‘ब्राह्मण’ आज के समय में एक ऐसा विषय हैं
जिनका वर्णन धरती के सबसे खतरनाक खलनायकों में से किया जाता है. ऐसे दौर
में जब पैसा ‘सुप्रीम गॉड’ बन चुका है और इज्जत-सम्मान सिर्फ उसी व्यक्ति
को मिलता है जिसके पास पैसा होता है. उस दौर में भी अगर कुछ लोग
कपोल-कल्पित इतिहास पर छाती पीटते हों और खुद को शोषित-पिछड़ा मानकर खुद की
बेहतरी के लिए कुछ करने के बजाय किसी दूसरे को गिराने में अपनी ऊर्जा खपा
रहे हों तो ऐसे में इसका पता लगाना बेहद आवश्यक हो जाता है कि, उन्हें
भटकाया किसने है और इसके पीछे उनकी मंशा क्या है.!
एंटी ब्राह्मण माहौल बनाने के लिए तथाकथित दलित-पिछड़े एवं नेताओं-पत्रकारों का ब्राह्मण विरोध तो मात्र एक मुखौटा भर है, ब्राह्मण विरोध के पीछे के मास्टरमाइंड कहीं और ही बैठे हैं. हर किसी को यह बात अवश्य समझ लेनी चाहिए, ये युग पैसे का है जिसके पास जितना पैसा है उसकी आवाज उतनी ही तेजी से सुनी जाती है. ऐसा ही कुछ एंटी ब्राह्मण माहौल बना रहे लोगों के साथ है जिन्हें भारत को तोड़ने का सपना देखने वाली ताकतें अकूत धन उपलब्ध करवाया करती हैं. यह समझने की आवश्यकता है, आखिर ब्राह्मणों ने ऐसी कौन सी गलतियाँ की थीं जिनके चलते आज उनके अस्तित्व को मिटाने की बातें हो रही हैं.!
इस दानवी व्यवस्था को बिचौलियों की व्यवस्था कहा जाय तो गलत नहीं होगा. आज हर एक कदम पर बिचौलिए हैं जिनसे पार पाए बिना जीना मुश्किल है. तथाकथित प्रगतिशीलत बनने और विज्ञान द्वारा चीजें आसान बनाने के नाम पर मानव जीवन को और भी जटिल बना दिया गया है. खाने-पानी से लेकर हवा और जमीन तक हर चीज पर बिचौलियों का कब्जा है. इंसान को कुछ भी प्राप्त करने के लिए पहले कहीं से कागज के टुकड़े जुटाने पड़ते हैं तभी वह कुछ प्राप्त कर सकता है. धरती पर राज करने का सपना देखने वाले कुछ ग्लोबल माफियाओं ने धरती पर ऐसा सिस्टम थोपा जिससे पूरा मानव जगत उनका गुलाम हो गया. समस्या यह नहीं है कि मानव जगत गुलाम है, समस्या यह है कि, इसका उन्हें आभास तक नहीं है. अब अगर इस दानवी व्यवस्था की राह में टाँगे अड़ाने वाला कोई बचा है तो वह है भारत का ब्राह्मण समुदाय. जो पिछले हजारों वर्षों से दानवों और उनकी व्यवस्था के खिलाफ ना ही मात्र लड़ता रहा है बल्कि लोगों को भी शिक्षित कर उनके खिलाफ खड़ा करता रहा है. इसीलिये आवश्यक है कि, पहले इन्हें खत्म किया जाय.!
जब दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग कबीलाई जीवन जीते थे और उनके जीवन का एक ही ध्येय पेट भरना और बच्चे पैदा करना था. तब ब्राह्मणों के नेर्तित्त्व में भारतीयों ने एक उच्चकोटि की सभ्यता विकसित कर ली थी. ना ही मात्र दुनिया की सबसे पहली पुस्तक ऋग्वेद भारत में लिखी गयी थी बल्कि सुश्रुत संहिता, चरक संहिता और पतंजलि योग सूत्र जैसी उच्च कोटि की पुस्तकें भारत में हजारों वर्षों पहले लिखी जा चुकी थीं. ब्राह्मणों का सृष्टि की शुरुआत से ही एक ही मिशन रहा था धरती को कैसे सभ्य समाज के रहने लायक एवं बेहतर से बेहतर बनाया जा सके. यही कारण था की उन्होंने सामाजिक जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए समाज में कई नियमों का निर्माण किया और उनका पालन समाज किस तरह करे इसके उपाय भी किये थे.!
ग्लोबल माफियाओं ने हर देश में सेंट्रल बैंक बनाकर धरती को अपनी करेंसी और मुद्रा प्रणाली द्वारा कंट्रोल कर लिया है. 20वीं सदी में उन्होंने हर देश से राजतंत्र जैसी प्राकृतिक व्यवस्था हटाने की शुरुआत की थी और सभी देशों पर जबरन शैतानी लोकतंत्र थोप दिया ताकि बिचौलियों के माध्यम से वो दुनिया पर शासन कर सकें. जो तानशाही से भी खतरनाक शासन प्रणाली है. तानाशाही और लोकतंत्र में सिर्फ इतना फर्क है कि, तानाशाही प्रत्यक्ष होती है और लोकतंत्र में तानाशाही चुनाव जीतने के बाद होती है. तानाशाही में जनता को कम से कम आभास होता है कि, वह तानाशाही झेल रही है लेकिन लोकतंत्र में उसे तमाम प्रोपोगंडाओं के माध्यम से उसे विश्वास दिलाया जाता है कि, वह एक बेहतर सिस्टम में जी रहे हैं जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं. ब्राह्मणों ने धरती के लिए जो सिस्टम बनाया था उनमें इन सब शोषणकारी चीजें कहीं नहीं थीं. चूँकि ब्राह्मणों की सलाह और देखरेख में ही भारत शासित होता था इसलिए आवश्यक है कि, उन्हें इतना बदनाम कर दिया जाय जिससे उन्हें शासन से दूर रखने में कोई समस्या ना आये.!
पश्चिमी लुटेरों के इतने जतन के बावजूद भी भारत पर उनका कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा. क्योंकि भारत में ब्राह्मण थे जो बेहद ही मोटी चमड़ी के होते हैं और थोड़े समय बाद पुनः भारतीयों को भारतीय ढाँचे में ढालने की कला में वो हजारों वर्षों से पारंगत रहे हैं. यही कारण था, इस बार ऐसा मिशन चलाया गया जिससे भारतीयों से ही ब्राह्मणों का खात्मा करवाया जा सके. ग्लोबल माफियाओं की इस व्यवस्था को अगर किसी से सबसे ज्यादा खतरा है तो ब्राह्मणों से इसलिए उन्होंने एक सोची-समझी साजिश के तहत ब्राह्मणों के विरुद्ध प्रोपोगेन्डा करना शुरू कर दिया. उन्होंने उन्हीं लोगों को ब्राह्मणों के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया जो भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख अंग थे.!
प्रोपोगंडा में बहुत ताकत होती है, यह किसी के भी सोच विचार बदलने का एक ताकतवर हथियार है. लगभग 150 वर्ष पूर्व ब्राह्मणों के विरुद्ध ग्लोबल माफियाओं द्वारा शुरू किया गया प्रोपोगंडा वर्तमान में एक मिशन सा बन चुका है. राजनीतिक पार्टियाँ के नेता व उनके समर्थक हों या फिर अमेरिका यूरोप में बैठे माफियाओं के चंदे पर पलने वाले एनजीओ या फिर भारत के कुंठाग्रस्त बुद्धिजीवियों से प्रभावित युवा लगभग हर तरफ से ब्राह्मणों के खिलाफ ऐसा भड़काऊ माहौल तैयार किया जा रहा है जैसे दोनों वर्ल्ड वॉर उन्हीं की वजह से हुए थे और हिटलर-स्टालिन-माओ, ब्रिटेन, अमेरिका ने दुनिया भर में जितने कत्लेआम किये सब ब्राह्मणों की वजह से ही किये थे. प्रोपोगंडा में बहुत ताकत होती है, यह किसी के भी सोच विचार बदलने का एक ताकतवर हथियार है.!अगर एक झूठ सौ बार बोला जाय तो वह सत्य सिद्ध हो जाता है
एंटी ब्राह्मण माहौल बनाने के लिए तथाकथित दलित-पिछड़े एवं नेताओं-पत्रकारों का ब्राह्मण विरोध तो मात्र एक मुखौटा भर है, ब्राह्मण विरोध के पीछे के मास्टरमाइंड कहीं और ही बैठे हैं. हर किसी को यह बात अवश्य समझ लेनी चाहिए, ये युग पैसे का है जिसके पास जितना पैसा है उसकी आवाज उतनी ही तेजी से सुनी जाती है. ऐसा ही कुछ एंटी ब्राह्मण माहौल बना रहे लोगों के साथ है जिन्हें भारत को तोड़ने का सपना देखने वाली ताकतें अकूत धन उपलब्ध करवाया करती हैं. यह समझने की आवश्यकता है, आखिर ब्राह्मणों ने ऐसी कौन सी गलतियाँ की थीं जिनके चलते आज उनके अस्तित्व को मिटाने की बातें हो रही हैं.!
समझते हैं उन कारणों के बारे में जिसके चलते कुछ ताकतें धरती से ब्राह्मणों का सफाया चाहती हैं :
ब्राह्मण और मानव जगत दोनों ही एक दूसरे के बिना अधूरे रहे हैं. ब्राह्मण शब्द का मानव जाति से वही संबंध है जो जल का प्रकृति से अर्थात एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती. ऐसा नहीं है कि, प्रकृति में सिर्फ जल ही सर्वश्रेष्ठ है या मानवों में सिर्फ ब्राह्मण ही सर्वश्रेष्ठ हैं. ना कोई नीचा है और ना कोई ऊंचा बल्कि सभी का अपना-अपना महत्त्व है.!ऋषियों और ब्राह्मणों द्वारा निर्मित भारतीय सभ्यता धरती की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता थी और भारतीयों द्वारा बनाई व्यवस्था धरती की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था. इसमें कोई राकेट साइंस नहीं था बल्कि इसे समझना उतना ही सरल है जितनी सरल हमारी ये सभ्यता थी. इस व्यवस्था में मनुष्य का जीवन कितनी आसानी से गुजर जाय इसपर जोर दिया जाता था. आज की कथित प्रगतिशील व्यवस्था में प्राणी जगत का क्या हाल है ये हर कोई जानता है. लोगों को अपने जीवन से घुटन सी होने लगी है, अपनी मूलभूत जरूरत की चीजें पाने के लिए लोग क्या क्या नहीं कर रहे. तथाकथित प्रगतिशील लोगों द्वारा धरती का कबाड़ा हो चुका है और अब मंगल ग्रह पर रहने के लिए प्लाट तलाशे जा रहे हैं.!प्राणी जीवन के दो द्वार हैं एक जीवन और एक मृत्यु, एक आदर्श सभ्यता वही है जो इसके बीच के मार्ग को सरल कर दे
इस दानवी व्यवस्था को बिचौलियों की व्यवस्था कहा जाय तो गलत नहीं होगा. आज हर एक कदम पर बिचौलिए हैं जिनसे पार पाए बिना जीना मुश्किल है. तथाकथित प्रगतिशीलत बनने और विज्ञान द्वारा चीजें आसान बनाने के नाम पर मानव जीवन को और भी जटिल बना दिया गया है. खाने-पानी से लेकर हवा और जमीन तक हर चीज पर बिचौलियों का कब्जा है. इंसान को कुछ भी प्राप्त करने के लिए पहले कहीं से कागज के टुकड़े जुटाने पड़ते हैं तभी वह कुछ प्राप्त कर सकता है. धरती पर राज करने का सपना देखने वाले कुछ ग्लोबल माफियाओं ने धरती पर ऐसा सिस्टम थोपा जिससे पूरा मानव जगत उनका गुलाम हो गया. समस्या यह नहीं है कि मानव जगत गुलाम है, समस्या यह है कि, इसका उन्हें आभास तक नहीं है. अब अगर इस दानवी व्यवस्था की राह में टाँगे अड़ाने वाला कोई बचा है तो वह है भारत का ब्राह्मण समुदाय. जो पिछले हजारों वर्षों से दानवों और उनकी व्यवस्था के खिलाफ ना ही मात्र लड़ता रहा है बल्कि लोगों को भी शिक्षित कर उनके खिलाफ खड़ा करता रहा है. इसीलिये आवश्यक है कि, पहले इन्हें खत्म किया जाय.!
शैतानी व्यवस्थाओं में सबसे बड़ा रोड़ा हैं ब्राह्मण
ब्राह्मण हजारों वर्षों से अध्यापक समुदाय (Teacher Community) रहा है, जिसका कार्य हमेशा से ही मानव समाज को सुशिक्षित करना, जागृत करना और उन्हें बेहतर बनाना रहा है वो भी बिना किसी से एक रुपया फीस मांगे. मानव-मूल्य क्या होते हैं, धरती पर हर एक प्राणी की कीमत क्या है ये ज्ञान ब्राह्मणों ने भारतीय समाज को दिया था. आज के समय में लोग अपने बच्चों को हजारों लाखों की फीस देकर पढ़ाते हैं फिर वही बच्चे अपने माँ बाप को लात मार देते हैं. सामाजिक जीवन जीने वाले भारतीयों को एकाकी सभ्यता में जीना सिखाया जा रहा है. भारतीयों ने जो आपसी विश्वास पर आधारित समाज और व्यवस्थाएं बनाई थीं आजकल वह आई कार्ड में सिमट के रह गयी है. ऐसा पहले पश्चिम में था अब वही कु-संस्कृति भारत में स्थापित हो गयी है. हैरानी होती है जानकर इसे मानव सभ्यता आजकल प्रगतिशील होना कहती है.!जब दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग कबीलाई जीवन जीते थे और उनके जीवन का एक ही ध्येय पेट भरना और बच्चे पैदा करना था. तब ब्राह्मणों के नेर्तित्त्व में भारतीयों ने एक उच्चकोटि की सभ्यता विकसित कर ली थी. ना ही मात्र दुनिया की सबसे पहली पुस्तक ऋग्वेद भारत में लिखी गयी थी बल्कि सुश्रुत संहिता, चरक संहिता और पतंजलि योग सूत्र जैसी उच्च कोटि की पुस्तकें भारत में हजारों वर्षों पहले लिखी जा चुकी थीं. ब्राह्मणों का सृष्टि की शुरुआत से ही एक ही मिशन रहा था धरती को कैसे सभ्य समाज के रहने लायक एवं बेहतर से बेहतर बनाया जा सके. यही कारण था की उन्होंने सामाजिक जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए समाज में कई नियमों का निर्माण किया और उनका पालन समाज किस तरह करे इसके उपाय भी किये थे.!
ब्राह्मणों को मिटाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में जो शैतानी सिस्टम दुनिया पर थोपा गया है और हर चीज बिकाऊ बना दी गयी है. ये सब ब्राह्मणिक ढाँचे में फिट नहीं बैठती हैं. ब्राह्मण ऐसी व्यवस्था के हमेशा से विरोधी रहे थे. चाहे वह छात्रों से पैसे वसूल कर उन्हें शिक्षा देना हो. बेड पर लेटे बीमार व्यक्ति से पैसे वसूलना हो. दूध-दही-अनाज और यहाँ तक कि, जल, मिटटी और हवा भी बेंचने का धंधा चल पड़ा है. न्याय व्यवस्था जैसी चीज को भी बिकाऊ बना दिया गया है. बिना पैसे और किसी बिचौलिए के न्याय तो दूर लोगों की सुनवाई भी नहीं हो सकती. मानव जीवन से जुड़ा हर एक पहलू आज पैसे पर जाकर अटकता है. आज इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि, इंसान पैसे कमाने के लिए पैदा होता है या अन्य प्राणियों की तरह जीने के लिए.!छात्र को विद्या देने के लिए और बीमार व्यक्ति से इलाज के लिए पैसे वसूलने से बड़ा अपराध धरती पर कोई और नहीं है, ये व्यवस्था ही धरती पर हर एक भ्रष्टाचार की जननी है
ग्लोबल माफियाओं ने हर देश में सेंट्रल बैंक बनाकर धरती को अपनी करेंसी और मुद्रा प्रणाली द्वारा कंट्रोल कर लिया है. 20वीं सदी में उन्होंने हर देश से राजतंत्र जैसी प्राकृतिक व्यवस्था हटाने की शुरुआत की थी और सभी देशों पर जबरन शैतानी लोकतंत्र थोप दिया ताकि बिचौलियों के माध्यम से वो दुनिया पर शासन कर सकें. जो तानशाही से भी खतरनाक शासन प्रणाली है. तानाशाही और लोकतंत्र में सिर्फ इतना फर्क है कि, तानाशाही प्रत्यक्ष होती है और लोकतंत्र में तानाशाही चुनाव जीतने के बाद होती है. तानाशाही में जनता को कम से कम आभास होता है कि, वह तानाशाही झेल रही है लेकिन लोकतंत्र में उसे तमाम प्रोपोगंडाओं के माध्यम से उसे विश्वास दिलाया जाता है कि, वह एक बेहतर सिस्टम में जी रहे हैं जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं. ब्राह्मणों ने धरती के लिए जो सिस्टम बनाया था उनमें इन सब शोषणकारी चीजें कहीं नहीं थीं. चूँकि ब्राह्मणों की सलाह और देखरेख में ही भारत शासित होता था इसलिए आवश्यक है कि, उन्हें इतना बदनाम कर दिया जाय जिससे उन्हें शासन से दूर रखने में कोई समस्या ना आये.!
राज-काज को लेकर एक पुरानी कहावत है जिसके अनुसार, अगर किसी राष्ट्र की राजव्यवस्था के बारे में जानना है तो आप वहां के राजा को नहीं बल्कि उस राजा के सलाहकारों को देखो
ब्राह्मणिक सामाजिक व्यवस्था में ठगों लुटेरों की कोई जगह नहीं
पश्चिम के सामाजिक जीवन में सिर्फ मनुष्यों की गिनती होती है किसी अन्य की नहीं जबकि भारत का सामजिक ढांचा मात्र मानव जीवन तक ही नहीं सीमित था बल्कि उसमें प्रकृति, पेड़-पशु-पक्षी एवं पूरा ब्रह्मांड आता था जिनके संरक्षण और सम्मान की बातें वेदों में भी लिखी हैं. ब्राह्मणों ने हर उस चीज के संरक्षण पर बल दिया जो कि, प्राकृतिक संतुलन और मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक थे.! पश्चिमी जगत हमेशा से ही ठग और लुटेरा समुदाय रहा है उन्हें जहाँ मौका मिला वहां उन्होंने लोगों को ठगा. रूस के लोग आज भी ब्रिटेन को ठग-लुटेरा और अंग्रेजी भाषा को चोर-लुटेरों की भाषा बोलते हैं. आज की समाज व्यवस्था कुछ ऐसी है लोग चाहे जितना बड़ा अपराध कर लें वह कभी सुधर नही सकते क्योंकि ये समाज व्यवस्था कुकर्मियों को सजा नहीं देती बल्कि उनका संरक्षण करती है. आजकल अपराधी युवाओं के आदर्श होते हैं. चोरों-लुटेरों और हत्यारों के भी गुरु होने लगे हैं. जबकि भारतीय समाज व्यवस्था कुछ ऐसी थी जहाँ अपराध तो दूर लोग इसके बारे में सोच भी नहीं सकते थे. यदि कोई सामाजिक नियम तोड़ता भी था तो उसे समाज ऐसा बहिष्कृत करता था जो ना जीने लायक होता था ना मरने लायक.!
आज ये देखना बेहद आश्चर्यजनक है, प्रकृति का दोहन करने वाले, धरती की हर
एक चीज को अपने उपभोग की वस्तु मानने वाले, मानव समाज को नस्लों में
बांटने वाले, मनुष्यों को इस धर्म उस धर्म में विभाजित करने वाले, धरती पर
बॉर्डर की रेखाएं खींचने वाले, वीजा पासपोर्ट जैसा वाहियात सिस्टम लगाकर
मानव समाज को एक राष्ट्रीयता में समेट देने वाले, न्याय व्यवस्था के नाम पर
बिचौलियों की व्यवस्था लादने वाले लोग अरबों रूपये की फंडिंग करके उन
ब्राह्मणों के विरुद्ध मिशन चलवा रहे हैं जिन्होंने मानव सभ्यता को आदर्श
तरीके से जीना सिखाया था.!
जब भी अन्याय और अधर्म बढ़ा है ब्राह्मण ना ही मात्र पूरे समाज को लेकर हमेशा उसके खिलाफ खड़े हुए हैं बल्कि उन्होंने समय-समय पर उसका सफाया भी किया है. इसलिए भविष्य में ऐसा फिर कभी ना होने पाए इसके लिए आवश्यक था कि, उनका सफाया कर दिया जाय. भारत ने कभी किसी सभ्यता पर हमला नहीं किया लेकिन दुनिया के हर एक कोने से आक्रमणकारी भारत पर हमला करते रहे लेकिन वो कभी भी इस सभ्यता को मिटा नहीं पाए. ग्लोबल माफियाओं के मजदूर ब्रिटिश जब भारत आये तब उन्होंने अनुभव किया कि, भारतीयों से युद्ध में पार पाना संभव नहीं है इसलिए उन्होंने छल-प्रपंच और भारतीयों को बांटने की नीति अपनाई जिससे वे लंबे समय तो इस महान राष्ट्र को लूट सकें. उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था, शासन व्यवस्था, समाज व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था को कंट्रोल करके भारत को छिन्न-भिन्न कर दिया जिससे भारतीय अपनी जड़ों से कट जाएँ.!एक पुरानी रणनीति रही है, आप अगर अपने विरोधी की बराबरी ना कर सको तो उसे बदनाम कर दो. इस तरह से ना ही मात्र आप उससे ऊपर आ जाओगे बल्कि अगले की विश्वसनीयता भी खत्म हो जायेगी....
पश्चिमी लुटेरों के इतने जतन के बावजूद भी भारत पर उनका कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा. क्योंकि भारत में ब्राह्मण थे जो बेहद ही मोटी चमड़ी के होते हैं और थोड़े समय बाद पुनः भारतीयों को भारतीय ढाँचे में ढालने की कला में वो हजारों वर्षों से पारंगत रहे हैं. यही कारण था, इस बार ऐसा मिशन चलाया गया जिससे भारतीयों से ही ब्राह्मणों का खात्मा करवाया जा सके. ग्लोबल माफियाओं की इस व्यवस्था को अगर किसी से सबसे ज्यादा खतरा है तो ब्राह्मणों से इसलिए उन्होंने एक सोची-समझी साजिश के तहत ब्राह्मणों के विरुद्ध प्रोपोगेन्डा करना शुरू कर दिया. उन्होंने उन्हीं लोगों को ब्राह्मणों के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया जो भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख अंग थे.!
ब्रिटिशों के आने से पहले भारत में कभी कोई जाति प्रथा नहीं थी और ना ही जाति प्रथा जैसी किसी चीज का जिक्र हमारे किसी प्राचीन ग्रंथ या एतिहासिक पुस्तकों में मिलता है. यहाँ तक कि, भारत और भारतीय संस्कृति पर लिखने वाले फाह्यान, ह्वेनसांग, अलबरूनी, मेगास्थनीज और टॉलमी जैसे विदेशी इतिहासकारों ने भारत में जाति व्यवस्था जैसी चीज का कोई जिक्र किया है. ब्राह्मणों द्वारा किसी का शोषण तो दूर की बात भारत में सामुदायिक नफरत का कभी कोई इतिहास नहीं रहा. भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अध्ययन करने आये सभी विदेशी यात्रियों ने एक भी ऐसा कोई तथ्य नहीं दिया जो यह प्रमाणित कर सके कि, भारतीय समाज में किसी प्रकार की कोई असमानता थी..''युद्ध की यह एक पुरानी रणनीति रही है, किसी किले को बाहरी दुश्मन उतनी आसानी से नहीं ढहा पाते जितनी जल्दी उसे किले के अंदर वाले ढहा डालते हैं, इसी रणनीति के तहत भारतीय समाज में ही विभाजन की रेखाएं खींच दी गयीं. प्रत्यक्ष युद्ध में ना जीत पाए इसलिए भारतीय समाज में फूट डालकर भारत को जीतने की साजिश ''
हर एक मनुष्य की छमता को देखते हुए ऐसी ही व्यवस्था के लिये हमारे पूर्वजों ने 4 वर्ण बनाये थे. ये सामाजिक नियम ब्राह्मणों ने नहीं बल्कि मानव समाज ने बनाये थे, ब्राह्मण भी इस व्यवस्था का हिस्सा थे जो समाज द्वारा खड़े किये गये थे. उनका पोषण भी समाज ही करता था. सोचने-विचारने और निर्णय लेने के अन्य की अपेक्षा ब्राह्मण वर्ग ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकता था इसलिए उन्हें समाज ने इस जिम्मेदारी के लिए चुना था.भारतीय समाज में जातियां नहीं ज्ञातियाँ थीं. ज्ञातियाँ अर्थात जिन्हें जिस क्षेत्र का ज्ञान हो : शिक्षक, पुरोहित, योद्धा, व्यापारी, किसान, ग्वाल, लोहार, कुम्हार, सुनार, चर्मकार, नाई इसी तरह भारत में कई सारी ज्ञातियाँ थीं. जो जिस क्षेत्र के ज्ञाता थे वे अपनी ज्ञातियों के अनुसार विभाजित थे, कोई भी व्यक्ति भारत में जाति के हिसाब से नहीं बल्कि ज्ञाति के हिसाब से जाना जाता था. जाति शब्द वास्तव में ज्ञाति का ही अपभ्रंश है जिसे जानबूझकर ग्लोबल माफियाओं ने अपने भाड़े के विद्वानों से स्थापित करवाया.
ब्राह्मण वर्ग में शिक्षक ज्ञाति के साथ ही पुरोहित भी हुआ करते थे अर्थात पर+हित, अर्थात ऐसे लोग जिनका कार्य ही दूसरों के हित के लिए सोचना था. मानवों के हित के लिए, समाज के हित के लिए, प्रकृति के हित के लिए, यहाँ तक कि पशु पक्षियों के हित से लेकर नदी-तालाबों और पेड़-पालवों का का भी हित. आज जिस बराबरी (Equality) और शोषक व्यवस्था का ढोल पीटा जाता है अगर किसी ने सभी के हित का ध्यान रखते हुए समाज के लिए आदर्श व्यवस्था का निर्माण किया था तो वो भारतीय समाज का ब्राह्मण वर्ग था. जिन्होंने हर किसी का काम बाँट दिया था. लोग सिर्फ वही करते थे जो वो सबसे अच्छी तरह से कर पाते थे.
मनुस्मृति जैसे महान ग्रंथ को भी ब्रिटिश काल में ही दूषित किया गया. इसके पहले इतिहास में कभी मनुस्मृति को लेकर कोई शिकायत नहीं मिलती. 18-1900 से पहले के साहित्यों में मनुस्मृति के खिलाफ एक भी शब्द कहीं देखने को नहीं मिलेगा. बल्कि मनुस्मृति की महिमा का बखान कई देशों के विद्वानों ने किया है. चूँकि मनुस्मृति ही वह विधान था जिससे भारतीय समाज चलता था इसलिए भारत के दुश्मनों ने सबसे ज्यादा इस ग्रंथ को ही बदनाम किया. जितने भी तथाकथित भारतीय समाज सुधारकों ने मनुस्मृति की निंदा की या उन्हें जलाया वास्तव में उन्हें मनुस्मृति का लेश मात्र भी ज्ञान ना था. उन्होंने मनुस्मृति की जगह यूरोपियनों की प्रोपोगंडा-स्मृति पढी थी.!M.A. Sherring (Matthew Atmore Sherring 1826–1880) नामक एक ईसाई पादरी का इस कार्य में महत्त्वपूर्ण रोल रहा था. उसने भारतीय समाज को जातियों अर्थात कास्ट में बांटने के लिए एक किताब लिखी थी Hindu Tribes and Castes (इस लिंक पर क्लिक कर आप ये पुस्तक पढ़ सकते हैं) इसके जरिये ग्लोबल माफियाओं ने ईसाई मिशनरियों के साथ मिलकर भारतीय समाज को कई धड़ों में बांटने की स्क्रिप्ट तैयार करवाई थी जो कि अब जाकर परवान चढ़ रही है. मैक्समूलर भी ऐसा ही भाड़े पर हायर किया गया इंडोलोजिस्ट था जिसने बाद में यह स्वीकार भी किया कि, उसे ब्रिटिश एम्पायर द्वारा भारतीय धर्म ग्रंथो को विकृत करने के लिए हायर नौकरी पर रखा गया था.!
भारत को ईसाई देश ना बना पाने की कुंठा......
ईसाईयों में उनके जन्म के समय से ही एक हवस रही है, पूरी दुनिया को ईसाईयत में बदलने की. इसमें उन्हें एक अलग ही चरमसुख की प्राप्ति होती है. मिशनरियों ने पहले यूरोप में पागन धर्म को मानने वाले यूरोपियनों को ईसाईयत में धर्मांतरित किया फिर यही मिशन उनका उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, आस्ट्रेलिया और एशिया में चला. लगभग हर जगह उन्हें मनचाही सफलता मिली और उन्होंने सफलतापूर्वक देश के देश ईसाई बना डाले. लेकिन भारत में वे ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि यहाँ उनका मुकाबला ब्राह्मणों से था ईसाई मिशनरियां और यूरोपीय लुटेरे एक बेहद संगठित गिरोह की तरह काम करते रहे हैं. जहाँ-जहाँ यूरोपीय लुटेरे लूट-मार करने के लिए जाते थे वहां पीछे-पीछे ईसाई मिशनरियां अपनी दूकान लेकर पहुंच जाती थीं. लुटे-पिटे परेशान लोग दुनिया के लिए समस्या हैं लेकिन वे ईसाई मिशनरियों के लिए एक मौका होते हैं. विपदाग्रस्त स्थलों में मिशनरियों की दुकान सबसे अच्छी चलती है.!भारत में ईसाई मिशनरियों को अपनी असफलता का कारण उसी समय पता चल गया था जब पुर्तगाली शैतान जेवियर्स (वही सेंट जेवियर जिसके नाम पर भारत में हजारों स्कूल कालेज हैं) गोवा में धर्मांतरण और लूटमार के लिए पहुंचा था. ब्राह्मण हमेशा से ही ईसाई मिशनरियों की राह में बड़ा रोड़ा रहे हैं. ब्रिटिशों ने भारत में जानबूझकर कई बार अकाल को जन्म दिया. जिसमें करोड़ों भारतीय मारे गये. सिर्फ बंगाल क्षेत्र में ही 1 करोड़ के लगभग भारतीयों का अकाल में सफाया हो गया. इस तबाही में ईसाई मिशनरियों ने गिद्धों की तरह हर मौके को लपकने की कोशिश की और भूखे लोगों को अनाज देने के नाम पर जमकर धर्मान्तरित किया. लेकिन फिर भी ईसाई मिशनरियों को वो सफलता कभी नहीं मिल पाई जिसकी उन्हें अपेक्षा थी.धर्मांतरण के लिए भारत आयीं ईसाई मिशनरियों ने वेटिकन को कई पत्र लिखे थे जिसमें उन्होंने भारत में ईसाईयत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा ब्राह्मणों को बताया था. ईसाई मिशनरियों के अनुसार, ब्राह्मणों की सामाजिक व्यवस्था के चलते हिन्दुओं को ईसाईयत में ढाल पाना असंभव है.ईसाई मिशनरियों से ऐसे इनपुट मिलने के बाद वेटिकन और Jesuit जैसे ईसाई संगठनों ने रणनीति तैयार की है कि, सबसे पहले ब्राह्मणों को बदनाम कर भारतीय समाज से उनकी उपयोगिता समाप्त की जाय. इसके पश्चात ही उनका ईसाईयत मिशन भारत में सफल हो पायेगा. वर्तमान में भारत में चल रहे ब्राह्मण विरोध का कारण ईसाईयत मिशन ही है. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि, भारतीय व्यवस्थाओं को सिरे से नकारने और यूरोपीय व्यवस्थाओं को अपनाने में भारत का वह तबका बहुत आगे है जिसने यूरोपीय माध्यम से अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षा पायी है.दुनिया के किसी भी कोने में (गैर ईसाई) जब कोई आपदा आती है तो वहां राहत बाद में पहुंचती हैं, अपनी दुकानें लेकर ईसाई मिशनरियाँ वहां पहले पहुंचती हैं......
आज यह एक रिसर्च का विषय है कि, ईसाई मिशनरियों में गैर ईसाईयों को ईसाईयत में ढालने की इतनी हवस क्यों है ? आखिर कौन सा आनंद मिलता है उन्हें ? आज जब हर वर्ग अपनी बेहतरी के लिए पसीना बहाने में व्यस्त है ऐसे में बर्बर ईसाई मिशनरियाँ आज भी धर्म परिवर्तन जैसी मध्ययुगीन सोच अपनाये हुए हैं. दुनिया बदल गयी लेकिन ईसाई मिशनरियां आज भी अपनी सोच बदलने को नहीं तैयार.!भारत का अंग्रेजी मीडिया भारत और भारतीय सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ ही ब्राह्मणों का कट्टर विरोधी है तो उसका यही कारण है.....