मिल गए हमें रेलवे स्टेशन ! हमारी आपस की बात चीत को सुनकर ओ हमारे पास आये (हम आपस में बघेलखंडी में बाते कर रहे थे इस कारन उन्होंने हमें भाषा बोली के कारण पहचान लिया) श्री मान महेंद्र कुमार गौतम साहब हमारे पास आये और बात चीत किया ..उस दिन.पता लगा की परदेश में कोई अपना मिल जाए तो कितना अच्छा लगता है ! गौतम जी ने अपने पिता जी को ट्रेन में बैठने आये हुए थे ..ओ अपने पिता को ट्रेन में बिठाया और हम 13 लोगो को बोला की चलो उठाओ अपना अपना सामान और मेरे साथ आओ ,हम सभी किसी आज्ञाकारी बालक की तरह उनका अनुशरण किया और उनके १० बाय १० फिट के रूम में आ गए .अब आप खुद ही कल्पना करे की हम 13 लोग उनके रूम में किस तरह से बैठे होगे ! 
                                     गौतम जी ने हम सभी से हमारा नाम पता पूछ की कौन किस गाव के है हम सबने बताया पर रामनाथ जी इधर उधर छिपते रहे नाम  बताने से ,पर गौतम जी भी थे की नाम पूछ ही लिया और जब नाम का पता चला तो गौतम जी के चेहरे में एक अजीब सी मुस्कान और ब्याकुलता मुझे दिखाई दिया ! खैर जान पहचान के बाद फिर सभी के लिए किराए से कमरे तलासाने की बारी आई ..हम सभी गौतम जी के पीछे पीछे किसी आज्ञाकारी बालक की तरह चल दिए फिर से और करीब 2 घंटे में गौतम जी ने सभी के लिए 4 कमरे की तलास कर लिया और सभी अपने अपने पसंद के अनुसार रूम पार्टनर भी चुन लिया और अपना अपना सामान लेने के लिए चल दिए गौतम जी के रूम पर !
                    सभी अपने अपने लिए रूम पार्टनर आपस में  बना लिया .पर रामनाथ बसोर जी को उनकी भंगी जाती के कारण कोई भी साथ रखने को तैयार नहीं हुआ .और रामनाथ जी की क्या हम किसी की भी हैसियत नहीं थी की अलग से रूम लेकर रह सके ..क्योकि उस समय पर हम लोगो की  पेमेंट थी 300 रुपये प्रतिमाह और रूम का किराया था  150 रूपये प्रतिमाह ! समस्या विकट थी ! ये बात मैंने गौतम  जी को बताया और बोला की  रामनाथ जी  लिए कोई सस्ता सा कमरा बता दीजिये जहा पर ये अकेले रह सके .गौतम जी ने फिर से प्रयास किया ..पर 100 रुपये प्रतिमाह से कम का कोई कमरा नहीं मिला उस समय पर   ...अब विकट समस्या थी ..रामनाथ जी को कोई अपने साथ रखने को तैयार नहीं था ..यहाँ तक की दो बंधू  चमार जाती से थे ओ भी न हीं तैयार हुए मेरे कई बार समझाने के बाद भी .अब रामनाथ जी के पास एक ही विकल्प था ..वापस रीवा लौट जाना और बास के टोकरी बना कर बेचना .या फिर नगर निगम में झाड़ू लगाने की नौकरी  करना ! ये बात रामनाथ जी ने मुझे बताया और रोने लगे इतना कह कर .! 
            ( शेष भाग से आगे का हिस्सा नीचे से पढ़े )
 मुझे बहुत दया आई रामनाथ जी पर और मन में एक अपराधबोध की भावना भरा गई की देखो ये भी अपना ही भाई है एक इन्सान है ,पर आज हम लोग इसके साथ कैसा ब्यवहार कर रहे है सिर्फ इसकी जाती के कारण (उस समय पर मेरे मन में हिन्दू -मुस्लिम वाली भावना बिलकुल भी नहीं थी ).जबकि ये भी हमारे लोगो जैसे सामान्य रंग रूप के ..ये जो खाते,पहनते  है वही हम लोग भी  खाते पहनते है ,पर सिर्फ जाती के कारण हम सभी इस तरह का ब्यवहार करते है ये कहा तक उचित है ? यही प्रश्न बार बार मेरे मन में उठने लगा {हलाकि की इसी तरह का भेदभाव मैंने मेरे गाव में मेरे घर में भी देखा है,जब हमारे घर में खेतो में काम करने वाले तथाकथित नीच जाती के मजदुर आते थे तो उस समय पर अपने जूते उतारकर हाथ में ले लेते थे उसके बाद ही घर के प्रवेस द्वारा पर आते थे और उनके आते हि मेरी माता जी और बड़ी भाभी जी कुछ ज्यादा ही चिंतित हो जाते थी की कोई कही कुछ छू नहीं दे की ओ सामान छुतिहा हो जाए हलाकि उस समय इन बातो का गाव में मेरे लिए कोई ख़ास लगाव का बिषय नहीं था ,क्योकि मैं कच्छा 8 वी से ही बाहर आ गया पढ़ाई के लिए } और इसी उधेड़बुन में  हम सभी गौतम जी के कमरे में आ गए .और मैंने आगे होकर रामनाथ जी की समस्या को उठाया सभी के सामने ,पर कोई भी अपने साथ रखने के लिए तैयार नहीं हुआ ..गौतम जी भी बहुत ही सज्जन ब्यक्ति थे ...उनकी भी इक्षा थी की रामनाथ वापस नहीं जाए रीवा ! जब सभी  तरफ से दरवाजे बंद हो गए रामनाथ जी के लिए तो मुझे लगा की अब मुझे ही शंकर जी बनकर ये जहर पीना होगा ..और मैं बहुत हिम्मत करके रामनाथ जी को मेरे साथ रूम पार्टनर बनाने के लिए तैयार हो गया .इतने में मेरे पहले वाले रूम पार्टनर श्री जगन्नाथ पटेल (कुर्मी जाती से) ने मुझे एक किनारे ले जाकर बोले की क्या ठाकुर साहब आप पगला गए हो क्या ? एक भंगी को अपने साथ रखोगे ..कैसे छुएगे उसे रोज रोज ...तो मैंने श्री जगन्नाथ पटेल जी को बोला की पटेल जी आप ट्रेन में रामनाथ के कंधे पर सर टिका कर रात भर सोते रहे उस समय क्यों भूल गए थे की ये तो मेहतर है
इस तरह काफी बहस के बाद ,मैं श्री जगन्नाथ पटेल जी को समझाने में कामयाब रहा .और रामनाथ जी मेरे साथ रुम में करीब 1  साल तक रहे हला कि रामनाथ जी ने अपनी मर्यादा का पूरा ख्याल रखा .....और फिर राम नाथ जी एक साल के बाद NTPC "शक्तिनगर"  में नौकरी लग गई और ओ चले गए  देवास से ..पर आज भी कभी कभी मिलते है तो यही कहते है की ठाकुर साहब आपके कारण आज इस मुकाम पर पहुचा हु नहीं तो  बॉस की टोकरी बनता नजर आता ! 

रामनाथ जी जब मेरे साथ रहने लगे सुरुआत में लगभग सभी जाति के लोगो ने मेरा बिरोध किया !  यहाँ तक की मैं 6 माह तक किसी के रूम में नहीं गया ,कंपनी की केन्टीन में रामनाथ के साथ कोई खाना नहीं खाता पर मैं अकेला रामनाथ की टेबल में बैठकर उनके साथ खाता । पर कुछ माह  बाद सभी मित्रो में रामनाथ घुलने -मिलने लगे पर उनकी किस्मत अच्छी थी और NTPC (नेसनल थर्मल पावर कार्पोरेसन) में नौकरी लग गई 

             मैं मेरे सभी मित्रो से आग्रह करुगा की आपस में जातिवाद के बाते भूल कर हिंदुत्व/इंसानियत को देखे.....!


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2 टिप्‍पणियां:

  1. 30 साल पहले इस तरह का कदम उठाना वाकई बहुत हिम्मत का काम था,
    खासकरके उन लोगो के लिए जो छोटे शहरो से आयो हो, जहा पर जात-पात बहहुत मानी जाती है। वाकई सराहनीय कदम रहा था आपका ,,,,
    दुसरे पार्ट का इन्तेजार रहेगा ,,,,,जल्दी पोस्ट करियेगा

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  2. aap sochiye ki 30 saal pahle yeh stithi thi ki itni si baat per aapko itna virodh ka saamna karna pada... sochiye puraane samay me kya stithi rahi hogi? kitna atyachaar hota hoga pichdi jaatiyon ko..

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