मैंने शेयर बाजार में बहुत घटा उठाया है ,क्योकि तब समझ नहीं थी ,,जब प्रमोद महाजन की ह्त्या हुई थी उस समय पर शेयर बाजार बहुत नीची आ गया था ,और मैंने उस बात को समझ नहीं पाया और उस समय पर लाखो का नुकशान उठाया ,,तो मेरा जो अनुभव है ,उसके आधार पर मैं नहीं चाहता हु की और किसी को घाटा (नुक्सान) हो .... यदि शेयर लेने के बाद शेयर गिरता ही चला जा रहा है तो देखना चाहिए कि कंपनी... के साथ कोई लोचा तो नहीं है। अगर हां, तो घाटा उठाकर भी उसे सलाम बोल दें। अगर नहीं तो थोड़ा और खरीद कर औसत लागत कम कर लें। हां, जिन शेयरों को आपने लंबे समय यानी पांच-दस साल के लिए खरीदा है, उनकी तरफ से आनेवाली सालाना रिपोर्टों वगैरह को पढ़ते रहना चाहिए ताकि पता चला कि जैसा सोचा था, कंपनी वैसी चल रही है या नहीं। इन शेयरों को निजी लक्ष्य पूरा होने पर ही बेचना चाहिए। जैसे, आपने कोई शेयर पूरी तरह से देखभाल कर अपनी बेटी की शादी या रिटायरमेंट के लिए खरीदा है तो उसे उसी समय छेड़ना चाहिए। मोटे तौर पर ए ग्रुप के शेयरों या इंडेक्स फंड वगैरह को ही लांग टर्म या लंबे निवेश के लिए रखना चाहिए। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि आज के अनिश्चित हालात में लांग टर्म एक छलावा है। यह अपने निवेश को वाजिब ध्यान व समय न देने पाने का एक बहाना है। इसलिए लांग टर्म को छोड़कर लक्ष्य पूरा होते ही निकल लेना चाहिए। जैसे, मान लीजिए कि मैंने 10,000-10,000 रुपए करके शेयरों में इसलिए निवेश किया ताकि आगे मकान की 16,000 रुपए की किश्तें दे सकूं तो मेरे जो भी 10,000 रुपए जब भी 16,000 के आसपास पहुंचे, मुझे उसे बेचकर पैसे निकाल लेने चाहिए, भले वह शेयर कितना भी तोप-तमंचा क्यों न हो। हां, जल्दी-जल्दी बेचने में दिक्कत यह होती है कि साल भर के भीतर शेयर को बेच देने पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है। वैसे तो प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) लागू होने के बाद यह स्थिति बदल सकती है। लेकिन सरकार को फिलहाल यह करना चाहिए कि शेयरों में दो लाख रुपए तक के निवेश को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स से मुक्त कर देना चाहिए। इससे हम-आप जैसे रिटेल निवेशकों को बाजार का मीठा स्वाद चखने का मौका मिलेगा और हम ज्यादा उत्साह से पूंजी बाजार में वापसी कर सकते हैं। सरकार व बाजार के लोग भी यही चाहते हैं !
इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।। !! दुर्भावना रहित सत्य का प्रचार :लेख के तथ्य संदर्भित पुस्तकों और कई वेब साइटों पर आधारित हैं!! Contact No..7089898907
मंगलवार, 13 दिसंबर 2011
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