मैं पिछले दो दिन से मीडिया और सोसल मीडिया में देख रहा हु शिर्डी के साईं बाबा पर तरह तरह के समर्थन और बिरोध हो रहे है कुछ साईं भक्त तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पुतले भी फुक रहे है । मुझे तो मलेशिया की सर्वोच्च अदालत और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की सोच में कोई अंतर नजर नहीं आता। लगता है दोनों की सोच सामाजिक संरचना के ढांचे को अस्त-व्यस्त करती नजर आ रही है। मलेशिया की अदालत ने फैसला दे डाला कि ''अल्लाह'' मुसलमानों के लिए ही है, इस शब्द का दूसरे लोग इस्तेमाल नहीं करें। फैसला देने वाले जज शायद नहीं जानते कि "अल्लाह", "भगवान" अथवा "गॉड" ऎसे शब्द हैं जिन्हें किसी भी दायरे में नहीं बांधा जा सकता, बांधा जाना भी नहीं चाहिए। अल्लाह, भगवान और गॉड उन सबके हैं जो इन पर विश्वास करते हैं। इसी तरह शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साई बाबा को भगवान मानने से इंकार करते हुए उनकी पूजा नहीं किए जाने का आह्वान कर डाला। स्वामी स्वरूपानंद जिस पद पर आसीन हैं, वहां उनका दायित्व और बढ़ जाता है तथा उनसे उम्मीद की जाती है कि वे सबको साथ लेकर चलें।
किसी भी आराध्य की पूजा करना व्यक्ति की निजी आस्था से जुड़ा सवाल है और इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। ''क्या शंकराचार्य उन लोगों को रोक सकते हैं जो उन्हें पूजते हैं'' । देश में करोड़ों लोग ऎसे हैं जो सभी मंदिरों में जाकर भगवान को नमन करते हैं तो करोड़ों ऎसे भक्त भी होंगे जो एक ही भगवान की पूजा करते हैं। समझ में नहीं आता कि साई बाबा की पूजा करने से हिन्दू धर्म बंट कैसे जाएगा ? विदेशी ताकतों ने सदियों तक हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए क्या-कुछ नहीं किया लेकिन क्या हिन्दू धर्म खत्म हो गया ? गुलामी के काल में जब हिन्दू धर्म नहीं मिटा तो अब विदेशी ताकतों के इशारे पर कैसे बंट सकता है ? शंकराचार्य को साई के मंदिर बनाए जाने पर आपत्ति क्यों है ? उनका तर्क है कि मंदिरों के नाम पर कमाई की जा रही है।
साई मंदिर ही क्यों, देश के दूसरे ऎसे तमाम मंदिर हैं जहां हर साल करोड़ों-अरबों का चढ़ावा चढ़ता है। भगवान का दर्जा किसे दिया जाए, इसे लेकर शंकराचार्य के अपने तर्क हो सकते हैं और उन तर्को पर बहस भी हो सकती है। धार्मिक आस्था को विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। ऎसे विवाद समाज को कमजोर करने का ही काम करते हैं। खासकर शंकराचार्य और साधु-संतों को तो ऎसे विवादों से दूर ही रहना चाहिए। भारत धार्मिक आस्थाओं वाला देश है और यहां का व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, धार्मिक आस्था के बारे में उसके अपने तर्क हैं और उन्हीं के आधार पर वह अपने आराध्य को पूजता है ।
शंकराचार्य के उस कथन से मैं भी सहमत हु की साईं भगवान के अवतार नहीं है , साईं की पूजा नहीं की जानी चाहिए पर शंकराचार्य ये बतायेगे की उनके जैसे कई साधु संतो की पूजा क्यों की जाती है या करवाई जाती है ?
यदि संकराचार्य या साईं को गुरु मान लिया जाए तो फिर '''गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर:, गुरु साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मय श्री गुरुव नम:' । और इस श्लोक के साथ तो सारा विवाद ही ख़त्म हो जाना चाहिए ।
किसी भी आराध्य की पूजा करना व्यक्ति की निजी आस्था से जुड़ा सवाल है और इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। ''क्या शंकराचार्य उन लोगों को रोक सकते हैं जो उन्हें पूजते हैं'' । देश में करोड़ों लोग ऎसे हैं जो सभी मंदिरों में जाकर भगवान को नमन करते हैं तो करोड़ों ऎसे भक्त भी होंगे जो एक ही भगवान की पूजा करते हैं। समझ में नहीं आता कि साई बाबा की पूजा करने से हिन्दू धर्म बंट कैसे जाएगा ? विदेशी ताकतों ने सदियों तक हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए क्या-कुछ नहीं किया लेकिन क्या हिन्दू धर्म खत्म हो गया ? गुलामी के काल में जब हिन्दू धर्म नहीं मिटा तो अब विदेशी ताकतों के इशारे पर कैसे बंट सकता है ? शंकराचार्य को साई के मंदिर बनाए जाने पर आपत्ति क्यों है ? उनका तर्क है कि मंदिरों के नाम पर कमाई की जा रही है।
साई मंदिर ही क्यों, देश के दूसरे ऎसे तमाम मंदिर हैं जहां हर साल करोड़ों-अरबों का चढ़ावा चढ़ता है। भगवान का दर्जा किसे दिया जाए, इसे लेकर शंकराचार्य के अपने तर्क हो सकते हैं और उन तर्को पर बहस भी हो सकती है। धार्मिक आस्था को विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। ऎसे विवाद समाज को कमजोर करने का ही काम करते हैं। खासकर शंकराचार्य और साधु-संतों को तो ऎसे विवादों से दूर ही रहना चाहिए। भारत धार्मिक आस्थाओं वाला देश है और यहां का व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, धार्मिक आस्था के बारे में उसके अपने तर्क हैं और उन्हीं के आधार पर वह अपने आराध्य को पूजता है ।
शंकराचार्य के उस कथन से मैं भी सहमत हु की साईं भगवान के अवतार नहीं है , साईं की पूजा नहीं की जानी चाहिए पर शंकराचार्य ये बतायेगे की उनके जैसे कई साधु संतो की पूजा क्यों की जाती है या करवाई जाती है ?
यदि संकराचार्य या साईं को गुरु मान लिया जाए तो फिर '''गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर:, गुरु साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मय श्री गुरुव नम:' । और इस श्लोक के साथ तो सारा विवाद ही ख़त्म हो जाना चाहिए ।
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