बुधवार, 18 जनवरी 2023

कौन है राधिका पंडिताइन...?

जरूर पढ़िए कौन है... 
राधिका पंडिताइन...?
95 साल की उम्र की राधिका पंडिताइन 2004 में गुमनाम मौत मर गयीं.जमीन जायजाद जाने कब की रिश्तेदार हड़प चुके थे और मायका जवानी में मुंह मोड़ चुका था..।
70 साल लम्बी जिंदगी उन्होंने अकेले काट दी अपने स्वर्गीय पति की गर्वित यादों के साथ...
क्यों कि यही उनकी इकलौती पूंजी थी..।

और ये पूंजी उन्हें भारत की सबसे समृद्ध महिला बनाती थी...

क्यों कि राधिका देवी गुमनाम होकर भी भारत की वो बेटी थी जिनका पूरा देश कर्जदार था.. रहेगा ।

वो महज़ 14 साल की बच्ची ही थी जब विवाह आज़ के वैशाली जिले के एक समृद्ध किसान परिवार में कर दिया गया.... पति के तौर पर मिले बैकुंठ शुक्ल. उनसे तीन साल बड़े..।
अब गौना हो ससुराल पहुंची तब तक बैकुंठ बाबू तो अलग राह चल पड़े थे.देश को आज़ाद कराने..।
घर परिवार बैकुंठ बाबू के साथ न था सो घर छोड़ दिया पर राधिका को तो समझ ही न थी इन बातों की सीधी सरल घरेलू लड़की जिसकी दुनियाँ घर का आंगन भर थी.पति के साथ हो ली..।

राधिका को चम्पारण के गाँधी आश्रम में छोड़ बैकुंठ बाबू अपने काम में जुट गए तो आश्रम में रह देश और आज़ादी के मायने समझ राधिका भी उस लड़ाई का हिस्सा हो ली. ।

बैकुंठ शुक्ल को एक चीज खटकती थी...।
जिस  फणिन्द्र नाथ घोष की गद्दारी ने भगत सिंह,राजगुरु, सुखदेव को फाँसी दिलवाई वो आराम से बेतिया के मीना बाजार में सेठ बन जी रहा था..।
सरकारी इनाम से खोली दुकान और गोरी सरकार की दी सुरक्षा में वो बेतिया का प्रतिष्ठित व्यक्ति था..
न किसी ने उसके कारोबार का बहिष्कार किया न उसका सामाजिक बहिष्कार हुआ....
लोग आराम से इस गद्दार को सर आँखों पर रखे थे..... भले आज हम भगत सिंह के कितने भी गीत गाएं तब की सच्चाई यही थी हमारी...

9 नवंबर 1932 को फणिन्द्र नाथ अपनी दुकान पर अपने मित्र गणेश प्रसाद गुप्ता के साथ बैठा था..... तभी वहाँ बैकुंठ शुक्ल और चन्द्रमा_सिंह पहुँचे.... उन्होंने अपनी साइकिल खड़ी की और ओढ़ रखी चादर निकाल फैकी.... कोई कुछ समझता तब तक बैकुंठ शुक्ल के गंडासे के प्रहार फणिन्द्र नाथ और गणेश गुप्ता को उनके ही खून से नहला चुके थे ... सुरक्षा में मिले सिपाही ये देख भाग खड़े हुए....

वे दौनो निकल गए..... और सोनपुर में साथी रामबिनोद सिंह के घर पहुँचे जो भगत सिंह के भी साथी थे.... वहाँ तय हुआ के कपडे और साइकिल के चलते पकडे ही जायेंगे तो बेहतर है एक ही फाँसी चढ़े और ये जिम्मा भी बैकुंठ शुक्ल ने अपने सर ले लिया....

बैकुंठ छिपे नहीं आराम से चौड़े हो बाजार घूमते और थाने का चक्कर भी लगा आते.... उधर राधिका देवी को भी पति के किये की खबर थी
और उन्हें पति के किये पर गर्व था....

बैकुंठ बाबू पकडे गए और अंग्रेजी कोर्ट ने मृत्युदण्ड दिया.... उन्होंने पूरा अपराध अपने सर लिया.... जेल में बैकुंठ जम के कसरत करते और
हर साथी को बिस्मिल का गीत सरफ़रोशी की तमन्ना सुनाते.... रत्ती भर भय न था मृत्यु का फाँसी के लिए लेजाते समय भी वे एकदम हँसते मज़ाक करते ही गए और सर पर काला कपड़ा पहनने से मना कर दिया... उनका वजन जेल में रह बढ़ गया था और इसके लिए उन्होंने गया जेल के गोरे जेलर को धन्यवाद दिया.... रस्सी गले में डलने के बाद भी बैकुंठ ने अपने ही अंदाज़ में जल्लाद को कहा "भाई तू क्यों परेशान है खींच न.... तेरा काम कर"

14 मई 1934 को बैकुंठ 27 साल कि उम्र में फाँसी चढ़ गए... खुद जेल के अधिकारी अपने संस्मरण में लिखे के ऐसा जियाला उन्होंने कभी न देखा.... जिसने मौत को यूँ आँखों में आंख डाल गले लगाया हो...
पर बैकुंठ शुक्ल को भी एक अफ़सोस था.... पत्नी राधिका देवी के प्रति कर्तव्य पालन न कर पाने का.. इसी लिए फाँसी से एक दिन पूर्व साथी क्रन्तिकारी विभूति भूषण दास से उन्होंने कहा था
देश जब आज़ाद हो जाये आप बाल विवाह की रीत बंद करवा देना.... इसके लिए लड़ाई लड़ना

खैर बैकुंठ शुक्ल देश पर बलिदान हुए और भुला दिए गए..... पत्नी राधिका को भला कौन याद रखता.... लेकिन आश्रम में मिले नाम राधिका पंडिताइन और बैकुंठ बाबू की स्मृतियों के साथ उन्होंने एक लम्बा जीवन काटा..... अकेले.... गुमनाम.... और 2004 में उनकी मृत्यु भी कहीं कोई खबर न बनी....

बैकुंठ शुक्ल के गाँव वैशाली के जलालपुर में आज भी एक खंडहर नुमा उनका मकान जिसे गाँववाले कूड़ा डालने के स्थान के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.गाँव के लोग तक नहीं जानते कोई बैकुंठ शुक्ल इस घर में जन्मे थे..।
साभार Ajai Singh जी फेसबुक से ।
#NSB

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

कबीर महिला विरोधी थे क्या ??


दोहे पर चर्चा हो रही है तो फिर हर उस दोहे की चर्चा हो जो स्त्री विरोध में लिखे-कहे गए हैं। आप तुलसीदास पर चर्चा करते हैं फिर कबीर की क्यों नहीं करते? क्या कभी कबीर ने स्त्री विरोध में कुछ नहीं कहा है? यदि तुलसीदास स्त्री विरोधी हैं तो फिर कबीर स्त्री विरोधी कैसे नहीं हैं? पांच सौ साल पुराने किसी दोहे को लेकर उसे आधुनिक युग में बहस का मुद्दा बनाते हैं तो फिर कबीर कैसे अछूते रह जाते हैं?

‘नारी की झांई पड़त, अंधा होत भुजंग
कबिरा तिन की कौन गति, जो नित नारी को संग’

नारी की छाया पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है, फिर सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है?

'कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत
केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।'

नारी से प्रेम के कारण अनेक लोग बरबाद हो गये और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जायेंगे।

'कबीर मन मिरतक भया, इंद्री अपने हाथ
तो भी कबहु ना किजिये, कनक कामिनि साथ।'

यदि आपकी इच्छाएं मर चुकी हैं और आपकी विषय भोग की इन्द्रियां भी आपके हाथ में हैं, तो भी आप धन और नारी की चाहत न करें।

'कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद
इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूं मैं बंद।'

कलियुग में जो धन और स्त्री के मोह में नहीं फंसा है, भगवान उसके हृदय से बंधे हुये हैं
क्योंकि ये दोनों माया मोह के बड़े फंदे हैं।

'कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार
हरि सनेही उबरै, विषयी खाये झार।'

स्त्री काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु हरि का प्रेमी व्यक्ति उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी लोभी लोगों को खोज-खोज कर काटती है।

'कामिनि सुन्दर सर्पिनी, जो छेरै तिहि खाये
जो हरि चरनन राखिया, तिनके निकट ना जाये।'

नारी एक सुन्दर सर्पिणी की भांति है। उसे जो छेड़ता है उसे वह खा जाती है। पर जो हरि के चरणों मे रमा है उसके नजदीक भी वह नहीं जाती है।

नारी कहुँ की नाहरी, नख सिख से येह खाये
जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।

इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पूंछ तक खा जाती है। पानी में डूबने वाला बच सकता है पर विषय भोग में डूबने वाला संसार सागर में बह जाता है।

छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल
बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।

स्त्री छोटी बड़ी सब जहर की लता है।
दुश्मन दाव चाल से मारता है पर स्त्री हंसी खेल से मार देती है।

सोमवार, 16 जनवरी 2023

मकर संक्रांति की तारीख क्यों बदलती है ?

मकर सक्रांति की बदलती तारीख को लेकर समाज में बड़ा भ्रम रहता है। मैं इस पहलूँ से जुड़े तकनीकी पक्ष को थोड़ा डिटेल और आसान भाषा में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद है, इसके बाद वस्तुस्थिति एकदम स्पष्ट हो जाएगी। 
.
सबसे पहले बात उत्तरायण की। 21 जून को देखिए कि आसमान में सूर्य किस जगह उदित होता है। उसके बाद रोज सुबह उठकर यह कार्य दोहराइए। आप पाएंगे कि सूर्य आसमान में... अपनी उदय की पूर्वस्थिति के.... थोड़ा दक्षिण में उदित होता है। यह सूर्य की दक्षिणायन गति कहलाती है। जो 21 जून से 21 दिसंबर तक रहती है। 
.
21 दिसंबर तक सूर्य आसमान में दक्षिणतम स्थिति पर पहुंच चुका होता है। अब इस तारीख से सूर्य वापस उत्तर की ओर उदित होना शुरू कर देता है। इसलिए 21-22 दिसंबर से सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश माना जाता है, और 21 जून तक सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर उदित होता है। इस तरह सूर्य 6 महीना उत्तरायण और 6 महीना दक्षिणायन में व्यतीत करता है। इस उत्तर-दक्षिण गति का राशि-फाशी से कुछ लेना-देना नहीं। सूर्य का उत्तरायण 21 दिसंबर को पहले ही हो चुका है। अब आते हैं, राशि पर...
.
आपके चारों तरफ आसमान एक वृत के समान है। वृत्त की परिधि होती है 360 डिग्री। परिधि को 12 हिस्सों में बांटिए। यानी, अब आसमान में 30-30 डिग्री के 12 पैच आपके सामने हैं। इन पैच को ही जोडिएक या राशि कहते हैं। अब सूर्य किस राशि में कब है, यह कैसे पता चलेगा क्योंकि सूर्य के क्षितिज में रहते हुए तो कोई सितारा देखना संभव है नहीं?
इसका भी सिंपल लॉजिक है। आसमान को देखिए, नोट करिए कि सूर्यास्त के बाद कौन सी राशि आसमान में उदित हुई और सूर्योदय से पूर्व कौन सी राशि क्षितिज पर सूर्य के करीब थी। सूर्य उन दोनों राशियों के मध्य होगा। अर्थात अगर अस्त होने वाली राशि सिंह है और उदित होने वाली राशि मिथुन... तो सूर्य इन दो राशियों के मध्य विचरण कर रहा है, अर्थात कर्क !!!
So far... So good? Let's move ahead. 
.
अब एक घूमते लट्टू के बारे में सोचिए। जब लट्टू लड़खड़ा कर गिरने वाला होता है, तो गिरने से पूर्व, घूमने के साथ-साथ, वो शराबी माफिक अपने अक्ष के लंबवत गोल-गोल लहराता है। इस लहराव को हिंदी में पुरस्सरण और अंग्रेजी में Precession कहते हैं। हमारी पृथ्वी भी अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ कुछ इसी तरह लहरा रही है।
.
अब मान लीजिए कि मैं और आप, एक-दूसरे के सामने एक सीधी रेखा में बैठे हैं। अचानक मैं अपनी पूर्वस्थिति से थोड़ा लेफ्ट में झुक जाऊं, तो मेरी नाक की सीधी रेखा से आपकी पोजीशन के कोण में थोड़ी तब्दीली आएगी न? बिल्कुल आएगी। पृथ्वी भी जब लहराती है, तो आसमान में मौजूद राशियां अपनी पूर्वस्थिति से थोड़ा खिसकी हुई प्रतीत होती हैं । फिलहाल राशियों की पोजीशन में बदलाव लगभग 72 साल में एक डिग्री का है। इस कारण सूर्य का किसी भी राशि में प्रवेशकाल हर साल थोड़ा-थोड़ा खिसकता जाता है। 1737 साल पहले सूर्य उत्तरायण और मकर राशि में प्रवेश एक ही साथ करता था। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में दोनों घटनाओं की एक ही तारीख बताई गई है। वक़्त बीता... उत्तरायण की वही डेट है, पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की तारीख 23-24 दिन आगे खिसक चुकी है। आगे भी हर 72 साल में एक दिन आगे खिसकती रहेगी। इसमें कोई विशेष बात नहीं। ऐसे ही तारीखें खिसकते-खिसकते लगभग 25920 साल बीतने के बाद पृथ्वी पूर्व स्थिति में वापिस आएगी और एक बार फिर, उत्तरायण और मकर में सूर्य का प्रवेश एक साथ 21 दिसंबर को होगा। 
.
सूर्य की स्थिति में परिवर्तन की गणना को अयनांश कहते हैं। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों को सैकड़ों साल पहले इस विसंगति का एहसास हो गया था। आर्यभट से लेकर वराहमिहिर तक और भास्कर से लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों तक, सभी ने अपने-अपने हिसाब से अयनांश की गणना की है। प्राचीनकाल में वराहमिहिर की गणना सबसे सटीक थी। आधुनिक काल में हम लाहिरी कृत अयनांश का उपयोग करते हैं। 
.
यहां रोचक बात यह है कि पश्चिमी एस्ट्रोलॉजी में आज तक अयनांश वाला सिस्टम है ही नहीं। वे आज तक 2000 साल पुराना सिस्टम ही ढो रहे हैं। अर्थात, पश्चिम के विद्वान आज भी 25 दिसंबर को पैदा हुए बालक की राशि मकर ही बताते हैं, जबकि वास्तव में उस समय सूर्य धनु राशि में होता है।
.
भारत मेधाओं की भूमि रहा है। अगर वाकई में प्राचीन भारत की उपलब्धियों पर गर्व करना है तो गर्व आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कर जैसे विद्वानों पर करिए, जिन्होंने अथक परिश्रम से निरंतर आसमान को तकते हुए हमें ब्रह्मांड के पिंडों की सटीक व्याख्या प्रदान की। 
.
उन सभी प्राचीन मेधाओं को नमन और आप सभी को मकर सक्रांति की शुभकामनाएं। 
.
मूल लेखक...विजय सिंह ठाकुराय (फेसबुक)

शनिवार, 14 जनवरी 2023

क्या है ब्रह्माकुमारी संस्था ?

'ओम् शान्ति', 'ब्रह्माकुमारी'... हम लोगों ने छोटे-बड़े शहरों में आते-जाते एक साइन बोर्ड लिखा हुआ देखा होगा 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' तथा मकान के ऊपर एक लाल-पीले रंग का झंडा लगा हुआ भी देखा होगा, जिसमें अंडाकार प्रकाश निकलता हुआ चित्र अंकित होता है। इस केन्द्र में व आसपास ईसाई ननों की तरह सफेद साड़ियों में नवयुवतियाँ दिखती हैं। वे सीने पर 'ओम् शान्ति' लिखा अंडाकार चित्र युक्त बिल्ला लगाये हुए मंडराती मिलेंगी। आप विश्वविद्यालय नाम से यह नहीं समझना कि वहाँ कोई छात्र-छात्राओं का विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा केन्द्र है, अपितु यह सनातन धर्म के विरुद्ध सुसंगठित ढ़ंग से विश्वस्तर पर चलाया जाने वाला अड्डा है ।


स्थापना:  इस संस्था का संस्थापक लेखराज खूबचंद कृपलानी था । इसने अपने जन्म-स्थान सिन्ध (पाकिस्तान) में दुष्चरित्रता व अनैतिकता का घोर ताण्डव किया, जिससे जनता में इसके प्रति काफी आक्रोश फैला। तब यह सिन्ध छोड़कर सन 1938 में कराची भाग गया। इसने वहाँ भी अपना कुकृत्य चालू रखा, जिससे जनता का आक्रोश आसमान पर चढ़ गया। इस दुश्चरित्रता व धूर्तता का बादशाह लेखराज अप्रैल सन् 1950 में कराची से 150 सुंदर नवयुवतियों को साथ लाकर माउण्ट आबू (राजस्थान) की पहाड़ी पर रहने लगा और यहीं अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा ।


सिन्ध में लेखराज की चलने वाली ओम मंडली की जगह माउण्ट आबू में 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' नामक संस्था चालू की गयी। इस संस्था का यहाँ तथाकथित मुख्यालय बनाया गया है, जो 28 एकड़ जमीन में बसा है। आबू पर्वत से नीचे उतरने पर आबू रोड में ही इस संस्था से जुड़े लोगों के रहने, खाने व आने वालों आदि के लिये भवन, हॉल इत्यादि हैं, जो कि 70 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है। 


संचालन : लेखराज की मृत्यु के बाद सन् 1970 में ब्रह्माकुमारी संस्था का एक विशेष कार्यालय लंदन (इंग्लैंड) में खोला गया और पश्चिमी देशों में जोर-शोर से इसका प्रचार किया जाने लगा। सन् 1980 में ब्रह्माकुमारी संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का एन.जी.ओ. बनाया गया। ब्रह्माकुमारी संस्था का स्थाई कार्यालय अमेरिका के न्युयार्क शहर में बनाया गया है, जहाँ से इसका संचालन किया जाता है। इसकी भारत सहित 100 देशों में 8,500 से अधिक शाखाएँ हैं। कथित रूप से इस संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' द्वारा फंड, कार्य योजना व पुरस्कार दिया जाता है । 


कार्य व उद्देश्य : ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय। ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है। लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है। लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है। (1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान (2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल


प्रचार-प्रसार : इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण (मुरली) हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमार' कहा जाता है, परन्तुु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमारी' कहते हैं ।


ईसाईयत का नया रुप- ब्रह्माकुमारी ??

आजादी से पूर्व ईसाईयों की एक बड़ी टीम, जिसमें मैक्समूलर (सन् 1823-1900), अर्थर एथोनी मैक्डोनल (सन् 1854-1930), मौनियर विलियम्स, जोन्स, वारेन हेस्टिंग्ज, वैब, विल्सन, विंटर्निट्स, मैकाले, मिल, फ्लीट बुहलर आदि शामिल थे, इन लोगों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़, सनातन धर्म के शास्त्रों का विकृतीकरण, हिन्दू-धर्म के प्रति अनास्था पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसी परंपरा को ब्रह्माकुमारी संस्था आगे बढ़ा रही है। 


ब्रह्माकुमारी संस्था के साहित्य विभाग की पूरी टीम द्वारा सनातन धर्म को विकृत करने वाले 100 से अधिक साहित्य, जैसे गीता का सत्य-सार, ज्ञान-माला, ज्ञान-निधि, भारत के त्यौहार आदि बनाये व छापे गये। ब्रह्माकुमारी संस्था को ईसाईयत का नया रुप दिया गया है, जो पश्चिम से बिल्कुल भिन्न है, लेकिन मूल रूप में वही है। यह संस्था भारत के खिलाफ बहुत-बड़े गुप्त मिशन पर काम कर रही है। 25 अगस्त 1856 को मैक्समूलर द्वारा बुनसन को लिखे पत्र से ईसाईयत के नये रूप की स्वयंसिद्धि हो जाती है:


''भारत में जो कुछ भी विचार जन्म लेता है शीघ्र ही वह सारे एशिया में फैल जाता है और कहीं भी दूसरी जगह ईसाईयत की महान शक्ति अधिक शान से नहीं समझी जा सकती, जितनी कि दुनिया इसे (ईसाईयत को) दुबारा उसी भूमी पर पनपती देखे, पर पश्चिम से बिल्कुल भिन्न प्रकार से, लेकिन फिर भी मूल रूप वही हो।''


कई वर्षो से  देश-विदेश में लोग ईसाईयत को छोड़ रहे हैं, चर्च बिक रहे हेैं। ब्रह्माकुमारी संस्था के नाम पर हर जगह अपनी नई जमात खड़ी करने व हिन्दुत्व को मिटाने का यह गुप्त मिशन चलाया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेशों से धन लगाया जा रहा है।


ब्रह्माकुमारी द्वारा हिन्दुत्व को मिटाने का खुला षड्यंत्र :

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजस्थान से प्रकाशित 'भारत के त्यौहार' भाग -1, भाग-2 में वर्णित..


शिवरात्रि : प्रजापिता ब्रह्मा लेखराज ने कल्प के अंत मे अवतरित होकर तमोगुण, दुःख अशान्ति को हरा था। उसी की याद में शिवरात्रि मनायी जाती है। 

होली : कलियुग के अन्त में व सतयुग के शुरुआत में परमपिता ब्रह्मा लेखराज द्वारा सुख शान्ति के दिन शुरु किये गये थे। उसी की याद में होली मनाई जाती है। लकड़ी, गोबर के कंड़े जलाने से क्या होगा? देहातों में रोज जलते हैं। बहुत से शिष्ट लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति घृणा पैदा हो गई है। इनके मतानुसार शास्त्रों में झूठी, मनगढन्त कल्पनाएं हैं।

रक्षाबंधन : ब्रह्माकुमारी बहनें लेखराज के ज्ञान द्वारा ब्राह्मण पद पर आसीन होकर भाई को राखी बांधती है तथा बहन पवित्रत्रा के संकल्प की रक्षा करती है। रक्षाबंधन वास्तव में नारी के द्वारा नर की रक्षा का प्रतीक है, न कि नर द्वारा नारी की रक्षा का। इनके मतानुसार हिन्दू शास्त्रों में रक्षा बंधन विषयक उलटी, गड़बड़ कल्पनायें जड़कर रखी है। 

दीपावली : कलयुग के अन्त में परमपिता ब्रह्मा लेखराज ने पूर्व की भांति दुबारा इस धरा पर आकर सर्व आत्माओं की ज्योत जगाने के लिए अवतरित हुए हैं। लोग अपनी ज्योत जलाने की याद में दीपावली मनाते हैं। इनके मतानुसार शास्त्रकारों ने झूठी कल्पनाएं फैला रखी है। इसी कारण लोग मिट्टी का दीप जला कर खेल खेलते हैं।

नवरात्रि : लेखराज ने ब्रह्माकुमारियों को ज्ञान देकर दिव्य गुण रुपी शक्ति से सुसज्जित किया है। अन्तर्मुखता, सहनशीलता, आदि दिव्य शक्तियाँ ही इनकी अष्ट भुजायें हैं। इन्हीं शक्तियों के कारण ये आदि शक्ति अथवा शिव शक्ति बन गई हैं। ब्रह्माकुमारियां दुर्गा आदि शक्ति बनकर भारत के नर-नारियों को जगा रही हैं। इसी के याद में नवरात्रि मनाई जाती है। लोगों को ज्ञान देने की याद्गार में कलश स्थापना, जगाये जाने की स्मृति में जागरण करते है। लोग इन कन्याओं के महान कर्तव्य के कारण कन्या-पूजन करते हैं।

दशहरा : द्वापर युग (1250 वर्ष पूर्व) में आत्मा-रुपी सीता कंचन-मृग के आकर्षण में पड़कर माया रुपी रावण के चंगुल में फंसती है। उस समय से लेकर अब तक सारी सृष्टि शोक-वाटिका बन जाती है। ऐसे समय में परमात्मा लेखराज आकर ज्ञान के शस्त्र से माया रुपी रावण पर विजय दिलाते हैं तब सतयुगी राज्य की पुनर्स्थापना होती है। 5000 साल पहले भी परमात्मा लेखराज ने ऐसा किया था, अभी भी कर रहे हैं। मनुष्य रुपी राम ने भी इसी दिन दस विकार रुपी रावण पर विजय पायी थी तभी से दशहरा मनाते है। शास्त्रों में वर्णन काल्पनिक है। राम, रावण, बंदरो की सेना इत्यादि सब गप-शप व उपन्यास है।

ब्रह्माकुमारी संस्था की धूर्तता व पाखण्ड..

माउण्ट आबू में लेखराज अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा। अन्ततोगत्वा 18 जनवरी 1969 को हार्ट-अटैक से काल के गाल मेें समा गया। लेखराज ने सन् 1951 से सन् 1969 तक मृत्यु पर्यन्त जो कुछ मूर्खतापूर्ण बकवास सुनाया उसे 'ज्ञान मुरली' कहा जाता है। ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रतिदिन इन्हीं पाँच वर्ष की बकवास को पढ़ाया व सुनाया जाता है तथा हर पाँच वर्ष बाद दोहराया जाता है। लेखराज के जीवन काल से ही मुरलियों में फेरबदल होता आ रहा है। उसे टैप रिकार्ड में टैप करके भी रखा जाता था। लेखराज की मृत्यु के बाद सारी रिकार्ड की गयी कैसटों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। काट-छाँट की हुई 2 या 4 कैसटें दिखावे के लिये रखी हैं। अब लेखराज की मृत्यु के बाद एक और झूठ व अंधविश्वास का पुलिंदा जोड़ा गया है कि गुलजार दीदी के शरीर में लेखराज व शिव बाबा आते हैं। 

ब्रह्माकुमारियों द्वारा लेखराज को ब्रह्मा बताकर उसका ध्यान करने को कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु व महादेव के संयुक्त चित्रों में ब्रह्मा के स्थान पर लेखराज का चित्र रखते हैं, लेखराज की पत्नी जसोदा को आदि देवी सरस्वती बताकर इनका चित्र भी लेखराज के साथ रखते हैं। ईश्वर के विषय में इस मत की पुस्तकों में ऊटपटांग, अप्रमाणित, सनातन धर्म-विरोधी वर्णन मिलता है ।

ब्रह्माकुमारी के संस्थापक लेखराज के काले कारनामे...


हैदराबाद (सिन्ध) पाकिस्तान 15 दिसम्बर 1876 में जन्मा लेखराज अपनी अधेड़ उम्र तक कलकत्ते में हीरे का व्यापार करता रहा। उसने दस लाख रुपये कमाये जो उस जमाने में काफी अधिक राशि थी। हीरा का धन्धा बन्द कर एक बंगाली बाबा को दस हजार रुपये देकर सम्मोहन, कालाजादू आदि तंत्र-मंत्र सीखा। सन् 1932 से इसने खुद के समाज में मनगढ़न्त भाषण शुरु किया तथा 'ओम मंडली' नामक संगठन बनाया। सन् 1938 तक इसने 300 सहयोगी बना लिये। इसके रिश्तेदार जमात बढ़ाने के लिये प्रचारित करने लगे कि दादा लेखराज के शरीर में शिवजी प्रवेश करके ज्ञान सुनाते हैं।


मायावी लेखराज की पापलीला ...


लेखराज हैदराबाद में जहां रहता था उसे उसने आश्रम नाम दे दिया, जिससे वहाँ महिलाओं  का आना-जाना शुरु हो गया। लेखराज ने महिलाओं को उनके पति और परिवारों को छोड़ने के लिये उत्साहित किया। महिलाएं अपने पति व घर-परिवार को छोड़ने लगीं तब सिन्धी समाज भड़क गया । ब्रह्माकुमारियों को उनके परिवार वालों ने अच्छी तरह पीटा । राजनैतिक पार्टियों व आर्य समाज जैसे संगठनों के हस्तक्षेप से लेखराज के जादू-टोना और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ। सम्मोहन की कला के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करके एक विकृत पंथ बनाने की बात पायी गयी।


18 जनवरी सन् 1939 मेें 12 और 13 साल की दो लड़कियों की माताओं ने कराची के ऍडिशनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में ओम मंडली के खिलाफ एक याचिका दायर की। महिलाओं की शिकायत थी कि उनकी बेटियों को गलत तरीके से उनकी मरजी के बिना ओम मंडली ने कराची में अपने पास रखा है। अदालत ने लड़कियों को उनकी माताओं के साथ भेजने का आदेश दिया।


लेखराज का पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही .....

सिन्ध में ओम मंडली ने भयंकर पाखण्ड किया। लोगों की जवान बहन, बेटियों व पत्नियों को लेखराज अपनी गोद में बिठाने लगा। लेखराज का जवान-जवान लड़कियों के साथ सोना, बैठना, साथ में नहाना आदि देखकर जनता में काफी आक्रोश व ओम मंडली के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुआ। उस समय सिन्ध में लेखराज की अनैतिक कारनामों के कारण धार्मिक जनता में बड़ी खलबली मच गई थी। इसके विरुद्ध भाई बंध मंडली के प्रमुख मुखी मेघाराम, साधु श्री टी. एल. वास्वानी आदि लोक-सेवकों ने धरना दिया। ओम मंडली में गयी सैकड़ों लड़कियों को छुड़ाकर उनके घरवालों तक पहुँचाया गया। सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने विरोध-प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया था।


सन् 1939 में ओम मंडली के विरुद्ध धरना....


मई 1939 में सिन्ध सरकार ने सन् 1908 के आपराधिक

कानून संशोधन अधिनियम का इस्तेमाल कर ओम मंडली को गैर कानूनी संगठन घोषित किया। ओम मंडली को बंद करने व अपने परिसर को खाली करने का आदेश पारित किया गया।

लेखराज विरोध और कानून से बचने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ कराची भाग गया। वहाँ ओम निवास नाम से उसने एक हाईटेक अड्डा (भवन) बनाया। कराची में कुछ समय बाद ओम मंडली में लेखराज व गुरु बंगाली के दो विभाग हुए। ओम राधे सहित तमाम महिलाओं के साथ लेखराज हैदराबाद से माउण्ट आबू भाग आया और यहाँ अपना पाखण्ड शुरु किया। लेखराज की जवान लड़की 'पुट्टू' एक गैरबिरादरी वाले अध्यापक 'बोधराज' को लेकर भाग गयी और उससे शादी भी कर लिया।

लेखराज के बाद दूसरा शिव बना वीरेन्द्र देव दीक्षित...

वीरेन्द्र देव दीक्षित ब्रह्माकुमारी संस्था माउण्ट आबू से लेखराज का ज्ञान सीखा और अहमदाबाद में रहकर इस पाखण्ड का प्रचार-प्रसार करने लगा। यहाँ बहुत समय बाद वीरेन्द्र खुद को शंकर सिद्ध करने लगा। इसके लिये वह खुद की मुरली (जिसे वह नगाड़ा कहता था) सुनाने लगा। इसके तमाम अधार्मिक कुकृत्यों के लिये अहमदाबाद की जनता ने इसे खूब पीटा। अहमदाबाद से भाग कर वह पुष्पा माता के पास दिल्ली चला गया। इनके घर एक गरीब चपरासी की 9 साल की लड़की कमला दीक्षित रहती थी। वीरेन्द्र कमला के साथ बलात्कार करता रहा और उसे रोज कहता कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। पुष्पा माता का घर छोड़ दिल्ली में ही प्रेमकान्ता के घर चला गया। यहाँ प्रेमकान्ता का भी बलात्कार करता रहा और इसे भी कहा कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। वीरेन्द्र लोगों को कहता था कि मैं कामीकांता (कामी देवता) हूँ और मेरे पास 8 पटरानियाँ हैं। सन् 1973 से सन् 1976 तक तथाकथित शिव बनकर इन लड़कियों को पटरानी बनाकर सहवास करता रहा।

सन् 1976 में वीरेन्द्र ने एडवांस पार्टी नामक संगठन खड़ा किया तथा 'आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविघालय' चालू किया। सन् 1976 में उत्तर प्रदेश के कम्पिल गाँव (जिला फर्रुखाबाद) में एक आश्रम बनाया। वीरेन्द्र लोगों को कहने लगा कि लेखराज मेरे शरीर में आ गये हैं और मैं कृष्ण की आत्मा हूँ, इसलिए मुझे 16108 गोपियों की जरुरत है। आश्रम में आती जवान औरतों के साथ बलात्कार करना चालू किया। 

लेखराज की तरह वीरेन्द्र ने भी घोर अनैतिकता व पाखण्ड फैलाया, जिसके लिये फर्रुखाबाद की युवा शक्ति, मिसाइल फोर्स, रेड आर्मी आदि की महिला संगठनों ने इन कुकृत्यों के खिलाफ आन्दोलन किया। सन् 1998 में बलात्कार के केस में वीरेन्द्र व उसके साथियों को 6 महीने तक जेल में रहना पड़ा। इसी दौरान आयकर वालों ने इसके आश्रम में छापा मारकर 5 करोड़ रुपये जब्त किये। 

ब्रह्माकुमारी के पाखण्डी मतों का खण्डन .....

(1) ब्रह्माकुमारी मत- मैं इस कलियुगी सृष्टि रुपी वेश्यालय से निकालकर सतयुगी, पावन सृष्टि रुप शिवालय में ले जाने के लिये आया हूँ । (सा.पा.पेज 170)

खण्डन- लेखराज अगर इस सृष्टि को नरक व वेश्यालय मानता है तो इस वेश्यालय में रहने वाली सभी ब्रह्माकुमारियां भी साक्षात् वेश्यायें होनी चाहिए। क्या यह सत्य है? 

(2) ब्रह्माकुमारी मत- रामायण तो एक नॉवेल (उपन्यास) है, जिसमें 101 प्रतिशत मनोमय गप-शप डाल दी गई है। मुरली सं. 65 में लेखराज कहता है कि राम का इतिहास केवल काल्पनिक है। (घोर कलह -युग विनाश, पेज सं.15)

खण्डन- भूगर्भशास्त्रियों को अयोध्या, श्रीलंका आदि की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से तथा नासा का अन्वेषण समुद्र में श्रीरामसेतु का होना आदि रामायण को प्रमाणित करता है। पूरा हिन्दू इतिहास रामायण के प्रमाण से भरा हुआ है। इसे उपन्यास व गप-शप कहना और सनातन-धर्म पर अनर्गल बातें कहना ही वास्तव में गप्पाष्टक है, कमीनापन है।

(3) ब्रह्माकुमारी मत- जप, तप, तीर्थ, दान व शास्त्र अध्ययन इत्यादि से भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड और क्रियायों से किसी की सद्गति नहीं हो सकती। (सतयुग में स्वर्ग कैसे बने? पे. सं. 29)

खण्डन - यह बातें तथ्यों से परे, नासमझी से पूर्ण हैं। जप से संस्कार शुद्ध होते हैं। तप से मन के दोष मिटते हैं )। जहाँ संत रहते हैं उन तीर्थों में जाने से, उनके सत्संग से विचारों में पवित्रता व ज्ञान मिलता है। दान व परोपकार से पुण्य बढ़ता है। शुभ कर्म का शुभ फल मिलता है। शास्त्र अध्ययन से ज्ञान बढ़ता है, सन्मार्ग दर्शन मिलता है, विवेक, बुद्धि जागृत होती है। कर्मकाण्ड से मानव की प्रवृत्ति धर्म व परोपकार में लगी रहती है और इन सब बातों से जीवों का तथा स्वयं मानव का कल्याण होता है। ईन शुभ कर्मों की निंदा करना लेखराज एवं उसके सर्मथकों की मूर्खता प्रकट करता है। जो वेदों और शास्त्रों का विरोध करता है वह मनुष्य रुप में साक्षात असुर है।

(4) ब्रह्माकुमारी मत- श्रीकृष्ण ही श्री नारायण थे और वे द्वापरयुग में नहीं हुए, बल्कि पावन सृष्टि अर्थात् सतयुग में हुए थे। श्रीकृष्ण श्रीराम से पहले हुए थे। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ.सं.140,143)

खण्डन- भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद्गीता के अध्याय 10 के 31 वें श्लोक में कहा 'पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्' अर्थात् मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने श्रीराम का उदाहरण देकर श्रीराम को अपने से पूर्व होना घोषित किया है, दृष्टान्त सदैव अपने से पूर्व हुई अथवा वर्तमान बात का ही दिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि इस मत का संस्थापक लेखराज पूरा गप्पी, शेखचिल्ली था जिसने पूरी श्रीमदभगवद्गीता भी नहीं पढ़ी थी।

(5) ब्रह्माकुमारी मत- गीता ज्ञान परमपिता परमात्मा (लेखराज के मुख से) शिव ने दिया था। (सा.पा.पेज सं.144)

खण्डन - गीता को लेखराज द्वारा उत्पन्न बताना यह किसी तर्क व प्रमाण पर सिद्ध नहीं होता। इतिहास साक्षी है कि 5151 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था।

(6) ब्रह्माकुमारी मतः आत्मा रूपी ऐक्टर तो वही हैं, कोई नई आत्मायें तो बनती नहीं हैं, तो हर एक आत्मा ने जो इस कल्प में अपना पार्ट बजाया है अगले कल्प में भी वह वैसे ही बजायेगी, क्योंकि सभी आत्माओं का अपना जन्म-जन्मान्तर का पार्ट स्वयं आत्मा में ही भरा हुआ है । जैसे टेप रिकार्डर में अथवा ग्रामोफोन रिकार्डर में कोई नाटक या गीत भरा होता है, वैसे ही इस छोटी-सी ज्योति-बिन्दु रुप आत्मा में अपने जन्म-जन्मान्तर का पार्ट भरा हुआ है। यह कैसी रहस्य-युक्त बात है। छोटी-सी आत्मा में मिनट-मिनट का अनेक जन्मों का पार्ट भरा होना, यही तो कुदरत है। यह पार्ट हर 5000 वर्ष (एक कल्प) के बाद पुनरावृत्त होता है, क्योंकि हरेक युग की आयु बराबर है अर्थात् 1250 वर्ष है।  (सा.पा., पृ.सं. 86)

खण्डन- एक कल्प में एक हजार चतुर्युग होते हैं, इन एक हजार चतुर्युगों में चौदह मन्वन्तर होते हैं। एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युग होते हैं, प्रत्येक चतुर्युगी में चार युग (कलियुग 4,32,000 वर्ष, द्वापर 8,64,000 वर्ष, त्रेता 12,96,000 वर्ष एवं सतयुग 17,28,000 वर्ष के) होते हैं। 

हर पाँच हजार साल में कर्मो की हूबहू पुनरावृत्ति होती है, इसको सिद्ध करने के लिए ब्रह्माकुमारी के पास कोई तर्क या कोई भी शास्त्रीय प्रमाण नहीं है, सिर्फ और सिर्फ इनके पास लेखराज की गप्पाष्टक है जिसे मूर्ख व कुन्द बुद्धि वाले लोग ही सत्य मानते हैं। मानों यदि व्यक्ति की ज्यों की त्यों पुनरावृत्ति हो तो वह कर्म-बंधन व जन्म-मरण से कैसे मुक्त होगा?

(7) ब्रह्माकुमारी मत- परमात्मा तो सर्व आत्माओं का पिता है, वह सर्वव्यापक नहीं है।...भला बताइये कि अगर परमात्मा सर्वव्यापक है तो शरीर में से आत्मा निकल जाने पर परमात्मा तो रहता ही है तब उस शरीर में चेतना क्यों नहीं प्रतीत होती? मोहताज व्यक्ति, गधे, कुत्ते आदि में परमात्मा को व्यापक मानना तो परमात्मा की निन्दा करने के तुल्य है। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ. सं. 44, 55, 68)

खण्डन- ईश्वर सर्वव्यापक है क्योंकि जोे एक देश में रहता है वह सर्वान्तर्यामी, सर्वर्ज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का (होना) असम्भव है।

प्राण-अपान की जो कला है जिसके आश्रय में शरीर होता है। मरते समय शरीर के सब स्थानों को प्राण त्याग जाते हैं और मूर्छा से जड़ता आ जाती है। महाभूत, कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण, अविद्या, काम, कर्म के संघातरुप पुर्यष्टक शरीर को त्यागकर निर्वाण हो जाता है। शरीर अखंडित पड़ा रहता है, जिसमें सामान्य रूप से चेतन परमात्मा स्थित रहता है। कुन्द बुद्धि लोगों को यह समझना चाहिए कि एक बल्ब बुझा देने से पूरा पॉवर हाऊस बंद नहीं हो जाता।

लेखराज व उसके सर्मथकों ने सनातन धर्म की सनातन सत्यता पर आक्षेप करने के पूर्व विधिवत अध्ययन, श्रवण, मनन व निदिध्यासन कर लिया होता तो ऐसी धूर्तता व पाखण्ड भरी बातेें नहीं करते ।

वैदिक संस्कृति विश्व मानव संस्कृति....

विश्व की प्राचीनतम आर्य संस्कृति के अवशेष किसी न किसी रूप में मिले हैं। वैदिक काल से विश्व के प्रत्येक कोने में वैदिक आर्यों की पहुँच हुई और समस्त प्रकार का ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता उन्होंने ही विश्व को प्रदान की थी। नवीनतम खोज के अनुसार अमेरिका में रिचमण्ड से 70 किलोमीटर दूर केप्सहिल पर जो अवशेष पुरातत्व अन्वेषकों ने खोजे हैं, वह 17 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के हैं और उस समय विश्व में केवल आर्य संस्कृति ही विकसित थी तथा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। जर्मनी आदि के विश्वविद्यालय में चरकॉलोजी, इंडोलोजी आदि के नाम से वेदों की गुह्यतम विद्याओं पर अन्वेषण हो रहे हैं। विश्व के कोने-कोने में सनातन संस्कृति के अवशेष, प्रमाण मिले है।

ब्रह्माकुमारों के काले-कारनामे-

बलात्कार व जबरन गर्भपात....

छतरपुर, जिला भोपाल (म.प्र.) की एक 26 वर्षीय दलित महिला ने ब्रह्माकुमारीयों का अड्डा सिंगरौली और भोपाल में ब्रह्माकुमारों द्वारा बलात्कार करने तथा गर्भ ठहर जाने पर जबरन गर्भपात करा देने का आरोप लगाया। महिला ने बताया 17 साल की उम्र में तलाक होने के बाद 2001 में वह शांति पाने के लिए छतरपुर स्थित ब्रह्माकुमारी अड्डे में आयी जहां से उसे भोपाल भेज दिया गया। एस.पी. को लिखित शिकायती आवेदन में महिला ने कहा कि सिंगरौली और भोपाल के ब्रह्माकुमारीयों के अलग-अलग अड्डो में युवकों द्वारा बलात्कार किया गया। 

(देशबन्धु, 15 दिसम्बर 2013)


सेक्स व व्यभिचार का अड्डा बना ब्रह्माकुमारी ध्यान-योग केन्द्र....


पुलिस के मुताबिक 'ब्रह्माकुमारी ध्यान योग केन्द्र' ट्राँस यमुना कॉलोनी आगरा, व्यभिचार एवं अय्याशी का अड्डा है, न कि ध्यान केंद्र। केन्द्र पर रहने वाले हरि भाई से सेविका भारती के अवैध संबंध ऐसे थे। पूरा केंद्र ही व्यभिचार का अड्डा बना हुआ था। भारती चाहती थी कि हरिभाई उससे शादी कर ले लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इस पर भारती ने हरिभाई की पोल खोलने की धमकी दी। जब भारती को यह पता चला कि हरिभाई उसे सिर्फ मौजमस्ती का साधन समझता है तो वह काफी उत्तेजित हो उठी थी। उसने बड़ा हंगामा मचाया। इसी के बाद वकील की सलाह से उसे ठिकाने लगाने की योजना तैयार की गई। 27 दिसम्बर 2003 की रात को हरिभाई भारती के साथ जिस कमरे में हमबिस्तर होता था, उसी कमरे में भारती को बेहद क्रूर तरीके से और अत्यन्त रहस्यमय परिस्थितियों में जिंदा जलाकर मार दिया गया। उसकी लाश को उसी रात फरह (मथुरा) पुल के नीचे फेंक दिया गया।

(नवभारत टाइम्स 18 जनवरी 2004, पल-पल इडिया 14 दिसम्वर, 2013)

सर्वोच्च न्यायालय की दृष्टि में हिन्दुत्व .....

हिन्दुत्व भारतीय समाज की परम्परा, संस्कृति तथा विरासत की सामूहिक अभिव्यक्ति है। देवत्व, विश्वत्व तथा मनुष्यता का संयोग है हिन्दुत्व। हिन्दुत्व किसी के प्रति असहिष्णु का भाव नहीं रखता है, यह जीवन का एक मार्ग है।

जनता की आवाज:

वास्तव में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ना तो कोई विश्वविद्यालय है और ना ही कोई धर्म, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक झूठ, फरेब से काम करने वाला अधार्मिक एवं गैरकानूनी काम करने वाले लोगों का संगठन है। - डॉ. सुरेंद्रसिंह नेगी (अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल)

लेखराज की करतूतों को छुपाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया गया है। वह धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता और ना ही किसी धर्म का उसने कभी पालन किया है । - लोबो और कालुमल (न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय हैदराबाद)

ब्रह्माकुमारियों को साक्षात् विषकन्या समझना चाहिए। ये हिन्दू-सभ्यता, इतिहास, शास्त्र, धर्म एवं सदाचार सभी की शत्रु हैं। इनके अड्डे दुराचार प्रचार के केन्द्र होते हैं । - डा. श्रीराम आर्य (लेखक व महान विचारक)

ब्रह्माकुमारियाँ शब्दाडम्बर में हिन्दू जनता को फँसाने के लिए गीता का नाम लेकर अनेक प्रकार के भ्रम मूलक विचार बड़ी चालाकी से फैलाने का यत्न करती हैं। - श्री रामगोपाल शालवाले (लेखक व वरिष्ट आर्य समाजी) 

वेद व उपनिषदों पर विद्वानों के विचार.........

भारत वेदों का देश है। इनमें न केवल सम्पूर्ण जीवन के लिए धार्मिक विचार मौजूद हैं, बल्कि ऐसे तथ्य भी हैं जिनको विज्ञान ने सत्य प्रमाणित किया है। वेदों के सर्जकों को बिजली, रेडियम, इलेक्टॉनिक्स, हवाई जहाज, आदि सबकुछ का ज्ञान था। - एल्ला व्हीलर विलकॉक्स (अमेरिकी कवयित्री व पत्रकार)

पूरी दुनिया में उपनिषदों के ज्ञान जैसा लाभदायक और उन्नतिकारक और कोई अध्ययन नहीं है, यह मेरे जीवन का आश्वासन रहा है और यही मेरी मृत्यु पर भी आश्वासन रहेगा। यह उच्चतम विद्या की उपज है। - आर्थर सोपेनहर (जर्मनी के दार्शनिक व लेखक)

हम लोग भारतीयों के अत्यधिक ऋणी हैं जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बगैर कोई भी महत्वपूर्ण खोज संभव नहीं था । - अलवर्ट आईंस्टाईन (महान वैज्ञानिक) 

उपनिषदों की दार्शनिक धाराएँ न केवल भारत में, संभवतः सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। - पॉल डायसन

यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस, दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया। - मोनीयर विलियम्स

जब-जब मैंने वेदों के किसी भाग का पठन किया है, तब-तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है। वेदों के महान उपदेशों में सांप्रदायिकता की गंध भी नहीं है । यह सर्व युगों के लिए, सर्व स्थानों के लिए और सर्व राष्टों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है । - हेनरी डेविड थोरो

उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है । मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है । उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरुप में जगाना है । - बेनेडिफ्टीन फादर ली. सो.

विषघातक ब्रह्माकुमारियों से  सावधान......

सुन्दर, पढ़ी-लिखीं, श्वेत वस्त्रधारिणी नवयुवतीयाँ इस मत की प्रचारिका होती हैं। इनको ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म, सृष्टि-रचना, स्वर्ग, ब्रह्मलोक, मुक्ति आदि के विषय में काल्पनिक (जो शास्त्र-सम्मत नहीं है) बेतुकी सिद्धांत कण्ठस्थ करा दिए जाते हैं, जिसेे वे अपने अन्धभक्त चेले-चेलियों को सुना दिया करती हैं। इस मत की पुस्तकों में जो कुछ लिखा है उनका कोई आधार नहीं है। आध्यात्मिकता और भक्ति की आड़ में ये लोग सैक्स (व्यभिचार) की भावना से काम कर रहे हैं। इनके अड्डे जहां भी रहे हैं सर्वत्र जनता ने इनके चरित्रों पर आक्षेप किये हैं। अनेक नगरों में इनके दुराचारों के भण्डाफोड़ भी हो चुके हैं। 

ब्रह्माकुमारियों का नयनयोग ....

लेखराज द्वारा दृष्टिदान अर्थात् नयन योग (एक दूसरे के आखों में आखें डालकर त्राटक करना) शुरु किया गया था। अब वही नयन योग ब्रह्माकुमारियाँ करती हैं। अपने यहां आने वाले युवकों से आंख लड़ाती हैं काजल लगाकर। ब्रह्माकुमारीयों का पाखण्ड तेजी से फैल रहा है। ये प्रत्येक समाज के लिए विषघातक हैं। इनके अड्डेे धूर्तता, पाखण्ड, व्यभिचार प्रचार के केन्द्र हैं। सभी को चाहिए कि इन अड्डों पर अपनी बहू-बेटियों को न जाने दें।

और लड़को को अपने सुन्दर मोह जाल में फसाती है और हिन्दू धर्म से दूर करती है ।